आज जयप्रकाश नारायणजी की पुण्य तिथि पर मुक्त चिंतन ! यह मेरी आदत होश संभाला तबसे जारी है ! फिर मेरा जन्मदिन हो या मेरे पिताजी, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी,
डॉ राम मनोहर लोहिया
डॉ बाबा साहब अंबेडकर
महात्मा ज्योतिबा फुले
या कार्ल मार्क्स की जन्म तिथि, पुण्य तिथि पर मै पीछे मुड़कर देखने की कोशिश करता हूँ कि वह सभी महानुभावों ने अपने-अपने तरीके से दुनिया को बेहतर बनाने के लिए अपने जीवन का सबसे बेहतरीन समय दिया है और आज देश-दुनिया की क्या स्थिति है ? इसका मूल्यांकन करने के प्रयास करते रहता हूँ ! आज जेपिजी की पुण्य तिथि पर विनम्र अभिवादन के साथ यह मुक्तचिंतन !
संपूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है ! इस नारे को आज सैतालिस साल पूरे हो रहे हैं और 2024 मे देश के लोकसभा चुनाव के समय पचास साल पूरा करेगा ! मै इस आंदोलन मे उम्र के इक्कीस साल का, यानी उस समय के अनुसार भारत मे मतदान करने की उम्र का ! और मै एक संवेदनशील नागरिक होने के नाते इस आंदोलन मे तन मन धन से शामिल था ! था शब्द दोबारा इसलिए दोहरा रहा हूँ कि हमने संपूर्ण क्रांति के कितने कदम की यात्रा की है ? और आज सैतालिस साल पूरे होने पर मुझे लगता है कि सिर्फ एक कर्मकांड के तौरपर दिपावली, दशहरा, ईद, ख्रिसमस या किसी भी अन्य धार्मिक त्योंहारे के जैसे मनाया जा रहा है ! लेकिन संपूर्ण क्रांति का कौन-सा पहलू कौनसे पैमानों को
हमने अबतक पूरा किया या उसके लिए कुछ कोशिश की है ? इसका मूल्यांकन करने की आवश्यकता है !
जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति नामकी 104 पन्ने की पुस्तिका के प्रकरण चार पन्ना 58 मे संपूर्ण क्रांति के विभिन्न पहलु ! मै इस आंदोलन को संपूर्ण क्रांति के रूप मे देखता हूँ ! समाज मे अमुलाग्र परिवर्तन हो;सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक,सांस्कृतिक, शैक्षणिक, नैतिक परिवर्तन ! एक नया समाज इसमेंसे निकले, जो जो समाज के आज के समाज से बिलकुल भिन्न हो, उसमे कम-से-कम बुराइयाँ हो ! हम ऐसा भारत चाहते, जिसमें सब सुखी हों और अमीर-गरीब का जो आकाश पाताल का भेद है वह न रहे, या कम-से-कम हो ! समाज की बुराइयाँ दूर हो, इन्साफ हो ! जो आर्थिक परिवर्तन हो उसका फल यह हो कि सबसे नीचे के लोग है, जो सबसे गरीब है, चाहे वे खेतिहर मजदूर हो, भूमिहीन हो-मुसलमान, हरिजन, आदिवासी, ये सबसे नीचे है, इनको पहले उठाना चाहिए ! 27 (यह 1974 की बात है !)वर्षों से भारत की आजादी के बाद जो कुछ हुआ सब कुछ उल्टा हुआ ! गरीबी बढती गयी और और अमीरी भी, और दोनों का फर्क भी बहुत बढता गया ! भूमि सुधार के कानून भी पास हुए, परंतु भूमि-हिनता बढती ही गयी, घटी नहीं ! पहले जितने परसेंटेज में भूमिहीन थे आज उससे अधिक है !
यह जो क्रांति जो आरंभ हुई है, अगर वह सफल होती है तो यह सब उसमें से निकलेगा ! समाज की बुराइयाँ, छुआ-छूत, जात-पात के झगड़े, सांप्रदायिक झगड़े, सब समाप्त होने चाहिए ! हम सब हिंदूस्थानी है, हम इन्सान है, यह विचार फैलना चाहिये ! सबके दिल में इसकी जगह होनी चाहिए ! हमारे कार्य मे, हमारे जीवन मे यह प्रत्यक्ष होना चाहिए, केवल जुबान पर नहीं, जैसा आज हो रहा है ! और इसी तरह, चूंकि इसमें छात्र है, मैंने अक्सर इनसे कहा है कि, हिंदू-समाज मे, मुस्लिम-समाज मे भी शायद किसी रूप में हो, जो यह तिलक-दहेज की प्रथा है, अगर यह आंदोलन सफल हुआ तो यह चलना भी बंद होगा ! इस तरह मैं दूर तक देखता हूँ, जो सर्वोदय की मंजिल है, जो समाजवाद की मंजिल या साम्यवाद की मंजिल है– सब एक तरह की बात करते हैं, तरीके, रास्ते अलग-अलग है और हो सकते है और हो सकते हैं मै इस आंदोलन को वहां ले जाना चाहता हूँ ! यह क्रांति है मित्रों संपूर्ण क्रांति !!!!!!
