bosss17 अप्रैल को भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर का 90वां जन्मदिन है. चंद्रशेखर जी को लोग भूतपूर्व प्रधानमंत्री के नाते नहीं जानते और न भूतपूर्व प्रधानमंत्री कहने से चंद्रशेखर जी का सम्मान बढ़ता है. चंद्रशेखर की ज़िंदगी में जो करिश्मे हुए, वे उन्होंने खुद किए. बलिया के एक छोटे-से गांव इब्राहिम पट्टी में पैदा हुए, मीलों पैदल चलकर स्कूल गए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति की. समाजवादी विचारधारा से प्रभावित हुए और अपनी बेबाकी, निर्भीकता एवं अक्खड़पन की वजह से सारे देश में जाने गए.

चंद्रशेखर जी ने मुझे अपनी ज़िंदगी के उत्थान-पतन के बहुत सारे किस्से सुनाए और उन किस्सों को सुनकर मेरे मन में चंद्रशेखर जी की जो छवि बनी, वह एक ऐसे महानायक की थी, जिसने ज़िंदगी में कभी हार नहीं मानी, जो हमेशा लोगों के लिए लड़ा और जिसके लिए सत्ता या सत्ताधीश जनता की तकलीफें दूर करने का साधन तो थे, पर साध्य नहीं थे.

आज हमारा देश जहां खड़ा है, खासकर आर्थिक नीतियों के चलते हर वर्ग परेशान है. जो पैसा कमाने वाला वर्ग है और जिसे हम कॉरपोरेट्‌स कहते हैं, वह भी दु:खी है. जो देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ रखने में हमेशा सबसे आगे रहा यानी इस देश का किसान वर्ग, वह भी दु:खी है. इस दु:ख और अर्थव्यवस्था के रास्ते को, अगर चंद्रशेखर जी होते, तो कैसे सुधारते, यह सवाल मन में बार-बार उठता है. दरअसल, जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने, उस समय की लोकसभा में हुआ आपसी संवाद इस समस्या को समझने का एक रास्ता देता है.

नरसिम्हा राव सदन में प्रधानमंत्री के स्थान पर बैठे थे और उनके वित्त मंत्री मनमोहन सिंह नई आर्थिक नीतियों के बारे में अपने विचार प्रस्तुत कर रहे थे. उन्होंने देश को बताया कि अब हम जो आर्थिक नीतियां लागू करने जा रहे हैं, उनसे अगले बीस वर्षों में देश में ग़रीबी घटकर 30 से 35 प्रतिशत रह जाएगी, सबको बिजली मिल जाएगी, सबको सड़क मिल जाएगी, सबको पानी मिल जाएगा और हम महाशक्ति बनने के रास्ते पर चल निकलेंगे. सत्तारूढ़ दल ने मेजें थपथपा कर उनका स्वागत किया. सदन में भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी बैठे थे.

चंद्रशेखर जी खड़े हुए और उन्होंने कहा, मनमोहन सिंह जी ने जो भाषण दिया है, वह बीस वर्ष बाद की जो तस्वीर पेश कर रहा है, मैं उससे बिल्कुल अलग तस्वीर देख रहा हूं. बीस वर्ष बाद इस देश में ग़रीबी बढ़ जाएगी, असमानता बढ़ जाएगी, लोग अपने हक़ों के लिए शायद हथियार उठाने लगेंगे. न देश को बिजली मिलेगी, न पानी मिलेगा पीने के लिए, सिंचाई के लिए तो होगा ही नहीं. मैं वित्त मंत्री की दी हुई तस्वीर से बिल्कुल उलट तस्वीर देखता हूं, जिससे मुझे डर है कि देश भटकाव या टूटन के रास्ते पर चल पड़ेगा.

प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव उठे और चंद्रशेखर जी बैठ गए. नरसिम्हा राव जी ने कहा, चंद्रशेखर जी, जब आप प्रधानमंत्री थे, तो मनमोहन सिंह आपके वित्तीय सलाहकार थे और मैंने तो यह मान रखा था कि ये जो चीजें यहां कह रहे हैं, उसमें आपकी सहमति होगी और आप इनसे असहमति दिखा रहे हैं. चंद्रशेखर जी फिर खड़े हुए और उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री जी, मैंने आपको सब्जी काटने के लिए चाकू दिया था, लेकिन आप तो उस चाकू से दिल का ऑपरेशन करने लगे.

