क्या मध्य प्रदेश की सरकार पूंजीपतियों और कंपनियों के इशारे पर चल रही सरकार है? ये सरकार क्यों किसानों के न्यायपूर्ण अधिकार को नजरअंदाज़ कर रही है? ये कहना है उन किसानों का जिनकी जमीनें 7 साल पहले वेलस्पन कंपनी द्वारा अधिग्रहित की गई थीं. तब से अब तक ये किसान अपनी जमीनें वापस पाने के लिए संघर्षरत हैं, लेकिन कंपनी तो दूर सरकार की तरफ से भी इन्हें कोई सहायता नहीं मिल पाई है.
भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार, पांच वर्ष के भीतर यदि अधिग्रहित भूमि का प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है, तो उसे किसानों को वापस किया जाना कानूनी बाध्यता है. लेकिन ना तो कंपनी देश के कानून का सम्मान कर रही है और ना ही राज्य सरकार द्वारा किसानों के पक्ष में कंपनी को भूमि वापस करने के निर्देश दिए जा रहे हैं. देश में अब तक ऐसी कई परियोजनाओं के इलाके में जमीनें उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून के तहत वापस कराई जा चुकी हैं. लेकिन बुजबुजा और डोकरिया के किसान हर तरफ से प्रयास कर के हार चुके हैं.
दरअसल, 2010 में वेलस्पन एनर्जी नामक औद्योगिक कंपनी ने मध्यप्रदेश के विजयराघवगढ़ एवं बरही तहसीलों के ग्राम बुजबुजा व डोकरिया के क्षेत्रीय किसानों की कृषि भूमि का उनकी मर्ज़ी के खिला़फ अधिग्रहण किया था. अधिग्रहण के बाद जब किसानों ने इसका विरोध किया, तो उन्हें मुआवजे और नौकरी का लालच दिया गया. साथ ही प्रशासन की भी डर दिखाया गया था. मुआवजे और नौकरी की बात तो थोथी ही साबित हुई, प्रशासन भी कंपनी का पक्षकार बनकर रह गया.
किसानों ने ज़िला कलेक्टर को इस कार्यवाही के विरुद्ध सामूहिक रूप से आपत्ति व्यक्त करते हुए ज्ञापन सौंपा था. लेकिन कुछ नहीं हुआ. उल्टे कंपनी का विरोध करने वाले इन किसानों को असामाजिक तत्व बताया गया और इनके खिलाफ पग्रशासनिक कार्रवाई का डर भी दिखाया गया. जमीन अधिग्रहण का विरोध करने वाले लोगों को विकास का दुश्मन कहा गया. लेकिन बुजबुजा एवं डोकरिया ग्रामों के बहुसंख्यक ग्रामीण इस उद्योग के लिए किसी भी क़ीमत पर अपनी ज़मीनें देने के लिए तैयार नहीं हैं.
उनकी आपत्तियों तथा विरोध को पर्याप्त महत्व न दिए जाने और उसकी पूरी तरह अनदेखी करते हुए ज़मीनें हथियाने की प्रक्रिया पर अभी भी रोक न लगने से नाराज़ ग्रामीणों ने आंदोलन का रास्ता अपनाया. गौरतलब है कि अधिग्रहित जमीनों पर अब तक प्रोजेक्ट स्थापित नहीं किया जा चुका है, लेकिन कंपनी ने उन 800 एकड़ जमीन पर गड्ढे खोद रखे हैं. इसके कारण किसान 2010 से ही उन जमीनों पर खेती नहीं कर पा रहे हैं. कंपनी का ये कृत्य गैर-कानूनी भी है. लेकिन न तो स्थानीय प्रशासन और न ही राज्य सरकार कंपनी के खिलाफ कार्रवाई कर रही है और न ही किसानों को उनका हक दिलवा पा रही है.
अब तो इन किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन को पुलिसिया कार्रवाई के जरिए दबाने की कोशिश भी की जाने लगी है. बुजबुजा और डोकरिया के किसान बीते 13 जून को अपनी जमीनों को वापस पाने के लिए अहिंसक व शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे. अपनी जमीन की वापसी के मांग को लेकर लगभग 40-50 किसान कटनी कलेक्टर कार्यालय के समीप शांतिपूर्वक धरने बैठे थे. तभी पुलिस ने जबरदस्ती उन्हें वहां से हटाने की कोशिश की और एसडीएम के आदेश पर धारा 151 के तहत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
गिरफ्तार किसानों को कटनी जेल भेज दिया गया. गिरफ्तारी के दौरान किसानों से मारपीट भी की गई. इस गिरफ्तारी के बाद पूरे क्षेत्र में पुलिस प्रशासन के खिलाफ गुस्से का माहौल फैल गया. लोगों ने इस कार्रवाई को अलोकतांत्रिक एवं अवैधानिक बताया. इनका कहना है कि पुलिस प्रशासन की ये कार्रवाई वेलस्पन कंपनी को सरकार द्वारा मिले अवैध संरक्षण को दिखाती है. इस कार्रवाई से किसानों के प्रति सरकार का घिनौना चेहरा सामने आ गया है.
जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, एनएपीएम ने वेलस्पन कंपनी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ मारपीट और उन्हें गिरफ्तार कर कटनी जेल भेजे जाने की कार्रवाई की निंदा की है और किसानों को जल्द रिहा किए जाने की मंाग की है. जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की नेत्री मेधा पाटेकर ने किसानों के खिलाफ इस पुलिसिया कार्रवाई को किसानों के संवैधानिक अधिकारों का हनन बताया है. उन्होंने राज्य सरकार ने मांग की है कि किसानों को जल्द से जल्द रिहा किया जाय. साथ ही सरकार वेलस्पन कंपनी पर कार्रवाई करते हुए किसानों की अधिग्रहित जमीनों को उन्हें वापस करे.
इसी कड़ी में किसान संघर्ष समिति के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं जिला पंचायत सदस्य डॉ ए. के. खान, डॉ सुनीलम व कई अन्य लोगों ने इस कार्रवाई का विरोध किया है. ये सभी लोग बुजबुजा और डोकरिया गांव के किसानों के समर्थन में खड़े हैं. किसानों के आंदोलन को भी शुरू से ही इनका साथ मिलता रहा है. इनका कहना है किसानों के साथ पुलिस द्वारा मारपीट और उनकी गिरफ्तारी प्रशासनिक कायरता को दिखाती है. हम मुख्यमंत्री से मांग करते हैं कि किसानों को बिना शर्त रिहा किया जाय और जबरन अधिग्रहित उनकी जमीनों को वापस किया जाय.