पूर्वांचल की बंद पड़ी मिलें खुल जाएं तो पूरे क्षेत्र की काया पलट हो जाएगी. चीनी मिलों के बंद हो जाने से भी इस व्यापक गन्ना क्षेत्र का बड़ा नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक दौरे में पडरौना चीनी मिल खुलवाने का आश्वासन दिया था. लेकिन इस ओर कोई पहल नहीं हुई. पूर्वांचल के गन्ना बेल्ट में गन्ने की खेती से यहां के किसान खुशहाल थे, लेकिन 1990 के बाद से मिलें बंद होने लगीं और किसान बर्बाद होने लगे.
आज हाल यह है कि पूर्वांचल की अधिकतर चीनी मिलें बंद हैं, कुछ चल रही हैं तो उन्हें भीषण घाटे में बताया जा रहा है. पूर्वांचल के देवरिया जिले में 14 चीनी मिलें थीं, उनमें महज पांच किसी तरह चल रही हैं. चीनी मिलों के बंद होने के कारण गन्ने की मांग में कमी आई और किसानों को गन्ना उगाने से परहेज करना पड़ा. पूर्वांचल के दूसरे उद्योगों का भी यही हाल हुआ. मऊ जिले की कताई मिल और स्वदेशी कॉटन मिल, गोरखपुर का फर्टिलाइजर कारखाना इसके उदाहरण हैं.
हालांकि गोरखपुर के खाद कारखाने को दोबारा शुरू करने की तैयारी चल रही है. गोरखपुर में एम्स की स्थापना और खाद कारखाने को शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों शिलान्यास भी हो चुका है. 1970 में स्थापित गोरखपुर का खाद कारखाना अपने उत्पाद के लिए पूरे देश में मशहूर था. लेकिन इसके बंद होने से इस क्षेत्र के लाखों कामगार बेरोजगार हो गए और बाहर जाकर दिहाड़ी मजदूरी करने पर विवश हो गए. पूर्वांचल में तो पिछले पचास साल से कोई नया कारखाना या फैक्ट्री नहीं लगी. जो चल रही थीं, उनमें से भी अधिकतर बंद हो चुकी हैं.
मऊ ज़िले की कताई मिल और स्वदेशी कॉटन मिल इसके उदाहरण हैं. राज्य सरकार द्वारा संचालित मऊ जिले की कताई मिल के बड़े से परिसर में अभी भी कई पूर्व कर्मचारी अपने बकाए की आस में रह रहे हैं. कारखाने में करीब तीन हजार कर्मचारी काम करते थे. मिल मुना़फे में थी, लेकिन जानबूझकर कुछ लोगों ने यहां विवाद पैदा कर वर्ष 2005 में इसे बंद करा दिया. कुछ स्थानीय नेता और अधिकारी मिल बंद कराकर उसकी जमीन खरीद लेने का षडयंत्र बुन रहे थे. मामला कोर्ट में जाने के कारण यह नहीं हो सका. यही हाल स्वदेशी कॉटन मिल का भी हुआ. यह मिल केंद्र सरकार का उपक्रम था. सैकड़ों एकड़ में फैली ये फैक्ट्री आज वीरान पड़ी है.
लेकिन पूरे पूर्वांचल के लोगों की उम्मीद एक बार फिर से जगी है. 29 वर्ष बाद गोरखपुर जिले को प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. वीरबहादुर सिंह के बाद गोरखनाथ धाम के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुखिया बने हैं. अब लोगों में उम्मीद जगी है कि गोरखपुर का विकास होगा. पूर्व मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह के बेटे भाजपा विधायक फतेह बहादुर सिंह कहते हैं कि अब गोरखपुर प्रदेश का सबसे सुंदर शहर बनेगा और यहां विकास की गंगा बहेगी.
मुख्यमंत्री गोरखपुर के विकास को लेकर लगातार सक्रिय हैं. योगी ने 19 अप्रैल को भी प्रशासनिक अधिकारियों को लखनऊ बुलाकर काम की गति की जानकारी ली और जरूरी निर्देश दिए. गोरखपुर से लखनऊ बुलाए गए अधिकारियों में मंडलायुक्त, जिलाधिकारी और गोरखपुर विकास प्राधिकरण के वीसी समेत कई अधिकारी शामिल थे. 18 अप्रैल की कैबिनेट बैठक में योगी सरकार ने महत्वपूर्ण फैसला लेकर गोरखपुर सिविल टर्मिनल का नाम महायोगी गोरखनाथ सिविल टर्मिनल कर दिया.
