‘भविष्य का संदेश, समृद्ध मध्य प्रदेश’ ने ले ली ‘फ्यूचर एमपी टास्क फोर्स’ की जगह
मध्य प्रदेश में भाजपा के सामने एंटी इनकंबेंसी बड़ी चुनौती है, ऐसे में उसपर कुछ नया करने का दबाव है. भाजपा राजनीतिक अभियानों और यात्राओं के लिए तो पहले से ही जानी जाती थी, लेकिन इधर वो चुनावी जुमलों, नारों और भव्य इवेंट्स में भी माहिर हो गई है. चुनावी साल के दौरान मध्य प्रदेश में भाजपा अपनी इस विशेषज्ञता का भरपूर प्रदर्शन कर रही है, ताकि चुनावी माहौल व रुझान को बदला जा सके.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने करीब ढाई महीने की ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ के बाद अब ‘भविष्य का संदेश, समृद्ध मध्य प्रदेश’ अभियान की शुरुआत की है. 21 अक्टूबर से शुरू किए गए इस अभियान के तहत भाजपा प्रदेश की जनता से नए आइडियाज मांग रही है, जिससे प्रदेश की समृद्धि का रोड मैप बनाया जा सके.
5 नवंबर तक चलने वाले इस अभियान की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश की समृद्धि का रोड मैप मैं अकेला नहीं, साढ़े सात करोड़ लोग मिलकर बनाएंगे, इस दौरान जनता से जो भी अच्छे सुझाव मिलेंगे, उनके आधार पर हम रोडमैप तैयार करेंगे और अगले पांच सालों में प्रदेश को समृद्ध मध्य प्रदेश बनाएंगे.
भाजपा द्वारा समृद्ध मध्य प्रदेश को लेकर अखबारों में दिए गए विज्ञापनों में जो फार्मूला पेश किया गया है, उसमें 2003 को बीमारू, 2008 को जुझारू, 2013 को सुचारू और 2018 को समृद्ध के रूप में दिखाया गया है. इस अभियान को ऐतिहासिक पहल बताते हुए भाजपा द्वारा दावा किया जा रहा है कि पिछले 15 वर्षो के दौरान वे मध्य प्रदेश को बीमारू से जुझारू और जुझारू से सुचारू बनाने में कामयाब रहे हैं, अब इसे जनता की सहभागिता से समृद्ध बनाना है. समृद्ध मध्य प्रदेश अभियान के लिए 50 डिजिटल रथ तैयार किए गए हैं, जो एलईडी स्क्रीन, साउंड सिस्टम और अन्य उपकरणों से लैस हैं.
ये डिजिटल रथ प्रदेश के सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों में पहुंचकर जनता को सुझाव देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, साथ ही इसके जरिए भाजपा अपने 15 वर्षीय कार्यकाल के दौरान किए गए विकास कार्यों का प्रचार-प्रसार भी कर रही है. शिवराज सिंह चौहान सरकार की सफलताएं, योजनाएं गिनाते हुए इसकी तुलना दिग्विजय सिंह कार्यकाल से की जा रही है. दरअसल, यह एक सरकारी अभियान था, जिसे शिवराज सरकार द्वारा आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले ‘फ्यूचर एमपी टास्क फोर्स’ नाम से चलाया जा रहा था, जिसका पंच लाइन था, ‘आईडिया में हो दम, तो पूरा करेंगे हम.’
इसको लेकर ‘फ्यूचर एमपी टास्क फोर्स’ द्वारा सरकारी खर्च पर बड़े पैमाने पर विज्ञापन जारी करके आइडियाज मांगे गए थे. आचार संहिता लागू होने के कुछ ही हफ्तों पहले शुरू किए गए फ्यूचर एमपी टास्क फोर्स के बारे में इसकी वेबसाईट पर जो जानकारी दी गई है, उसके अनुसार, फ्यूचर एमपी टास्क फोर्स का गठन एक ऐसी समिति के रूप में किया जा रहा है, जो भविष्य का रोडमैप कैसा हो, इस पर काम करेगी.
इस टास्क फोर्स में एक कार्यकारिणी बनेगी, जिसमें सरकार के प्रमुख विभागों के लोग शामिल होंगे व एक सलाहकार परिषद होगा, जिसमें देश के अंदर विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले विशेषज्ञ शामिल किए जाएंगे. ये सब मिलकर साथ में विचारपूर्वक चिन्हित किए गए क्षेत्रों में विकास के लिए आवश्यक उन उपायों की खोज कर उन्हें कार्यान्वित करेंगे, जो मध्य प्रदेश को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मदद करें.
जाहिर है यह एक सरकारी कार्यक्रम था, जिसका सिर्फ नाम बदल कर भाजपा अपने चुनावी अभियान के रूप में उपयोग कर रही है. शिवराज सिंह सरकार पर हमेशा से ही सरकारी खजाने के दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन इस बार जिस तरह से सरकारी मशीनरी और संसाधन का उपयोग किया जा रहा है वो अभूतपूर्व है. इससे ठीक पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा निकाली जा रही जन आशीर्वाद यात्रा में भी सरकारी धन के दुरुपयोग के आरोप लग चुके हैं.
