आगामी विधानसभा चुनाव में कौन पार्टी सरकार बनाने में कामयाब होगी इस सिलसिले में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी परंतु इतना तय है कि सरकार बनाने में मुस्लिम मत एवं मुस्लिम उम्मीदवारों की भूमिका बहुत अहम होगी. राज्य में मुसलमानों की संख्या कुल आबादी की 5.78 प्रतिशत है और ये प्रतिशत सरकार बनाने एवं बिगा़डने में अहम भूमिका अदा कर सकता है.
आगामी 15 अक्टूबर को हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. इसके नतीजे 19 अक्टूबर को आ जाएंगे. चुनाव का बिगुल बजते ही तमाम राजनीतिक पार्टियां हरकत में आ गई हैं. अपने-अपने उम्मीदवार को कामयाब बनाने में जुट गई हैं. राज्य में कुल 90 सीटें हैं और इन सभी सीटों के लिए राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव में कुल 1222 उम्मीदवार ख़डे हुए थे. जिनमें 68 महिलाएं शामिल थीं. इनमें चालीस सीटों पर कांग्रेस जीत प्राप्त कर सबसे ब़डी पार्टी बनकर उभरी थी जबकि भारतीय राष्ट्रीय लोकदल को 31 एवं भाजपा को मात्र चार सीटें ही हासिल हुई थीं. इसके अलावा बसपा एवं शिरोमणि अकाली दल को एक-एक सीट मिली थी जबकि निर्दलियों को सात सीटों पर जीत हासिल हुई थी. हरियाणा जनहित कांग्रेस को 6 सीटों पर कामयाबी मिली थी.
आगामी चुनाव में कौन पार्टी सरकार बनाने में कामयाब होगी इस सिलसिले में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी परंतु इतना तय है कि सरकार बनाने में मुस्लिम मत एवं मुस्लिम उम्मीदवारों की भूमिका बहुत अहम होगी. राज्य में मुसलमानों की संख्या कुल आबादी की 5.78 प्रतिशत है और ये प्रतिशत सरकार बनाने एवं बिगा़डने में अहम भूमिका अदा कर सकता है. पिछले चुनाव में सभी पार्टियों के कुल उम्मीदवारों में मुसलमानों का प्रतिशत मात्र 6.6 था जिनमें से मात्र 5 उम्मीदवार ही सफल हो सके थे. जबकि एक मुसलमान उम्मीदवार जाकिर हुसैन सोनहा क्षेत्र में कांग्रेसी उम्मीदवार की तुलना में मात्र 505 वोटों से हारे थे. यह स्थिति इस बात का इशारा कर रही है कि राज्य की राजनीति में मुसलमानों का प्रभाव बहुत गहरा है एवं आगामी चुनाव में सरकार को बनाने-बिगा़डने में उनका दखल महत्वपूर्ण होगा. राज्य में मेवात एवं यमुनानगर ऐसे क्षेत्र हैं जहां मुसलमानों की संख्या अधिक है और इनमें से 70 प्रतिशत से ज्यादा किसान हैं. ये किसान इस समय कांग्रेस सरकार से सख्त नाराज हैं. दरअसल इन मुस्लिम क्षेत्रों को भूपिंदर सिंह हुडा की सरकार ने महज एक वोट बैंक मान रखा है. वहां न तो कोई विकास का काम हुआ है और न ही कोई मुस्लिम बच्चों की शिक्षा की तरफ कोई ध्यान दिया गया है. मेवात क्षेत्र में बेहद शैक्षिक पिछ़डापन है. परंतु सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है ग्यारह हजार से ज्यादा बच्चे, जिनकी उम्र दस साल से कम है, अभी तक स्कूल का मुंह नहीं देख पाए हैं. राष्ट्रीय शैक्षिक स्तर के मुकाबले मेवात का शैक्षिक स्तर 54.08 है. पिछले साल हुडा सरकार ने वहां एक मेडिकल कॉलेज खोलने का ऐलान किया था परंतु यह सिर्फ एक ऐलान की हद तक ही रहा आजतक इस पर अमल नहीं हो सका. ऊपर से सरकार ने इनकी जमीन पर उद्योग लगाने के नाम पर अधिग्रहित करके सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को लाभ पहुंचाने की कोशिश की थी. एवं उनकी जमीन की जो कीमत लगाई गई थी वो कौ़डी के भाव थी. एक तो बेरोजगारी और ऊपर से अपनी पुश्तैनी जमीन हाथ से निकलती देखकर क्षेत्र के लोगों के सब्र का पैमाना भर गया. उन्होंने सोहना बाईपास के करीब सामुहिक प्रदर्शन किया था ओर हुडा सरकार के विरुद्ध नाराजगी जताई थी. ख़ेडी कंकार के रहने वाले जगुद्दीन का कहना है कि राज्य सरकार ने मेवात में कोई काम नहीं किया है. न तो शिक्षा की व्यवस्था है और न ही रोजगार का कोई जरिया है. हमसे सिर्फ चुनाव के समय में वादे किए जाते हैं और फिर उसे भुला दिया जाता है.
