page-oneशराबबंदी जैसे मसले पर खुलकर अपनी राय प्रकट करते हुए मुझे खुशी हो रही है. इस अभियान की सबसे बड़ी सार्थकता यह है कि धीरे-धीरे देशभर की महिलाएं इससे जुड़ रही हैं और जो सक्रिय तौर पर अभियान में शामिल नहीं हो पा रही हैं, वह भी खुद को इससे जुड़ा महसूस कर रही हैं. महिला संगठनों के साथ, सामाजिक, बौद्धिक, आर्थिक और गैर सरकारी संस्थाओं का इस अभियान से जुड़ना रेखांकित करने लायक है. यहां तक कि योग और प्राकृतिक उपचार का भी इसके साथ जुड़ना मुझे हृदय से प्रसन्नता दे रहा है. शराबबंदी का काम बहुत बड़ा काम है, इसका अहसास मुझे पहले से ही था, लेकिन ये इतना बड़ा है इसका अहसास इसको लागू करने के बाद हुआ. जब मैं युवा था, जेपी मूवमेंट में था, उस समय से और यह कहें कि छात्र जीवन से ही मैं शराब के खिलाफ रहा. मेरे मन में ये बात आती थी कि कभी मुझे मौका मिलेगा तो शराब जरूर बंद करूंगा. जब बिहार में काम करने का मौका मिला नवंबर 2005 से, तब कई बार ये बात मेरे दिमाग में आती थी कि कैसे 1977 में जनता पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रद्धेय मोरारजी भाई देसाई जी भी शराब के बहुत खिलाफ थे. बिहार में उस समय समाजवादी नेता जननायक स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर जी के नेतृत्व में सरकार बनी तो उन्होंने बिहार में शराबबंदी लागू की थी. लेकिन बाद में उसको वापस ले लिया गया. जब भी शराबबंदी लागू करने की बात मेरे मन में आई, तो अनेक तरह के तथ्य दिमाग में कौंधते थे. अमेरिका ने भी इसे लागू किया था, फिर उसको वापस लेना पड़ा. लोग रूस की भी बात करते थे. अनेक लोग देश और प्रदेश की बात करते थे. ये भी कहते थे कि लागू तो कर दिया जाता है, लेकिन वो सफल नहीं होता है और इससे दो नंबर का कारोबार बढ़ता है. जहरीली शराब बनने लगती है.

ऐसे शुरू हुआ मद्य निषेध दिवस

मैं कई काम करता रहता हूं. कई कामों में व्यस्त रहता हूं. बिहार जैसे राज्य को संभालना और बिहार को प्रगति के रास्ते पर ले जाना था. अन्य सभी प्रकार के कार्यों में लगे रहने के बावजूद मन में यह एक बात अटकी रहती थी. जब हम 2010 में दोबारा आए तो हमने एक फैसला किया. मैंने कहा कि जो उत्पाद विभाग इसको देखता है, उसका पूरा नाम है उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग. मैंने विभाग के लोगों से कहा कि ये केवल उत्पाद ही नहीं है, एक्साइज़ डिपार्टमेंट ही नहीं है, बल्कि मद्य निषेध का भी काम इसी का है. अंततोगत्वा, प्रोहिबिशन (निषेध) लागू करना इसका ध्येय है. हमने तय किया कि डिपार्टमेंट का एक पक्ष तो यह है कि उत्पाद से आमदनी बढ़ रही है और सरकार की आमदनी भी बढ़ गई, इसमें कोई शक नहीं है. धीरे-धीरे शराब का पूरा कारोबार स्वत: चैनल में आने लगा. मैं तो कुछ जानता नहीं था. मैंने घंटों सिर्फ इस डिपार्टमेंट से जुड़े लोगों के साथ बैठ कर केवल उन्हें सुना. उन लोगों के सामने अपनी जिज्ञासा रखता गया. मुझे ऐसा बताया गया कि इसमें मोनोपोली है. मैंने कहा कि इस मोनोपोली को तोड़ दीजिए. मोनोपोली को तोड़ दिया गया और हमने होलसेल ट्रेेड बनाया. इसे सरकार ने ले लिया और नतीजा देखिए उसका. पहले दो से तीन सौ करोड़ शराब के व्यापार से आता था जो बढ़ते-बढ़ते 5000 करोड़ हो गया. लेकिन, जब इसकी आमदनी बढ़ती थी तो मेरे मन में बेचैनी बढ़ती थी. दुकानें ज्यादा नहीं बढ़ीं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मैंने देखा कि इसकी चर्चा और इसका प्रचलन दोनों बढ़ा.

