पिछले 25 अप्रैल को नेपाल के काठमांडू से शुरू हुए भूकंप की विनाश लीला थमने का नाम नहीं ले रही है. भूकंप का केंद्र नेपाल में होने के कारण भारत के सीमावर्ती ज़िलों में इसका व्यापक प्रभाव रहा. लगातार दो दिनों तक उत्तर बिहार के सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, मधुबनी, दरभंगा, पूर्वी चंपारण समेत अन्य ज़िलों में त्राहिमाम की स्थिति बनी रही. अभी उस प्राकृतिक आपदा की पीड़ा लोग भूल भी नहीं पाए थे कि बीते 12 मई को आए भूकंप के तेज झटकों ने लोगों के होश उड़ा दिए. तक़रीबन सौ से ज़्यादा लोगों की मौत केवल उत्तर बिहार में हुई है. सरकारी एवं प्रशासनिक स्तर पर पीड़ितों के सहायता की जा रही है, लेकिन लगातार आ रहे झटकों के चलते लोगों का दिल-दिमाग हिल गया है.
प्राकृतिक आपदा किसी भी क्षण दुनिया की दिशा बदल सकती है. अब तक़रीबन सभी को इस बात पर पूरा भरोसा हो गया है. वर्ष 1934 के भीषण भूकंप के बाद 2015 में आए इस जोरदार झटके ने लोगों को भयभीत कर दिया है. प्राकृतिक असंतुलन का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है. जान-माल के ऩुकसान के साथ ही मानसिक अशांति का सामना करना लोगों की विवशता हो गई है. भूकंप का कारण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चाहे जो हो, लेकिन प्राकृतिक संपदा की उपेक्षा एवं क्षति भी इसकी एक बड़ी वजह है. वन संपदा की कमी ने प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ कर रख दिया है. पेड़ों की धड़ल्ले से कटाई ने वन संपदा नष्ट कर दी है. नदी-नालों की दशा दयनीय हो गई है. आलम यह है कि अब लोग नदी के गर्भ में भी भवन निर्माण से परहेज नहीं कर रहे हैं.
शासन-प्रशासन स्तर पर भी इस बाबत चिंतनीय उदासीनता है. नतीजतन, खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है. भूकंप की दहशत का आलम यह है कि लोग अपने घरों में रहने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं. बच्चे स्कूल जाने से कतरा रहे हैं. अस्पतालों में भर्ती मरीज डर के मारे भाग खड़े हुए. सरकारी एवं ग़ैर सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले लोग हर पल आशंकित रहते हैं. भूकंप के चलते रहना, खाना, सोना काफी मुश्किल हो रहा है. शहरी क्षेत्रों में परेशानी की एक और बड़ी वजह इमारतों पर लगे मोबाइल टॉवर हैं. कोई जब भूकंप के बाद घर से खुले मैदान में भागना चाहता है, तब उस वक्त उसे लगता है कि सिर पर तलवार लटक रही है. दूसरी तऱफ बिजली के खंभे पर झूलते तार और भी डरा देते हैं. दिल के मरीजों को खासी परेशानी हो रही है. भूकंप के चलते दिल का दौरा पड़ने से अब तक दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. लोग इमारतों पर लगे मोबाइल टॉवर हटाने की मांग कई बार प्रशासन से कर चुके हैं, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई.