जायज मांगों के लिए विरोध और प्रदर्शन करना हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन अगर इससे नागरिकअधिकार प्रभावित हों, तो इसे उचित नहीं कहा जा सकता. यही काम इस वक्त मणिपुर में हो रहा है. मणिपुर पिछले एक नवंबर से ब्लॉकेड (नाकेबंदी) की मार झेल रहा है. मणिपुर को जोड़ने वाले दोनों नेशनल हाईवे 39 एवं 53 को यूनाइटेड नगा काउंसिल ने ब्लॉक कर रखा है. ट्रांस एशियन रेलवेज प्रोजेक्ट और अन्य नेशनल प्रोजेक्ट भी बंद हैं.
दो महीने बाद भी इसका समाधान नहीं निकला है, वहीं सरकार व अधिकारियों की चिंता केवल राज्य में चुनाव जल्द कराने की है. मणिपुर के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और अन्य मंत्री चुनाव जल्दी कराने के लिए अक्सर दिल्ली आते-जाते रहते हैं, लेकिन ब्लॉकेड की वजह से ठप पड़े राज्य के बारे में सोचने की फुर्सत उन्हें नहीं है. ब्लॉकेड के कारण आम लोगों को रोजमर्रा की चीजें, जैसे एलपीजी, पेट्रोल-डीजल, खाने-पीने का सामान एवं दवा आदि की भारी कमी झेलनी पड़ रही है.
इस ब्लॉकेड का कारण है मणिपुर सरकार द्वारा सात नए जिले की घोषणा. सरकार की इस घोषणा का विरोध करते हुए यूएनसी ने नेशनल हाईवे को ब्लॉकेड कर दिया है. यूएनसी एक मणिपुरी नगा संगठन है, जो नगालैंड और मणिपुर में सक्रिय रूप से काम करता है. यूएनसी, एनएससीएन-आईएम के सहयोग से चलने वाली संस्था है, जबकि एनएससीएन-आईएम की केंद्र सरकार के साथ वार्ता चल रही है. मणिपुर में नौ जिले थे, अब सात नए जिले मिलाकर कुल 16 जिले हो गए हैं.
इन नए सात जिलों में जिरिबाम, कांगपोकपी, काकचिंग, तेंगनौपल, कामजोंग, नोने एवं फरजॉल हैं. जिरिबाम एवं कांगपोकपी नगा बहुल जिले हैं और सबसे अशांत क्षेत्र भी. पहले भी इन दोनों जगहों पर नाकेबंदी होती रही है. दोनों जगहों को जिला बनाने की घोषणा पर यूएनसी एतराज जता रही है. यूएनसी का मानना है कि नए जिले की घोषणा से नगा लोग अलग-अलग टुकड़ों में बंट जाएंगे. वे चाहते हैं कि एक ही जगह पर, एक ही प्रशासनिक क्षेत्र के अंदर वे रहें. लेकिन नए जिले बनने से एक ही गांव के अलग-अलग हिस्से, अलग-अलग जिलों में बंट जाएंगे. वैसे भी मणिपुर में बसे नगा समुदाय एनएससीएन-आईएम के नगालिम राज्य की मांग का समर्थन करते हैं.
उनको ये लगता है कि सरकार उनको बांटने का काम कर रही है, जबकि मणिपुर की सरकार का मानना है कि सात नए जिले बनाना किसी खास जाति या समुदाय के खिलाफ नहीं है. यह केवल एक प्रशासनिक रूप से किया गया विभाजन है. इससे लोगों को प्रशासनिक काम-काज में सुविधा होगी. इससे इतर यूएनसी को एतराज है कि उनके अपने लोगों को अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया गया है. राज्य सरकार उनको तोड़ने की साजिश कर रही है.
बहरहाल, राज्य में ब्लॉकेड का इतिहास बहुत लंबा और जटिल भी है. इसके पीछे कई कहानियां छुपी हैं. इसमें राज्य सरकार को निर्दोष नहीं माना जा सकता है. 2011 में भी सदर हिल्स डिस्ट्रिक की मांग को लेकर ब्लॉकेड हुआ था. उसके विरोध में यूएनसी ने 120 दिन का ब्लॉकेड कर आम जनता का जीना दुष्वार कर दिया था. मणिपुर के इस ब्लॉकेड के समाधान में केंद्र से ज्यादा जिम्मेदारी राज्य सरकार की है. 2011 में जब इन संगठनों के साथ सरकार का समझौता हुआ था, तो उस समझौते के शर्तों की जानकारी आज तक लोगों को नहीं दी गई.
इतने लंबे समय का ब्लॉकेड कैसे खत्म हुआ था और क्या-क्या शर्तें मानी गईं, यह किसी को नहीं पता चल सका. तुलनात्मक विश्लेषण करें, तो आज यह ब्लॉकेड वैसा ही, जैसा उस वक्त लोग सदर हिल्स डिस्ट्रीक की मांग कर रहे थे. सरकार ने सही निर्णय लेकर क्यों नहीं उसी वक्त समाधान निकाला. सदर हिल्स (जिरिबाम) को एक जिला घोषित करने की रूप-रेखा उसी समय तैयार हो चुकी थी, फिर भी राज्य सरकार ने घोषित नहीं किया. अगर उस वक्त तत्काल घोषणा की गई होती, तो अब यह समस्या पैदा नहीं होती. अब राज्य में चुनाव नजदीक आने के बाद राज्य सरकार ने सात नए जिलों की घोषणा कर लोगों में अशांति का माहौल पैदा कर दिया है.
इस समय राज्य में हालत ये है कि ढाई सौ से तीन सौ रुपए प्रति लीटर पेट्रोल भी लोगों को नहीं मिल रहा है. गांवों में आलू-दाल जैसे आसानी से मिलने वाले सामान भी नहीं मिल रहे हैं. पेट्रोल-डीजल की भारी कमी की वजह से गाड़ियों का आना-जाना बंद हो गया है. जो गाड़ियां चल भी रही हैं, तो उसका भाड़ा दोगुना कर दिया गया है. इस दौरान दो सप्ताह तक इंटरनेट सेवा बंद रखा गया था. एक तरफ लोग नोटबंदी की मार झेलने को मजबूर थे, तो वहीं ब्लॉकेड ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया.
यूएनसी द्वारा मणिपुर में किया जा रहा इकोनॉमी ब्लॉकेड असंवैधानिक है. यह ब्लॉकेड मणिपुर के 28 लाख लोगों के पेट पर लात मारता है. यह राज्य सरकार की नाकामी है. नए जिले बनाने से सरकार नगाओं के हक नहीं छीन रही है. उनको जो भी स्टेटस पहले से मिल रहा था, वही स्टेटस और सुविधाएं इन नए जिलों में भी सुरक्षित रहेंगे.
-एलांगबम जोनसन, अध्यक्ष, यूनाइटेड कमेटी मणिपुर (यूसीएम)
जमीन से नगाओं का अटूट संबंध रहा है. पूर्वजों की परंपरा, संस्कृति और एकता से जुड़ी व्यवस्था और नियम का हमेशा सम्मान करना नगाओं की जिम्मेदारी है. इसपर अगर हमें कोई बांटने की कोशिश करता है, तो हम इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे.
-पीए थेको (नगा), सोशल एक्टिविस्ट