मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली टीम इंडिया के विश्व चैंपियन का खिताब बचाने में सफल होने की भविष्यवाणी कर चुके हैं. लेकिन भारत को पहली बार विश्व चैंपियन बनाने वाले कप्तान कपिल देव श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया को विश्व चैंपियन बनने का दावेदार मान रहे हैं. भारतीय टीम में पिछले चार साल में बहुत बदलाव हुए हैं सचिन संन्यास ले चुके हैं. गंभीर, सहवाग, युवराज और जहीर जैसे खिलाड़ी टीम से बाहर हैं. युवा खिलाड़ियों के नए दल की कमान सेनापति धोनी संभाल रहे हैं. भारतीय टीम विदेशी सरजमीं पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पा रही है बल्लेबाज तेज़ पिचों पर लगातार संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं ऐसे में टीम इंडिया के विश्व खिताब बचा पाने की संभावनाओं पर गौर करते हैं.
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की संयुक्त साझेदारी में हो रहे क्रिकेट विश्वकप का आग़ाज होने में तकरीबन 100 दिन शेष बचे हैं. वेलेंटाइन्स डे (14 फरवरी) के दिन 14 टीमों के बीच खिताबी जंग शुरू होगी. लेकिन संभावित विजेता को लेकर अभी से अटकलें लगनी शुरू हो गई हैं. गत विजेता टीम इंडिया खिताब बचाने के इरादे से उतरेगी. अगर वह खिताब बचाने में कामयाब हो जाती है, तो टीम इंडिया वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया के बाद लगातार दो बार विश्वकप जीतने वाली तीसरी टीम बन जाएगी. इसके साथ ही महेंद्र सिंह धोनी वेस्टइंडीज के क्लाइव लॉयड के बाद विश्व खिताब बचाने वाले दूसरे कप्तान भी बन जाएंगे. बतौर कप्तान विश्वकप धोनी के लिए आखिरी प्रतियोगिता हो सकती है, इसलिए वह भी विश्वकप जीतकर अपने कप्तान के पद को छोड़ना चाहेंगे. हालांकि धोनी का आईसीसी की प्रतियोगिताओं में बेहतरीन रिकॉर्ड है. वह बतौर कप्तान भारत को टी-20 विश्वकप, चैंपियंस ट्रॉफी और विश्वकप जिता चुके हैं. उनके पास मौका रिकॉर्ड को और बेहतर करने और इतिहास रचने का है. इसलिए वह स्वयं को दुुनिया के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ कप्तान के रूप में स्थापित करने की पुरजोर कोशिश करेंगे.
भारतीय टीम ने एकदिवसीय मैचौं में पिछले चार सालों में बेहतरीन प्रदर्शन किया है. पिछले विश्वकप से लेकर अब तक भारतीय टीम ने 90 एक दिवसीय मैच खेले हैं, जिसमें 52 में उसे जीत हासिल हुई और 31 में हार का सामना करना पड़ा, 3 मैच टाई रहे और 4 मैचों का कोई परिणाम नहीं निकला. लेकिन टीम इंडिया का विदेशी सरजमीं का रिकॉर्ड कुल रिकॉर्ड से मेल नहीं खाता है. उपरोक्तअवधि में भारतीय टीम ने 44 मैच विदेशी धरती पर खेले जिसमें उसे महज 21 मैंचों में जीत हासिल हुई जबकि 18 मैचों में उसे हार का सामना करना पड़ा. 18 जीत के आंकड़े में विराट कोहली की कप्तानी में जिंबाब्वे के खिलाफ 5-0 से मिली जीत भी शामिल है, अगर इसे कुल मैचों से अलग कर दिया जाए तो भारतीय टीम 39 मैचौं में से कुल 13 मैच ही जीत सकी है. ये आंकडे कुल मैचों के आंकड़ों की तुलना में काफी कमजोर दिखाई पड़ते हैं. विदेशी धरती पर?खेले मैचों में भारतीय उपमहाद्वीप में खेले गए मैच भी शामिल हैं. इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों की तेज पिचों पर भारतीय खिलाड़ी बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर पाएहैं. इंग्लैंड में खेली गई चैंपिंयस ट्रॉफी में भारतीय टीम ने एक भी मैच नहीं गंवाया था, लेकिन इसके अलावा उपमहाद्वीप के बाहर पिछले चार साल में टीम इंडिया कोई दूसरी बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कर सकी. घरेलू मैदान और उपमहाद्वीप में मिली सफलता विदेशी धरती पर मिली हार पर परदा डाल देती है, लेकिन हक़ीकत को लंबे समय तक नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता है.
