समाजवादी सेकुलर मोर्चा के गठन के बाद समाजवादी पार्टी की सक्रियता राजनीतिक शक्ति-प्रदर्शन कम पारिवारिक शक्ति-प्रदर्शन अधिक लग रही है. इस बार समाजवादी पार्टी ने पारिवारिक शक्ति-प्रदर्शन के लिए प्रदर्शनी स्थल का चयन देश की राजधानी दिल्ली में किया. कथित रूप से साइकिल से बेदखल किए गए मुलायम सिंह दिल्ली के जंतर-मंतर पर आयोजित सपा की सभा में आए और कथित रूप से साइकल पर जबरन कब्जा जमाए अखिलेश यादव ने प्रायोजित प्रहसन की तरह अपने पिता के पैर छुए. जंतर-मंतर की सभा ने नेपथ्य के सारे ‘जंतर-मंतर’ देश के सामने खोल कर रख दिए. न राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से मुलायम जबरन बेदखल किए गए थे और न अखिलेश यादव ने पार्टी पर जबरन कब्जा जमाया था.
प्रतिष्ठा, मान-सम्मान और अहमियत का रोना रोते हुए मुलायम ने ऐसा मायाजाल बुना था कि मुलायम के भ्राता शिवपाल उसी में उलझ कर रह गए और पुत्र अखिलेश पार्टी के सर्वेसर्वा बन बैठे. मुलायम ने ही सत्ता-अधिग्रहण का रास्ता अखिलेश को दिखाया था. देश की राजधानी में साइकिल रैली बुला कर अखिलेश ने देश के सामने मुलायम के उस मायाजाल के सारे धागे खोल दिए, ताकि भविष्य में किसी को कोई मुगालता न रहे. इस सभा के बाद अगर मुलायम ने फिर कोई भावनात्मक गुगली मारी, तो उसकी कोई प्रामाणिकता नहीं रहेगी और केवल उत्तर प्रदेश क्या, पूरा देश उसे खारिज कर देगा.
अखिलेश की दिल्ली सभा कम से कम इस दृष्टिकोण से सफल रही कि उन्होंने बड़ी बुद्धिमानी से शिवपाल यादव का भ्रम दूर कर दिया और यह दिखा दिया कि अखिलेश के साथ बने रहना मुलायम की मजबूरी है. शिवपाल ने इस प्रकरण पर इतना ही कहा, ‘कभी-कभी कुछ लोगों को बिना मेहनत के बहुत कुछ मिल जाता है और कुछ लोग मेहनत, श्रम और प्रतिबद्धता के बावजूद वंचित रह जाते हैं. कुछ लोग भाग्यशाली हैं, जिन्हें बिना कुछ किए बहुत कुछ मिल गया.’ आप याद करें, समाजवादी सेकुलर मोर्चा की औपचारिक घोषणा के बाद शिवपाल सिंह यादव ने कहा था कि उन्होंने नेता जी से सहमति लेकर ही मोर्चे का ऐलान किया और उनका आशीर्वाद उन्हें प्राप्त है. मुलायम के ‘मायाजाल’ की बारीकियों को शिवपाल के इस बयान से समझा सकता है.
मुलायम ने सम्मान और प्रतिष्ठा का जो भावनात्मक तानाबाना बुना था, उसमें शिवपाल आज तक उलझे हैं. यहां तक कि समाजवादी सेकुलर मोर्चा का औपचारिक ऐलान करने के बाद भी वे यही कहते रहे कि मोर्चा नेता जी और उन सभी नेताओं की प्रतिष्ठा वापस दिलाएगा, जिन्हें समाजवादी पार्टी में उपेक्षित और अपमानित किया गया. अभी हाल ही सपा के वरिष्ठ नेता भगवती सिंह ने अपने जन्मदिवस पर आयोजित सभा में जब कहा कि समाजवादी पार्टी में उनकी कोई प्रतिष्ठा नहीं करता, तब मुलायम भी बोल पड़े थे कि अब उनका भी कोई सम्मान नहीं करता. अब मरने के बाद ही शायद उन्हें सम्मान मिले.
