2021 के दिसंबर के दो तारीख को मै शांतिनिकेतन पहुचा था ! और पंद्रह दिसंबर को वापस निकला ! लेकिन इस बार की यात्रा में, तीन अच्छी किताबें तीन मित्रों से भेट मिली ! पहली किताब प्रोफेसर पुरूषोत्तम अग्रवाल ने संपादित की हुई जवाहरलाल नेहरू की कौन हैं भारत माता ?, दुसरी अमर्त्य सेन की आत्मकथा Hom in the World A Memoir, तथा तीसरी किताब कांग्रेस के नेता श्री जयराम रमेश ने लिखी हुई The Light of Asia कलकत्ता के आज नब्बे साल में चल रहे मेरे चालीस साल पुराने मित्र समर बागचीजीने भेट स्वरूप दी है ! यह सर एडवीन अर्नाल्ड की मशहूर कविता The Light of Asia जो सिद्धार्थ गौतमबुद्ध को गया में बोधी वृक्ष की छाया में हुआ साक्षात्कार के उपर १८९३ में लिखी है !
लेकिन जयराम रमेशजीने ४२० पन्नों में ढाई-तीन हजार वर्ष के भारतीय प्रबोधन और संस्कृति का परिचय देते हुए महात्मा बुद्ध और बोधगया तथा रविंद्रनाथ टागौर से लेकर हमारी संस्कृतिके उपर और, सबसे महत्वपूर्ण गौतमबुद्ध के उपर ! बहुत ही मेहनत से इस किताब को लिखा है ! जिससे मेरे जेहन में पुनः फुर्सत से बोधगया जाने की ललक निर्माण हुई है ! और २१ जनवरी को पटना के लिए निकल रहा था ! और उसके बाद बोधगया जाने की बात तय थी ! लेकिन ओमिक्रानबाबा के चक्कर में रद्द करना पड़ा ! फिर कभी ! बिहार मेरे लिए घर आंगन जैसा जो है !
इस बीच छ दिसम्बर बांकुड़ा डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के 65 वे महानिर्वाण दिवस पर, एक दिन के लिए गया था ! और तुरंत दुसरे दिन बीरभूम जिले के मोहम्मदपूर ब्लॉक के पथ्थरोकी खदानों के एरिया में ! और ११,१२,१३ तीन दिन भागलपुर !
शायद दस दिनों के आसपासका समय शांतिनिकेतन में रहने को मिला होगा ! और इस शांतिनिकेतन की यात्रा की सबसे बहुमूल्य भेट, मनिषा बॅनर्जी द्वारा अमर्त्य सेन की आत्मकथा Hom in the World,और चायनीज डिपार्टमेंट की प्रोफेसर हेम कुसुमजी की तरफसे प्रोफेसर पुरूषोत्तम अग्रवाल द्वारा संपादित जवाहरलाल नेहरू के लेखों और उनके बारे में लेखों का संग्रह कौन है भारत माता ? इस शिर्षक की किताब मिली है !
शांतिनिकेतन के वास्तव्य में इन दोनों किताबों को बंगला में सिर्फ देखा कोरे छे, किया था ! लेकिन अब मैं उन्हें बाकायदा पढ़ने की शुरुआत की है ! शुरुआत अमर्त्य सेन की आत्मकथा से हुई है ! और लिखने की शुरुआत तीनों किताबों में से अमर्त्य सेन की आत्मकथा से शुरू किया हूँ ! अभी तो सिर्फ शुरू ही किया हूँ ! और तुरंत ही लिख रहा हूँ ! इसकी वजह शुरू में अमर्त्य सेन ने अपने बचपन की यादों में अपनी माँ अमिता सेन के बारे में लिखा है कि वह उन्नीसवीं शताब्दी के शुरू में रविंद्रनाथ टागौर की नृत्यनाटिकाओ की प्रमुख नृत्यांगना थीं ! और मैंने आगे पढ़ने के पहले ही यह पोस्ट लिखने की शुरुआत की है ! अन्य दोनों के बारे मे उन्हे पढ़ने के बाद अवश्य ही लिखने की कोशिश करूंगा !
अमर्त्य सेन के पिता और माता दोनों तरफ की सांस्कृतिक और शैक्षणिक विरासत देखने के बाद, लगा कि कमाल की समृद्ध सांस्कृतिक और शैक्षणिक परंपरा है ! पिता के पिता ढाका में जज शारदा प्रसाद सेन थे ! और पिता प्रोफेसर डॉ अशुतोष सेन ढाका विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र के शिक्षक ! उसी तरह माता के पिता प्रोफेसर क्षितिमोहन सेन रविंद्रनाथ टागौर के शांतिनिकेतन की शुरुआत करने वाले लोगों में से एक संस्कृत, और तत्वज्ञान के विद्वान !
