त्वरित हास्य व्यंग
दो दर्ज़ी बेटे झगड़ रहे थे।
एक दूजे पर दोष दोष मढ़ रहे थे।
एक कमज़ोर था एक दक्ष था।
एक पक्ष था एक विपक्ष था।
एक ने कहा तू झूठा है बेईमान है।
तेरी मशीन में पारदर्शिता है न मिलान है।
पक्ष ने कहा तुम झूठे हो तुम जलते हो।
हार जाते हो हाथ मलते हो
बहुत विरोध हुआ बहुत शोर हुआ।
हाथ से सिलाई वंस मोर हुआ।
एक ने कॉलर खींची एक ने सुइयाँ टोंची।
शिकायत अब्बा तक पहुँची।
बहुत चली झूठी साँची।
हाथापाई खींचाखाँची।
आख़िर अब्बा ने मशीन जाँची।
नौ मन तेल मिला तो राधा नाची।
अब्बा ने दोनों को सुना अपना सिर धुना और कहा।
ए विपक्ष बेसबब अश्क़ मत बहा।
तेरा आरोप बेबुनियाद हैं मशीन नक्की है
तू शक्की है।
अब विरोध किया तो रुख़्सत पक्की है।
अंततः मशीन हुईं निर्दोष।
विपक्ष हुआ ख़ामोश।
इधर अब्बा मुस्कुरा रहे थे।
मन ही मन इतरा रहे थे।
जाने क्या गुनगुना रहे थे।
आज वो फूले नहीं समा रहे थे।
अब्बा पक्ष का हाथ थामे हुए चुपचाप से।
अपनी बेआवाज़ दबी हुई पदचाप से।
विपक्ष की मजबूरी पर सितम ढा रहे थे।
आज वो दुकान से घर नहीं राजमार्ग की तरफ़ जा रहे थे…😜
विजय तिवारी “विजय”