जब हम 2010 में दोबारा जीतकर आए थे तो हमने यही कहा कि मद्य-निषेध पर ध्यान दीजिए. मद्य-निषेध दिवस का आयोजन शुरू किया गया. 26 नवंबर को हमने दूसरी बार शपथ ली तो कहा कि 26 नवंबर को मद्य-निषेध दिवस होगा. हमारे यहां सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़ी महिलाएं और दूसरे ग्रुप की महिलाएं आंदोलन करती थीं, तो हम उनको शाबाशी देते थे और कहते थे कि जिस गांव में शराब बंद हो जाएगी और लोग शराब से मुक्त हो जाएंगे, उस गांव को पुरस्कृत करेंगे. उनके  लिए अतिरिक्त योजना भी देंगे. इनसेंटिव देना शुरू किया. अगर बच्ची अच्छी पेंटिंग बनाती है तो उनको पुरस्कृत करना, कोई अच्छी तस्वीर बनाए, पेंटिंग बनाए, उसको पुरस्कार देना, कोई शराबबंदी के लिए नारा अच्छा लिखे तो उसको पुरस्कार देना प्रारंभ किया. मैसेज वगैरह भी मेरा खूब चलता था. एक सिलसिला शुरू किया, लेकिन मैंने देखा कि इन सबसे शराब की खपत बढ़ती ही गई. मन में दुविधा थी, 1977 में जब सरकार बनी थी, जब शराबबंदी लागू की गई और फिर बाद की सरकार ने उसे वापस ले लिया, इसलिए मन में दुविधा थी.

शराबबंदी का श्रेय महिलाओं को

पिछले साल 9 जुलाई 2015 को पटना में महिलाओं का एक कार्यक्रम था. ग्राम वार्ता कार्यक्रम का आयोजन वीमन डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा पटना के सबसे बड़े सभागार श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में किया गया था. नारी सशक्तिकरण पर बात कहकर अभी हम बैठे ही थे कि पीछे से कुछ महिलाओं ने आवाज लगाई शराबबंदी की. मुझको लगा कि शराब बंद करने की बात कर रही हैं. हमारे साथ जो साथी बैठे थे, मैंने उन लोगों से पूछा कि महिलाएं क्या कह रही हैं, तो उन लोगों ने कहा कि वे शराबबंदी लागू करने की बात कर रही हैं. मैं आपको कहना चाहता हूं कि मेरे मन की सारी दुविधा मिट गई और मैं माइक पर आया और मैंने कहा कि अगली बार आएंगे तो पूर्ण शराबबंदी लागू करेंगे. जुलाई का महीना था और नवंबर में परिणाम निकला. सितंबर, अक्टूबर, नवंबर ये तीनों महीने चुनाव के थे. चुनाव अभियान चल रहा था. बिहार में पांच से छह चरणों में चुनाव होते हैं. लंबा चुनाव चलता है. यह घटना चुनाव परिणाम आने से दो महीने पहले की है. मैंने कहा कि अगली बार आएंगे तो लागू करेंगे और लोगों ने फिर तीसरी बार मौका दे दिया. 20 नवंबर को शपथ ग्रहण हुआ. 26 नवंबर को मद्य-निषेध दिवस था, उसी दिन मेरा पहला सार्वजनिक कार्यक्रम था. मैंने उस कार्यक्रम में जाकर कहा कि एक अप्रैल से बिहार में शराबबंदी लागू की जाएगी. जब इसका ऐलान कर दिया तो इसकी पूरी तैयारी भी की. बिहार में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं के साढ़े पांच लाख समूह हैं. 2017 तक वह संख्या बढ़कर दस लाख हो जाएगी. अभी इससे 56 लाख ग्रामीण परिवार जुड़े हुए हैं. बिहार के प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक नियोजन में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है. पंचायत शिक्षकों के नियोजन में भी 50 प्रतिशत का आरक्षण दिया हुआ है. यहां भारी संख्या में महिलाएं प्राइमरी टीचर्स हैं. इन महिला शिक्षकों व स्कूल के बच्चों को मोबिलाइज किया.