तथा माता अमिता सेन रविंद्रनाथ के नृत्यनाटिकाओ में की प्रमुख नृत्यांगना ! और साथ साथ जपानी जूडो – कराटे के प्रशिक्षक के द्वारा जूडो की कला भी लड़कियों को सिखाने की शुरुआत अमिता सेन से ही शुरू हुई है ! अमर्त्य का जन्म होने के बाद उसका नामकरण भी रविंद्रनाथ टागौर के कहने पर किया गया है ! अमर्त्य यानी जिसका कभी मृत्यु नही होता वह अमर्त्य !
आजसे सव्वा सौ साल पहले भद्र बंगाली घर की बंगाल की पहली महिला नृत्यांगना है अमिता ! अमर्त्य सेन की माँ ! बीसवीं शताब्दी के शुरू होने के समय की बात है ! जबकि भद्र बंगाली घर की महिलाओं को स्टेजपर नृत्य या अभिनय करना मना था ! और अक्षरों को देखने की मनुस्मृति के द्वारा मनाही थी !
आनंद बाजार प्रकाशन समुह की दो सौ साल पहले की राससुंदरी नाम की आद्द स्री! की आमार जीबन शिर्षक से लिखी आत्मकथा में 1875 में प्रकाशित हुआ है ! यह सब कुछ बंगाल में प्रबोधन युग की शुरुआत होने के पहले की बातें हैं ! और अमिता सेन प्रबोधन युग के शुरू की पीढी का प्रतिनिधित्व करती हैं ! और उस माँ का बेटा अपनी आत्मकथा में लिख रहा हैं कि मेरी माँ शांतिनिकेतन की शुरुआत की विद्यार्थियों में से एक 1901! लगभग सव्वा सौ साल पहले शुरूआत हुई है ! जब तक सतिकी चिता का धुआँ बाकी था !
यह पढ़ते हुए अभी कुछ विशेष नही लग रहा होगा ! लेकिन सव्वासौ साल पहले भारत के किसी भी कोने में यह बात असंभव थी ! क्योंकि मनुस्मृति के स्रीशुद्रो के बारे में दिए गए, अलग- अलग नियंत्रण के लिए बनाये गये नियम, बंधनों, उदाहरण के लिए, अकेली लड़की, बहन और माँ तक पिता भाई पती के साथ बात नहीं कर सकती थी ! जो आज अफगानिस्तान में तालिबान के राज में जारी है !
क्या हिंदु धर्म आजसे पांच हजार वर्ष पहले मनुस्मृति के अनुसार हूबहू यही था ? जिसको संघ परिवार पुनः शुरू करने के लिए पुन: कोशिश कर रहा है ! डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी ने 25 दिसंबर 1927 के दिन महाड के चवदार तळे के सत्याग्रह सुरू करने के पहले मनुस्मृति के दहन का कार्यक्रम किया था !
इस तरह के बंधनोंकि विशेष रूप से स्त्रीयों के लिए, मानसिकता लोगों के बीच मौजूद रहते हुए 20 वी शताब्दी के शुरू में ही ! रविंद्रनाथ टागौर के कला और साहित्य के क्षेत्र में चल रहे, प्रयासों के अंतर्गत शुरू हो गया ! और शुरुआत अमर्त्य सेन की माँ से हुई है ! अमिता देवी !
यह घटना कोई साधारण नही है ! इसका महत्व आने वाली पीढ़ी को कितना समझ में आता हो पता नहीं !
लेकिन यह बंगाल के प्रबोधन श्रृंखला की बहुत महत्वपूर्ण कडी है ! क्योंकि बंगाल के थेयटर की एक कलाकार नटी विनोदिनी की (1863 में जन्मी) कलावंतीन समाज में पैदा हुई लड़की की, आत्मकथा आमार कथा शिर्षक से उन्होंने लिखा है ! शायद उसीके आसपास अमिता सेन के नृत्यांगना के करिअर की शुरुआत हुई है ! दोनों के कला प्रवास को देखते हुए लगता है कि जमीन – आसमान का फर्क है !
यही बात मराठी थेयटर को भी लागू होती है ! हालांकि मराठी थेयटर के बारे मे काफी लिखा बोला जाता है ! लेकिन आजसे पचास – साठ साल पहले तक मराठी नाटकों में स्त्रीपात्र की भूमिका पुरूषों को करनी पड़ती थी ! बाल गंधर्व इस नाम के पुरूष कलाकार का इतना बोलबाला होने की वजह ! उन्होंने मराठी संगीत नाटकों में बहुत प्रभावि स्त्रीपात्र की भूमिका की है ! इस कारण उनका नाम है !
हालांकि मराठी स्टेजपर संभ्रांत घर की लड़कियों के, अभिनय या नाचने की शुरुआत, राष्ट्र सेवा दल के कलापथक के कारण शुरू हुई है ! और प्रथम कलाकारों में आवाबेन देशपांडे (वह भी शांतिनिकेतन की प्राडक्ट थी ! ), सुधा वर्दे, प्रमीला दंडवते, श्यामला बनारसे फिर बाद में स्मिता पाटील, झेलम परांजपे इत्यादी महिला स्टेजपर दिखने लगी !