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही गोरखपुर में बदलाव की आहट महसूस की जाने लगी. गोरखपुर के विकास का जो खाका योगी ने शासन-प्रशासन के आला अधिकारियों के साथ हुई कई दौर की बैठक में प्रस्तावित किया है, उस पर अमली जामा पहनाया जाने लगा है. लोगों को लग रहा है कि तीन दशक पहले गोरखपुर के विकास की जो गति वीरबहादुर सिंह के निधन के बाद थम गई थी, उसे अब फिर से नई गति मिलेगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष गोरखपुर में एम्स की स्थापना और खाद कारखाने की फिर से शुरुआत के लिए शिलान्यास किया था. पिछले सात महीने में एम्स को लेकर जितनी प्रगति नहीं हुई, उससे कहीं अधिक पिछले दस दिनों में हुई. गन्ना शोध संस्थान की जिस जमीन पर एम्स प्रस्तावित है, वहां अफसरों का आना-जाना बढ़ गया है. जीडीए एम्स के लिए प्रस्तावित जमीन का भू-प्रयोग चिकित्सा शिक्षा के लिए करने की कवायद में जुट गया है.
गन्ना शोध संस्थान को पिपराइच में शिफ्ट करने का आदेश दिया जा चुका है. एम्स की चारदीवारी का निर्माण भी तेजी से हो रहा है. करीब 3,500 मीटर लंबी चारदीवारी दो महीने में तैयार हो जाएगी. मुख्यमंत्री योगी पहले भी दावा कर चुके हैं कि अगस्त महीने तक एम्स की ओपीडी शुरू कर दी जाएगी. सपा सरकार के समय बच्चों के लिए शुरू हुए 500 बेड का निर्माण भी अंतिम दौर में है. लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने और स्वच्छता पर भी जोर-शोर से काम हो रहा है.
गोरखपुर में चलेगी मेट्रो ट्रेन
गोरखपुर के विकास की योगी-अवधारणा का ही हिस्सा है गोरखपुर में भी मेट्रो ट्रेन. अब गोरखपुर में भी मेट्रो की शुरुआत की भूमिका बनने लगी है. लखनऊ मेट्रो के एमडी कुमार केशव ने कहा कि गोरखपुर मे मेट्रो की पूरी सम्भावना है और 2020 के गोरखपुर को देखते हुए यह जरूरी भी है. सात महीने में डीपीआर यानी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर दी जाएगी. केंद्र सरकार से इसकी मंजूरी मिलने के चार साल के अन्दर मेट्रो का काम पूरा कर लिया जाएगा.
गोरखपुर की मेयर डॉ. सत्या पांडेय भी कहती हैं कि गोरखपुर को स्मार्ट सिटी का दर्जा भले ही नहीं मिला, लेकिन मेट्रो मिल जाने से यहां के लोगों को ढेर सारी सुविधाएं मिलेंगी. गोरखपुर प्राकृतिक संसाधनों और नदियों से चारों तरफ से घिरा है, उस नजरिए से भी यहां पर्यटन विकास की बहुत संभावनाएं हैं. गोरखपुर की मेयर कहती हैं कि गोरखपुर शहर महाराज जी (मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ) का शहर है और कर्म स्थली भी है. गोरखपुर महानगर के विकास के लिए कई योजनाएं शुरू भी हो गई हैं. इसके साथ ही घुघली-महराजगंज से फरेंदा रेलवे लाइन और सहजनवां से दोहरीघाट तक नई रेलवे लाइन बिछाने के काम में भी गति आ रही है.