इसे लेकर हाईकोर्ट के ग्वालियर बेंच द्वारा नोटिस जारी कर जन आशीर्वाद यात्रा में हो रहे खर्च का हिसाब भी मांगा जा चुका है. लेकिन इस बार सीधे तौर पर एक सरकारी कार्यक्रम को सत्ताधारी पार्टी के चुनावी अभियान में बदल देने का मामला है. जनता से सुझाव लेने के नाम पर दौड़ाए गए डिजिटल रथ प्रदेश के हर विधानसभा में शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार द्वारा चलाई गई सरकारी योजनाओं का गुणगान करते नजर आ रहे हैं.
कांग्रेस का विरोध और कमलनाथ के 40 सवाल
कांग्रेस ने भाजपा के समृद्ध मध्य प्रदेश अभियान को आचार संहिता का उल्लंघन बताकर चुनाव आयोग में इसकी शिकायत की है तथा इसपर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हुए चेतावनी भी दी है कि अगर उसकी शिकायत पर कार्रवाई नहीं कि गई, तो वो इस मामले को लेकर कोर्ट भी जा सकती है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने इसपर सवाल उठाते हुए कहा है कि ‘इस अभियान को शुरू करके सरकार ने मान लिया है कि उसका 15 साल का कार्यकाल असफल रहा है.
किसी भी राज्य सरकार को विकास के लिए पांच साल का समय काफी होता है. प्रदेश की जनता ने विकास के लिए भाजपा को 15 साल दिए, इन 15 सालों में प्रदेश विकास की दृष्टि में तो देश में अव्वल नहीं आया, परंतु किसानों की आत्महत्या, भ्रष्टाचार और कुपोषण में नंबर एक जरूर हो गया है.
इसके लिए भाजपा को ‘माफी मांगो अभियान’ चलाना चाहिए. विपक्ष के नेता अजय सिंह ने भी इसे जनता को एक बार फिर ठगने का अभियान बताते हुए कहा है कि यह पराजय के डर से शुरू किया गया अभियान है, लेकिन जनता हकीकत जान चुकी है और अब वो और बहकावे में नहीं आएगी. भाजपा के समृद्ध मध्य प्रदेश अभियान के बरक्स कांग्रेस सोशल मीडिया पर 40 दिनों तक 40 सवाल के माध्यम से भाजपा को घेरने की कोशिश कर रही है. मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने ऐलान किया है कि वे 20 अक्टूबर से 28 नवम्बर तक शिवराज सिंह चौहान से लगातर हर दिन एक सवाल करेंगें जिसमें शिवराजसिंह चौहान की नाकामी को जनता के सामने लाया जाएगा.
कमलनाथ आंकड़ों के माध्यम से ट्वीटर पर 40 सवालों की श्रृंखला चला रहे हैं और प्रदेश की जमीनी स्थिति जनता के सामने रख रहे हैं. पहले दिन कमलनाथ ने प्रदेश की चरमराई स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सवाल उठाया था, दूसरे दिन शिवराज सिंह की घोषणाओं और उनकी जमीनी हकीकत को लेकर सवाल किए गए थे, वही तीसरे दिन का सवाल महिला सुरक्षा को लेकर था, जबकि चौथे दिन गरीबी का मुद्दा उठाया गया.
आवाज़ ऊंची, हालत पतली
मध्य प्रदेश में भाजपा का प्रचार पूरे जोर पर है, शिवराज सिंह मजबूती से कांग्रेस पर हमला बोल रहे हैं. लेकिन जमीन पर हालत उनके अनुकूल नहीं है. समृद्ध मध्य प्रदेश अभियान को हरी झंडी दिखाते हुए भी शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री के बजाए किसी सधे हुए विपक्ष के नेता के तौर पर नजर आए और लगातार कांग्रेस के कार्यकाल को लेकर ही हमलावर बने रहे.
इस दौरान उन्होंने कहा कि ‘कांग्रेस ने मध्य प्रदेश को बर्बाद कर दिया, पूरी की पूरी एक पीढ़ी बर्बाद कर दी है, 2003 में जब हमने प्रदेश की कमान संभाली थी, तब प्रदेश का हाल बेहाल था कांग्रेस की बंटाधार सरकार ने प्रदेश को अंधकार में धकेल दिया था. हमने जी-जान लगाकर प्रदेश की उन्नति और प्रगति के लिए कार्य किया और प्रदेश को बीमारू से जुझारू, जुझारू से सुचारू बनाने में कामयाब हुए.’ लेकिन इस बयान से इतर मध्य प्रदेश में इस बार भाजपा के लिए जमीनी हालत अनुकूल नहीं लग रहे हैं.
