शुजात बु़खारी के सुरक्षा गार्ड, अब्दुल हामिद टंच और मुमताज़ अवान, जिन्होंने उस हमले में अपनी जान गंवा दी, कश्मीरियों के लिए सदैव प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे.
ईद से दो दिन पहले, श्रीनगर के बीचोंबीच राइजिंग कश्मीर के संपादक शुजात बुखारी की हत्या ने पूरे देश, खासकर पत्रकारिता जगत, को चौंका दिया. शुजात बुखारी के साथ, दो अन्य व्यक्तियों ने भी उस हमले में अपनी जान गंवा दी. अब्दुल हामिद टंच और मुमताज अवान जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान थे और शुजात बुखारी की सुरक्षा उनके जिम्मे थी. नियंत्रण रेखा के पास स्थित साधारण गांव से आने वाले इन दोनों जवानों ने देश की सबसे व्यस्त पुलिस बलों में से एक में शामिल होने के लिए काफी संघर्ष किया था. उनकी असामयिक मौत के बाद, उनका परिवार अभी भी त्रासदी से उबरने की कोशिश कर रहा हैं.
जब शुजात बुखारी पर हमला हुआ था, तब सबसे पहली गोली अब्दुल हामिद टंच के चेहरे पर लगी थी. हामिद जम्मू-कश्मीर के कर्नाह घाटी के बियादी गांव से आते थे. ये गांव एलओसी के इस तरफ का आखिरी गांव है. हामिद के घर पहुंचने के लिए, वाहन को ड्रिंगला गांव में रोकना पड़ता है और बियादी तक पहुंचने के लिए एक घंटे की ट्रैकिंग करनी पड़ती है. न तो वहां सड़क हैं और न ही कोई अन्य सुविधा. यह कहना गलत नहीं होगा कि इस गांव के लोग भगवान की दया पर छोड़ दिए गए है.
वहां की सुरक्षा सीमा सुरक्षा बल के जिम्मे है, जो शाम 6 बजे बियादी गांव के गेट को बंद कर देते हैं और सुबह 7 बजे गेट खोलते है. 15 अक्टूबर, 1979 को बियादी में पैदा हुए, हामिद ने अपने गांव से पांचवीं और टीटवाल से दसवीं पास किया था. हामिद को अपने गांव से पांच किलोमीटर पैदल चल कर टीटवाल स्कूल पहुंचना होता था. साल 2000 में हामिद जम्मू-कश्मीर पुलिस में शामिल हुए. 2007 में शुजात बुखारी के निजी सुरक्षा अधिकारी के रूप में शामिल होने से पहले, वे डलगेट और फिर नूरबाग में तैनात थे. हामिद के घर में उनकी बीमार मां लाल जान, पत्नी, एक बेटा और दो बेटियां है.
बेटा साहिल हामिद सात वर्ष का है और कक्षा 2 में है. उनकी एक बेटी संबरीन हामिद नौ वर्ष की है और तीसरी कक्षा में पढ़ाई करती है, जबकि दूसरी बेटी अदीबा हामिद केवल चार वर्ष की है. 29 साल की उनकी पत्नी सुरिया बानो एक गृहिणी है. उनका परिवार पूरी तरह से सदमे में है. हामिद के बच्चे यह भी नहीं जानते कि उनके पिता के साथ क्या हुआ है. हत्या के समय, हामिद की मां, पत्नी और बच्चे श्रीनगर के हुमामा इलाके में एक किराए के कमरे में थे. उनकी मां बताती है कि हमारे रिश्तेदारों में से एक हमें पुलिस नियंत्रण कक्ष ले गए. तब तक हम नहीं जानते थे कि वास्तव में हुआ क्या था. वहां हमने उसका खून से सना शरीर देखा तो हम बेहोश हो गए.
मुमताज अवान भी शुजात बुखारी के साथ मारे गए एक और सुरक्षा गार्ड (पीएसओ) थे. 39 साल के मुमताज का जन्म कर्नाह घाटी के खवारपोरा गांव में हुआ था. अप्रैल 1979 में पैदा हुए, मुमताज साल 2000 में जम्मू-कश्मीर पुलिस में शामिल हुए. मुमताज ने गंदरबल के मनीगाम ट्रेनिंग सेंटर से प्रशिक्षण लिया था. अक्टूबर 2008 में शुजात बुखारी के पीएसओ बनने से पहले, वे कुपवाड़ा और नेहरू पार्क में तैनात थे. मुमताज के घर में वृद्ध माता-पिता, पत्नी और तीन बच्चे हैं.
उनकी पत्नी सफूरा बेगम एक गृहिणी हैं. उनके 68 वर्षीय पिता रहमत अली अवान एक सेवानिवृत्त अधिकारी हैं, जो सैन्य अभियंता सेवा (एमईएस) में काम कर चुके हैं. मुमताज के एक रिश्तेदार कहते हैं कि मुमताज पिछले 10 सालों से शुजात बुखारी के साथ थे. मुमताज का 10 साल में तीन बार स्थानांतरण हुआ था, लेकिन हर बार शुजात साहब ने स्थानांतरण रूकवा दिया, क्योंकि वे मुमताज पर काफी भरोसा करते थे. जब अक्टूबर 2005 में भूकंप ने कश्मीर घाटी को हिला दिया था, तब मुमताज उन लोगों में से एक थे, जो कर्नाह घाटी गए बचाव मिशन में शामिल थे. कर्नाह घाटी में ही भूकंप का कहर सबसे अधिक बरपा था.
जब 2014 में कश्मीर में विनाशकारी बाढ़ आई थी, तो मुमताज लोगों की मदद और बचाव के लिए सबसे आगे थे. वह बहादुरी से श्रीनगर के विभिन्न क्षेत्रों में जा कर लोगों की जान बचा रहे थे. एक सरकारी कर्मचारी होने के नाते, उन्होंने कई लोगों की मदद की. उनके पिता बताते है कि 9 जून को घर छोड़ने से पहले मुमताज ने अपनी पत्नी को कुछ पैसे दिए और उनसे कहा कि जरूरतमंदों को दे देना, ताकि वे भी ईद मना सके. उनके पिता रहमत साहब बताते है कि जब भी गांव से कोई श्रीनगर इलाज के लिए जाता था, तो मुमताज वहां अस्पताल में उनकी मदद करते थे. शुजात बुखारी के सुरक्षा गार्ड होने के नाते मुमताज अक्सर राइजिंग कश्मीर के संवाददाताओं से बात करने की कोशिश करते थे, ताकि वे अपने गांव की समस्याओं को अखबार में प्रकाशित करवा सके.
इस घटना से मुमताज की पत्नी टूट चुकी हैं. वह अपने छोटे बेटे मुनीब से भी मुश्किल से बात कर पा रही हैं. वह कहती हैं कि उन्होंने मुझे शाम साढ़े चार बजे फोन किया था और सिर्फ इतना पूछा था कि ईद किस दिन मनाई जाएगी. शाम 7 बजे गोली लगने से पहले उन दोनों के बीच ये अंतिम बातचीत थी. मुमताज अवान के पिता का जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजीपी से केवल एक ही अनुरोध है. वह कहते हैं कि मेरा छोटा बेटा भी पुलिस में है. मैं अनुरोध करता हूं कि उसका तबादला सीआईडी या सीआईके में कर दिया जाए और उसे हमारे गांव के पास स्थानांतरित कर दिया जाए, ताकि वह हमें समय दे सके और अपने बीमार माता-पिता की देखभाल कर सके.
–(लेखक राइजिंग कश्मीर अखबार में कार्यरत हैं)