भूख से परेशान बुंदेलखंड वालों ने मांगी ख़ुदकुशी की इजाज़त
सेवा में
माननीया मुख्यमंत्री जी,
उत्तर प्रदेश सरकार,
लखनऊ (उत्तर प्रदेश).
हम सभी किसान भाई का,निवासी ब्लॉक बबीना, ग्राम-गुवावली, जनपद-झांसी, शपथपूर्वक निवेदन यह है कि हमारे गांव में वर्षा न होने से खेत सूख गए हैं, फसल नहीं हो पाई है. कई परिवार भूख की कगार पर हैं. अभी तक हम लोगों को कोई भी सूखा राहत प्राप्त नहीं हुई है. ऐसी स्थिति में हम लोगों ने प्रशासन से राहत की मांग की है, किंतु उपेक्षा देखने को मिली है. ऐसी स्थिति में हम निम्न हस्ताक्षरकर्ता किसान भाई और पूर्व प्रधान चंदन सिंह अपनी जीवन लीला समाप्त करने तक को तैयार हैं, जिसकी ज़िम्मेदारी प्रशासन की होगी. हमारी मदद की जाए.
प्रार्थीगण
बुंदेलखंड में पड़े सूखे और भूख के कारण अब किसानों में आत्महत्याओं का दौर शुरू हो गया है. पिछले दो हफ़्तों में भुखमरी के शिकार चार किसानों ने आत्महत्या करके और आने वाले चंद दिनों में डेढ़ दर्जन किसानों ने आत्महत्या करने की घोषणा करके केंद्र और प्रदेश की सरकारों को कठघरे में खड़ा कर दिया है. आत्महत्याओं वाले इलाक़ों से इस समय तीन नेता प्रदेश सरकार में तो एक केंद्र सरकार में मंत्री हैं. विडंबना देखिए कि यहां के किसान फिर भी प्रशासन द्वारा अपेक्षा और उत्पीड़न से परेशान हैं. सूखे को लेकर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने केंद्र के ख़िला़फ हाथ मिला लिया है. इन सबका असर यह हुआ है कि बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त इलाक़ों में अफसरों ने किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता देने से मनाही कर दी है. यानी केंद्र और राज्य सरकारों के बीच चल रही राजनीतिक लुका-छिपी का असर सीधे किसानों पर पड़ रहा है. हर तऱफ से छल होता देख किसान हताश हो गए हैं. इतने कि आत्महत्या जैसे क़दम उठाने लगे हैं. सूखा, क़र्ज़ और भूख से परेशान होकर 29 जुलाई को ललितपुर जनपद के ग्राम खिंतवास में 75 वर्षीय किसान मुन्नीलाल लोहार ने आत्महत्या कर ली. इसके बाद चार अगस्त को बैरवारा के 28 वर्षीय किसान गोविंद और नौ अगस्त को झांसी के टहरौली तहसील के 75 वर्षीय किसान क्षमाधर यादव ने भी आत्महत्या कर केंद्र और प्रदेश सरकारों के मुंह पर सूखे की हक़ीक़त का तमाचा जड़ दिया.
सरकारों तक अपनी आवाज़ और आर्थिक मदद की गुहार कर रहे झांसी जनपद के बबीना ब्लॉक के गुवावली गांव के ही डेढ़ दर्जन किसानों ने प्रशासन पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए जल्द ही परिवार सहित आत्महत्या करने की शपथ ली है. इस सिलसिले में उन्होंने नौ अगस्त को एक हलफनामा तैयार कर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को भेज दिया है. इसकी सूचना उन्होंने स्थानीय प्रशासन के अलावा कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी दे दी है. इन किसानों के पास एक हज़ार एकड़ से अधिक कृषि भूमि है, जिन पर इस व़क्त मूंग और मक्के की फसलें खड़ी हैं. बाक़ी फसलों में मूंगफली, सोयाबीन, तिली की फसल है जो पानी न मिलने के कारण बुरी तरह ख़त्म हो चुकी है. सपरिवार आत्महत्या करने की घोषणा करने वालों में ग्राम गुवावली, बबीना के पूर्व प्रधान चंदन सिंह पुत्र पंचम सिंह (49 वर्षीय), ग्राम ख़ास बबीना के 30 वर्षीय रामदास पुत्र बैजनाथ, ग्राम गुवावली के 62 वर्षीय कमल पुत्र स्व. हल्कू