साथीयो यह जयप्रकाश नारायण के सर्वसेवा संघ प्रकाशन, राजघाट, वाराणसी के,जनवरी 1975 के 104 पृष्ठ की पुस्तिका का सत्तावन और अठ्ठावन पन्नो पर संपूर्ण क्रांति के विभिन्न पहलु नाम का अध्याय के कुछ विचार है ! आगे जेपिजीने इन सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की है और हम संपूर्ण क्रांति के सिपाही इसे रटकर 1977 के मई मे महाराष्ट्र के अमरावती में एक सप्ताह का शिबिर करने के बाद विधिवत् महाराष्ट्र संघर्ष वाहिनी की स्थापना करके मुखतः महाराष्ट्र में छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की जगह-जगह स्थापना के लिए निकल पड़े ! मैंने खानदेश, पस्चिम महाराष्ट्र, कोंकण और कर्नाटक के बेलगाँव, निपाणी इत्यादि महाराष्ट्र से लगे हुए हिस्सोमे अपने ढंग से प्रचार-प्रसार के लिए अपने आप को झोंक दिया था ! और हम सीधे जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के सिपाही होने के नाते अखबरोमे आज डॉ सुरेश खैरनार रत्नागिरी में है ! और संपूर्ण क्रांति पर मौलिक मार्गदर्शन करेंगे ! इस तरह के लगभग हर जगह खबरे छपती थी ! और हमारे श्रोताओं मे बाकायदा विधानसभा के विधायक से लेकर हर जगह का बौद्धिक तबके की उपस्थिति होती थी ! पुणे के गोखले इन्स्टीट्यूट में श्रोताओं मे यदुनाथ थत्ते, ठाकुरदास बंग और पुणे की जाने मानी हस्तियों को देखकर मेरे तो पैर लटपटाने लगे थे ! और काफी नर्व्हस होकर कैसा तोभी बोला होगा क्योंकि महाराष्ट्र के मूर्धन्य संपादक मेरे भाषण की नोट्स ले रहे थे !
इस तरह के जीवन के सबसे बेहतरीन समय लगभग बीस से पच्चीस साल का 1982 तक मैंने इमानदारी से संपूर्ण क्रांति की सपने की दुनिया बनाने हेतु कोशिश की है !और इसमें हमें उस समय की सत्ताधारी दल जनता पार्टी के विधायक, संसद और अन्य पदाधिकारियों का काफी सहयोग मिला है ! लेकिन आज संपूर्ण क्रांति के सैतालिस साल पूरे होने पर पीछे मुड़कर देखने के बाद लगता है कि वह एक तात्कालिक सपना था ! और उस सपने में मेरे जैसे शेकडो युवक-युवतियां शामिल थी ! उसमे से कोई राजनीतिक दल के दामन थाम लिये, जिन्हें प्रोजेक्ट बनाने की कला आती थी वह एन जी ओ बन गये ! और जिन्होंने जेपिके आवाहन पर शिक्षा में क्रांति के लिए शिक्षा अधुरी छोड़ दी थी, उन्होंने उसे पूरी करके कोई पत्रकार कोई वकील, शिक्षा के क्षेत्र में और अन्य नौकरियों मे चले गये ! मेरे जैसे निखठ्ठ अपनी बीवी की तनख्वाह पर गुजारे में लग गए ! जिसे वह संपूर्ण क्रांति की व्याख्या की आदतन हाऊस हज्बंड जैसी लफ्फाजी कर रहे हैं!
लेकिन जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से निकल कर राजनीति मे जाने वाले लोगों ने संपूर्ण क्रांति की ऐसी की तैसी करने मे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी नितीश-जाॅर्ज फर्नांडीज यह दो नाम पर्याप्त है !
और उत्तर भारत के काफी बडे हिस्सेपर 1977 से लगातार उलट-पलट कर जेपिके आंदोलन को भुनाने वाले ही लोग सत्ता मे रहे हैं !
