वर्ष 2005 की बात है, एक 18 वर्षीय विद्यार्थी की ई-मेल हैक हो गई और उसका महत्वपूर्ण आंकड़ा जाता रहा. उस आंकड़े को फिर पाने के लिए उसने न जाने कहां-कहां की खाक छानी, लेकिन सब जगह निराशा हाथ लगी. वह जिस किसी भी हैकर के पास जाता, उससे मोटी रकम की डिमांड की जाती. इसके अलावा उसे पक्का आश्वासन भी नहीं मिलता कि डाटा मिल जाएगा. मोटी रकम ख़र्च करने में असमर्थ इस विद्यार्थी ने ठान लिया कि वह अपनी तरह की परेशानी से जूझने वाले दूसरे लोगों की मदद के लिए शोध करेगा.
उसने सोचा कि वह इस तरह की परेशानियों से दो-चार हो रहे लोगों की बिना पैसे लिए मदद करेगा. उसने सबसे पहले जालंधर से अंकित फाड़िया सर्टिफाइड ऐथिकल हैकर्स नामक कोर्स किया. उसके बाद एक साल तक उसने रोज़ाना 16 से 18 घंटे मेहनत की. उसने कंप्यूटर और सूचना-तकनीक के हरेक आयाम को खंगाला. अपने अनुभवों को उस विद्यार्थी ने सितंबर 2007 में एक किताब का रूप दिया. किताब का नाम उसने गूगल हैकिंग एट यूअर फिंगर टिप्स रखा. हालांकि, आर्थिक समस्याओं के चलते, इस किताब की महज कुछ हज़ार प्रतियां ही प्रकाशित हो पाईं. इसके छपने के बाद इसकी चर्चा भारत के सभी बड़े अखबारों में हुई. आज यह किताब सूचना-तकनीक से संबंधित भारत के हरेक कॉलेज की लाइब्रेरी में उपलब्ध है.
किताब के प्रसार के बाद उस विद्यार्थी से कई ऐसे लोगों ने संपर्क किया, जिनकी समस्या भी कुछ इसी तरह की थी. और यहीं से संस्था हंस की नींव पड़ी. इतने मज़बूत इरादे वाला वह होनहार विद्यार्थी था ऋषि अग्रवाल. ऋषि अग्रवाल ने सात सदस्यों के साथ हंस एंटी हैकिंग एंटीस्पेशन नेशनल सोसायटी का गठन किया. इस सोसायटी ने 2007 में लुधियाना व फगवाड़ा पुलिस की आईटी से संबंधित विभिन्न मामलों में सहायता की. वक़्त का पहिया घूमता रहा और ऋषि अग्रवाल ने बीसीए की पढ़ाई समाप्त कर पुणे में एमसीए में दाख़िला लिया. पुणे में इस विषय से संबंधित विभिन्न विद्यार्थियों के संपर्क में आने पर ऋषि अग्रवाल को और प्रोत्साहन मिला और उसने 2009 में हंस एंटी हैकिंग एंटीस्पेशन सोसायटी को रजिस्टर्ड करा लिया. इस संस्था की एंटी हैकिंग टीम में सोसायटी के प्रधान ऋषि के अलावा रीतिका गोयल, पल्लवी अग्रवाल व पुनीत मनचंदा हैं, जो एमसीए के विद्यार्थी हैं व कुणाल कपूर इंजीनियरिंग का विद्यार्थी है. जालंधर का 17 वर्षीय प्रसिद्घ हैकर पारुल खन्ना इस संस्था का सुरक्षा प्रमुख है
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