पहले ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी फिर गाजियाबाद के मिसलगढ़ी और अब दिल्ली के द्वारका में इमारत ढहने की खबर सामने आई है. एक के बाद एक ये इमारतें ताश के पत्तों की तरह बिखर रही हैं. इनके गिरने से आम आदमी हैरान और परेशान है. अवैध तरीके से बिल्डिंग बनाने और घटिया निर्माण सामग्री के साथ प्रशासन की लापरवाही लोगों को मौत के मुंह में धकेल रही है.
जी हां इन इमारतों के गिरने के पीछे बिल्डर, पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत है, क्योकिं इन सभी मामलों में अवैध तरीके से बिल्डिंग बनाने और घटिया निर्माण सामग्री के साथ प्रशासन की लापरवाही सामने आई है. अवैध इमारतों की नींव काफी कमजोर होती है. पिलर में सरिया भी कम और घटिया क्वॉलिटी की लगाई जाती है. सीवर की उचित व्यवस्था न होने से पानी आसपास रुकने लगता है. ऐसे में बारिश के मौसम में इमारतें वजन संभाल नहीं पातीं.
किसी भी जोन में जब अवैध निर्माण शुरू होता है, तो तत्काल प्रशासन को पता चल जाता है. वह फौरन बिल्डर के पास पहुंचकर लेन देन शुरू कर देता है. सुत्रों के अनुसार कम से कम 30 हजार रुपये में एक फ्लोर का सौदा किया जाता है. अफसर से 1 से 2 लाख रुपये प्रति फ्लोर के हिसाब डील कर लेते हैं. पुलिस भी कुछ नोट लेकर आंखें बंद कर लेती है और फिर देखते ही देखते वहां पूरी कॉलोनी बस जाती है.
रविवार रात 1 बजे दिल्ली के द्वारका में हर्ष विहार में भी एक इमारत के ढहने से 2 लोगों की मौत हो गई और 3 घायल हो गए. वही गाजियाबाद के मिसलगढ़ी के जिस एरिया में निर्माणाधीन पांच मंजिला इमारत रविवार को गिरी है, वहां पूरी कॉलोनी ही अवैध है. लेकिन जीडीए अफसर खामोश बने रहे. स्थानीय लोगों का आरोप है कि जीडीए अधिकारियों और पुलिस को रुपये देकर यहां धड़ल्ले से इमारतें बनाई जा रही हैं. बताया जा रहा है कि जो इमारत गिरी है, उसे ध्वस्त करने का नोटिस 12 जुलाई को जीडीए वीसी की ओर से जारी किया गया था लेकिन इसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई.