Hitech-farming,Shekhawatiशेखावाटी

देश के ज़्यादातर किसान अब भी पारंपरिक तरीकों से खेती करते हैं, जो अक्सर घाटे का सौदा साबित होती है. यही वजह है कि देश में किसान आत्महत्या की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. सन्‌ 1960-70 के दशक में भारत में खाद्य पूर्ति के लिए हरित क्रांति की शुरुआत हुई. हरित क्रांति से तात्पर्य था कि कम से कम क्षेत्रफल में अधिक से अधिक उत्पादन करना, लेकिन इसके लिए अंधाधुंध रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का इस्तेमाल किया गया.

नतीजतन, शुरुआत में पैदावार तो बढ़ी, लेकिन धीरे-धीरे खेतों की उर्वरा शक्ति कम होती गई. आज हालत यह है कि किसान कर्ज लेकर अपने खेतों में जमकर खाद एवं रासायनिक कीटनाशक डालते तो हैं, लेकिन उन्हें उतनी उपज भी नहीं मिलती, जिससे मुना़फा हो सके. लेकिन कहते हैं कि हर समस्या का समाधान है, बशर्ते चाह होनी चाहिए. राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में मोरारका फाउंडेशन ने जैविक खेती के रूप में किसानों को नया जीवन और नई दिशा देने का काम किया है.

जैविक खेती के चलते यहां के किसानों के चेहरे पर मुस्कान लौट आई है और अब देश के दूसरे क्षेत्रों के किसान भी मोरारका फाउंडेशन के संपर्क में आकर अपने यहां जैविक और हाईटेक खेती की शुरुआत कर रहे हैं. मोरारका फाउंडेशन के प्रयासों से हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर एवं सिक्किम जैसे कई राज्यों में जैविक खेती का आग़ाज़ हो चुका है. यही नहीं, बहुत-से शिक्षित युवा भी अब जैविक खेती में अपना भविष्य तलाश करने लगे हैं.

मोरारका फाउंडेशन ने जैविक खेती की शुरुआत राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र से की. राजस्थान के लोग देश के दूसरे हिस्सों के मुक़ाबले पानी के अभाव से ज़्यादा दो-चार हैं. किसानों को अगर समय पर पानी नहीं मिलेगा, तो वे भला खेती कैसे करेंगे? मोरारका रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े वैज्ञानिक राजस्थान के किसानों को यह प्रशिक्षण देने में जुटे हैं कि पानी का कम से कम प्रयोग करके अधिक से अधिक फसलें कैसे उगाई जाएं. वे हाईटेक तकनीक एवं अल्ट्रा पॉली हाउस द्वारा किसानों को खेती करना सिखा रहे हैं, जिनमें पानी का कम से कम प्रयोग होता है.

मोरारका फाउंडेशन से जुड़े वैज्ञानिकों ने किसानों को जैविक खेती करने का तरीक़ा बताकर उन्हें नया जीवन दिया है. वास्तव में किसानों की सबसे बड़ी ख्वाहिश यही होती है कि उनके खेत में अधिक से अधिक अनाज पैदा हो और ज़मीन की उर्वरता पर भी उसका कोई असर न पड़े. रासायनिक खेती का सबसे बड़ा नुक़सान यही था कि कुछ समय तक पैदावार का़फी अच्छी होती थी, लेकिन ज़मीन की उर्वरता तेज़ी से घटने लगती थी, लेकिन अब जैविक खेती के ज़रिये किसानों को इस परेशानी से छुटकारा मिल चुका है.

मोरारका फाउंडेशन हाईटेक विधि सिखा कर किसानों को स्वावलंबी एवं आधुनिक बनाने का कार्य कर रहा है. शेखावाटी की नवलगढ़ तहसील के खिरोेड़ गांव निवासी किसान अभिषेक शर्मा ने अमेरिका के थंडरबर्ड स्कूल ऑफ ग्लोबल मैनेजमेंट से एमबीए करने के बाद खेती को बतौर करियर चुना और पॉली हाउस में सब्जी उत्पादन में सफलता हासिल की. एमबीए करने के दौरान अमेरिका में जैविक खेती के कई हाईटेक फार्म देखने के बाद हाईटेक खेती का विचार उनके मन में आया.

पढ़ाई पूरी करने के बाद वह जयपुर स्थित राष्ट्रीय बागवानी मिशन के प्रोफेसर सत्य नारायण चौधरी एवं लक्ष्मी नारायण कुमावत से मिले और उनसे हाईटेक तरीके से होने वाली खेती, उसके लाभ और खर्चों की जानकारी ली. उन्हें पता चला कि सरकार द्वारा पॉली हाउस लगाने के लिए 50 प्रतिशत अनुदान भी मिलता है. फिर उनकी मुलाकात किसान खेमाराम चौधरी से हुई, जो पहले से पॉली हाउस में सब्जी की खेती कर रहे थे.

अभिषेक ने उनसे पॉली हाउस में होने वाली खेती के बारे में जाना और हाईटेक विधि अच्छी तरह समझने के बाद उन्होंने निर्णय लिया कि वह अपने खेत में एक पॉली हाउस लगाएंगे. उन्होंने बताया कि पॉली हाउस लगाने में उन्हें दो महीने का वक्त लगा और उन्होंने पहली फसल खीरे की ली. खीरे की फसल तैयार होेने में 140 दिन लगते हैं. पौधारोपण के 40 दिनों बाद खीरे की तुड़ाई शुरू हो जाती है.

