एड्री बोरेल का जन्म पेरिस के नजदीक लाउवेंसिनेस में 18 नवंबर, 1919 को एक साधारण परिवार में हुआ था. वे बचपन से ही काफी तेजतर्रार थीं और स्कूली शिक्षा के अलावा पर्वतारोहरण में भी काफी दिलचस्पी लिया करती थीं. उन्होंने 14 साल की कम उम्र में स्कूल छो़डकर बेकरी शॉप में नौकरी कर ली.
जब दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हुई तो 19 वर्षीय बोरेल नर्स बनने की शिक्षा लेने के लिए मेडिटेरेनियन पोर्ट सिटी चली गईं. अपनी ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने विश्व युद्ध में जख्मी सैनिकों का इलाज करने में डॉक्टरों की मदद करना शुरू किया. इस दौरान वे सैनिकों से अपने अच्छे व्यवहार और उनका अच्छे से ख्याल रखने के कारण उन सैनिकों के बीच काफी लोकप्रिय हो गई थीं. जब 1940 में जर्मनी के हाथों फ्रांस की हार हो गई तो मार्शल पीटेन को देश की कमान दे दी गई तो बोरेल ने उस समय फ्रांस में उस गुट को ज्वाइन किया, जो जर्मनी का विरोध कर रहा था. दरअसल, उन्हें अपने देश की हार बर्दाश्त नहीं हो रही थी. फ्रेंच रेजिस्टेंस के साथ मिलकर उन्होंने ब्रिटिश सैनिकों का साथ देना शुरू कर दिया. उन्होंने स्पेन की सीमा के पास अपना ठिकाना बनाकर जर्मनी के खिलाफ अपनी गतिविधियां शुरू कर दीं.
साल 1941 में बोरेल के विद्रोही ग्रुप की जानकारी नाजी सरकार को मिल गई. नाजियों को इस बात की पूरी जानकारी मिल गई कि किन जगहों से उनकी सरकार के खिलाफ विरोधी मुहिम चलाई जा रही है. नाजी सैनिकों ने बोरेल के ठिकाने के आसपास अपनी गतिविधियां ब़ढा दीं. पक़डे जाने की भनक लगते ही बोरेल वहां से गोपनीय रूप से भाग निकलीं. वे फ्रांस से छिपते-छिपाते पुर्तगाल पहुंची. वहां पर उन्होंने फ्री फ्रेंच प्रोपगेंडा नामक संस्था के साथ काम करना शुरू किया, जो फ्रांस को नाजियों के हाथों से मुक्त कराने के लिए काम कर रही थी. इस संस्था के साथ उन्होंने कुछ समय तक काम किया. 1942 में वे लंदन चली गईं. यहीं पर उन्होंने स्पेशल ऑपरेशन एक्जिक्यूटिव के साथ प्रशिक्षण हासिल किया और फ्रांस की आजादी के लिए एक बार फिर से पूरे उत्साह के साथ काम करना शुरू किया.
साल 1941 में बोरेल के विद्रोही ग्रुप की जानकारी नाजी सरकार को मिल गई. नाजियों को इस बात की पूरी जानकारी मिल गई कि किन जगहों से उनकी सरकार के खिलाफ विरोधी मुहिम चलाई जा रही है. नाजी सैनिकों ने बोरेल के ठिकाने के आसपास अपनी गतिविधियां ब़ढा दीं. पक़डे जाने की भनक लगते ही बोरेल वहां से गोपनीय रूप से भाग निकलीं. वे फ्रांस से छिपते-छिपाते पुर्तगाल पहुंची. वहां पर उन्होंने फ्री फ्रेंच प्रोपगेंडा नामक संस्था के साथ काम करना शुरू किया, जो फ्रांस को नाजियों के हाथों से मुक्त कराने के लिए काम कर रही थी.
24 सितंबर, 1942 को बोरेल पहली महिला बनीं, जिन्हें नाजी अधिकृत फ्रांस में मित्र राष्ट्रों की ओर से जासूसी के लिए उतारा गया. वहां पर सहयोगियों द्वारा उन्हें एक सुरक्षित जगह पर ले जाया गया. बोरेल ने पेरिस में कूरियर नेटवर्क के जरिए जानकारियां पहुंचानी शुरू कर दीं. मित्र राष्ट्र बोरेल के जरिए नाजी सेनाओं को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे थे. बोरेल पेरिस की गली-गली से वाकिफ थीं. उन्होंने संगठन और खुद के नेटवर्क के जरिए खुफिया जानकारियां जुटाकर लंदन भेज रही थीं, जिसके जरिए नाजी सेनाओं को मात खानी प़ड रही थी. स्पेशल ऑपरेश गु्रप के लिए काम करते हुए वे हथियारों को अपने सैनिकों तक सही तरीकेे से पहुंचाने में भी मदद कर रही थीं. उनकी काबिलियत को देखते हुए उन्होंने स्पेशल ऑपरेशन गु्रप का फ्रांस में सेकंड इन कमांड बना दिया गया.
बोरेल के कारनामों से मिलती मात ने हिटलर को बौखला दिया था. जर्मनी से ये स्पष्ट आदेश दे दिए गए कि किसी भी कीमत पर बोरेल की गिरफ्तारी की जानी चाहिए. नाजी सेनाओं ने बोरेल के नेटवर्क को तो़डने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी और और बोरेल गिरफ्तार कर ली गईं. उन्हें वहां से नाजी कैंप ले जाया गया. काफी प्रता़डना दी गई, जिससे वे नाजियों के सामने वो राज उगल दें, जो उन्होंने मित्र राष्ट्रों तक पहुंचाए थे, लेकिन 24 वर्षीय बोरेल ने कोई भी राज नहीं खोला. 6 जुलाई, 1944 को बोरेल व उनके साथियों को जहरीले इंजेक्शन के जरिए मौत की नींद सुला दिया गया.
आखिरकार, एक जांबाज महिला की मौत हो गई. एक ऐसी महिला, जो उस हिटलर के साथ डटकर मुकाबला कर रही थी, जिससे पूरी दुनिया घबराती थी.