पूरा सदन ठहाका मारकर हंस पड़ा, लेकिन चंद्रशेखर जी के इस तीखे व्यंग्य ने बीस वर्ष बाद की तस्वीर क्या होगी, यह सा़फ कर दिया. और, आज बीस वर्षों के बाद देश की तस्वीर, जिसकी ओर चंद्रशेखर जी ने इशारा किया था, उससे ज़्यादा खराब है. आज हमारे देश की अर्थव्यवस्था दिशाहीन है और इसकी गवाही दुनिया के अर्थशास्त्री तो देते ही हैं, हमारे खुद के रिजर्व बैंक गवर्नर इसके सबसे बड़े चश्मदीद गवाह हैं. नतीजे के तौर पर बहुत सारे उद्योग बैठ गए हैं, बहुत सारे सेक्टरों को पुनर्जीवित करने का कोई रास्ता सरकार के पास नहीं है.

सरकार जिस तरह का बजट ला रही है, उससे देश के 80 प्रतिशत लोगों की ज़िंदगी में कोई बदलाव होने वाला नहीं है. यह सरकार अर्थव्यवस्था में कोई भी बुनियादी परिवर्तन नहीं करना चाहती और इसी का परिणाम है कि जिस एनपीए को सरकार 1.14 लाख करोड़ रुपये बता रही है, दरअसल वह कुल मिलाकर 18 लाख करोड़ रुपये के आसपास है. उस अर्थव्यवस्था, जिसका ज़िक्र मनमोहन सिंह ने नरसिम्हा राव के समय किया था और जिसे मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार अक्षरश: अपनाए हुए है, ने इस देश के सारे पब्लिक सेक्टर को बर्बाद कर दिया है.

अटल जी की सरकार ने तो पब्लिक सेक्टर्स को बेचना शुरू किया था. अब नए सिरे से फिर उन्हें बेचने की बात भारत सरकार कर रही है. सरकारी बैंकों से रुपया कैसे लूटा जाए, रुपया लूटकर उसे कैसे विदेश भेजा जाए और फिर खुद भी विदेश निकल लिया जाए, यही सब करने वाला वर्ग मौजूदा अर्थव्यवस्था या मौजूदा सरकार के दौर में सुखी है, खुश है. मैं मनमोहन सिंह या नरेंद्र मोदी के ऊपर आरोप नहीं लगा रहा. मैं आरोप लगा रहा हूं, उन नीतियों के ऊपर, जिन्हें मनमोहन सिंह ने शुरू किया था और नरेंद्र मोदी अक्षरश: अपनाए हुए हैं.

अगर आज चंद्रशेखर जी होते, तो वह मौजूदा प्रधानमंत्री के घोषित किए हुए कार्यक्रमों को प्राथमिकता देने के बजाय सबसे पहले देश के सबसे बड़े औद्योगिक संसाधन कृषि के ऊपर ध्यान देते. वह कृषि क्षेत्र की समस्याओं का राजनीतिक हल नहीं, बल्कि आर्थिक हल निकालते. चंद्रशेखर जी यह हल निकालते कि किसान कैसे पैदावार ज़्यादा करे, कैसे पैदावार का उसे पूरा मूल्य मिले, वह कैसे खुशहाल हो और किस तरह गांव में रहने वाले लोग बिना शहरों पर बोझ पड़े, एक नए संपूर्ण उद्योग के क्षेत्र में स्वयं को ट्रांसफॉर्म कर लें.

चंद्रशेखर जी होते, तो वह देश के बैंकों को मजबूत करते, न कि उन्हें क्षमादान देते, जो 18 लाख करोड़ रुपये लेकर देश से भाग गए. हज़ारों लोग बैंकों से पैसा लेकर देश से बाहर चले गए हैं और मौजूदा सरकार के पास ऐसा कोई साधन नहीं है, जिससे पता चल सके कि कितने लोग पैसा लेकर देश से बाहर चले गए हैं. पहले एक योजना आयोग हुआ करता था, जो इन सारी चीजों के ऊपर नज़र रखता था और उत्पादन से लेकर संपत्ति के विभिन्न समूहों में बंटवारे तक के सर्वे कराकर जानकारी एकत्र रखता था.

