वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड इंटरनेशनल के मुताबिक वर्ष 2012 में वैश्विक स्तर पर प्रोस्टेट कैंसर के 11 लाख मामले दर्ज किए गए. चूंकि इस तरह का कैंसर उम्र के आखिरी पड़ाव में होता है इसलिए इस तरह के ज्यादातर मामले उन देशों में देखने को मिलते हैं जहां पर लोगों की जीवन प्रत्याशा(लाइफ एक्सपेक्टेंसी) अधिक होती है. चूंकी भारत में भी लोगों की औसत उम्र तकरीबन 63 वर्ष है इसलिए प्रोस्टेट कैंसर के मामलों में यहां भी तेजी से बढ़ रहे हैं. नेशनल कैंसर रजिस्टरी के आंकड़ों के मुताबिक भारत में इस इस रोग की वृद्धिदर सालाना एक फीसदी है. दूसरे तरह की तुलना में प्रोस्टेट कैंसर की पहचान प्राथमिक अवस्था में हो जाती है इसलिए इसका इलाज संभव हो जाता है, और इलाज के बाद मरीज सामान्य तरह जीवन जी सकता है.
प्रोस्टेट, एक स्वस्थ वयस्क पुरुष में प्रोस्टेट अखरोट के आकर की एक ग्रंथि(ग्लैंड) होती है. यह उम्र के साथ बढ़ती जाती है. इस ग्रंथि के आकार में वृद्धि पुरुषों में पाए जाने वाले हार्मोन टेस्टोस्टेरोन पर निर्भर करती है. यह ग्रंथि पुरुषों के जननांग से जुड़ी होती है. प्रजनन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, यह ग्रंथि में शुक्राणुओं को पोषण देने और वीर्य को तरल रखने का काम करती है. प्रोस्टेटाइटिस, प्रोस्टेट ग्रंथि को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख संक्रमण होता है. प्रोस्टेटाइटिस, प्रोस्टेट ग्रंथि में उम्र के साथ होने वाली असामान्य वृद्धि से संबंधित होता है, जिसे बीएचपी (बेनाईन हाईपरट्रॉफी ऑफ प्रोस्टेट) कहते हैं. बीएचपी कैंसर नहीं होता बल्कि इसका संबंध पेशाब में तकलीफ से होता है. इस वृद्धि के कारण पेशाब की नली दब जाती है, इस वजह से पेशाब करने में परेशानी होने लगती है. इसका ईलाज दवाईयों या सर्जरी के जरिया किया जा सकता है.
क्या है प्रोस्टेट कैंसर?
प्रोस्टेट कैंसर को प्रोस्टेट का कार्सिनोमा कहते हैं. यह कैंसर प्रोस्टेटाइटिस या बीपीएच की तरह प्रोस्टेट में उम्र के साथ होने वाली वृद्धि में असामान्य तेज़ी की वजह से होता है. आम तौर पर यह कैंसर धीरे-धीरे बढ़ता है और प्रारंभिक चरण में यह केवल प्रोस्टेट तक ही सीमित रहता है इस स्थिति में यह ज्यादा घातक नहीं होता है. यदि समय रहते इसका उपचार नहीं किया जाए तो यह आक्रामक रुख अख्तियार कर लेता है, और तेजी से शरीर के दूसरे हिस्सों में पहुंचने लगता है. नतीजतन रोगी को बहुत ज्यादा दर्द और पीड़ा का सामना करना पड़ता है. अंततः रोगी की मृत्यु हो जाती है.
किसे हो सकता है प्रोस्टेट कैंसर ?
चालीस वर्ष से कम आयु के लोगों में प्रोस्टेट कैंसर बहुत कम या कहें या कहें नहीं के बराबर देखने को मिलता है. लेकिन उम्र का पचासवां पड़ाव पार करते ही इस वीमारी का खतरा लगातार बढ़ता जाता है. क्योंकि इस कैंसर के तकरीबन 70 प्रतिशत मामले 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों में पाए गए हैं. हालांकि अभी तक हो रहे शोध के बावजूद यह मालूम नहीं हो सका है कि वृद्धावस्था में प्रोस्टेट कैंसर का खतरा क्यों बढ़ जाता है. लेकिन शोध यह जरुर बताते हैं कि 70 वर्ष से अधिक उम्र के ज्यादातर पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर किसी न किसी रूप में ज़रूर पाया जाता है. जो लोग अपने खाने में फल-सब्जियों की बजाए लाल मांस और उच्च वसा वाले डेयरी उत्पादों का ज्यादा सेवन करते हैं उनको इस रोग से ग्रसित होने का खतरा ज्यादा होता है. मोटापा भी प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को बढ़ाता है. अनुवांशिक कारणों की वजह से भी प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना होती है, यानी जिस परिवार में इस बीमारी की हिस्ट्री रही हो, उस परिवार के अन्य सदस्यों को भी इस बीमारी से ग्रसित होने का खतरा रहता है. रिसर्च से यह साबित हुआ है अनुवांशिक जीन म्युटेशन भी इसका कारण हो सकता है. कुछ मामलों में इसे बहुत पुराने प्रोस्टेटाइटिस, संक्रमित व्यकित के साथ यौन संबंध बनाने, धुम्रपान और शराबनोशी से भी जोड़ कर देखा जाता है.
