उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने यह कह कर कि आतंकी सरगना दाऊद इब्राहीम ने 2004 के लोकसभा चुनाव में उत्तर मुंबई से कांग्रेसी उम्मीदवार फिल्म अभिनेता गोविंदा की मदद की थी और पोप चाहते थे वहां से कांग्रेस प्रत्याशी जीते, फिर से राजनीतिक सरगर्मी पैदा कर दी है. 2017 के विधानसभा चुनाव की तरफ बढ़ रहे उत्तर प्रदेश में नाईक का यह वक्तव्य कुछ अधिक ही गरमी पैदा कर रहा है.
राम नाईक और विवाद साथ-साथ चलते रहते हैं. अखिलेश के साथ विवाद थमता है तो आजम के साथ शुरू हो जाता है. कभी लोकायुक्त की नियुक्ति पर विवाद हुआ तो कभी विधान परिषद के सदस्यों के मनोनयन पर. अभी ताजा विवाद उत्तर प्रदेश से तो नहीं जुड़ा है, लेकिन उसका असर यूपी की राजनीति पर तो आ ही रहा है. राज्यपाल ने अपनी नई किताब चरैवेति-चरैवेति में कहा है कि वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में उत्तर मुंबई लोकसभा सीट से खड़े कांग्रेस प्रत्याशी फिल्म अभिनेता गोविंदा कुख्यात अपराधी सरगना दाऊद इब्राहीम की मदद से जीते थे और वे हार गए थे. चरैवेति-चरैवेति राम नाईक के संस्मरणों का संकलन है.
नाईक की इस किताब से राजनीतिकर्मियों खास तौर पर कांग्रेसियों में खलबली मच गई है और नाईक व भाजपा के खिलाफ तीखी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. राज्यपाल ने लिखा है कि उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार फिल्मी हीरो गोविंदा की दाऊद इब्राहीम से दोस्ती के कारण चुनाव पर असर पड़ा. उनके हारने के पीछे बिल्डर लॉबी और अंडरवर्ल्ड की दहशत थी. नाईक ने लिखा है कि वसई के हितेंद्र ठाकुर और दाऊद इब्राहीम से गोविंदा की दोस्ती सर्वविदित थी. परिणामस्वरूप चुनाव में दहशत का प्रवेश हुआ और मतदान के दो-तीन दिन पहले इस दहशत में प्रचंड वृद्धि हुई. नाईक का कहना है कि हर चुनाव में उन्हें सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिलती थी लेकिन उस बार केवल दो क्षेत्र में ही बढ़त बनी. दहशत के माहौल के कारण वे छह हजार वोटों से लोकसभा का चुनाव हार गए.
नाईक ने अपने संस्मरण में यह भी लिखा है कि 2004 तक उस क्षेत्र में कांग्रेस के नेता कभी प्रचार के लिए नहीं आए. लेकिन उस चुनाव में पहली बार वसई में सोनिया गांधी की सभा आयोजित की गई थी. इसकी वजह इस क्षेत्र का ईसाई बहुल होना था. हालांकि यहां मुझे अच्छे वोट मिलते थे. सोनिया गांधी के आने के बाद छिपा प्रचार शुरू हुआ कि पोप यहां कांग्रेस के प्रत्याशी को विजयी देखना चाहते हैं.