खीरे की पूरी फसल में 60 से 70 बार तुड़ाई होती है. यानी हर दूसरे दिन तुड़ाई होती है. शुरुआती दौैर में उत्पादन 500 किलो से 800 किलो तक हो जाता है. आज अभिषेक शर्मा अल्ट्रा मॉर्डन पॉली हाउस खेती करके खुश हैं और वह अपने क्षेत्र के किसानों को भी मोरारका फाउंडेशन से जुड़कर जैविक और अल्ट्रा मॉर्डन पॉली हाउस खेती करने के तरीके सीखने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. अभिषेक शर्मा का मानना है कि अब परंपरागत तरीके से होने वाली खेती से किसानों का जीवनयापन संभव नहीं है. इसलिए देश के हर किसान को समय से पहले हाईटेक विधि अपना कर स्वावलंबी एवं आधुनिक बनना चाहिए.

पॉली हाउस और उसकी संरचना

ढांचे की बनावट के आधार पर पॉली हाउस कई प्रकार के होते हैं, जैसे गुंबदाकार, गुफानुमा, रूपांतरित गुफानुमा, झोपड़ीनुमा आदि. ढांचे के लिए आम तौर पर जीआई पाइप या एंगिल आयरन का प्रयोग किया जाता है, जो मजबूत एवं टिकाऊ होते हैं. अस्थायी तौर पर बांस के ढांचे पर भी पॉली हाउस निर्मित होते हैं, जो सस्ते पड़ते हैं. आवरण के लिए 600-800 गेज की मोटी पैराबैगनी प्रकाश प्रतिरोधी प्लास्टिक शीट का प्रयोग किया जाता है. इनका आकार 30-100 वर्गमीटर रखना सुविधाजनक रहता है.

निर्माण लागत और वातावरण पर नियंत्रण की सुविधा के आधार पर पॉली हाउस तीन प्रकार के होते हैं:-

लो कास्ट या साधारण पॉली हाउस: इसमें यंत्रों द्वारा किसी प्रकार का कृत्रिम नियंत्रण वातावरण पर नहीं किया जाता.मीडियम कास्ट पॉली हाउस: इसमें कृत्रिम नियंत्रण के लिए (ठंडा या गर्म करने के लिए) साधारण उपकरणों का ही प्रयोग करते हैं.हाई कास्ट पॉली हाउस: इसमें आवश्यकतानुसार तापक्रम, आर्द्रता, प्रकाश, वायु संचार आदि को घटा-बढ़ा सकते हैं और मनचाही फसल किसी भी मौसम में ले सकते हैं.

पॉली हाउस में बेमौसम उत्पादन के लिए वही सब्जियां उपयुक्त होती हैं, जिनकी बाज़ार में मांग अधिक हो और वे अच्छी क़ीमत पर बिक सकें. पर्वतीय क्षेत्रों में जाड़े में मटर, फूलगोभी, पातगोभी, फ्रेंचबीन, शिमला मिर्च, टमाटर, मिर्च, मूली, पालक और गर्मी-बरसात में फूलगोभी, भिंडी, बैंगन, मिर्च एवं लौकी आदि सब्जियां ली जा सकती हैं. फसलों का चयन क्षेत्र की ऊंचाई के आधार पर कुछ भिन्न हो सकता है. वर्षा से होने वाली हानि से बचाव के लिए फूलगोभी, टमाटर एवं मिर्च आदि के पौधे भी पॉली हाउस में डाले जा सकते हैं. इसी तरह गर्मी के मौसम में शीघ्र फसल लेने के लिए लौकीवर्गीय सब्जियां जैसे टमाटर, बैंगन, मिर्च एवं शिमला मिर्च के पौधे भी जनवरी में पॉली हाउस में तैयार किए जा सकते हैं.

बुवाई और रोपण की दूरी: टमाटर-60 गुणा 50 सेमी (डंडों के सहारे पौधों को साधना, शाखाओं की कटाई न करने पर), 50 गुणा 15-20 सेमी (प्रत्येक पौधे के केवल मुख्य तनों को रस्सी के सहारे साधने पर). शिमला मिर्च-15 गुणा 50 सेमी, खीरा-100 गुणा 50 सेमी. खाद और उर्वरक: प्रत्येक वर्ष प्रति वर्ग मीटर तीन किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिलाएं. इसके अलावा उपरोक्त फसलों में 12-15 ग्राम नत्रजन, छह से नौ ग्राम फास्फोरस और छह से नौ ग्राम पोटाश प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में डालें.
पौधों की काट-छांट और सहारा देना: टमाटर के सघन रोपण में केवल मुख्य तने को पतली रस्सी के सहारे बढ़ने दिया जाता है. शाखाओं को समय-समय पर छांटते रहना चाहिए. प्रत्येक बेल वाली सब्जी को डंडे एवं सुतली के सहारे साधना आवश्यक है. तापक्रम पर नियंत्रण: साधारण पॉली हाउस में ठंड के समय रात में खिड़की-दरवाजे बंद रखे जाते हैं, जबकि गर्मी के मौसम में तापक्रम न बढ़ने देने के लिए दिन-रात खुला रखने की आवश्यकता पड़ती है. उन्नत किस्में: टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, मिर्च, मटर, फ्रेंचबीन, भिंडी, खीरा, लौकी एवं करेला.

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