और इन्होंने संपूर्ण क्रांति के कौनसा पहलू को लेकर क्या काम किया है ? यह एक अकादमिक संशोधन का विषय है ! और समाजशास्त्र या राजनीति शास्त्र के विद्यार्थीयोने जरूर संशोधन करना चाहिए ! इन दोनों पर इसके पहले ही मैंने काफी कुछ लिखा-बोला है इसलिए ज्यादा दोहराना नहीं चाहता ! क्योंकि उनके कुछ अंध भक्त नाराज होकर ऊलजलूल बकना शुरू करते हैं ! लेकिन सबसे संगीन बात संघ परिवार जेपिके इस आंदोलन मे शामिल होकर साँप जैसे नई चमडी लेकर चमकता है ! वैसा ही उसने गाँधीजीकी हत्या के बाद अपने चेहरे को नया मुखौटा पहने के बाद ही भारत की राजनीति मे आजका मुकाम हासिल किया हैं ! और संपूर्ण क्रांति तो दूर की बात है! कि संपूर्ण मुक्त अर्थव्यवस्था जिसमें गरीब और गरीब हो रहा है और अमीरो को वर्तमान सरकार हर तरह से मदद करता हुआ सरकार और अमीर जैसे एक ही बनकर देश की सार्वजनीक संपत्ति, खनिज और जल, जंगल, जमीन के वारे-न्यारे कर रहे हैं , सार्वजनिक क्षेत्र लगभग समाप्त करने पर तुले हुए हैं !
और शायद ही कोई उद्दोग होगा जिसे सरकार की मिलकियत से औने-पौने दामौमे प्रायवेट मास्टर्स को देना जारी है और उसके लिए कृषि कानूनों को बदलने से लेकर सीलिंग कानून, उद्योगपतियों की सुविधा के लिए मजदूरों ने शेकडो सालो से हासिल किये हुए कानून, शिक्षा के क्षेत्र से और सबसे संगीन बात आज हम गत एक साल से भी ज्यादा समय से कोरोनाके जैसी महामारी मे लाखो लोगों की जाने जाने के बावजूद सरकार की स्वास्थ्य सेवा उजागर हो चुकी है ! और सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं मान रही ! सब कुछ प्रायवेट स्वास्थ्य टायकूनो के हवाले कर दिया है ! शिक्षा के क्षेत्र में भी शिक्षासम्राटो के हवाले शिक्षा सौपी जा रही है ! इसलिए बची खुची सरकारी स्कूल, काॅलेज और विश्वविद्यालयों की फीस बेतहाशा बढानेका एकमात्र उद्देश्य दलित, आदिवासी, पिछडी और गरीब के लिए वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में कोई गुंजाइश नहीं रहे !
और सबसे संगीन बात जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से नया मुखौटा पहने के बाद ही राम मंदिर-बाबरी मस्जिद के आंदोलन से अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए भागलपुर का दंगा 24 अक्तूबर 1989 , गुजरात का दंगा 27,फरवरी 2002 , मुंबई तथा देशके विभिन्न हिस्सों में शेकडो जगहों पर 6 दिसंबर 1992 के दिन आयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद कितने लोगों की जिंदगी दांव पर लगी ? और वर्तमान मे तथाकथित नागरिक संशोधन बिल के माध्यम से समस्त अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को सताने और कश्मीर, लक्षद्वीप जैसे मुस्लिम बहुलतावादी क्षेत्रों में हिंदुत्व की राजनीति लादने के काम करने की कृति जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति की व्याख्या की माखौल उडाने की कृति एकसे बढकर एक करते जा रहे हैं ! और जयप्रकाश नारायण के बनाये हुए पीयूसीएल, सीएफडी, संघर्ष वाहिनी के साथी सालाना जलसे, मित्र-मिलन और साल छ महीने मे एखादा निवेदन तैयार करके नरेंद्र मोदी इस्तीफा दो ! मुझे याद आ रहा है कि राष्ट्रीय समिति की संघर्ष वाहिनी के बैठकोमे इदी अमिन या दक्षिणी अफ्रीका की वर्णभेदी सरकारो को भी धमकानेके प्रस्ताव पारित करने के लिए एक-एक शब्द के लिए रात-रात चर्चा करते थे ! फिर बडेही मुश्किल से वह प्रस्ताव पारित होता था ! लेकिन उसकी काॅपी दिल्ली स्थित उनके एंबेसियो तक नहीं पहुँचा पाते इदी अमिन और बोथा तो दूर की बात है !
