ग़ैर दलित जाति के लोग खुद को दलित बताकर बीएसएफ एवं सीआरपीएफ जैसे अर्द्धसैनिक बलों और अन्य सरकारी महकमों में भर्ती हो रहे हैं. अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण-पत्र बनवा कर बीएसएफ एवं सीआरपीएफ में नौकरी कर रहे लोगों में अधिकांश यादव जाति के हैं. उत्तर प्रदेश में एक तऱफ दलित-हित के नाम पर सियासी भाषणबाजी और दुकानदारी चल रही है, तो वहीं दूसरी तऱफ दलितों का हक़ छीनने का गोरखधंधा चल रहा है. सरकारी महकमों में अनुसूचित जाति-जनजाति के प्रमाण-पत्र पर भर्ती का गोरखधंधा अंधाधुंध जारी है.

hekdi-m-yadavदिल्ली सरकार का एक मंत्री फर्जी डिग्री के मामले में जेल में है, लेकिन उत्तर प्रदेश में फर्जी प्रमाण-पत्र पर बीएसएफ, सीआरपीएफ, बीएसएनएल और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में धड़ल्ले से भर्तियां हो रही हैं, इस पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है. जिन्हें ध्यान देना है, वे सब धंधेबाजी में लिप्त हैं. ग़ैर दलित जाति के लोग खुद को दलित बताकर बीएसएफ एवं
सीआरपीएफ जैसे अर्द्धसैनिक बलों और अन्य सरकारी महकमों में भर्ती हो रहे हैं. अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण-पत्र बनवा कर बीएसएफ एवं सीआरपीएफ में नौकरी कर रहे लोगों में अधिकांश यादव जाति के हैं. उत्तर प्रदेश में एक तऱफ दलित-हित के नाम पर सियासी भाषणबाजी और दुकानदारी चल रही है, तो वहीं दूसरी तऱफ दलितों का हक़ छीनने का गोरखधंधा चल रहा है. सरकारी महकमों में अनुसूचित जाति-जनजाति के प्रमाण-पत्र पर भर्ती का गोरखधंधा अंधाधुंध जारी है. सीआरपीएफ ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है कि उत्तर प्रदेश के 25 युवकों ने फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर नौकरी हासिल की है. इनमें से 12 युवकों को नौकरी से निकाले जाने की आधिकारिक पुष्टि की गई है, लेकिन अन्य 13 लोगों का कोई पता ही नहीं चल रहा है कि वे सीआरपीएफ की किस इकाई में और किस स्थान पर तैनात हैं. इस तरह के सैकड़ों युवक हैं, जो बीएसएफ एवं सीआरपीएफ समेत अन्य केंद्रीय सरकारी विभागों में फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे हैं, लेकिन बीएसएफ, बीएसएनएल और अन्य विभाग इस मसले पर कन्नी काट रहे हैं, जबकि आधिकारिक तौर पर इस फर्जीवाड़े की पुष्टि हो चुकी है. बीएसएफ ने ऐसा केवल एक मामला पकड़ने का दावा किया है, जबकि सीआरपीएफ ने पारदर्शिता का प्रदर्शन करते हुए जिन 12 युवकों को बर्खास्त किए जाने की आधिकारिक पुष्टि की है, उनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश के एटा व अलीगंज के रहने वाले हैं और ज़्यादातर यादव एवं अहीर जाति के हैं, जो दलित बनकर नौकरी कर रहे थे. बीएसएफ ने फर्जी जाति प्रमाण-पत्र पर भर्ती हुए अशोक को नौकरी से बर्खास्त कर दिया है, जबकि सीआरपीएफ ने अमर सिंह को न केवल नौकरी से निकाला, बल्कि जालसाजी के आरोप में उसे गिरफ्तार भी किया.