अब नीति आयोग है, अवश्य कुछ कर रहा होगा, लेकिन देश को नहीं पता कि नीति आयोग क्या कर रहा है? नीति आयोग का कोई भी ऐसा अध्ययन अब तक सामने नहीं आया, जिससे देश को पता चले कि हमारे आर्थिक संसाधनों का जमाव कहां हो रहा है, वे देश से सायफन कितने हो रहे हैं? चंद्रशेखर जी अगर आज होते, तो वह बैंकों को मजबूत करने और उन्हें यह अधिकार देने पर अवश्य ज़ोर देते कि जिसने भी बैंकों से 100 करोड़ रुपये से ज़्यादा का कर्ज लिया है, बैंक उसकी जांच करें कि वह अपना काम ठीक ढंग से कर रहा है या नहीं.

चंद्रशेखर जी बाज़ारू अर्थव्यवस्था के खिला़फ थे, मुक्त अर्थव्यवस्था के खिला़फ थे, लेकिन अगर मुक्त अर्थव्यवस्था विश्व में आगे बढ़ने के लिए अवश्यंभावी है और यही बुनियादी शर्त है, तो चंद्रशेखर जी उसे लागू करने से पहले उन सारे उपायों का अध्ययन करते, जिनसे देश का पैसा बाहर जाने का मार्ग बंद होता.

चंद्रशेखर जी शायद देश से पैसा विदेश में सायफन करने को देशद्रोह की श्रेणी में लाते और उन सारे पूंजीपतियों को, पैसे वालों को, जो देश का पैसा विदेश ले जाते हैं, देशद्रोही करार देते और उनके ऊपर देशद्रोह का म़ुकदमा चलवाते. और, अगर वह विपक्ष में होते, तो सरकार के ऊपर दबाव डालते कि ऐसे लोगों के खिला़फ देशद्रोह का म़ुकदमा चले.

चंद्रशेखर होने का मतलब देश के ग़रीब और वंचित व्यक्ति के लिए प्राथमिकता से सोचना होता है. चंद्रशेखर होने का मतलब देश को केंद्र में रखना, देश को फासिस्ट टर्मिनोलॉजी में परिभाषित न करना, बल्कि देश को विकास के सही अर्थ में परिभाषित करना होता है. चंद्रशेखर होने का मतलब इस देश के हर ब्लॉक में उद्योग-धंधों का जाल बिछाना होता है. और, यह चंद्रशेखर जी के मन की वह तड़प है, जो कई और राजनेताओं में भी होगी. लेकिन जिस त्वरा से, जिस जिजीविषा से, जिस हिम्मत से चंद्रशेखर जी इस सबके लिए लड़ते, वह आज की तारीख में किसी नेता में दिखाई नहीं देता.

इसलिए आज की अर्थव्यवस्था का अंतर्विरोध चंद्रशेखर जी को स्मरण करने पर याद दिला जाता है कि 1991 में लोकसभा में जो चेतावनी उन्होंने दी थी, अगर उसका विश्लेषण करें, तो आज इससे निकलने का रास्ता मिल सकता है. अ़फसोस की बात यह है कि मौजूदा सरकार देश के उन सारे नेताओंके बारे में सोचना भूल गई है, जिन्हें सोचना हमारे लिए बहुत लाजिमी है. वह चंद्रशेखर और वीपी सिंह जैसों को तो भूल ही गई है, अटल बिहारी वाजपेयी को भी भूल गई है. वह यह सोचना भूल गई है कि क्यों अटल बिहारी वाजपेयी को देश के लोग अपना आदरणीय मानते थे. इसलिए देश के हित में सरकार अगर संपूर्ण अर्थव्यवस्था के बारे में नए सिरे से सोचे, तो शायद हम इस चक्रव्यूह से बाहर निकल पाएं.

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