विश्वकप में भारतीय टीम को ग्रुप बी में जगह मिली है जहां उसके साथ दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, वेस्टइंडीज, जिंबाब्वे, यूएई और आयरलैंड की टीमें हैं. जबकि ग्रुप ए में इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, श्रीलंका, बांग्लादेश, न्यूजीलैंड, अफ़गानिस्तान और स्कॉर्टलैंड हैं. लीग मैचों के बाद दोनों ग्रुपों में से चार-चार टीमें नॉक आउट दौर में पहुंचेंगी. इस लिहाज से भारत क्वार्टर फाइनल में जगह बनाने में तो कामयाब हो जाएगा. लेकिन असली मुक़ाबला दूसरे राउंड में होगा जहां भारतीय टीम को मेजबान ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड, 2011 की उपविजेता श्रीलंका में से किसी एक से दो-दो हाथ करने होंगे. ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को घरेलू दर्शकों के बीच और घरेलू पिचों पर हराना टेढ़ा काम है. यहां एडवांटेज इन्हीं दोनों टीमों के पास ही होगा. पिच का स्वरूप भारतीय टीम को हराने के आधार पर रखा जा सकता है. इन दोनों टीमों के अलावा इंग्लैंड और श्रीलंका की टीमें तेज पिचों पर खेलने में सक्षम है. भारतीय टीम श्रीलंका के खिलाफ ही बराबरी की स्थिति में दिखाई देगी. टीम इंडिया यदि क्वार्टर फाइनल मुक़ाबले में जीत हासिल कर लेती है, तो उसे सेमीफाइनल अपने ही ग्रुप की घुरंधर टीमों से एक बार फिर दो-दो हाथ करने होंगे. सेमीफाइनल मैच में लीग के दौरान दोनों टीमों के बीच खेले गए मैच के परिणाम का असर भी पड़ेगा. भारतीय टीम में अभी भी खिलाड़ियों के आने जाने का दौर चल रहा है. विश्वकप के लिए प्रारंभिक तीस खिलाड़ियों का चयन कुछ दिनों बाद होना है जिससे कि खिलाड़ी अंतिम सोलह में पहुंचने से पहले पूरी तरह तैयार रहें. विश्वकप के दौरान किसी खिलाड़ी के चोटिल होने की स्थिति में इन्हीं खिलाड़ियों के पूल में से खिलाड़ियों को चुना जाता है. महेंद्र सिंह धोनी चयनकर्ताओं के साथ मिलकर नए-नए खिलाड़ियों को परख रहे हैं. लेकिन यह समय खिलाड़ियों को परखने से ज्यादा खिलाड़ियों को मैच प्रैक्टिस देने का है. प्रयोग करने का वक्त खत्म हो गया है. धोनी अब तक अपनी योजना को मूर्त रूप दे चुके होंगे. वह अजिंक्य रहाणे के विश्वकप में ओपनिंग करने और रोहित शर्मा के मध्यक्रम में खेलने की बात भी कह चुके हैं. शिखर धवन लंबे समय से प्रभावशाली प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं. बावजूद इसके वह टीम में बने हुए हैं. उनसे चैंपियंस ट्रॉफी के अपने प्रदर्शन को दोहराने की आशा की जा रही है, लेकिन वह चयनकर्ताओं और प्रशंसकों की आशाओं पर खरे नहीं उतर रहे हैं. विश्वकप में आरंभिक जोड़ी भारत के लिए बड़ी समस्या होगी. टीम में रिजर्व ओपनर के रूप में शिखर धवन को जगह मिल सकती है, लेकिन अंतिम ग्यारह में जगह पाने के लिए उन्हें एक बार फिर दमदार प्रदर्शन करना होगा. यदि विश्वकप से पहले होने वाली प्रतियोगिताओं में फॉर्म में वापस नहीं आते हैं तो गौतम गंभीर उनकी जगह टीम में एंट्री करने के लिए तैयार बैठे हैं, 2011 के विश्वकप के फाइनल मुकाबले में उनकी 97 रनों की बेहतरीन पारी की बदौलत ही भारत 28 साल बाद विश्व चैंपियन बनने में सफल हो सका था. उनका वह अनुभव भी टीम इंडिया के काम आएगा. इंग्लैड दौरे में अंतिम दो टेस्ट मैचों में गंभीर को धवन की जगह धोनी ने अंतिम ग्यारह में जगह दी थी, लेकिन गौतम सफल नहीं हो सके. इसी वजह से धवन अभी तक टीम में बने हुए हैं. धवन को इस बात की खैर मननी चाहिए और सचेत हो जाना चाहिए नहीं तो उन्हें किसी भी वक्त टीम से बाहर का रास्ता देखना पड़ सकता है. यदि ऐसा होता है तो उनका विश्वकप में खेलने का सपना एक ही पल में चकनाचूर हो जाएगा.
टीम इंडिया की तेज गेंदबाजी की कमान फिलहाल भुवनेश्वर कुमार और मोहम्मद शमी ने संभाल रखी है. ईशांत शर्मा पिछली बार विश्वकप जीतने वाली टीम में शामिल इकलौते गेंदबाज हैं. साथ ही उन्हें ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की पिचों पर गेंदबाजी करने का अच्छा खासा अनुभव भी है ऐसे में टीम में उनकी जगह बनती है. उनके साथ जहीर खान को भी टीम में जगह मिलनी चाहिए, उनका अनुभव युवा गेंदबाजों के बहुत काम आएगा, लेकिन चोट, फिटनेस और मैच प्रैक्टिस उनके टीम में शामिल होने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधाएं हैं. भारतीय उपमहाद्वीप में विश्वकप बल्लेबाजों के दम पर जीता जा सकता है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में धारदार गेंदबाजी के बिना विश्व चैंपियन बनने का सपना भारत क्या, किसी भी टीम का पूरा नहीं हो सकता है. इसलिए गेंदबाजी में अनुभव और युवा जोश दोनों की आवश्यकता टीम इंडिया को होगी.