सीआरपीएफ से बर्खास्त किए गए युवकों में सतीश चंद (फोर्स नंबर: 980460027), मुकेश चंद (फोर्स नंबर: 961400529), अशोक कुमार (फोर्स नंबर: 971400177), रवींद्र सिंह (फोर्स नंबर: 041727822), अशोक कुमार (फोर्स नंबर: 045268359), यशपाल सिंह (फोर्स नंबरः 971180712), ब्रजेश कुमार (फोर्स नंबर: 045181689), यदुवीर सिंह (फोर्स नंबर: 031310963), वीरपाल सिंह (फोर्स नंबर: 980030814), नीरज कुमार (फोर्स नंबर: 005263491), अमर सिंह (फोर्स नंबर: 951360181) और यतेंद्र सिंह (फोर्स नंबर: 991150431) शामिल हैं. यह
सीआरपीएफ की आधिकारिक (ऑफिशियल) सूचना है. बीएसएफ एवं सीआरपीएफ जैसे महत्वपूर्ण अर्द्धसैनिक बलों और बीएसएनएल जैसे केंद्र सरकार के प्रतिष्ठान में अनुसूचित जाति के कोटे पर पिछड़ी जाति के लोगों की भर्ती के जो आंकड़े उजागर हो पाए हैं या जिनके बारे में आधिकारिक पुष्टि हुई है, वे तो महज कुछ उदाहरण हैं. वह भी उत्तर प्रदेश के दो-तीन ज़िलों का ही फर्जीवाड़ा अभी आधिकारिक तौर पर पकड़ में आया है. एक सरकारी मुलाजिम ने ही बताया कि अकेले एटा से छह सौ से भी अधिक फर्जी जाति प्रमाण-पत्र जारी हुए. यह धंधा प्रदेश भर में चल रहा है. असलियत यह है कि पिछड़ी जातियों के लोग अनुसूचित जाति एवं जनजाति का फर्जी प्रमाण-पत्र हासिल कर हज़ारों की तादाद में बीएसएफ, सीआरपीएफ, बीएसएनएल और अन्य सरकारी विभागों में भर्ती हो रहे हैं.

इस गोरखधंधे में प्रदेश सरकार से लेकर अर्द्धसैनिक बल और केंद्रीय सरकारी विभागों के अधिकारियों तक की मिलीभगत है. उत्तर प्रदेश सरकार के प्रशासनिक अधिकारी इसे सख्ती से ऊपर इसलिए नहीं बढ़ाते, क्योंकि इसमें प्रशासन के ही अधिकारी फंस जाएंगे. ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें संबंधित ज़िला प्रशासन ने छानबीन की, फर्जी प्रमाण-पत्रों पर की गईं नियुक्तियां पकड़ीं, उनके बारे में संबंधित विभागों को सूचित भी किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. प्रशासन कहता है कि सीआरपीएफ एवं बीएसएफ के महानिदेशकों को इस बारे में लिख दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद फर्जी लोग बाकायदा नौकरी कर रहे हैं. सवाल यह भी उठा कि जब ज़िला प्रशासन की छानबीन में फर्जीवाड़ा पकड़ा गया और उत्तर प्रदेश सरकार को इसकी आधिकारिक सूचना मिल गई, तो फिर केंद्र सरकार और संबंधित मंत्रालयों को इस बारे में सूचित क्यों नहीं किया गया? सैकड़ों ऐसे लोगों के नाम मिले हैं, जो अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण-पत्र लेकर बीएसएफ एवं सीआरपीएफ में भर्ती हो गए हैं. 34 लोगों के बारे में संबंधित ज़िला प्रशासन द्वारा की गई छानबीन की रिपोर्ट चौथी दुनिया के पास है. इनमें से 31 के बारे में आधिकारिक पुष्टि हो गई है. इनमें 19 लोग यादव या अहीर जाति के हैं और अनुसूचित जाति के नाम पर बीएसएफ एवं सीआरपीएफ में नौकरी कर रहे हैं. बाकी 12 लोग भी पिछड़ा वर्ग या अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं. इनमें से दो लोग बीएसएनएल में हैं. यानी प्रशासन की जांच में आधिकारिक तौर पर यह पुष्टि हुई कि पिछड़ा वर्ग से आने वाले इन 31 लोगों ने तहसील से अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण-पत्र प्राप्त किया और उसके आधार पर अर्द्धसैनिक बलों में नौकरी हासिल कर ली. सरकारी जांच में पाया गया कि अलीगंज और एटा की तहसील से फर्जी प्रमाण-पत्र जारी हुए थे, लेकिन फर्जी प्रमाण-पत्र जारी करने वाले सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. ज़िला प्रशासन कहता है कि बीएसएफ एवं सीआरपीएफ के महानिदेशकों को इस बारे में इत्तिला कर दी गई है. बीएसएनएल में हुई नियुक्तियों के बारे में तो कोई कुछ बोल भी नहीं रहा.
