राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक सौ तेईस वक्फ़ संपत्तियों का मालिकाना हक दिल्ली वक्फ़ बोर्ड को शीघ्र ही सौंपे जाने की ख़बर उन तमाम लोगों, मुस्लिम संगठनों, सरकार और दीगर ताकतों के गले में फांस की तरह अटक गई है, जिन्होंने इन संपत्तियों पर जबरन एवं अवैध क़ब्ज़े कर रखे हैं. 
dr-hakअभी हाल में जबसे यह ख़बर सामने आई कि शहरी विकास मंत्रालय दिल्ली में स्थित एक सौ वर्ष पुरानी 123 वक्फ़ संपत्तियों का मालिकाना अधिकार दिल्ली वक्फ़ बोर्ड को सौंपने के लिए शीघ्र ही निर्णय लेने जा रहा है, उनका उपयोग कर रहे मुस्लिम एवं अन्य में स़ख्त बेचैनी शुरू हो गई है, जिनमें कुछ विशिष्ट मुस्लिम संगठन एवं संस्थान भी शामिल हैं. कुछ संपत्तियां तो सरकार के अधीन भी हैं. ये वक्फ़ संपत्तियां दिल्ली में आईटीओ चौराहा, कनॉट प्लेस, सदर बाज़ार और निजामुद्दीन जैसी जगहों पर मौजूद हैं. इन 123 वक्फ़ संपत्तियों में आईटीओ स्थित मस्जिद अब्दुननबी एवं उससे संबंधित भूमि भी है, जहां इस समय मुसलमानों के प्रसिद्ध संगठन जमीअतुल उलेमा हिंद के दोनों गुटों के केंद्रीय मुख्यालय मौजूद हैं. इस मस्जिद से मिली हुई भूमि पर भव्य इमारतें भी कुछ वर्षों पूर्व बना दी गई हैं. दिलचस्प बात तो यह है कि ये सारे ग़ैरक़ानूनी काम दिल्ली पुलिस के मुख्यालय से नजदीक अंजाम दिए गए. दरियागंज नार्थ स्थित बच्चों का घर (खसरा नंबर 89/48-49-50, मकान नंबर 5028-5029, वार्ड नंबर 11), जहां सरकारी संस्थान दिल्ली वक्फ़ बोर्ड का दफ्तर क़ायम है, भी इन्हीं विवादित संपत्तियों में से एक है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण (इरविन) हॉस्पिटल के कुछ भाग भी इन्हीं संपत्तियों के प्लॉट नंबर 9/1 पर स्थित हैं. मथुरा रोड पर ही साउथ इंद्रप्रस्थ में कादियानियों ने प्लॉट नंबर 68/1 पर अपना कब्रिस्तान बना रखा है. यहां ग़ौर करने लायक बात यह है कि कादियानियों को मुस्लिम समाज हज़रत मोहम्मद को अंतिम पैगंबर न मानने के कारण इस्लाम का अनुयायी ही नहीं मानता है.
वक्फ़ काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व सचिव डॉ. मोहम्मद रिजवानुल हक़ ने चौथी दुनिया से बातचीत के दौरान बताया कि दिल्ली वक्फ़ बोर्ड 123 में से 118 ऐसी संपत्तियों की ही देखभाल कर रहा है, जिनमें सभी धार्मिक स्थल हैं. लिहाजा उनके अनुसार, समस्या इन तमाम संपत्तियों के मालिकाना अधिकार इस बोर्ड को ट्रांसफर करने की है. वह यह भी कहते हैं कि यह समस्या बहुत दिनों से चली आ रही है. इसलिए यूपीए सरकार इस संदर्भ में कोई निर्णय लेती है, तो यह अच्छी ख़बर है. उनका यह भी कहना है कि शेष पांच संपत्तियों पर भारत सरकार का नोटिस लगा हुआ है कि ये सरकारी संपत्तियां हैं.
आइए, सर्वप्रथम यह देखते हैं कि वक्फ़ आख़िर है क्या एवं शरीयत (इस्लामिक क़ानून) में इसकी स्थिति क्या है? वक्फ़ का हदीस (पैगंबर हजरत मोहम्मद के निर्देश) में खुलासा किया गया है कि असल (मूल भूमि) को इस तरह खैरात (कल्याणकारी कार्य) में दान करो, जिससे वे न बेची जा सकें, न ही उन्हें गिफ्ट में दिया जा सके और न ही इसमें विरासत का सिलसिला जारी हो, बल्कि इसके लाभ आम लोगों को मिला करें. उपरोक्त हदीस के अनुसार, पूरे संसार के मुस्लिम समुदाय में वक्फ़ का सिलसिला जारी है एवं यह जनकल्याण का एक बेहतरीन जरिया बना हुआ है. जहां तक हमारे देश का मामला है, 17 नवंबर, 2006 को भारत सरकार को सौंपी गई सच्चर समिति की रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में 6 लाख एकड़ भूमि पर फैली हुई 4.9 लाख रजिस्टर्ड वक्फ़ संपत्तियां मौजूद हैं, जिनका इस समय मूल्यांकन 6 हज़ार करोड़ रुपये किया गया है और इससे वार्षिक आय कम से कम 163 करोड़ रुपये है. इसी रिपोर्ट में पृष्ठ संख्या 382 से लेकर 393 तक दिल्ली की 318 संपत्तियों की सूची प्रकाशित की गई है और उन पर तमाम क़ब्ज़ों को नाजायज बताया गया है.