आज सपा के ही नेता यह कह रहे हैं कि मुलायम ने यह बात भगवती सिंह की शिकायत का प्रभाव कम करने के लिए कही थी. सम्मान की पुनर-स्थापना के प्रयास में ही शिवपाल ने मोर्चा के झंडे पर मुलायम को स्थान दिया और वरिष्ठ नेता के आवास पर जाकर उन्हें समाजवादी सेकुलर मोर्चा का झंडा भेंट किया. भगवती सिंह कई बार सांसद, मंत्री और विधायक रह चुके हैं. उनकी पहचान डॉ. राम मनोहर लोहिया के अनुयायी और प्रतिबद्ध समाजवादी की रही है.
उधर, मुलायम को जंतर-मंतर की सभा में बुलाकर सपाइयों ने राजनीतिक बयान देने के बजाय पारिवारिक-कलह पर ही बयानबाजी की और शिवपाल को निशाने पर रखा. जंतर-मंतर पर बुलाई गई सामाजिक न्याय यात्रा सह साइकिल रैली के संयोजक अखिलेश-भक्त संजय लाठर और रामवृक्ष यादव जैसे लोगों ने तो यहां तक बोल दिया कि शिवपाल का हश्र अमर सिंह जैसा होगा. लाठर यह प्रहार करते रहे और मुलायम इसे सुनते-सहते रहे. समाजवादी सेकुलर मोर्चा के सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के ऐलान के संदर्भ पर लाठर ने कटाक्ष भी किया कि यह कोई प्रधानी का चुनाव नहीं है.
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी पार्टी के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के सभा में आने को बार-बार रेखांकित करते रहे और आभार जताते रहे. ऐसा वे सोच-समझ कर कर रहे थे. हालांकि लोगों ने यह भी देखा कि मंच पर अखिलेश किसी बात पर मुलायम को घुड़की भी दे रहे थे, लेकिन बोलते हुए यही कह रहे थे कि सभा में नेताजी के आने से सपा में नई ऊर्जा का संचार हुआ है. मुलायम के सामने ही अखिलेश ने परोक्ष रूप से बसपा के साथ गठबंधन के निर्णय को उचित ठहराने का संकेत देते हुए कहा कि सपा की साइकिल का एक पहिया अम्बेडकर विचारधारा का है, तो दूसरा लोहिया विचारधारा का है. मुलायम ने सभा में महिलाओं की नगण्य संख्या होने और उन्हें आगे की कतार में बैठने नहीं देने पर जब आपत्ति जताई, तब भी अखिलेश ने झटपट जवाब दिया और अर्धसत्य परोसने में संकोच नहीं किया. अखिलेश ने कहा, ‘नेता जी उनपर महिलाओं की उपेक्षा का सवाल नहीं उठा सकते, क्योंकि उन्होंने अपनी पत्नी को सांसद बनवाया है.’ अखिलेश ने ऐसा बोलते हुए लोगों को यह नहीं बताया कि वे ही डिंपल यादव को कन्नौज से मौजूदा सांसद होते हुए भी इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ने दे रहे हैं और वहां से खुद चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं.
बहरहाल, जंतर-मंतर की सभा में शरीक होकर मुलायम ने यह साफ कर दिया कि उनके और अखिलेश के बीच में कभी कोई दूरी नहीं थी, बल्कि शिवपाल ही उनके लिए मजबूरी थे. मुलायम को सभा के मंच पर बुलाने का सियासी ‘मूव’ अखिलेश के चौसर-गुरु रामगोपाल यादव के कहने पर रखा गया था. एक ही मंच पर पिता मुलायम सिंह यादव, बेटा अखिलेश और अखिलेश के चचेरे चाचा रामगोपाल यादव की अंतरंग मौजूदगी ने सभा में मौजूद लोगों के साथ-साथ प्रदेश की जनता का भी रहा-सहा भ्रम दूर कर दिया. अखिलेश के इस ‘मूव’ के ‘हिट’ होने से काफी प्रसन्न हैं. उन्हें लग रहा है कि अब समाजवादी पार्टी की साइकिल तेजी से दौड़ेगी.