सीआरपीएफ ने जिस अशोक कुमार पुत्र चंद्रपाल सिंह को बर्खास्त किए जाने की बात कही है, उसका नाम ज़िला प्रशासन की तऱफ से कन्फर्म की गई सूची में नहीं है. इसी तरह बर्खास्तगी वाली सूची में शामिल रवींद्र सिंह एवं यदुवीर सिंह, दोनों के पिता का नाम सूची में नहीं है. ब्रजेश कुमार पुत्र रछपाल सिंह का नाम सीआरपीएफ की सूची में है, लेकिन ज़िला प्रशासन की सूची में नहीं है. सीआरपीएफ महानिदेशालय की तऱफ से ऑल इंडिया एससी-एसटी इम्प्लॉइज वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव हरपाल सिंह को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि सीआरपीएफ एवं बीएसएफ में फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर भर्ती हुए लोगों में उत्तर प्रदेश के 34 लोगों के नाम आए हैं. इनके बारे में औपचारिक जांच-पड़ताल करके संबंधित ज़िला प्रशासन ने सूची जारी की है, लेकिन इनमें से सीआरपीएफ में भर्ती 12 लोगों का ही पता चल पाया है, जिन्हें बर्खास्त कर दिया गया है. सीआरपीएफ की 62वीं बटालियन में तैनात प्रवेश कुमार पुत्र बलराम के जाति प्रमाण-पत्र की जांच की जा रही है. इसके लिए एटा के ज़िलाधिकारी से भी अनुरोध किया गया है. लिहाजा, यह मामला अभी लंबित है.
सीआरपीएफ महानिदेशालय ने कहा है कि उसकी विभिन्न बटालियनों में भर्ती शिवनंदन पुत्र कश्मीर सिंह (कठिंगरा), महेश पाल पुत्र रघुनाथ सिंह (फगनौल), पुष्पेंद्र कुमार पुत्र पंत सिंह (शेखपुरा), नरेंद्र सिंह पुत्र राम निवास (जैथरा), राम करण पुत्र राम अवतार (सुहागपुर), वीरेंद्र सिंह पुत्र मैकू लाल (पहाड़पुर), सतीश चंद पुत्र राम लड़ैत (फगनौल), गिरीश चंद पुत्र राम लड़ैत (फगनौल), उमेश चंद पुत्र राम औतार (फगनौल), मिट्ठू लाल पुत्र मधुरी लाल (गणपतिपुर, बड़ापुर), देवेंद्र प्रताप सिंह पुत्र राम लछपाल सिंह (रामनगर हलवानपुर), देशराज पुत्र हाकिम सिंह (भलोल) और राम बख्श पुत्र राजवीर सिंह यादव (एटा) के बारे में कुछ पता नहीं चल पा रहा है. सीआरपीएफ ने उत्तर प्रदेश शासन से इस सिलसिले में विस्तृत छानबीन करने को कहा है.
सीआरपीएफ में ही भर्ती ब्रजेश कुमार पुत्र रछपाल (बलदेव, फगनौल) का भी अता-पता नहीं चल पा रहा है. एसोसिएशन से भी इस सिलसिले में मदद मांगी गई है.


दलित बनकर नौकरी कर रहे पिछड़ों की आधिकारिक सूची

1. शिवनंदन पुत्र कश्मीर सिंह-कठिंगरा-अहीर-सीआरपीएफ
2. मुकेश चंद पुत्र कृपाल सिंह-टिकाथर-यादव-बीएसएफ
3. अशोक कुमार पुत्र बृजराज सिंह-जालिम धुमरी-अहीर-बीएसएफ
4. कृष्णवीर सिंह पुत्र चंद्रपाल सिंह-मुकटीखेड़ा-अहीर-बीएसएफ
5. पुष्पेंद्र कुमार पुत्र पुत्तू सिंह-शेखपुरा-यादव-सीआरपीएफ
6. नरेंद्र सिंह पुत्र राम निवास-जैथरा-अहीर-सीआरपीएफ
7. सुशील कुमार उर्फ ब्रजेश पुत्र बदन सिंह-परौली, सुहागपुर-अहीर-बीएसएफ
8. रवींद्र सिंह पुत्र तारा चंद-परौली, सुहागपुर-अहीर-सीआरपीएफ
9. यदुवीर सिंह पुत्र अच्छे लाल-कठिंगरा-अहीर-सीआरपीएफ
10. जसवीर सिंह पुत्र चंद्रपाल-गढ़िया अहिरान तरंगवा-अहीर-बीएसएफ
11. अशोक कुमार पुत्र अमर सिंह-तरंगवा-अहीर-बीएसएफ
12. ध्यान सिंह पुत्र राम चंद्र-तरंगवा-अहीर-बीएसएफ
13. अशोक पुत्र अनार सिंह-तरंगवा-अहीर-बीएसएफ
14. सुभाष चंद्र पुत्र सूरज पाल सिंह-भाऊपुर-अहीर-बीएसएफ
15. नीरज कुमार पुत्र हाकिम सिंह-लाडमपुर कटारा-अहीर-सीआरपीएफ
16. देशराज पुत्र हाकिम सिंह-भलौल-अहीर-सीआरपीएफ
17. अमर सिंह पुत्र हर नारायण सिंह-एटा-अहीर-सीआरपीएफ
18. यतेंद्र सिंह पुत्र शेषपाल सिंह-एटा-अहीर-सीआरपीएफ