शराबबंदी के लिए एक बड़ा कार्यक्रम 30 जनवरी को लॉन्च किया गया था. मैंने खुद एक-एक चीज को देखा और समझने की कोशिश की कि आखिर 1977 में ऐसा क्या हुआ था, जिससे शराबबंदी असफल हो गई. एक-एक पहलू पर गौर किया कि क्या-क्या होना चाहिए. बहुत लोग शराब की लत के इस कदर शिकार हो जाते हैं कि वे शराब नहीं छोड़ पाते. बिहार में पहले नशामुक्ति केंद्र काम नहीं करता था. मैंने हर जिले में नशामुक्ति केंद्र खोला, जिला अस्पतालों में नशामुक्ति के लिए ओरिएन्टेशन या ट्रेनिंग कार्यक्रम शुरू करवाया. एम्स और बैंगलोर की एक संस्था को जोड़कर यह कार्यक्रम शुरू किया गया. एक-एक पहलू को देखा गया. कानून में क्या कमी है, उसका अध्ययन करके उसमें सुधार लाने के लिए संशोधन किया गया. यह सब करने से मार्च तक एक माहौल बना. मैंने महिलाओं की मांग पर पूर्ण शराबबंदी का ऐलान किया और इसे लागू किया. महिलाओं में इस प्रकार का मोबिलाइजेशन होना चाहिए और इसके  माध्यम से हर जगह एक सशक्त अभियान चले, ये काम हमें करना है. बच्चों को कहा गया कि वे अपने अभिभावकों से शपथ पत्र भरवाएं कि मैं शराब नहीं पीऊंगा और दूसरों को शराब नहीं पीने के लिए प्रेरित करूंगा.