आजकल कुछ दिनों से नरेंद्र मोदी इस्तीफा दो का अभियान चलाया जा रहा है ! मै भी नरेंद्र मोदी के इस्तीफे के लिए बहुत पहले लीख चुका हूँ ! और 25 जून 1975 के दिन एतिहासिक रामलीला मैदान में सिहासन खाली करो कि जनता आती है ! और हर जोर जुल्म के खिलाफ संघर्ष हमारा नारा है ! यह हमही लोगों ने गर्जनाए की है ! और लाभ कौन उठा रहे हैं ? इसका मतलब नरेंद्र मोदी के इस्तीफे की मांग से मेरी असहमति होने का सवाल ही नहीं है ! लेकिन नरेंद्र मोदी के कानों पर जूं भी नहीं रेगेगी ! तो उसके लिए रणनीति बनाने का छोड़ सिर्फ प्रस्ताव पारित करने की बात हास्यास्पद है इतनाही !
और सबसे अंतिम बात जयप्रकाश, लोहिया, गाँधी, विनोबा, साने गुरूजी के अनुयायियों के आपसी कलह बढते-बढते आज पुलिस, कोर्ट के सामने समय जाया कर रहे हैं ! मेरे हिसाब से इस गोत्र की एक भी संस्था, संगठन बचा नहीं है जिसका 99% समय आपसी कलह मे ही जा रहा है ! और अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि, जयंती या अपने संगठन की स्थापना के उपलक्ष्य में एक कर्मकांड के तौरपर दिपावली, दशहरा, इद, क्रिसमस के जैसे सभा समारोह और अपनी खुद की साख बची नहीं है तो खिचतानकर जोर-जबरदस्ती से किसी बाहरी व्यक्ति या सेलिब्रिटी को बुलाकर जनतंत्र, न्याय, अन्याय यंत्रवत लफ्फाजी कराकर ,अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाने के लिए और गलती से पूर्व लोग जो कुछ जमीन-जायदाद और कुछ पैसे छोड़ गए उनको लेकर आपसी लडाई में ही इन्हें फुर्सत नहीं है !
इसलिए कल एक राजस्थान के साथी हमेशा ही देश-दुनिया की स्थिति को देखकर मुझे फोन कर के कहते रहते हैं कि आप कुछ पहल कीजिए सबको इकठ्ठा कर के जयप्रकाश नारायण जैसे आंदोलन की स्थिति है ! तो मैंने साफ-साफ कहा कि मैं नहीं जयप्रकाशजी के नाखून की बराबरी करने वाला हूँ और नहीं वर्तमान में भारत में जो भी विभिन्न आंदोलन करने वाले लोगों को कुछ भी कहने की औकात रखता हूँ ! इसलिए आप मुझे बार-बार फोन कर के सताना बंद कीजिये मै अपनी औकात के अनुसार कुछ लिखा-बोला करता हूँ !
रही बात भारत के विभिन्न आंदोलन करने वाले लोगों की तो उनमें हर एक की गलतफहमी है कि मेरे से बेहतर नेतृत्व दुसरा कोई भी कर नहीं सकता ! और यह बीमारी मै जेपिको जाने के बाद लगातार देख रहा हूँ ! उसमें से आधे स्वर्ग सिधार गये ! और बचे हुए भी स्मशान के रास्ते के राही है ! इनसे कुछ भी उम्मीद मत करो मै नई आर्थिक नीति के खिलाफ से लेकर विकास की अवधारणा और पर्यावरण से लेकर दलित, आदिवासी, महिला, अल्पसंख्यक समुदाय के सभी तंजिमोके तंबुओ से गुजर कर पचपन साल के सार्वजनिक जीवन के अनुभव के बाद इस नतीजेपर आया हूँ कि , पुराने लोग और पुराने औजारों से वर्तमान फसिज्म के खिलाफ लड़ाई नहीं हो सकती ! कोई नया औजार और जबतक हमारे देश की आधी से भी अधिक आबादी जोके युवा पीढ़ी की है वह जबतक शामिल नहीं होती तबतक हम पुराने खुच्चड आपसी लडाईयो मे ही समय बर्बाद करेंगे ! और हमारे फसिज्म के खिलाफ लड़ाई लढने का ढोंग करते-करते एक दूसरे को ही फासिस्ट बोलते रहेंगे ! आज संपूर्ण क्रांति दिवस के दिन कल के राजस्थानी मित्र की बात ने मुझे यह लिखने के लिए मजबूर किया है ! तो आप मुझे अन्यथा नहीं लेंगे ! यह किसी भी एक व्यक्ति या संस्था, संगठन के खिलाफ नहीं है मेरे आकलन के अनुसार वर्तमान भारत की दशा और दिशा के लिए प्रयत्नशील सभी साथियों के लिए है ! जिसमें मेरा भी समावेश है ! संपूर्ण क्रांति अब नारा है भावी इतिहास हमारा है यह नौजवान मित्रों के लिए है !