ढीमर, ग्राम गुवावली के ही वालिकदास पुत्र राज्जू, लल्लू कोरी पुत्र पच्चू, नंदराम पुत्र धनीराम, रामदास केवट पुत्र कमल, जगदीश पुत्र बंशी-बबीना, 45 वर्षीय रामप्रकाश कुशवाहा पुत्र रज्जू-ग्राम रसीना, हीरा लाल कुशवाहा पुत्र स्व. मोतीलाल मथनपुरा, 56 वर्षीय देशराज पुत्र तिजू, 32 वर्षीय रामकुमार यादव पुत्र पंचम सिंह शामिल हैं. आत्महत्या करने की घोषणा करने वाले इन किसानों की फसल पानी न मिलने के कारण लगभग पूरी तरह चौपट हो रही है. किसानों ने सरकार से मुफ़्त बिजली और खेतों को पानी देने की गुहार लगाई है. खेतों में खड़ी मूंगफली, सोयाबीन, तिल, मूंग, उड़द, मक्के की क़रीब 60 से 70 प्रतिशत फसल सूखती देख किसानों को ख़ून के आंसू रोना पड़ रहा है. मूंगफली की क़रीब 80 प्रतिशत खेती ख़त्म हो चुकी है. फसलों को बचाने के लिए सरकारों की खुली जंग और प्रशासनिक अमले के खड़े हाथ देख किसान आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं. इससे केंद्र और दोनों संबद्ध राज्य सरकारों के ख़िला़फ आक्रोश बढ़ गया है. सूखे की स्थिति को देख किसानों को सूदखोर महाजनों और बैंकों ने किसी भी प्रकार का क़र्ज़ देने से इंकार कर दिया है. किसानों की इस भयावह स्थिति को देख केंद्र और प्रदेश सरकार अभी तक कोई ठोस योजना तैयार नहीं कर पाई है, किसानों के परिवार को भरपेट भोजन तो दूर पीने का पानी तक मुहैया नहीं हो पा रहा है. अपनी स्थिति देख पिछले एक माह में बुंदेलखंड के दस हज़ार से अधिक परिवार अपना घर छोड़कर अन्य क्षेत्रों की और पलायन कर चुके हैं. इन किसानों के पास मौजूद जानवरों में क़रीब एक हज़ार मौत के मुंह में जा चुके हैं, जबकि हज़ारों कसाइयों के शिकार हो गए हैं. स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि प्रशासनिक अमला भी इनके गांवों में जाने से कतरा रहा है, जबकि नेता राज्य मुख्यालयों में दुबके बैठे हैं और किसान बराबर मौत को गले लगा रहा है. किसानों का आरोप है कि 2007 में पड़े भयंकर सूखे से भारी क़र्ज़ में फंस गए उनके परिवार अभी तक उस संकट से ही नहीं निकल पाए थे. ऐसे में इस साल के सूखे ने उन्हें भुखमरी के कगार पर ला दिया है. बबीना के इस क्षेत्र में दौ सौ कुंए हैं, जिनमें से तीन से पांच कुओं में पानी सड़ गया है, जो न तो खेती लायक है और न ही पीने के. इस क्षेत्र में 12 गांव हैं. इस क्षेत्र में क़रीब 10 हज़ार एकड़ भूमि उपजाऊ है. इसी क्षेत्र से उत्तर प्रदेश सरकार में अंबेडकर ग्राम विकास मंत्री रतनलाल अहिरवार और केंद्र में प्रदीप जैन आदित्य ग्रामीण विकास राज्यमंत्री हैं. इन मंत्रियों के पास सूखाग्रस्त क्षेत्रों के बारे में पूरी जानकारी है, पर सरकारों के बीच खिंची तलवारों को देख कोई भी मंत्री आगे नहीं बढ़ रहा है.
बहरहाल, सूखे ने एक बार फिर बुंदेलखंड को झकझोर कर रख दिया है. सूखे से यहां की अर्थव्यवस्था ही नहीं, शिक्षा भी प्रभावित हुई है. ग़रीबी और बेरोज़गारी भी लोगों के गले को सुखाने लगी है. बुंदेलखंड के शिक्षा क्षेत्र तक में भूचाल आ गया है. छात्रों को इस साल का वज़ीफा तक नहीं मिला है. इतना ही नहीं, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के लगभग दस हज़ार छात्रों को अभी तक अंक तालिकाएं नहीं दी गई हैं, जबकि नया सत्र भी शुरू हो चुका है.
हमें मौत दे दीजिए मुख्यमंत्री जी
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