आईएएस लॉबी का ग़ैर आईएएस लॉबी के साथ मतभेद कोई नई बात नहीं है. आईएएस लॉबी हमेशा से ही अपनी प्रतिद्वंद्वी ग़ैर आईएएस लॉबी की आंखों में खटकती रही है. ग़ैर आईएएस लॉबी को पावरफुल आईएएस लॉबी द्वारा उसके साथ भेदभाव को लेकर हमेशा शिकायत भी रहती है. पोस्टिंग का मसला हो या अपने उच्चाधिकारियों को प्रभावित करने का, आईएएस लॉबी हमेशा ग़ैर आईएएस लॉबी पर हावी रही है. हालांकि, आईएएस लॉबी कभी इस बात को स्वीकार नहीं करती. हाल में आईएएस सेंट्रल एसोसिएशन के प्रतिनिधि प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह से मिले थे, तब इस मुलाकात को लेकर लोगों की भौंहें तन गई थीं. इन अधिकारियों ने मंत्री जी से अपने काम के हालात को लेकर शिकायत की. सूत्रों का कहना है कि एसोसिएशन के सचिव संजय भुसरेड्डी ने ऐसे आईएएस अधिकारियों की सूची तैयार की है, जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं. अगर इन अधिकारियों की मांगें नहीं मानी जाती हैं, तो इनमें असंतोष पैदा होना स्वाभाविक है. विभिन्न मांगों के अतिरिक्त इन अधिकारियों की एक मांग यह भी है कि केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली पहुंचने वाले आईएएस अधिकारियों के बच्चों का दाखिला राजधानी के प्रतिष्ठित स्कूल में स्वत: हो जाए. अधिकारियों का मानना है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी जाती हैं, तो यह उनका असंतोष बढ़ाएगा और उन्हें हतोत्साहित करेगा. मंत्री जी ने अधिकारियों की चिंताएं एवं मांगें ध्यान से सुनीं और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को उनका मूल्यांकन करके एक नोट तैयार करने के निर्देश दिए. आम तौर पर नौकरशाह किसी मुद्दे पर या तो धीमी गति से कार्रवाई करते हैं या उन्हें फाइल की याद ही नहीं रहती, लेकिन चूंकि यहां उनकी अपनी समस्याएं हैं, इसलिए वे चाहेंगे कि उनका समाधान जल्द से जल्द हो.
अच्छे दिनों का इंतज़ार
पिछले साल हरियाणा में जब भाजपा सत्ता में आई, तो आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने यह ज़रूर सोचा होगा कि उनके करियर में उत्पन्न गतिरोध समाप्त हो जाएगा और हुड्डा सरकार के समय की परेशानियों से निजात मिल जाएगी, लेकिन नई सरकार भी खेमका को किसी प्रकार की राहत देती नज़र नहीं आ रही है. इसके अतिरिक्त खेमका के ़िखला़फ जो आरोप-पत्र दायर किया गया है, उसे भी खट्टर सरकार ने अब तक वापस नहीं लिया है. हाल में खेमका उस समय सोशल मीडिया पर सामने आए थे, जब सीएजी रिपोर्ट राज्य विधानसभा में रखी गई थी. लोगों का मानना है कि खेमका ने राजनीतिक दबाव की परवाह किए बिना विवादास्पद भूमि सौदे को रद्द किया. खेमका के इस निर्णय से कांग्रेस का हरियाणा से सफाया हो गया और भाजपा का राज्य में आगमन हुआ. इसलिए खेमका को आज भी अच्छे दिनों का इंतज़ार है.
बाबुओं की कमी
कुछ समीक्षकों का मानना है कि उत्तराखंड में बाबुओं की कमी के पीछे राजनेताओं की सतही राजनीति ज़िम्मेदार है. 120 अनुशंसित आईएएस अधिकारियों में से स़िर्फ 67 आईएएस अधिकारी ही राज्य के पास हैं, जिनमें से 16 अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं. बाबुओं की कमी की इस स्थिति के पीछे पांच अधिकारियों का सेवानिवृत्त होना भी है. सेवानिवृत्त अधिकारियों में केडी राजू और विनोद चंद के नाम भी हैं, जो कुछ दिनों पहले सेवानिवृत्त हुए हैं. इस महीने के अंत में मुख्य सचिव एन रविशंकर भी सेवानिवृत्त होने वाले हैं. वरिष्ठ आईएएस अधिकारी पीएस जंगपांगी भी ऐसे अधिकारियों में शामिल हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि राज्य सरकार का इस समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं है या वह इसके समाधान के लिए कोई प्रयास नहीं कर रही है. सूत्रोंे के अनुसार, पिछले साल मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे कुछ आईएएस अधिकारियों की राज्य में वापसी को लेकर केंद्र सरकार से बात की थी, लेकिन रावत की बात केंद्र ने अनसुनी कर दी और आईएएस अधिकारियों को राज्य में नहीं भेजा. कुछ लोगों का मानना है कि उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार है और केंद्र में भाजपा की सरकार है, इसीलिए केंद्र ने राज्य सरकार की मांग नज़रअंदाज कर दी. केंद्र के इस रवैये का खामियाजा राज्य और वहां के निवासियों को भुगतना पड़ रहा है.