19. राम वृक्ष यादव पुत्र राजवीर सिंह यादव-एटा-यादव-सीआरपीएफ
20. महेश पाल पुत्र रघुनाथ सिंह-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
21. सतीश चंद्र पुत्र दफेदार-परौली, सुहागपुर-गड़रिया- सीआरपीएफ
22. राम करन पुत्र राम औतार-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
23. यशपाल पुत्र सूरज पाल-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
24. वीरपाल सिंह पुत्र खेतपाल सिंह-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
25. सतीश चंद्र पुत्र राम लड़ैते-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
26. गिरीश चंद्र पुत्र राम लड़ैते-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
27. उमेश चंद्र पुत्र राम औतार-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
28. प्रवेश कुमार पुत्र बलराम-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
29. सुशील कुमार पुत्र धर्मपाल-भदुइया मठ-गड़रिया-बीएसएनएल
30. संग्राम सिंह पुत्र सौदान सिंह-उमेद-शाक्य-बीएसएनएल
31. देवेंद्र प्रताप सिंह पुत्र राम रछपाल सिंह-रामनगर-नाई-सीआरपीएफ


चौकीदार को अफसर बना दिया!
फर्जी तरीके से नौकरी पाने और ऐसे लोगों को विभाग की तऱफ से संरक्षण देने का यह बेजोड़ मामला है. सिंचाई विभाग के लखनऊ खंड शारदा नहर में तैनात राजेंद्र प्रसाद उपाध्याय को 18 साल के बजाय 16 साल में ही नौकरी मिल गई थी. किसी भी अधिकारी ने कभी यह नहीं पूछा कि उन्हें 16 वर्ष, छह महीने, 25 दिन की उम्र में ही नौकरी किस क़ानून के तहत मिल गई? क़ानूनी प्रावधान के मुताबिक, 18 साल से कम उम्र में कोई सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती. बहरहाल, फर्जी तरीके से नियुक्ति भी हो गई और तमाम तरक्कियां भी होती रहीं. आ़िखरकार मामला जब शीर्ष स्तर पर पहुंचा, तो राजेंद्र प्रसाद उपाध्याय को सीधे डिमोट करके चौकीदार बना दिया गया. चौकीदार बनाए जाने के खिला़फ राजेंद्र हाईकोर्ट चले गए. हाईकोर्ट ने भी राजेंद्र की याचिका खारिज कर दी. यानी चौकीदार के पद पर पदावनति को अदालत ने भी सही ठहरा दिया. लेकिन, इसके बाद सिंचाई विभाग के आला अधिकारियों की धृष्टता और दुस्साहस देखिए कि विभागीय आदेश और अदालत के फैसले को ताक पर रखते हुए उन्होंने राजेंद्र उपाध्याय को सीधे प्रशासनिक अधिकारी (एडमिनिस्ट्रेटिव अफसर) के पद पर स्थापित कर दिया. प्रशासनिक अधिकारी का सृजित पद न होते हुए भी दूसरी जगह का पद अटैच कर राजेंद्र को यहां आसीन किया गया्‌ ऐसे ग़ैर-अनुशासनिक और ग़ैर-क़ानूनी कृत्य पर शासन की निगाह नहीं जाती. राजेंद्र उपाध्याय पर वित्तीय अनियमितताओं के भी कई मामले हैं. हाउसिंग समिति के नाम पर वित्तीय गड़बड़ी करने के अलावा उस पर अपने बेटे को विभाग का ठेकेदार बनाकर फायदा पहुंचाने, पराग बूथ के आवंटन में हेराफेरी करने, सरकारी कॉलोनी में ग़ैर-क़ानूनी निर्माण कराने जैसे तमाम आरोप हैं, लेकिन सिंचाई विभाग पर यूपी की अंधेर नगरी का पूरा असर है. उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग में 16 साल की उम्र में नौकरी पाने के और भी कई मामले हैं. विभाग के ड्राफ्टमैन विष्णु स्वरूप त्रिवेदी को भी 16 साल, सात महीने, चार दिन की उम्र में नौकरी मिल गई थी. त्रिवेदी की नियुक्ति को लेकर जांच और प्रति-जांच का सिलसिला चलता रहा, वह रिटायर होकर चले गए और अब पेंशन भी खा रहे हैं. जांच आज तक चल रही है. नौकरी पाने के पहले ही उनके लिए छुट्टियां मंजूर कर दिए जाने का मामला भी ऐसे रोचक किस्सों में शामिल है.