मुलायम ने जो राजनीति की तस्वीर प्रस्तुत की, उसमें उन्होंने दिखाया कि शिवपाल अकेले छूट गए हैं. मुलायम परिवार में चल रही कलह में नेताजी ने ऐसा दांव मारा जिसका शिवपाल को अंदाजा तक नहीं था. मुलायम हमेशा अखिलेश को आगे बढ़ने के लिए उकसाते रहे और शिवपाल के कंधे पर हाथ रख कर उन्हें ठंडा करते रहे. सपा के कई वरिष्ठ नेता कहते हैं कि नेता जी ने ही सपा के वरिष्ठ नेताओं को अखिलेश के साथ जाने और सत्ता-अधिग्रहण के लखनऊ-मंचन के समय मंच पर मौजूद रहने को कहा था. मुलायम के निर्देश पर ही किरणमय नंदा से लेकर अहमद हसन और तमाम वरिष्ठ नेता अखिलेश के साथ खड़े हुए थे.
यह बात समझते हुए भी शिवपाल ‘लक्ष्मण’ बने मौन साधे देखते रहे और भ्राता राम का चरित्र पढ़ने की कोशिश करते रहे. समाजवादी सेकुलर मोर्चे की घोषणा पर सहमति देकर अखिलेश के साथ समाजवादी पार्टी की सभा में शरीक हो जाने की चाल भी मुलायम ने ही रची थी. ऐसा करके मुलायम ने बृहत्तर यादव परिवार में फैले उहापोह का पटाक्षेप कर दिया. सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि मुलायम ने बहुत सोच-समझ कर 2012 में अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया था. मुलायम ने तभी यह स्पष्ट कर दिया था कि उनके उत्तराधिकारी अखिलेश हैं, शिवपाल नहीं. मोर्चा के गठन के बाद समाजवादी पार्टी के कार्यालय जाकर मुलायम ने पुत्र-प्रेम की अभिव्यक्ति दे दी थी.
जंतर-मंतर प्रकरण के बाद शिवपाल ने राजनीति के मैदान में दृढ़ता से डटे रहने का संदेश देते हुए चुनाव आयोग से मोर्चे के लिए चुनाव चिन्ह प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी. शिवपाल ने समाजवादी सेकुलर मोर्चे के 14 मंडलों के प्रभारी भी घोषित कर दिए और प्रत्येक मंडल और जिले के साथ-साथ विधानसभा क्षेत्र में सम्मेलन करने का ऐलान किया. समाजवादी सेकुलर मोर्चा के प्रदेश महामंत्री और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी डॉक्टर मरगूब त्यागी ने कहा कि मोर्चा नेता शिवपाल यादव ने संगठन खड़ा करने के लिए मंडल स्तर पर स्वयं और जिला स्तर पर प्रदेश पदाधिकारियों को भेजकर सम्मेलन करने की योजना बनाई है.
दलितों, पिछड़ों और छोटे दलों को जोड़ने की मुहिम के तहत समाजवादी सेकुलर मोर्चा की 27 सतम्बर को सहारनपुर में रैली हुई. इस रैली में बसपा के संस्थापक कांशीराम के संगठन ‘बामसेफ’ से लंबे समय तक जुड़े रहे वामन मेश्राम और पिछड़ा समाज के नेता बंशीलाल यादव की शिवपाल यादव के साथ प्रमुखता से मौजूदगी राजनीतिक क्षेत्र में खास चर्चा में रही. अक्टूबर से शिवपाल मोर्चे का मंडलीय सम्मेलन शुरू करेंगे. पहला मंडलीय सम्मेलन मेरठ में करने का पहले ही ऐलान हो चुका है.