वर्ष 1992 में ऑस्ट्रेलिया में खेले गए विश्वकप में टीम इंडिया केवल एक मैच जीत सकी थी, हालांकि तब में और अब की भारतीय टीम में बहुत फर्क आ गया है. इसके साथ ही टीम इंडिया को मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की कमी खलेगी. सचिन 1992 से 2011 तक खेले गए छह विश्वकप में भारतीय टीम की रीढ़ थे. उनका अनुभव हर कदम पर टीम के काम आता था. ऐेसे तो विराट कोहली उनकी जगह आंशिक रूप से ले चुके हैं. यह विराट का दूसरा विश्वकप है. लेकिन उनके ऊपर भी पूरी तरह निर्भर हो जाना ठीक नहीं है. इसके साथ ही ऑलराउंडर के रूप में रविंद्र जडेजा और रविचंद्रन अश्विन टीम में हैं दोनों ही बेहतरीन स्पिन गेंदबाजी करते हैं, लेकिन बल्लेबाजी में दोनों ने अब तक ऐसा कोई कमाल नहीं किया है जिससे कि विश्वकप में उनके बल्ले से किसी तरह के चमत्कार उम्मीद की जाए. ऐसे में युवराज सिंह को आखिरी बार मौका दिया जाना चाहिए. युवराज 2011 के विश्वकप में अपने ऑलराउंड प्रदर्शन की वजह से मैन ऑफ द सीरीज बने थे और भारत को विश्वविजेता बनाने में मुख्य भूमिका अदा की थी. युवराज बड़े मैच के खिलाड़ी हैं यदि एक भी बड़ा मैच उन्होंने अपने दम पर टीम इंडिया को जिता दिया तो उनको भारतीय दल में चुने जाने का निर्णय सही साबित होगा.हालांकि पूर्व कप्तान सौरव गांगुली, युवराज और वीरेंद्र सहवाग के अंतरराष्ट्रीय करियर को समाप्त करार दे चुके हैं. टीम में बल्लेबाजी के स्तर पर कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा. रायडू टीम में रिजर्व विकेटकीपर के रूप में बने रहेंगे. जो भी बड़े बदलाव होंगे वो गेंदबाजों और ऑलराउंडर के चुनाव के स्तर पर ही होंगे.
भारतीय टीम की बल्लेबाजी अभी भी मजबूत है. भारतीय टीम अधिकांश मैचों में बल्लेबाजी की वजह से ही जीत दर्ज कर पाती है. विराट कोहली, सुरेश रैना, रोहित शर्मा और कप्तान धोनी किसी भी परिस्थिति में मैच का पासा पलटने की ताकत रखते हैं ऐसे में अजिंक्य रहाणे, रायडू और धवन जैसे खिलाड़ी उनकी मदद करते हैं. ऐसे भी इस बार विश्वकप के दौरान पिचों का मिजाज तेज तर्रार नहीं दिखने वाला है, क्योंकि दर्शक विकेट गिरने से ज्यादा रन बनते देखना पसंद करते हैं. व्यवसायिक दृष्टि से विश्वकप को सफल करने के लिए मेजबान ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के क्रिकेट बोर्ड फ्लैट विकेट बनाने को ही वरीयता देंगे. इसके साथ ही जो भी बल्लेबाज भारतीय टीम में हैं उनके पास आईपीएल में विश्व के सर्वश्रेष्ठ तेज और स्पिन गेंदबाजों को खेलने का अनुभव है ऐसे में भारतीय बल्लेबाज फ्लैट विकेटों पर उपमहाद्वीप के विकेटों की तरह खेलते दिखाई देंगे. परिस्थितियां केवल मेजबान देशों को फायदा पहुंचाने के लिहाज से ही बदलेंगी. भारतीय टीम जितना आगे जाएगी, आईसीसी और मेजबान बोर्ड्स की उतनी ज्यादा कमाई होगी. सबसे बड़ी जिम्मेदारी गेंदबाजों और ऑलराउंडर खिलाड़ियों पर होगी अगर वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाते हैं, तो भारतीय टीम को विश्वकप का खिताब बचाने से कोई नहीं रोक सकता है. ऐसे भी धोनी कैप्टन विथ मिडास टच माने जाते हैं उनसे बतौैर कप्तान संभवतः उनकी आखिरी प्रतियोगिता में चमत्कार की उम्मीद की जा सकती है. लेकिन विश्वकप से पहले भारतीय टीम की अग्निपरीक्षा ऑस्ट्रेलिया दौरे पर होनी है. यदि टीम इंडिया ऑस्टे्रेलिया को उसके घर में घुसकर मात दे देती है, तो भारतीय टीम तीसरी बार विश्व कप पर कब्जा कर लेगी.
आईसीसी विश्व कप-2015: क्या टीम इंडिया खिताब बचा पाएगी
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