डॉ. हक़ अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि जब ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली को 1911 में राष्ट्रीय राजधानी बनाया, तो इसकी शायाने शान इमारतों के निर्माण के लिए इस क्षेत्र को, जिसे आज हम नई दिल्ली कहते हैं, 1911-15 में एक्वायर किया. जाहिर है, इसमें बहुत सी भूमि मस्जिद, दरगाह, कब्रिस्तान एवं अन्य अवक़ाफ़ की भी थीं, जिन्हें बिना अलग किए हुए सरकार के अधीन कर लिया गया. इस सिलसिले में उसी दौर में इसके विरुद्ध मुकदमे भी दायर किए गए. यही कारण है कि दिल्ली मजलिस अवक़ाफ़, जिसका उत्तराधिकारी दिल्ली वक्फ़ बोर्ड है, ने अवक़ाफ़ की भूमि का मुआवजा लेने से इंकार कर दिया था. देश के स्वतंत्र होने के बाद तक ये मुकदमे विभिन्न न्यायालयों में लटके रहे. वक्फ़ बोर्ड की स्थापना के बाद वक्फ़ संपत्तियों विशेषकर, उन धार्मिक इमारतों की वापसी की मांग जोर पकड़ने लगी, जो कि एक्वायर होने के बावजूद बोर्ड की देखरेख एवं निगरानी या मुसलमानों के उपयोग में थीं, तो 1970 के दशक में सरकार ने एक जांच समिति बना दी, जिसकी रिपोर्ट सैयद मुजफ्फर हुसैन बर्नी की अगुवाई में तैयार हुई. इसी रिपोर्ट को बर्नी रिपोर्ट कहा जाता है.

डॉ. हक़ कहते हैं कि जब ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली को 1911 में राष्ट्रीय राजधानी बनाया, तो इसकी शायाने शान इमारतों के निर्माण के लिए इस क्षेत्र को, जिसे आज हम नई दिल्ली कहते हैं, 1911-15 में एक्वायर किया. जाहिर है, इसमें बहुत सी भूमि मस्जिद, दरगाह, कब्रिस्तान एवं अन्य अवक़ाफ़ की भी थीं, जिन्हें बिना अलग किए हुए सरकार के अधीन कर लिया गया.

इस समिति ने ऐसी 250 संपत्तियों की पहचान की, जो वक्फ़ की संपत्तियां थीं. इस पर अमल दर आमद के लिए मीर नसरुल्लाह के अधीन एक और समिति गठित की गई, जिसने इन 250 संपत्तियों में से 123 ऐसी संपत्तियों का खुलासा किया, जिन्हें वक्फ़ बोर्ड को ट्रांसफर किया जा सकता था. सरकार ने 1984 की शुरुआत में यह निर्णय लिया कि इन 123 संपत्तियों का मालिकाना अधिकार दिल्ली वक्फ़ बोर्ड को वापस कर दिया जाए और इस सिलसिले में 27 मार्च, 1984 को एक नोटिफिकेशन जारी किया गया, परंतु उस समय दो गलत घटनाएं हुईं. नोटिफिकेशन छपने से दो दिन पूर्व यह बात मीडिया तक पहुंच गई, जिसके फलस्वरूप नोटिफिकेशन से एक दिन पूर्व इस समाचार को इस रूप में छापा गया कि सरकार इन संपत्तियों को 1 रुपया वार्षिक प्रति एकड़ की दर से लीज़ पर दे रही है. फिर दूसरी घटना यह हुई कि नोटिफिकेशन में इन संपत्तियों को वक्फ़ संपत्ति के तौर पर दिल्ली वक्फ़ बोर्ड को सौंपने के बजाय 1 रुपया वार्षिक प्रति एकड़ की दर से उसी बोर्ड को लीज पर देने की बात कही गई, जो कि खुले रूप से नाजायज़ थी और सरकार के निर्णय एवं मंशा के विपरीत भी. उस समय श्रीमती मोहसिना क़िदवई केंद्रीय वर्क्स एवं हाउसिंग मंत्री थीं. रातोंरात एक संगठन इंद्रप्रस्थ हिंदू महासभा के नाम से बन गया, जिसने नोटिफिकेशन जारी होते ही दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की और नोटिफिकेशन पर स्टे ले लिया. यह स्टे एक चौथाई सदी तक बरकरार रहा. फिर 2008 के शुरू में दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान विद्वान न्यायाधीशों ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि चूंकि वक्फ़ संपत्तियां ईश्‍वर के नाम पर जनकल्याण हेतु समर्पित की जाती हैं, इसलिए भारत सरकार इस तरह की संपत्तियों की स्वामी नहीं बन सकती है. लिहाज़ा अगर वह इन्हें वक्फ़ संपत्ति मानती है, तो उसे इन्हें वक्फ़ बोर्ड को ट्रांसफर या हवाले कर देना चाहिए और यह काम परपेचुअल लीज़ होल्ड बेसिस पर नहीं होना चाहिए. तथ्यों से यह बात साफ़ थी कि लीज़ की बुनियाद पर दिल्ली वक्फ़ बोर्ड को ट्रांसफर करते समय वक्फ़ संपत्तियों का स्वामित्व कायम रखने में एक राय नहीं थी और विरोधाभास था. अदालत को इस पर आश्‍चर्य था, तभी तो उसने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल को निर्देश दिया कि वह इस संदर्भ में सरकार से मशविरा करें और फिर सरकार की राय से अदालत को अवगत कराएं.