भाई ‘लक्ष्मण’ ने भ्राता ‘राम’ से अमर्यादा का कारण पूछा
जंतर-मंतर की सभा के बाद शिवपाल यादव ने बड़े भ्राता मुलायम सिंह यादव से दिल्ली जाकर मुलाकात की और अपने साथ किए जा रहे ऐसे दोधारी व्यवहार का औचित्य पूछा. शिवपाल-मुलायम में क्या बातें हुईं, इसका कोई आधिकारिक आधार नहीं मिला है, लेकिन ‘दीवारें’ जो कान लगाए सुन रही थीं, उनका कहना है कि मुलायम समाजवादी सेकुलर मोर्चे के सपा में विलय की भी उम्मीद लगाए बैठे हैं. मुलायम अब भी शिवपाल के समक्ष संधि और सम्मानजनक वापसी की जलेबी लटकाए हुए हैं. मुलायम की पूरी कोशिश होगी कि वे मोर्चे का सपा के साथ विलय कराएं. लेकिन शिवपाल इस बार अपने राजनीतिक वजूद के प्रति सतर्क और सचेत हैं. शिवपाल ने नेता जी से कहा कि समाजवादी सेकुलर मोर्चा सपा-बसपा गठबंधन में शामिल होने के लिए तैयार है. साथ ही शिवपाल ने समाजवादी पार्टी के लोगों द्वारा विलय की अफवाहें फैलाए जाने पर रोक लगाने के लिए भी कहा.
शिवपाल ने मुलायम से यह भी कहा कि डॉ. लोहिया और उनके सिखाए मार्ग पर चलने के कारण ही उन्होंने भाजपा में शामिल होने का सम्मानजनक प्रस्ताव त्याग दिया और सेकुलर मोर्चे का गठन किया. मोर्चे की औपचारिक घोषणा की सहमति देने के बाद मुलायम के समाजवादी पार्टी की सभा में शरीक होने पर शिवपाल ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई. समाजवादी सेकुलर मोर्चा के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि जंतर-मंतर की सभा में मुलायम के शरीक होने के बाद भी मोर्चा अपने झंडे से नेता जी मुलायम सिंह यादव की तस्वीर नहीं हटाएगा. नेता जी अखिलेश यादव के लिए पिता हैं, लेकिन समाजवादी सेकुलर मोर्चा के लिए नेता जी एक महापुरुष हैं. पिता को मंच पर बिठा कर दिखाना अखिलेश यादव की मजबूरी है, जबकि अपने झंडे और प्रतीक चिन्ह के रूप में नेता जी का चेहरा सामने रखना समाजवादी सेकुलर मोर्चा के गौरव का विषय है. उक्त मोर्चाई ने कहा कि लोग अब जल्दी ही समाजवादी पार्टी के नेताओं को मोर्चे में शामिल होता हुआ देखेंगे. लखनऊ में विशाल रैली की तैयारियां उसे प्रभावकारी और तारीखी बनाने की हैं.
शिवपाल यादव खुद ही अपने पुराने साथियों और समाजवादियों से मिल रहे हैं. ऐसे नेताओं और साथियों को साथ लेकर समाजवादी सेकुलर मोर्चा लखनऊ में बड़ा सम्मेलन कराने की तैयारी में लगा है. सपा के मंच पर मुलायम के हाजिर रहने के बावजूद, शिवपाल को अपने पुराने साथियों से उम्मीद है. शिवपाल का दावा है कि अब तक 22 छोटे दल समाजवादी सेकुलर मोर्चा में शामिल हो चुके हैं. शिवपाल लगातार जिलों का दौरा कर रहे हैं और अपने समर्थकों को एकजुट कर रहे हैं. वे सपा के पुराने नेताओं से मिल रहे हैं और उन्हें मोर्चे में शामिल करा रहे हैं. शिवपाल कहते हैं कि अब तक 22 छोटे और मझोले दल समाजवादी सेकुलर मोर्चे में शामिल हो चुके हैं. इसके अलावा कई जातियों के संगठन भी शामिल हो रहे हैं. इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है. मोर्चे के साथ कौन-कौन से दल आए और कौन-कौन से नेता, यह सब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आयोजित होने जा रहे सम्मेलन में जाहिर हो जाएगा.