जाहिर है कि यह स्थिति सत्तासीन कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत नहीं है. इस समय ये राज्य की सबसे ब़डी पार्टी है मगर राज्य में भाजपा की लोकप्रियता में ब़ढावा हो रहा है. इसका एक कारण तो यह है कि पिछले चुनाव के बादे से कांग्रेस पर मुसलमानों को नजरंदाज करने का आरोप लग रहा है इसी वजह से मुस्लिम उम्मीदवारों को कम टिकट दिए गए थे. बल्कि हासन से जरीब खान जैसे मजबूत उम्मीदवार को टिकट देने से मना कर दिया गया था. उस समय जरीब खान ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव ल़डा और जीत दर्ज की. हुडा सरकार के इस रवैये से तंग आकर मुस्लिम समुदाय किसी विल्प की तलाश में है. इसके अलावा इनेलो ने पिछले चुनाव में कांग्रेस को दस सीटों को जबरदस्त टक्कर दी थी. इन दिनों पार्टी की स्थिति और बेहतर हुई है. मुसलमानों का भरोसा भी इस पार्टी पर तेजी से ब़ढता जा रहा है. फिरोजपुर झरका से इसी पार्टी के वर्तमान विधायक नसीम अहमद मुसलमानों को पार्टी की तरफ आकर्षित करने में लगे हुए हैं. राज्य में सत्ताविरोधी रुझान के साथ कई नेताओं के पार्टी छो़डकर जाने और कुछ के पार्टी में रहते हुए भी मुख्यमंत्री हुडा के विरुद्ध विरोधी रुख अपनाए हुए हैं.
मेवात के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता एवं धार्मिक नेता क़ारी महमूदुल हसन, जो कि मदरसा तज्वीदुलकुरान मस्जिद तकियावाली आजाद मार्केट के कुलपति हैं एवं मुस्लिम ही नहीं आम मतदाताओं पर बहुत प्रभाव रखते हैं, ने चौथी दुनिया से बातचीत में बताया कि मुस्लिम मत कांग्रेस एवं इनेलो में विभाजित है और ज्यादा संभावना है कि इनेलो का प़डला मुस्लिम वोट बटोरने में भारी रहे. मेवात के एक दूसरे सामाजिक कार्यकर्ता रमजान चौधरी, जिन्होंने इस बार सोनहा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर आम आदमी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, का कहना है कि कांग्रेस के निकम्मेपन से मतदाता नाराज हैं. इसलिए इस बार कांग्रेस को पराजय का सामना करना प़डेगा और वह सरकार नहीं बना पाएगी. उनके विचार से यही स्थिति इनेलो और भाजपा की भी रहेगी. वे कहते हैं कि ऐसी अवस्था में दो ही संभावनाएं हो सकती हैं-पहली, कांग्रेस निर्दलीयों के साथ मिलकर सरकार बनाए. उनके अनुसार पिछली बार इस राज्य से सात उम्मीदवार जीते थे लिहाजा इस बार अगर 10-12 उम्मीदवार सफल हो जाते हैं तो कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बन सकती है और इस स्थिति में मुख्यमंत्री निर्दलीय उम्मीदवार भी हो सकता है. दूसरी संभावना यह है कि भाजपा और इनेलो भी चुनाव के बाद समझौता करें और सरकार बनाए.अतएव हरियाणा के बारे में कहा जा सकता है कि वहां स्थिति अस्थिर है एवं कांग्रेस सरकार के समाप्त होने के बाद कोई भी सत्ता में आ सकता है. अब आने वाला समय ही बताएगा कि सत्ता का ताज किसके सिर च़ढेगा.
हरियाणा में मुस्लिम मत निर्णायक हो सकता है
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