लोगों ने शपथ पत्र दिए

यह खुशी की बात है कि बिहार में 31 मार्च तक एक करोड़ उन्नीस लाख पुरुषों ने शपथ पत्र भरा है. पूर्ण शराबबंदी का संदेश घर-घर तक पहुंचा. नौ लाख लोगों ने दीवारों पर नारे लिखे. मैंने पटना से नारा लिखकर नहीं भेजा था. लोगों ने स्वत: यह सब किया. नारा लिखने में भी लोगों के बीच प्रतिस्पर्धा हुई. लोगों ने खुद नारे बनाए. शराबबंदी पर लोगों ने गीत बनाए. मैं जहां-जहां जाता हूं, लोग वह गीत सुनाते हैं तो मन प्रसन्न हो जाता है. हजारों जगहों पर नुक्कड़ नाटक, गीत के कार्यक्रम आयोजित हुए और अभी भी हो रहे हैं. एक अप्रैल से पहले बिहार के हर घर तक संदेश पहुंच गया था कि बिहार में शराब बंद होने वाला है. यह भी कहा गया था कि 31 मार्च को जितनी भी शराब है, सब नष्ट कर दिया जाएगा. बड़े पैमाने पर बुल्डोजर से शराब की बोतलों को नष्ट किए जाने की तस्वीरें भी जारी की गईं. बिहार में एक स्वस्थ माहौल बना. शुरुआत में यह नीति बनी थी कि गांव में देसी-विदेशी शराब सब बंद कर दिया जाए और शहरों में अभी कुछ दिन विदेशी शराब चालू रहे. मुझे ऐसा लगा था कि गांव में माहौल बन गया है, फिर शहरों में माहौल बनाया जाएगा. उसके बाद वहां भी चरणबद्ध तरीके से शराब बंद कर देंगे. एक अप्रैल से 90 प्रतिशत शराब की दुकानें बंद हो गईं. लेकिन शहरों में जब शराब की दुकानों पर महिलाओं ने विरोध दर्ज कराना शुरू किया तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ. अभी मैं सोच रहा था कि शहरों में वातावरण बनाएंगे तब शराब बंद करेंगे. यहां तो पहले से ही माहौल बना हुआ है. महिलाएं दुकान नहीं खुलने दे रही हैं. यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई इसलिए पांच अप्रैल से शहर में भी शराब की बिक्री बंद कर दी गई. देशी-विदेशी सारी शराब की दुकानें बंद हो गईं. बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी गई. बिहार ड्राई स्टेट बन गया.

लोग पूछने लगे कि सरकार ने फेजवाइज शराबबंदी की

घोषणा की थी, अब इसे पांच दिन में ही लागू कर दिया. मैंने कहा कि किसने कहा था फेजवाइज और ये कब कहा था कि दूसरा फेज कितने दिनों में आएगा? विधानसभा में जब इस पर बहस चल रही थी तो विपक्ष ने पूछा कि विदेशी शराब कब बंद कीजिएगा, दूसरा फेज कब लागू होगा? मैं इसका जवाब नहीं देता था. मैं कहता था कि जब आप लोगों का सहयोग मिलेगा तो बंद हो जाएगा. समयसीमा बताने की कोई जरूरत ही नहीं है. मैंने अपना वादा पूरा किया और एक अप्रैल से देसी और पांच अप्रैल से शहरों में विदेशी शराब भी बंद कर दिया. बिहार में एक नया एक्साइज एक्ट आया और पूरे बिहार में लागू हो गया. 80 प्रतिशत और 20 प्रतिशत की कोई बात ही नहीं है, पूरे सौ प्रतिशत शराबबंदी लागू हुई.

बिहार से लगी सीमा पर  समस्या  

बिहार से सटे उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, नेपाल के बॉर्डर हैं. इन इलाकों में खूब शराब मिलती है. कुछ लोग आदत से लाचार हैं, जो उन इलाकों में जा कर शराब पी लेते थे. यूपी के बलिया इलाके में तो बकायदा शराब दुकानदारों ने खाट वगैरह का भी इंतजाम कर दिया कि आइए यहीं पीकर रात में आराम करिए. बिहार सरकार ने बॉर्डर एरिया में इतनी सख्ती बरती है कि ऐसे लोगों को मुश्किल हो रही है. प्रशासन को बेहतर इक्वीपमेंट्‌स उपलब्ध कराए गए. इस सब से दूसरे राज्यों में जा कर पीने वालों और शराब का दो नंबरी धंधा करने वालों में डर पैदा हो गया. पूर्ण शराबबंदी की घोषणा के हफ्ते भर के अंदर शराब ले जाते हुए एक एबुंलेंस को पकड़ा गया. तात्पर्य यह है कि एंबुलेस की भी चेकिंग की जा रही है. दूसरी तरफ हमने कानून में यह प्रावधान किया कि कोई शराब बनाएगा, जहरीली शराब बनाएगा और इसे पीकर किसी की मौत होगी, वैसी स्थिति में शराब बनाने वाले को मृत्यु दंड या आजीवन कारावास की सजा होगी. अगर शराब पीकर कोई ड्रामा करते हुए दिख जाए, तो उसे दस साल की सजा होगी. हर प्रकार से कानून को कड़ा बनाया गया. यह भी प्रावधान रखा गया कि कोई पुलिस या एक्साइज़ वाला जानबूझकर निर्दोष व्यक्ति को फंसाने की कोशिश करेगा तो उस पर भी सख्त कार्रवाई होगी. एक उदाहरण बताता हूं. जीटी रोड बॉर्डर एरिया से जुड़ा हुआ है. वहां से एक शिकायत आई कि बिहार से बाहर के एक व्यक्ति को एक्साइज वालों ने तंग किया और उस आदमी से पैसे की मांग की. उसे धमकाया कि इतना पैसा दो नहीं तो एक्साइज एक्ट में बुक कर देंगे. जैसे ही ये शिकायत आई, इसकी जांच की गई. इस बात का प्रमाण मिला कि उस व्यक्ति ने एटीएम से पैसा निकाल कर एक्साइज वालों को दिया था. इस मामले में न सिर्फ मुकदमा हुआ बल्कि 48 घंटे के अंदर उन सातों एक्साइज वालों को बर्खास्त भी कर दिया गया.

