गुरमेहर कौर अब खामोश हैं. सेव डीयू कैम्पेन से बाहर हो चुकी हैं. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एबीवीपी की हिंसा के बाद यह आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है. गुरमेहर की चुप्पी पर देश मौन है. लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब अब विरोधी पक्ष को हिंसा से चुप कराना हो गया है. सोशल साइट पर गैंगरेप और हत्या की धमकियां दिए जाने के बाद गुरमेहर ने आंदोलन से कदम वापस खींच लिए हैं.
उधर, सरकार समर्थित छात्र संगठन के कुछ नेता गुरमेहर पर पिल पड़े हैं. उन्हें बदनाम करने के लिए सोशल साइट पर एक वीडियो डाला जाता है. वीडियो में हाथ में बोतल लेकर एक कव्वाली पर कार में झूमते कुछ युवाओं को दिखाया जाता है. लड़की की शक्ल गुरमेहर से मिलती-जुलती है, लेकिन वीडियो देखकर पता चल जाता है कि यह कोई दूसरा वीडियो है. अब सोशल साइट्स पर यह वीडियो वायरल हो गया है, जिसे दो करोड़ से अधिक लोगों ने देखा है. गुरमेहर को हर तरह से बदनाम करने की कोशिश की जाती है.
एक चैनल यह सिद्ध करने में जुट जाता है कि गुरमेहर के पिता कारगिल युद्ध में शहीद नहीं हुए थे, बल्कि एक आतंकवादी मुठभेड़ में मारे गए थे. ऐसा लग रहा है मानो पाकिस्तान से युद्ध करते हुए शहीद होने वाले सैनिक उनसे ज्यादा देशभक्त हैं जो आतंकवादी मुठभेड़ में शहीद होते हैं. चलो मान लिया कि उनके पिता आतंकी मुठभेड़ में मारे गए थे या गुरमेहर अपने यार-दोस्तों के साथ कार में शराब पीकर झूम रही थी, तो क्या ऐसे में उन्हें युद्ध के खिलाफ बोलने की आजादी नहीं है.
अगर उन्होंने कहा कि उनके पिता को पाकिस्तान ने नहीं, युद्ध ने मारा है, तो इसमें क्या गलत था? वे तो केवल इतना कहना चाह रही थीं कि युद्ध से किसी का भला नहीं होता है. उसने युद्ध में अपने पिता को खोया है. उनके न होने का दर्द झेला है. युद्ध की पीड़ा क्या होती है, उसे भोगा है. टेलीविजन पर किसी युद्ध को कंप्यूटर गेम की तरह देखने वाला तबका आज उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल कर रहा है.
इन कथित देशभक्तों को यह अधिकार किसने दिया है? वीरेंद्र सहवाग का कमेंट एक पुरुषवादी सोच का प्रतिनिधित्व करता है, जो हमेशा नारी अस्मिता व सम्मान के खिलाफ मोर्चा खोले रहता है. गुरमेहर कौर हारकर भी जीत गई हैं और यह समाज उन्हें हराकर भी अपने गाल पर पड़े तमाचे को सहला रहा है.