मंदसौर गोलीकांड के बाद से किसानों का शिवराज सरकार के खिलाफ आक्रोश बना हुआ है. दूसरी तरफ राहुल गांधी पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर ऐलान कर रहे हैं कि अगर मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो 10 दिन के भीतर किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा. ऐसे में चुनाव के दौरान भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. किसानों के आक्रोश का सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को मालवा-निमाड़ में होने की संभावना है. यह भाजपा और संघ का गढ़ माना जाता है. वर्तमान में इस क्षेत्र की अधिकतर सीटों पर भाजपा का ही कब्जा है.
एससी/एसटी एक्ट में संशोधन में उभरा सवर्ण आंदोलन मुख्यरूप से भाजपा के ही खिलाफ है. इस आंदोलन से एक नई पार्टी भी तैयार हो गई है, जो भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकती है. भाजपा के अंदरूनी सर्वे भी पार्टी के लिए चिंताजनक हैं. इसमें पाया गया है कि 40 फीसदी से अधिक मौजूदा विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ जनता और कार्यकर्ताओं में नाराजगी है. ऐसे में खबरें आ रही हैं कि भाजपा अपने करीब 80 मौजूदा विधायकों के टिकट काटने पर विचार कर रही है. संघ की तरफ से भी कुछ इसी तरह का फीडबैक सामने आ रहा है.
पिछले दिनों अमित शाह अपने भोपाल दौरे के दौरान अरेरा कालोनी स्थित संघ कार्यालय ‘समिधा’ गए थे, जहां वे तीन घंटे तक रुके रहे. इस दौरान उन्हें फीडबैक दिया गया कि कई विधायकों के खिलाफ जनता में नाराजगी है. हालिया ओपिनियन पोल भी मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के संकेत दे रहे हैं. विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित होने के बाद एबीपी न्यूज द्वारा दिखाए गए ओपिनियन पोल में भाजपा को 108 तो कांग्रेस को 122 सीटें मिलती दिखाई गई हैं.
पर्दे के पीछे होकर भी चर्चा में हैं दिग्विजय सिंह
अपने एक बयान की वजह से दिग्विजय सिंह एकबार फिर सुर्ख़ियों में हैं. उन्होंने जीतू पटवारी के घर के बाहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा था कि ‘मेरा काम सिर्फ एक है, कोई प्रचार नहीं, कोई भाषण नहीं, मेरे भाषण देने से तो कांग्रेस के वोट कटते हैं, इसलिए मैं कहीं जाता ही नहीं.’ इस बयान के बाद तो बवाल मचना तय था और हुआ भी यही, लोग दिग्विजय सिंह के इस बयान को उनकी नाराजगी से जोड़ कर देखने लगे. हालांकि इसके पीछे ठोस कारण भी हैं. दरअसल, इस बार दिग्विजय सिंह कांग्रेस के चुनावी पोस्टरों और होर्डिंग्स से नदारद हैं. चुनावी सभाओं में भी वे भाषण नहीं देते हैं.
लेकिन ऐसा नहीं है कि वे सक्रिय नहीं हैं. वायरल हुए वीडियो में दिग्विजय सिंह कार्यकर्ताओं से ये कहते भी सुनाई दे रहे हैं कि ‘देखते रह जाओगे, ऐसे सरकार नहीं बनेगी, जिसको टिकट मिले, चाहे दुश्मन को टिकट मिले, जिताओ.’ इस बार कांग्रेस ने रणनीति के तहत उनकी भूमिका पर्दे के पीछे की रखी है, जिसमें वो सफल भी नजर आ रही है. दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश में कांग्रेस के समन्वय समिति के अध्यक्ष हैं, जिसमें उनकी जिम्मेदारी रूठे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मनाने व संगठन को सक्रिय करने की है और अपने इस काम वे बखूबी अंजाम भी दे रहे हैं, लेकिन खुद को लो-प्रोफाइल रखते हुए.
दिग्विजय सिंह दस साल तक मध्य प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. भाजपा उनकी बंटाधार सरकार की छवि बनाकर सत्ता में आई थी, तब से हर चुनाव के दौरान वो अपने इसी फार्मूले को सफलता से आजमाती आई है. 2018 में भी भाजपा की रणनीति मुख्य रूप से दिग्विजय सिंह को ही निशाने पर रखने की थी. इसके लिए बाकायदा दिग्विजय और शिवराज सिंह की सरकारों के बीच तुलनात्मक फर्क दिखाने वाले विज्ञापन तैयार कराए गए थे.
खुद शिवराज सिंह भी अपनी सभाओं में दिग्विजय सिंह को ही निशाने पर रखते हैं. समृद्ध मध्य प्रदेश अभियान में भी एक तरह से दिग्विजय शासनकाल को ही निशाना बनाया गया है. दिग्विजय सिंह के नए बयान से भाजपा के इसी धार को कम करने की कोशिश है, जिससे संदेश जाए कि दिग्विजय सिंह फ्रंट पर नहीं हैं, इसी रणनीति के तहत वो कई बार इस बात को दोहरा भी चुके हैं कि उनकी रुचि मुख्यमंत्री बनने में नहीं है.