यदि आज कोई ये कहे कि उसने दुनिया मुट्ठी में कर ली है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. आज भारत में बैठकर कोई छात्र दुनिया में किसी भी देश के विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल कर सकता है या वर्चुअली वहां किसी भी क्लास रूम में दाखिल हो सकता है. मिसाल के तौर पर येल यूनिवर्सिटी का लेक्चर दुनिया के किसी छात्र के लिए महज़ एक क्लिक की दूरी पर उपलब्ध है. आज भारत का कोई मरीज़ किसी अमेरिकी डॉक्टर से सलाह ले सकता है. इन्टरनेट ने आम जीवन में बहुत सारी आसानियां पैदा कर दी हैं. लेकिन जैसे-जैसे इसका फैलाव बढ़ा है, वैसे-वैसे इसका वीभत्स रूप भी हमारे सामने खड़ा हो गया है.
इसी का एक वीभत्स रूप है पोर्नोग्राफी. इन्टरनेट पर पोर्नोग्राफी का विस्तार इतना अधिक हो गया है कि सरकारों ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए हैं. लेकिन पोर्नोग्राफी का भी वीभत्स रूप है चाइल्ड पोर्नोग्राफी, जो दुनिया के लिए चुनौती बन गई है. बदकिस्मती से चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस समस्या का समाधान क्या है? क्यों इस पर रोक लगाने में दिक्कत आ रही है? दुनिया के देश जहां इस पर सख्त कानून हैं, वहां इससे कैसे निपटा जा रहा है? भारत में चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर कानून क्या कहता है?
पिछले दो दशकों के दौरान इन्टरनेट की पहुंच में क्रान्तिकारी विस्तार देखने को मिला है. इन्टरनेट मेट्रो और बड़े शहरों की चहारदीवारियों से निकल कर गांव-गांव तक पहुंच गया है. इसके विस्तार में स्मार्ट फोन ने भी बड़ी भूमिका निभाई है. अब एक निम्न आय वाला परिवार भी ऐसे मोबाइल फोन खरीद सकता है, जो इन्टरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट की सुविधा से लैस हैं. अब ये फोन निम्न आय वर्ग के बच्चों के हाथों में भी आ गए हैं.
कुछ जानकारी के अभाव में और कुछ उत्सुकतावश बच्चे पोर्नोग्राफिक वेबसाइट्स के विजिटर बन जाते हैं. लेकिन यहां मसला सिर्फ ये नहीं है कि बच्चे वयस्कों के लिए उपलब्ध सामग्री देख रहे हैं, बल्कि यह उससे कई गुना भयानक है. इसका अंदाज़ा इस बात से भी लगा सकते हैं कि जिन देशों में पोर्नोग्राफी को सामाजिक मान्यता मिली हुई है, वहां भी इसे प्रतिबंधित करने के आदेश दिए जा रहे हैं. बहरहाल जहां तक बच्चों के स्वभाव में बदलाव की बात है, तो कैमरे वाले मोबाइल फोन आने के बाद से ही इसकी शुरुआत हो गई थी. देश के महानगरों में ऐसे एमएमएस वायरल हो रहे थे, जिनमें कम उम्र के बच्चे शामिल थे. लेकिन आज इन्टरनेट ने बच्चों को भी बाज़ार की सामग्री बना दिया है.
2016 के अगस्त महीने में भारत सरकार ने 857 पोर्न वेबसाइट की सूची बनाकर नैतिकता और शालीनता की बुनियाद पर इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया था. लेकिन भारी विरोध के बाद सरकार को इस फैसले को वापस लेना पड़ा था. 14 अगस्त को चाइल्ड पोर्नोग्राफी के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट में चल रहे एक मामले की सुनवाई के दौरान सरकार ने अपनी स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की. इसमें केंद्र ने कहा कि वो एक अमेरिकी निजी संस्था की मदद ले रहा है, जो 99 देशों को चाइल्ड पोर्नोग्राफी से सम्बंधित सामग्री के अपलोडिंग पर मुफ्त तकनीकी सहायता उपलब्ध कराती है.
इस स्टेटस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अब तक 3,522 ऐसे वेबसाइट्स को ब्लॉक किया जा चुका है. स्कूलों में भी इन्टरनेट जैमर लगाने पर विचार हो रहा है. संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आग्रह पर इन्टरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑ़फ इंडिया (आईएएमएआई) द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में तकरीबन चार करोड़ पोर्न वेबसाइट्स हैं.
अब इन चार करोड़ वेबसाइट्स में चाइल्ड पोर्नोग्राफी वेबसाइट की संख्या का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है. ज़ाहिर है कुछ हज़ार वेबसाइट्स पर प्रतिबन्ध ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. इस बात को सरकार, आईएएमएआई और इन्टरनेट के जानकर भी मानते हैं कि पोर्न वेबसाइट्स पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगाना लगभग नामुमकिन है, लेकिन इन्हें फिल्टर ज़रूर किया जा सकता है. इन वेबसाइट्स के अधिकतर सर्वर भारत से बाहर हैं, इसीलिए आईएसपी ने भी पहले ही चाइल्ड पोर्न वेबसाइट्स को ब्लॉक करने में अपनी असमर्थता ज़ाहिर कर दी थी.
