मैं ज्यां पॉल सार्त्र
एक अस्तित्ववादी
फर्डीनेण्ड के साथ
आँखों से पी रहा हूँ स्वेज़ नहर को
मेरे लिखे स्वतंत्रता पत्र
नहर पर तैर रहे हैं हंस बनकर
पोत बन गया हैं इंक़लाबी चौक
जहाँ खड़े होकर मैं दे रहा हूँ भाषण
और बता रहा हूँ
यूरोप का लोकतंत्र विश्व को बाँट रहा है ग़ुलामी
मेरा वतन नहीं हड़प सकता
अल्जीरिया की आज़ादी
मैं चीख रहा हूँ
और भीड़ मेरी चीख को बता रही है
एक अनीश्वरवादी की दहाड़
लोग कहते हैं
मैं स्वनियन्ता नहीं भाग्यनियन्ता शिशु था
अट्ठारह महीने में पिता
और बारह वर्ष में माँ ने ले ली विदाई
दो विश्वयुद्ध एक आँख से देख चुका आदमी
एक दिन दार्शनिक हो गया
मैं डंके की चोट पर नकार रहा हूँ उसी भाग्य को
सोरेन कीर्केगार्ड कहते रहे
मनुष्य से दूर ईश्वर को गहन विश्वास से
किया जा सकता है महसूस
मैं सार्त्र ईश्वर की उस सत्ता से भी
करता हूँ इंकार
कई काँच की गिलासों में पीकर जाम
मैं सो जाता हूँ
स्वप्न में बजाता हूँ वायलिन
ताकि माँ के गीत से कर सकूँ संगत
नौ महीने गर्भ में, बारह वर्ष गोद में
बिठाकर
माँ ने क़ब्र में समेट लिया है मेरा बचपन
क्या मैं रूसो, काण्ट, हीगेल और मार्क्स
की अगली कड़ी हूँ ?
या मार्क्सवाद के महल का एक सुंदर झरोखा
जिससे आती है रौशनी स्वतंत्रता की
जिसने कभी नहीं की प्रतीक्षा
किसी प्रभु की
वह झरोखा जो रसोई तक जाता था
और वायलिन के बगल
में किताबों की मेज के पास खुलता था
जिससे दिखती थी सड़क की चौपाटी
जिस पर वाच
और बाँट रहा था मैं अखबार
इंक़लाब वाले
ये दुनिया की रीत है
इंक़लाबियों के घरों पर गिरते हैं बम
माथे पर तानी जाती हैं बंदूकें
फिर भी मन पर उनके कोई बोझ नहीं होता है
सच बोलने के बाद आदमी निडर
और भीतर से हल्का महसूस करता है
मैंने लिखा
लुमुम्बा के भाषणों का प्राक्कथन
हाँ मैंने ही लिखा
फ्रांज़ फ़ैनन की पुस्तक का पूर्वकथन
अल्जीरिया के 121घोषणापत्र पर
करवाता रहा हस्ताक्षर
मुझे नहीं चाहिए था नोबेल या लेनिन पुरस्कार
नंगे यथार्थ को वस्त्र पहनाने की
हर गंभीर साज़िश
पर नज़र थी मेरी
मैं हर नाटक की पटकथा
और सच से वाक़िफ़ था
मैं एक आँखों वाला दूरदृष्टा
मैं जानता था
विचार और स्थिति हैं दो बहनें
एक ही रोग से ग्रसित
जिसका नाम है अस्थिरता
इस व्याधि के तीन स्पष्ट लक्षण हैं
विकास, गति और परिवर्तन
मैं दिमाग़ से ऊब जाता हूँ
गंभीर वैचारिक यात्राओं से थककर
खोजता हूँ परिवर्तन
शारीरिक तत्वों में लीन
मैं प्रशांत सरोवर में फेंकता हूँ
पत्थरों सा कई देहों को
संकेंद्रित तरंगों से भर जाता है ताल
माटी की प्रसन्न मूर्ति के भंग अंग
टूटे सिर में उच्च ज्वर