प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण
पेशाब में जलन, रात में बार-बार पेशाब लगना, सामान्य से ज्यादा पेशाब होना, पेशाब करने में कठिनाई होना, पेशाब रोकने मेंहद से ज्यादा तक़लीफ होना, पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब में खून आना, वीर्य में भी खून आना आदि इसके लक्षण हैं. शरीर में, विशेष कर हड्डियों में लगातार दर्द का रहना, कमर के निचले हिस्से खासकर कुल्हे और जांघों में जकड़न रहना आदि इसके अन्य लक्षण हैं.
जांच और पहचान
ज्यादातर मामलों में प्रोस्टेट कैंसर की पहचान बीमारी के पहले ही चरण में कर ली जाती है. नियमित रेक्टल टेस्ट और सीरम पीएसए (प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन) इसकी पहचान करने का सबसे सबसे कारगर तरीका है. पीएसए का काम ट्यूमर की पहचान करना होता है. इसकी पुष्टि के लिए रोगी की बायोप्सी की जाती है. आमतौर पर यह एक दर्द रहित प्रक्रिया होती है जो यूरोलोजिस्ट द्वारा लोकल एनेस्थीशिया और अल्ट्रासाउंड के जरिया की जाती है. इस दौरान निडिल की मदद से प्रोस्टेट के एक छोटे से हिस्से को निकाला जाता है. इसके बाद इसकी जांच की जाती है. जांच परिणाम सकारात्मक होने की स्थिति में शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलने की जांच की जाती है कि इससे शरीर का कौन सा अंग किस स्थिति तक प्रभावित हुआ है. इस के लिया पेल्विक एरिया(कूल्हे के आस-पास) की एमआरआई जांच की जाती है. अगर चिकित्सक को इसके छाती और पेट तक फैलने की आशंका हो तो इसकी जांच के लिए वह एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड की मदद लेता है. यह बहुत ही अच्छी बात है कि बात है कि प्रोस्टेट कैंसर के ज्यादातर मामलों की पहचान रोग के पहले चरण में ही हो जाती है. ज्यादातर मामलों में यह संक्रामक नहीं होता है और शरीर के दूसरे हिस्सों को अपनी चपेट में नहीं लेता है, और सिर्फ प्रोस्टेट तक ही सिमित रहता है.
क्या है उपचार
इस कैंसर का विशेषज्ञ यूरोलॉजिस्ट होता है. यूरोलॉजिस्ट ही यह निर्णय लेता है कि मरीज़ का इलाज कैसे किया जाए. इसके लिए वह मरीज़ की उम्र, उसकी शारीरिक क्षमता, उसकी अन्य बीमारियों, कैंसर की अवस्था और बायोप्सी के परिणामों के आधार पर लेता है. आम तौर पर अत्याधिक वृद्ध रोगियों का सक्रिय उपचार नहीं किया जाता है. चिकित्सक ऐसे रोगियों के लिए वैट एन्ड वाच(रुको और प्रतीक्षा करो) की निति अपनाते हैं. एक निश्चित और छोटे अंतराल पर रोगी की जांच की जाती है और यह पता किया जाता है कि कैंसर किस अवस्था में है और इसमें क्या तब्दीली आई है. सामान्य तौर पर प्रोस्टेट कैंसर का ईलाज ऑपरेशन के जरिया किया जाता है और कैंसर ग्रस्त ऊतकों को शरीर से अलग कर दिया जाता है. इस ऑपरेशन को रेडिकल प्रोस्टेेटेक्टोमी कहते हैं. मरीज़ की दशा, तकनीक और विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हुए ऑपरेशन की पद्धति का चयन किया जाता है, कई मामले में एक लम्बा चीरा लगा कर ऑपरेशन किया जाता है और कुछ मामलों में लेप्रोस्कोपिक विधि (की-होल सर्जरी) के जरिया ऑपरेशन किया जाता है. इसे दुरबीन प्रणाली भी कहते हैं देश के कुछ चुनिंदा अस्पतालों में रोबोट की सहायता से भी ऑपरेशन किया जाता है. सर्जरी के जरिए ईलाज की सफलता दर बेहद अच्छी है लेकिन इसके कुछ साइड-इफेक्ट भी हैं, जैसे कि नपुंसकता, पेशाब करने में तकलीफ आदि. कई एडवांस स्टेज के मामलों में वृषण (फोते) को निकाल देने की सलाह दी जाती है ताकि कैंसर को फैलने से रोका जा सके.