पिछड़ी जाति के दलित इंजीनियर!

उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में भी फर्जी जाति प्रमाण-पत्र पर नियुक्ति पाने का गोरखधंधा लंबे अर्से से चल रहा है. सिंचाई विभाग खास तौर पर ऐसी नियुक्तियों का केंद्र बना हुआ है. इस विभाग में सामान्य कर्मचारियों से लेकर इंजीनियर तक फर्जी जाति प्रमाण-पत्र पर नौकरी पाए हुए हैं. सिंचाई विभाग में सोनभद्र स्थित रॉबर्ट्सगंज में तैनात सहायक अभियंता अरविंद कुमार मूल रूप से पिछड़ी जाति के हैं, लेकिन अनुसूचित जाति के प्रमाण-पत्र पर नौकरी कर रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि इस सहायक अभियंता के कई रिश्तेदार भी अनुसूचित जाति का बनकर सिंचाई विभाग में नौकरी कर रहे हैं. अरविंद कुमार मूल रूप से मल्लाह (पिछड़ी जाति) हैं, लेकिन जाति प्रमाण-पत्र मझवार (अनुसूचित जाति) का बनवा रखा है. अरविंद कुमार की नियुक्ति अनुसूचित जाति प्रमाण-पत्र पर हुई और दलित होने के आधार पर ही उनकी तरक्की भी हो गई, जबकि फर्जी जाति प्रमाण-पत्र की जानकारी विभाग के सारे आला अधिकारियों को हो गई थी. विडंबना यह है कि अरविंद कुमार का फर्जीवाड़ा पकड़े जाने पर उन्हें अनुसूचित जाति की श्रेणी से बाहर किए जाने का आदेश भी जारी हो गया था, लेकिन उस आदेश को दबा दिया गया. फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी के मामले में उन पर क़ानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसी तरह सिंचाई विभाग, देवरिया में तैनात कन्हैया प्रसाद पिछड़ी जाति के हैं, लेकिन अनुसूचित जाति का बनकर नौकरी कर रहे हैं. कन्हैया प्रसाद के तीन नाम हैं, कन्हैया, कन्हैया प्रसाद और कन्हैया प्रसाद गोंड. जहां जैसी सुविधा देखी, वैसा नाम इस्तेमाल कर लिया. कन्हैया प्रसाद मूल रूप से पिछड़े वर्ग की कहार जाति से आते हैं, लेकिन जाति प्रमाण-पत्र में वह अनुसूचित जाति के गोंड बने हुए हैं और नौकरी कर रहे हैं. खूबी यह है कि कन्हैया प्रसाद के सर्विस रिकॉर्ड में भी जाति के कॉलम में कहार लिखकर उसे काटा हुआ है और गोंड लिख दिया गया है. सर्विस रिकॉर्ड में नाम कन्हैया प्रसाद लिखा है, जबकि जाति प्रमाण-पत्र पर कन्हैया प्रसाद गोंड लिखा हुआ है. जाति प्रमाण-पत्र पर पता (एड्रेस) सिंचाई विभाग, गोमती बैराज, लखनऊ लिखा हुआ है. यह प्रमाण-पत्र प्रथम द्रष्टया ही फर्जी साबित होता है, क्योंकि जाति प्रमाण-पत्र पर उस विभाग का पता नहीं दर्ज होता, जहां धारक नौकरी कर रहा है. लेकिन, इस भीषण भूल (ब्लंडर) पर अधिकारियों की निगाह नहीं जाती. इसी तरह सिंचाई विभाग, सीतापुर के नलकूप खंड-2 में फर्जी शैक्षणिक योग्यता प्रमाण-पत्र के आधार पर नौकरी पाए राम आसरे का मामला भी सरकारी पेंच में फंसा हुआ है. इस व्यक्ति पर सिंचाई विभाग के प्लैट पर अवैध रूप से कब्जा करने का भी आरोप है. राम आसरे सरकारी काम करने के बजाय राजनीतिक दल की पार्टी गतिविधियों में सक्रिय रहता है, लेकिन विभाग कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं कर रहा.

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