आज 22 फरवरी का दिन ही पुणे के आगाखान पैलेस में महात्मा गाँधी जी की जीवन संगीनी कस्तूरबा गाँधी जी के मृत्यु होने की 77 वी पुण्यतिथि है ! उम्र के तेरवे साल की कस्तूरबा गाँधी की शादी मोहन से हुई थी और वह महात्मा गाँधी से छ महीने बडी थी ! आज से डेढ सौ साल पहले इस तरह कि शादी सचमुच ही बहुत बडी बात है ! उस जमाने में लडकी के शिक्षा का चलन नहीं होने के कारण कस्तूरबा शादी करने के पहले अनपढ़ थी ! और शादी के समय मोहन खुद हायस्कूल मे पढाई कर रहे थे ! कस्तूरबा शादी करने के बाद मोहन पढने हेतु उम्र के अठारह साल के थे तब विदेश गए थे ! और बैरिस्टर होकर वापस आने के बाद पोरबंदर से लेकर,राजकोट, मुंबई तक युवा वकील मोहन की वकालत नहीं चली तो दक्षिण अफ्रीका मे काठियावाड़ के मेमन व्यापारी दादा अब्दुल्ला नाम के व्यापारी को अपने फर्म के लिए गुजराती और अंग्रेजी जानने वाले किसी क्लर्क की आवश्यकता थी तो मोहन को उस काम के लिए दक्षिण अफ्रीका एक साल के लिए 105 पौंड की तनख्वाह पर बुलाया गया था ! तब भी कस्तूरबा पोरबंदर में अपने सास-ससुरके साथ ही रही!लेकिन जब बैरिस्टर साहब की प्रैक्टिस और भारत से अफ्रीका में काम करने वाले लोगों के जिन्हें गिरमिटीया या कूली बोला जाता था ! तो उनके सवालो को लेकर एक साल के लिए गए बैरिस्टर मोहन गाँधी को दोबारा अफ्रीका में रहने की जरूरत पडी तो वह 1897 के अंत में कस्तूरबा और अपने दो बच्चों को भी लेने के लिए भारत आए और पत्नी दोनों बेटों के अलावा अपनी विधवा बहन के बेटे को भी लेकर गए इस तरह कस्तूरबा का विदेश यात्रा करने का जीवन का पहला अनुभव गाँधी जी के अफ्रीका में रहने वाले भारतीयों के उपर होने वाले अत्याचार का हरी पुस्तिका (कवर हरे रंग का होने के कारण उसे अंग्रेजी में ग्रीन पैम्टलेट कहाँ गया था) के कारण दक्षिण अफ्रीका में कोहराम मचा हुआ है इसका ना ही गांधी जी को पता था और कस्तूरबा का तो पता होने का सवाल ही नहीं उठता !
जिस जहाज से गांधी के साथ कस्तूरबा और बच्चों को लेकर गए तो अफ्रीका पहुचने के पहले दो-तीन दिन समुद्री तुफान में फस गए और अफ्रीका के जमीन पर गोरो की तरफ से गांधी जी को न आने देनेका तुफान उफान पर चल रहा था ! जहाज के मालिक पर दबाव बनाया जा रहा था कि जहाज वापस भारत ले जाया जाए और कस्तूरबा के मनमे क्या तुफान चल रहा होगा इसकी कल्पना कर के ही रौंगटे खड़े हो रहे हैं !
काफी जद्दो-जहद के बाद बहुत ही मुश्किल से पहले कस्तूरबा और बच्चों को उतार कर अलग लेकर गए और गाँधी जी को अलग कर के इस तरह का अफ्रीका की जमीन पर उतरते हुए कस्तूरबा गाँधी जी के मनमे क्या चल रहा होगा ?
और उसके बाद गांधी जी के साथ और भी अलग-अलग जाँत संप्रदायों के लोगों का घर में ही रहना उनके खाने-पीने से लेकर गंदगी साफ करने को लेकर किसी भी सर्वसाधारण महिला को जो पारंपरिक घर से आती है ! एक विलक्षण मानसिक रूप से सांस्कृतिक मंथन के आंदोलन से गुजरते हुए किस तरह से कस्तूरबा गाँधी ने अपने आप को सामाजिक और धार्मिक रूप से और अपने काठियावाड़ के सामाजिक संस्कार के रहते हुए अपने आप को तैयार करने के लिए विशेष रूप से ढाल लिया है यह सबसे अहम बात है !