पुलिस वालों ने भी शपथ पत्र भरा

लोग कहते थे कि शराबबंदी लागू होने के बाद पुलिस वाला मिलीभगत कर धंधा करने लगेगा. इसके लिए मैंने एक-एक थानेदार से यह शपथ पत्र भरवाया कि उनके इलाके में शराब का कोई धंधा नहीं होगा. मैंने यह भी चेतावनी दी कि अगर उनके इलाके में शराब का धंधा पकड़ा गया, तो उन पर कार्रवाई तो होगी ही, साथ ही दस साल तक उनकी किसी भी थाने में पोस्टिंग नहीं होगी. एक-एक पहलू पर गौर करते हुए कानूनी पक्ष पर काम किया गया. इसका परिणाम है कि अब बिहार में प्रभावशाली तरीके से शराबबंदी लागू है. मैं झारखंड या उत्तर प्रदेश, जहां भी गया, वहां के मुख्यमंत्रियों से बोला कि मेरी बात पर विश्वास मत कीजिए, अपनी टीम भेज दीजिए बिहार और खुद देख लीजिए कि समाज में क्या सार्थक परिवर्तन घटित हो रहा है. शराब से सबसे ज्यादा पीड़ित तो गरीब आदमी ही है. पहले गरीब अपनी मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा शराब में बर्बाद कर देता था. मान लीजिए कि एक गरीब आदमी ने एक दिन में 200 रुपये कमाए, तो कम से कम डेढ़ सौ रुपये शराब में खर्च कर देता था. शाम को शराब पीकर घर लौटने के बाद झगड़ा, मारपीट करता था. महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती थीं. बिहार में महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप ने बहुत अभियान चलाया है इसके खिलाफ. अभी मैं शराबबंदी लागू करने के  बाद चैन से नहीं बैठने वाला हूं और न ही अधिकारियों को चैन से बैठने दूंगा. बिहार में नौ डिवीजन हैं. सभी डिवीजन में मैंने स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं का सम्मेलन किया, उनके अनुभव को सुना कि तब और अब में क्या बदलाव आए हैं? एक-एक महिला जब शराबबंदी को लेकर अपना अनुभव सुनाती है तो मन प्रसन्न हो जाता है. महिलाएं जब बताती हैं कि किस तरह उनका परिवार उजड़ गया था, बर्बाद हो गया था, वे लड़ती थीं और जब शराबबंदी लागू हो गई है तो कैसे उनके जीवन में बदलाव आ गया है. महिलाएं बताती हैं कि उनके पति जब पहले आते थे, तो शराब पीकर आते थे और मारपीट करते थे, लेकिन अब वे शाम में बाजार से सब्जी लेकर आते हैं.

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