वक्फ़ काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व सचिव डॉ. हक़ कहते हैं कि उस वक्त सेंट्रल वक्फ़ काउंसिल की पेशरफ्त पर 7 अप्रैल, 2008 को तत्कालीन शहरी मामलों के केंद्रीय मंत्री जयपाल रेड्डी के चैंबर में मीटिंग बुलाई गई, जिसमें वह भी स्वयं मौजूद थे. इस दौरान मंत्री महोदय ने कहा कि इस संदर्भ में आवश्यक निर्णय गु्रप ऑफ मिनिस्टर्स द्वारा ही लिए जा सकते हैं. इस प्रकार केंद्र सरकार इस मसले पर टालमटोल ही करती रही. तब दिल्ली हाईकोर्ट ने 12 जनवरी, 2011 को दिल्ली की 123 वक्फ़ संपत्तियों से संबंधित रिट पिटीशन (सी) नंबर 1512/1984 को ख़ारिज कर दिया और सरकार को निर्देश दिया कि वह इस सिलसिले में छह माह के भीतर अंतिम निर्णय करे, लेकिन सरकार समय पर समय लेती रही. अल्पसंख्यकों के मामलों का मंत्रालय, जो कि वक्फ़ के मामले देखता है, इस विषय पर बिल्कुल खामोश रहा. इसी बीच इन संपत्तियों पर नाजायज क़ब्ज़े भी होते रहे. स्मरण रहे कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी इन संपत्तियों को दिल्ली वक्फ़ बोर्ड को सौंपने के पक्ष में थीं. उन्होंने 26 मार्च, 1976 को विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को तीन सूत्रों पर आधारित एक पत्र लिखा था, जिसे सच्चर रिपोर्ट में भी शामिल किया गया है. उन्होंने 1984 में अपनी हत्या से पूर्व भी इसी तरह का विचार व्यक्त किया था.
लिहाजा इस सिलसिले में अब 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार द्वारा इन 123 वक्फ़ संपत्तियों का मालिकाना अधिकार दिल्ली वक्फ़ बोर्ड को ट्रांसफर करने का निर्णय लिए जाने की जो बात सुनने को मिल रही है, उससे मुस्लिम समुदाय में खुशी की लहर पाई जा रही है. दिल्ली स्थित फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम डॉ. मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम अहमद ने चौथी दुनिया से कहा कि यह बहुत अच्छी ख़बर है. देर से ही सही, अगर यह ़फैसला होता है, तो यह इंसाफ पर आधारित होगा. परंतु इसके विपरीत विभिन्न मुस्लिम संगठनों एवं संस्थानों के साथ-साथ सरकारी महकमे सख्त परेशान हैं, क्योंकि इससे उनके द्वारा किए गए क़ब्ज़े संकट में हैं.
वस्तुस्थिति यह है कि सरकार द्वारा निर्णय लेने से ये 123 संपत्तियां चाहे जिसके उपयोग में हों, इनका मालिकाना अधिकार दिल्ली वक्फ़ बोर्ड को मिल जाएगा और वह तमाम क़ब्ज़ों को समाप्त कर मुस्लिम समुदाय के हितों एवं ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए ़फैसले कर सकेगा. मगर सवाल यह है कि जमीअतुल उलेमा हिंद जैसे संगठन के मुख्यालय एवं अन्य क़ब्ज़ा की गई वक्फ़ संपत्तियों का भविष्य क्या होगा? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब आने वाला समय ही दे पाएगा.

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