फेसबुक सचमुच 2020 के आखिरी महीनों में मानो शोक सन्देश पत्र बन गया है ! पत्रकारिता विरादरी की हमारी छोटी सी दुनिया में भी मानो भूचाल मचा है ! अभी मित्र राकेश तनेजा के बाद पंकज शुक्ला फिर ना जाने कितने चेहरे जिनसे कभी व्यक्तिगत परिचय नहीं रहा लेकिन कई निजी साथियों ने कइयों की अकाल मौत की ख़बर दी ! आज वीरेंदर सेंगर सर फिर कमर वहीद नक़वी i जी के पोस्ट से राजीव कटारा सर के स्वर्ग सिधारने की दुःखद खबर मिली ! मन व्यथित हुआ! बहुत !
राजीव कटारा जी से मुलाक़ात क्षणिक है ! पत्रकारिता के लगभग दो दशक के अपने सफर में जिन आठ- दस सम्पादकों के सामने अपने बायोडाटा रख नौकरी की चाह रखी ! राजीव सर सबसे खाश थे !
बात 2002 के शुरूआती महीने की है शायद ! उसके बाद से या उस से पहले राजीव जी अकेले मिले जिन से पहली मुलकात में ही पूरा अपनापन, अनजान नौनिहाल पत्रकार के लिए चिंता दिखी ! सहारा से तब बस जुडा था ! दिल्ली में मेरे लिए जगह ना पाकर वे मुझे नए खुल रहे लुधियाना या जम्मू में अमर उजाला अख़बार के नए एडिशन के लिए जाने की पेशकश की ! मेरी चुप्पी से वे भांप गए ! मैं दिल्ली नहीं छोड़ना चाहता ! फिर कहा.. जो मन को भाए वही करो !
जब राजीव जी से मिला तब भी संघर्ष के दौर थे ! लेकिन मिल रहे बेहतर विकल्प छोड़ दिया ! आज तक वही कर रहा हुँ! जो मन को भाया वही किया बस ! खेल पत्रकरिता और फीचर्स पर उनकी अतुलनीय पकड़ थी ! जिंदगी की छोटी छोटी मुलाक़ात में भी कुछ लोग अमिट छाप छोड़ते हैं ! राजीव सर वही अतुलनीय सख्श थे ! मैंने कभी जीवन में किसी को उसकी महज सफलता या कुर्सी से सम्मान नहीं किया! पत्रकारिता में राजीव सर के अंदर जो मानवीय मूल्य मुझे मिले दुर्भाग्य से…… ! विनम्र श्रधांजलि उस हुतात्मा को.. अलविदा राजीव जी..
मनीष ठाकुर