पिछले दिनों हैदराबाद में एक अमेरिकी नागरिक जेम्स कर्क जोन्स की गिरफ्तारी हुई. उसके पास से चाइल्ड पॉर्न से जुड़ी करीब 30 हजार फाइलें बरामद हुई थीं. इस घटना पर हैदराबाद में बहुत हंगामा मचा, लेकिन हालिया सरकारी आंकड़े ज़ाहिर करते हैं कि चाइल्ड पोर्न के मामले में केवल महानगर ही नहीं, बल्कि छोटे शहर भी इसमें शामिल हो गए हैं. इंटरनेट पर बाल यौन शोषण की सामग्री तलाशने और शेयर करने के मामले में देश की राजधानी दिल्ली दूसरे नंबर पर है. इस मामले में सबसे आगे अमृतसर रहा, उसके बाद लखनऊ, अलापुझा, त्रिशूर जैसे शहर शामिल रहे.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अमृतसर में 1 जुलाई 2016 से 15 जनवरी 2017 के बीच चाइल्ड पॉर्न से जुड़ी 4 लाख 30 हजार से ज्यादा फाइलें शेयर की गईं. अब इस से अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि चाइल्ड पोर्न ने कितना भयानक रूप ले लिया है. छोटे शहरों और गांवों तक इसके पहुंचने का एक कारण यह भी है कि अब ये सामग्रियां हिंदी और दूसरी स्थानीय भाषाओं में भी उपलब्ध हैं. किसी अनजान यूजर के लिए गूगल या किसी और सर्विस प्रोवाइडर के सहारे हिंदी पोर्न वेबसाइट्स तलाश लेना कोई बड़ी बात नहीं है.
भारत में सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम (2000) में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ प्रावधान मौजूद हैं. हालांकि केवल क़ानून बना देने से इस अभिशाप को रोका नहीं जा सकता और न ही कुछ वेबसाइट्स को ब्लॉक करके. क्योंकि यदि ऐसा होता तो सऊदी अरब जहां पोर्न वेबसाइट देखने के खिलाफ सख्त क़ानून हैं, वहां पोर्नोग्राफी नहीं देखी जाती. पाकिस्तान, जो चार लाख से अधिक वेबसाइट्स पर पाबन्दी की बात करता है, वहां भी उर्दू और दूसरी स्थानीय भाषाओं में पोर्न सामग्री मौजूद नहीं रहती. बहरहाल भारत में इस बात की आवश्यकता है कि मौजूदा कानूनों को लागू करने में सख्ती बरती जाए और उनमें कुछ नए प्रावधान भी जोड़े जाएं.
सरकार केवल यह कहकर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती कि अधिकतर पोर्न साइट्स के आईपी विदेशी हैं, इसलिए उनपर कार्रवाई नहीं की जा सकती और उन्हें ब्लॉक नहीं किया जा सकता है. अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार दूसरे देशों की सरकारों से इस सम्बन्ध में समझौता नहीं कर सकती? इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि जो बाल यौन उत्पीड़न से सम्बंधित सामग्री इन्टरनेट पर मौजूद हैं, उनकी जांच कर दोषियों को सजा दिलवाने का प्रावधान क्यों नहीं है? साथ ही सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए ऐसी कोई गाइडलाइन्स क्यों जारी नहीं की जाती, जिसमें उनकी भी ज़िम्मेदारी तय की जाए.
पूरे विश्व में चाइल्ड पोर्नोग्राफी को गैर कानूनी करार दिया जा चुका है, ऐसे में दूसरी सरकारों से भी सहयोग मिल सकता है. हालांकि सरकार अब ऐसे अपराधों के लिए इंटरपोल की मदद लेने की बात कर रही है, लेकिन इसमें भी अभी काफी दूरी तय करनी है. विकसित देशों से प्रत्यर्पण एक टेढ़ी खीर है. कानून के अलावा भारत में इस्तेमाल होने वाले डिवाइसेज में भी कुछ ़िफल्टरिंग के एप्स लगाकर इसे बहुत हद तक काबू किया जा सकता है.
बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी दुनिया के सभी देशों के लिए एक अभिशाप है. दुनिया भर में कई ऐसे शोध हुए हैं, जिनमें बच्चों में विचलित यौन व्यवहार को इंगित किया गया है. एक शोध के मुताबिक 12 से 18 वर्ष की आयु तक के 90 प्रतिशत लड़के और 60 प्रतिशत लड़कियां पोर्नोग्राफी की ज़द में आ सकती हैं. जब स्थिति इतनी भयानक है तो केवल कानून बना देने और सरकार पर सारी ज़िम्मेदारी डाल देने से काम नहीं चलेगा. इसकी रोकथाम के लिए परिवार और समाज को भी अपनी सकारात्मक भूमिका निभानी पड़ेगी.