मैं खोजता हूँ
कोरीड्रेन की गोलियाँ
और एक नीम बेहोशी
मुझे आत्मा के परिणय का
सम्मान करना चाहिए था
वैसे ही जैसे
कैथोलिक चर्च में मरियम का होता है सम्मान
मैं मिला था सिमोन से
किसी देव को साक्षी मानकर
नहीं किया कोई भी वादा
जैसे दो देह करते आए थें
विवाह मंडपों में
स्थापित से द्वन्द
और टूटती प्रतिमाओं
का विसर्जन तब आवश्यक था
दो लोग जो एक थें
जिन्हें तोड़नी थी सामाजिक मान्यताएँ
जो अपेक्षाओं से भय खाते थें
और भाग रहे थें
उस संस्कृति से जो समानता के समक्ष
एक कलात्मक दुर्ग सी खड़ी थी
पूरे रंग रोगन और रुआब के साथ
ईर्ष्या स्वतंत्रता की शत्रु है
यह व्यक्ति को नियंत्रित करती है
इस तरह से यह वैयक्तिक स्वतंत्रता पर
लगाती है लगाम
परिस्थितियो में होती है
रिश्तों के निर्माण की विलक्षण शक्ति
इकावन वर्षों का साथ
जिसमें कई लोग आए और गए
प्रेम, जलन, देह, घृणा, विरह और मिलन की कई
परतों ने बना दिया था
रिश्ते को डोलोमाइट चट्टान
यह संबंध जो
किसी ढाँचे में समायोजित न होकर भी
चिरकालिक और विशिष्ट रहा
कई तूफानों के बाद भी
जिससे सतत ऊत्सर्जित स्नेह
ने इसे बचाए रखा
एक दूसरे में रूचि बनी रही मृत्यु तक
दर्शन बचा लेता है प्रेम को
मैं सार्त्र
मेरे पास कई रंग हैं
सिमोन के पास हैं कई धागें
सिमोन रंगों से नहीं करती है ईर्ष्या
मैं नहीं गिनता हूँ सिमोन के धागे
हम जानते हैं
कई स्थूल रिश्तों ने ठीक-ठीक है समझाया
बस एक सूक्ष्म रिश्ता बनता है
पूरे जीवन में
मैं सार्त्र रिक्त हो रहा हूँ
बगल में सिमोन खड़ी है दवा की बोतल सी
वह दवा जो मेरी पीड़ा
को न्यूनतम कर देगी
केस्टर(सिमोन) कह रही है
चिकित्सक के कानों में
वह नहीं बताए मुझे
कि मैं मर रहा हूँ
जीवन को जीने की मैं कर रहा हूँ
अंतिम अनाधिकारिक चेष्टा
मौत को आता देख जैतून के फूल-
सा खिल उठा है मेरा चेहरा
मैं जानता हूँ
जीवन एक हास्यास्पद नाटक है
जिसे गंभीरता से जी रहे हैं हम सब
मैं जानता हूँ
नाटक से विदाई का अवश्यंभावी सच
और मेरी उँगलियाँ थिरक उठती हैं
कुछ नया लिखने को
अनामिका अनु
परिचय:
डाॅ. अनामिका अनु
एम एस सी(विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक)
पी एच डी ( इंस्पायर अवार्ड,DST)
2020 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार
प्रकाशन:
हंस,नया ज्ञानोदय, समकालीन भारतीय साहित्य,कादंबिनी,
वागार्थ,बया,परिकथा,आजकल,मधुमती,दोआब,स्त्रीकाल, विभोम स्वर , नवभारत टाइम्स, प्रभात ख़बर, दैनिक भास्कर, जानकीपुल,
समालोचन,चौथी दुनिया, दुनिया इन दिनों आदि पत्र- पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।