रेडियोथेरेपी का उपयोग प्रोस्टेट कैंसर के प्राथमिक उपचार के तौर पर किया जाता है. इस पद्धत्ति में सुई के जरिया अल्ट्रासाउंड की मदद से रेडिएशन, प्रोस्टेट में दाखिल किया जाता है. रेडिएशन का इस्तेमाल उस वक़्त भी होता है जब सर्जरी के जरिया कैंसर ग्रस्त उतकों को पूरी तरह से हटाया नहीं जा सकता है. उसी तरह हारमोन थेरेपी का उपयोग टेस्टेस्टोरोन के स्तर को दबाने के लिए किया जाता है. हारमोनथेरेपी पहले चरण और अंतिम चरण दोनों अवस्था में उपयोगी होता है.कीमोथेरेपी का प्रयोग विकसित अवस्था के कैंसर में होता है जब हारमोनल उपचार से प्रोस्टेट कैंसर का इलाज संभव नहीं हो सकता है. जिस में कैंसर ग्रस्त उत्तकों को मारने और इस के शरीर के दूसरे अंगों में फैलने से रोकने के लिए ताक़तवर दवाओं का उपयोग किया जाता है. क्रायोथेरेपी, रेडियोफ्रिक्वेंसी, हाई इंटेंसिटी फोकस अल्ट्रासाउंड का उपयोग प्राथमिक अवस्था के रोगियों के इलाज के लिए किया जाता है. इन पद्धत्तियों का उपयोग उन रोगियों के लिए भी किया जाता है जिनकी उम्र या किसी और कारण से बड़ी सर्जरी नहीं की जा सकती. उपचार में उपरोक्त पद्धतियों का इस्तेमाल कैसे हो इस का फैसला यूरोलोजिस्ट ही करता है. खून की जांच और पीएसए स्तर और अल्ट्रासाउंड के जरिया इस रोग के दोबारा उत्पन्न होने की संभावना को रोकने के लिए किया जाता है. उपचार के जो तरीके हैं उनके साइड इफेक्ट भी होते हैं लेकिन उन्नत सर्जिकल तकनीक, हार्मोनल थेरेपी, रेडिएशनथेरेपी और कीमोथेरेपी के उपयोग से साइड इफ़ेक्ट को बहुत हद तक कम कर लिया गया है. प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के बाद एक सामान्य ज़िन्दगी गुज़ारना मुमकिन है.
गरीबों के और वंचितों के लिए उपचार
कैंसर का उपचार बहुत ही महंगा है. इसके इलाज का बोझ गरीब आदमी नहीं उठा सकता. ऐसी बहुत सी संस्थाएं है जो गरीब कैंसर मरीजों को आर्थिक सहायता प्रदान करती हैं. इंडियन कैंसर सोसाइटी उनमें से एक संस्था है जो गरीबों और वंचित वर्ग के लोगों के कैंसर के उपचार के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करती है, इसके लिए उसने कैंसर क्योर फंड स्थापित किया है. कैंसर फंड सालाना 1 लाख से कम आय वाले परिवारों को कैंसर के इलाज के
लिए आर्थिक सहायता देता है. इसकी अधिक जानकारी और सहायता के लिए http://www.indiancancersociaty.org पर संपर्क कर सकते हैं. और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री के एक फंड जिसे एचएमडीजी कहा जाता है इसके अंतर्गत 75 हजार कम आय वर्ग के परिवारों को कैंसर के उपचार के लिए 50 हजार से एक लाख तक की आर्थिक सहायता दी जाती है, इसी तरह राज्य सरकारों की गरीबों के लिए कैंसर के ईलाज के लिए योजनाएं एवं फंड हैं, जैसे पश्चिम बंगाल सरकार कैंसर के उपचार के लिए 1 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देती है.
अस्पतालों के नाम
बैंगलोर के श्री शंकर हॉस्पीटल एंड कैंसर रिसर्च सेंटर में 200 में से 100 बेड गरीबों के मुफ्त ईलाज के लिए सुरक्षित रखा गया है. टाटा मेमोरियल हॉस्पीटल, मुंबई, श्री राम कृष्ण कैंसर हास्पीटल, सहारनपुर और एम्स, नई दिल्ली, महावीस कैंसर संस्थान पटना जैसे अस्पतालों में मुफ्त और सस्ता इलाज उपलब्ध है.
इलाज़ के बाद सामान्य जीवन जीना संभव है
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