और उसमें भी भाऊसाहब रानडे (राष्ट्र सेवा दल के संस्थापक सदस्यों में से एक) को श्रेय जाता है ! अन्यथा महाराष्ट्र के नाटक – सिनेमा में भी कलावंतीन समाज की महिला, जिसमें हंसा वाडकर जिन्होंने अपनी जीवनी सांगते ऐका लिखी है ! और उसपर भूमिका नाम का हिंदी सिनेमा बना है ! और हंसा की भूमिका स्मिता पाटील ने ही निभाई है ! उससे मराठी थेयटर की झलक मिलती है !
लेकिन मुझे लगता है कि रविंद्रनाथ टागौर के कारण ! बंगाल में उसके पचास साल पहले शुरूआत हुई है ! और वह भी अमर्त्य सेन की माँ अमिता सेन द्वारा यह एतिहासिक बात है !मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनके शांतिनिकेतन के घर के प्रांगण में, मेरी मित्र प्रोफेसर विणा आलासे जो शांतिनिकेतन की मराठी विभाग प्रमुख थी ! उनकी बेटी वंदना भरतनाट्यम की नृत्यांगना के रविंद्रनाथ के गितो पर आधारित एक कार्यक्रम में, अमिता देवी से मिलने का मौका मिला था !
तो मुख्य मुद्दा अमर्त्य सेन के ननिहाल और पिता के तरफसे जो भी नाते – रिस्तेदार थे ! सबके सब एक से बढकर एक दिखते है ! तो ऐसे परिवेश में पला बढा लडका अगर अमर्त्य सेन नही होगा तो आस्चर्य लगना चाहिए !
मराठी थेयटर के भी पचास साल पहले शुरूआत रविंद्रनाथ टागौर ने अपने नृत्य नाटिका भद्र बंगाली घर की लडकीयो को लेकर की है ! और वह नृत्यांगना अमिता सेन ! आज नब्बे साल के अमर्त्य सेन की माँ थी ! और उस जमाने के अखबारों की सुर्खियों में छाई हुई थी ! अखबार में सब कुछ ठीक ही लिखा होगा ऐसा नहीं है ! क्योंकि सनातनी लोग विश्व में हर समय हर जगह देखे जा सकते हैं !
और अमर्त्य सेन का जन्म हिटलर के नाझी जर्मनी से लाखों यहुदीयो के पलायन करने के समय का है ! और कुछ यहुदीयो को उन्होंने ढाका में भी आये हुए अपने आखों से देखा है ! उसी समय उनके पिता को बर्मा के वर्तमान में (म्यांमार) के मंडाले कृषि विश्वविद्यालय में तीन साल के लिए विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में जाना पड़ता है ! (१९३६) जबकि अमर्त्य महज तीन साल के बच्चे थे ! और मंडाले तीन साल रहना पडा ! ( 1939) लेकिन इस छोटे से अमर्त्य ने मंडाले का जो वर्णन किया है ! विस्वास नहीं होता है कि इस उम्र में भी इतनी समझ ! बर्मीज कला तथा अलग अलग स्थानों का वर्णन गजब का लिखा है ! इसलिए बर्मा के बारे में अच्छी राय बनने में मदद हुई है !
क्योंकि हम मराठी लोगों के लिए अंग्रेजी सरकार ने मंडाले के जेल में लोकमान्य तिलक को प्रथम बार शायद १९०६ में रखने के कारण ! लगता है कि यह भी दुसरा अंदमान होगा ! लेकिन अमर्त्य सेन के वर्णन को पढ़ने के बाद अब मंडाले को देखने को मन करता है !
आस्चर्य की बात तीन साल के अमर्त्य बर्मीज भाषा तक सिखे ! क्योंकि उन्हें सम्हालने वाली बर्मीज आया थी ! और वह छ साल के होने तक बर्मा में थे! लेकिन उन्होंने जिस तरह से बर्मा के अलग अलग जगह रंगून, पेगू, पागान, भामो और वहांके त्योहारों के बारे में भी बहुत अच्छी जानकारी दी है ! और पॅगोडा तथा अन्य निसर्गसौंदर्य का वर्णन बहुत ही सुंदर है !
सबसे महत्वपूर्ण बात आंग सन सू की के ब्रिटीश पती मायकेल एरीस जो अशिया के विशेषज्ञ मुख्य रूप से तिब्बत और भूतान के थे, और अमर्त्य सेन के साथ उनकी इंग्लैंड में रहने के कारण, अच्छी दोस्ती थी ! सेन साहब ने शुरुआत में आन सू की की बहादुरी तथा म्यांमार के मिलट्री के खिलाफ के संघर्ष की काफी प्रशंसा की है ! लेकिन दुसरे ही पैराग्राफ़ में बंगला भाषी रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ के व्यवहार की उतनी ही कडी निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि If there is a puzzle about suu Kyi, there is a greater enigma that is even harder to understand, which is particularly disturbing for me : that the Burmese, whose kindness impressed me so much as a young boy, seem to have turned brutally hostile to the Rohingyas, who have had to endure barbarities, torture and murder in an organized pogrom.