मध्य प्रदेश में लम्बे समय बाद कांग्रेसी उत्साहित नजर आ रहे हैं, इसका नजारा भोपाल में राहुल गांधी के रोड शो के दौरान देखने को मिला. इस दौरान भोपाल की सड़कों पर लोगों का भारी हुजूम उमड़ा हुआ था. इसके लिए प्रदेशभर से कांग्रेसी कार्यकर्ता भोपाल पहुंचे थे. अंत में राहुल ने दशहरा मैदान में ‘कार्यकर्ता सम्मेलन’ को सम्बोधित किया. कांग्रेस ने राहुल के इस रोड शो से यह संदेश देने की कोशिश की कि इस बार वे पूरी ताकत से चुनाव लड़ने वाली है. इस दौरान राहुल ने शिवराज सिंह चौहान को घोषणा मशीन बताते हुए कहा कि ‘शिवराज अब तक करीब 21 हजार घोषणाएं कर चुके हैं और मध्य प्रदेश बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और बलात्कार में नंबर वन बन गया है.’ इसके साथ शिवराज के तर्ज पर उन्होंने यह घोषणा भी कर डाली कि यदि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, तो हम मेड इन भोपाल और मेड इन मध्य प्रदेश मोबाइल बनाएंगे.
इन घोषणाओं से इतर राहुल के इस एक दिवसीय यात्रा में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इस दौरान दिग्विजय सिंह नेपथ्य में रहे. यहां तक कि राहुल गांधी के सभास्थल पर प्रदेश कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं के कटआउट थे, लेकिन इन सबके बीच दिग्विजय सिंह का कटआउट नदारद था. यही नहीं, रोड शो के दौरान राहुल गांधी जिस बस में सवार थे, उसमें भी दिग्विजय सिंह नहीं थे. विवाद होने के बाद दिग्विजय सिंह की तरफ से यह सफाई दी गई कि मैंने खुद ही कटआउट नहीं लगाने के लिए बोला था. जबकि इस सम्बन्ध में कमलनाथ ने कहा कि ये भूल थी, मैं उनसे इस मामले में व्यक्तिगत और सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं. हालांकि कमलनाथ का यह बयान हजम नहीं होता. यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि मध्य प्रदेश की राजनीति में अभी दिग्विजय सिंह की ऐसी स्थिति नहीं हुई है कि इतने बड़े कार्यक्रम में पार्टी उनका कटआउट लगाना भूल जाए. तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आज भी दिग्विजय सिंह भूलने नहीं, बल्कि याद रखे जाने वाले नेता हैं. मध्य प्रदेश में उन्हें अगर कोई सबसे ज्यादा याद करता है, तो वे खुद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान हैं. वे लगातार अपने कार्यकाल की तुलना दिग्विजय सिंह के कार्यकाल से कर रहे हैं. ऐसे में इस बात की संभावना है कि इस चुनाव के दौरान कांग्रेस जानबूझकर दिग्विजय सिंह को फ्रंट पर ना रखना चाहती हो, जिससे दिग्विजय कार्यकाल के बहाने कांग्रेस पर हमला करने की शिवराज के दांव को कुंद किया जा सके. दूसरी तरफ, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि दिग्विजय सिंह को पीछे रखने का निर्देश आलाकमान से मिला हो. पिछले कुछ समय से दिग्विजय सिंह की दिल्ली में पकड़ कमजोर हुई है और वर्तमान में उन्हें पार्टी में समन्वय बनाने की जिम्मेदारी ही दी गई है.