कहा जाता है कि परिवर्तन संसार का नियम है. वर्तमान के इस सियासी समीकरण में ये नियम बिल्कुल सटीक बैठ रहा है. गौरतलब है कि सत्ता पर काबिज हुकूमत करने वाले हमारे नुमाइंदे अलग रहे हो, पहले कांग्रेस की सरकार थी और अब बीजेपी की सरकार है, लेकिन दोनों में एक बात तो पूरक है कि दोनों के ऊपर घोटाले का आरोप है और इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि इन घोटालों के खिलाफ लड़ने वाला अधिवक्ता भी एक ही है.
एमएल शर्मा नामक ये अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकिलों की जमातों में आते है. गौर फरमाने वाली बात ये है कि ये वही शख्स है जिन्होंने भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ऊपर लगे कोयला घोटाले के आरोपों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थीं.
इतना हीं नहीं बीजेपी के कार्यकाल में भी एमएल शर्मा ने मोदी सरकार की मुसीबत बढ़ाई है. बता दें कि अभी तक सुप्रीम कोर्ट में राफेल डील के मामले को लेकर 4 याचिका दाखिल हो चुकी है. जिस फेहरिस्त में एमएल शर्मा का नाम अव्वल दर्जें में काबिज है.
जी हां, राफेल घोटाले को लेकर एमएल शर्मा ने कोर्ट में सबसे पहले याचिका दाखिल की थी. हालांकि, गत 10 अक्टूबर को कोर्ट ने एमएल शर्मा कि याचिका पर सुनवाई की और ये निर्देश दिया कि राफेल डील की कीमत सहीत और उसकी तमाम जानकारी 10 दिन के अंदर बंद लिफाफे में दी जाए.
हालांकि एम एल शर्मा का इस तरह के बयानों से पुराना नाता रहा है. मालूम हो कि वर्ष 2015 में कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी के ब्रिटिश मूल के निवासी को लकर उन्होंने ही केस लड़ा था.
इससे पहले भी वर्ष 2013 में निर्भया कांड में उन्होंने विवादित बयान देकर अपना नाम विवादों की फैहरिस्त में दर्ज करवा लिया था.
एम एल शर्मा को कई बार सुप्रीम कोर्ट से निराशा भी हाथ लगी, जब कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया था.