उसके बाद अफ्रीका के सत्याग्रह की शुरुआत भले उसके जन्मदाता महात्मा गाँधी जी को माना जाता है ! और उसी अफ्रीका के सत्याग्रह के कारण मोहन को महात्मा बनाने में विशेष योगदान दिया है ! वह आज स्टेंटसमेन के रूप मे संपूर्ण विश्व में पहचाने जाते हैं ! तो मेरे हिसाब से उन्हें अफ्रीका के सत्याग्रह की शुरुआत करने के लिए यहूदी से लेकर क्रिस्चियन,मुस्लिम,तमिल,तेलगु,हिंदी,गुजरातीसे लेकर लगभग विश्व दर्शन करने का अवसर मिला था ! और वह अवसर बगैर कस्तूरबा के सहयोग से असंभव था
क्योंकि गाँधी जी के कुटुंब में सिर्फ कस्तूरबा और बच्चों को लेकर समस्त विश्व के लोग भी शामिल होने के कारण फिनिक्स आश्रम से लेकर टालस्टाय आश्रम और भारत आने के बाद कोचरब,चंपारण,साबरमती और अंतिम आश्रम सेवाग्राम के सभी प्रयोगों मे कस्तूरबा का संबंध है और यह बात देश के और विश्व के भी महात्मा गाँधी जी के लेखक और आलोचकों को कितनी समझ में आई मुझे नहीं पता है !
मोहन को महात्मा बनाने में इस तरह के लोगों का परिवार मे शामिल होने के कारण मोहन को महात्मा बनाने में विशेष योगदान है ! ऐसा मेरा मानना है कि इस तरह के एक्सपोजर बहुत ही कम लोगों को मिलता है और गाँधी जी के जीवन की सबसे बडी बात हर अनुभव को एकाग्र भाव से जीने की आदत के कारण और उसमें अबोली कस्तूरबा का योगदान बहुत प्रकट रूप से खुलकर सामने नही आता है ! लेकिन जीस तरह के महात्मा गाँधी जी के और कस्तूरबा का सहजीवन का सफर दिखता है उसमें कस्तूरबा का सहयोग नही रहता तो असंभव लगता है !
पर गाँधी जी के कंधे से कंधा मिला कर और मुख्य रूप से अफ्रीका के कुली भारतीयों की महिलाओं को अपने साथ शामिल कर के जेल में जाने तक का सफर तय करना अपने आप में एक क्रांतिकारी कदम की बात है !
कि पोरबंदर के अच्छे खासे घर में पैदा हुई लडकी जिसे नहीं स्कूली शिक्षा का मौका मिला है ! और नाही किसी भी आंदोलन को देखने सुनने का वह अपने पति के साथ घर संसार की जिम्मेदारी की कल्पना करते हुए अपने पति के साथ बाल-बच्चे लेकर विदेश में आती है!और उसके सामने अफ्रीका में चल रहे आंदोलन को भी महिलाओको साथ लेकर शामिल होने के प्रवास पर अलग से संशोधन होने की जरूरत है!
और आज कल भारत के हर विश्वविद्यालय में महिलाओं का अलग विभाग (वुमन स्टडीज)चल रहे हैं और मुझे पता नहीं कि किसीने इसका अकादमीक अध्ययन किया है और नही किया हो तो अब आगे से होना चाहिए !
अफ्रीका के बाद भारत 1915 से 22 फरवरी 1944 कुल अट्ठाईस साल और अफ्रीका के बाईस साल मिला कर लगभग पचास साल अर्धशतक!कस्तूरबा गाँधी जी के सार्वजनिक जीवन की यात्रा का विस्तृत अध्ययन करने की आवश्यकता है ! और भारत के किसी भी स्तर की महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भी यह अध्ययन बहुत ही उपयोगी और आत्मविश्वास पैदा करने के लिए आवश्यक है !
डॉ सुरेश खैरनार 22 फरवरी 2021,भागलपुर