फोर-लेन से आवागमन हो जाएगा सुलभ
गोरखपुर और आसपास के जिलों में फोरलेन का शिलान्यास तो पहले हो चुका था, लेकिन भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी पेंच के चलते काम तेज नहीं हो पा रहा था. योगी के तेवर देख कर अब अफसरों की सक्रियता दिखने लगी है. गोरखपुर वाराणसी फोर-लेन का निर्माण करीब 2,500 करोड़ की लागत से होना है. गोरखपुर से बड़हलगंज तक करीब 100 गांवों में जमीन अधिग्रहण होना है. एक साल में दस फीसदी किसानों को भी जमीन का मुआवजा नहीं बंट सका. लखनऊ और बनारस से नेपाल की तरफ जाने वाले सैलानियों और मालवाहक वाहनों को शहर में प्रवेश न करना पड़े, इसके लिए कालेसर से जंगल कौड़िया तक फोरलेन बाईपास प्रस्तावित है.
18 किलोमीटर लंबे बाईपास के लिए केंद्र सरकार ने 500 करोड़ रुपए मंजूर भी कर दिए, लेकिन जिला प्रशासन जमीन का अधिग्रहण नहीं कर सका. गोरखपुर से महराजगंज और गोरखपुर से देवरिया होते हुए सलेमपुर तक जाने वाले फोरलेन का निर्माण भी अब तेजी पकड़ रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के सांसद रहते हुए शहर को जाम से निजात दिलाने के लिए मोहद्दीपुर से गोरखनाथ मंदिर होते हुए जंगल कौड़िया तक करीब 25 किलोमीटर फोर-लेन सड़क की मांग करते रहे हैं. पिछले दिनों योगी ने अफसरों को इस प्रोजेक्ट की डीपीआर तैयार कर भेजने का निर्देश दिया है.
झील का सौंदर्यीकरण और खेल स्टेडियम
करीब 800 हेक्टेयर में फैली नैसर्गिक रामगढ़ झील के सौंदर्यीकरण को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह के समय में ही कवायद शुरू हो गई थी. 2009 में ताल के जीर्णोद्धार के लिए केंद्र सरकार ने 129 करोड़ रुपए जारी भी कर दिए थे. लेकिन देरी के चलते इसकी लागत 198 करोड़ रुपए पहुंच चुकी है. करीब 150 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी झील से बमुश्किल 30 से 35 फीसदी सिल्ट ही निकाला जा सका है. योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद जीर्णोंद्धार की उम्मीदें बढ़ गई हैं. योगी ने समीक्षा बैठक में झील को नया जीवन देने की लागत पूछी, तो अफसरो ने करीब 300 करोड़ रुपए की जरूरत बताई. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया है. वहीं अन्तरराष्ट्रीय स्तर के वाटर स्पोर्ट्स के लिए 100 करोड़ के प्रस्ताव की धूल साफ होने लगी है. झील के चारों तरफ 10 मीटर चौड़ी सड़क का भी निर्माण होना है. मुख्यमंत्री ने जाम से राहत के लिए पैडलेगंज से कूड़ाघाट तक झील के किनारे सड़क निर्माण करने का निर्देश दिया है. झील के नजदीक बन रहे चिड़ियाघर के दिन भी बहुरने लगे हैं. बजट की अड़चन दूर हुई, तो दो साल में यहां वन्य प्राणियों की धमाचौकड़ी दिखने लगेगी. झील के पास ही दो पंच सितारा होटलों को भी मंजूरी मिल चुकी है. गोरखपुर के खिलाड़ियों के लिए भी योगी सरकार ने एक अच्छी पहल शुरू की है. अब गोरखपुर में इंटरनेशनल स्टेडियम बनाए जाने की तैयारी चल रही है. कानपुर और लखनऊ के बाद गोरखपुर में भी इंटरनेशनल खेल स्टेडियम बनेगा. स्टेडियम बनाने की कवायद शुरू हो गई है. चौरी चौरा क्षेत्र में स्टेडियम बनाए जाने की चर्चा है. कानपुर में बने ग्रीन पार्क स्टेडियम की तर्ज पर गोरखपुर का स्टेडियम बनेगा, जिसमें कम से कम 30 हजार दर्शकों के बैठने की क्षमता होगी. गोरखपुर में अभी रिजनल स्पोर्ट्स स्टेडियम और सैयद मोदी स्टेडियम है. इस स्टेडियम ने देश-विदेश में सैयद मोदी जैसे कई प्रसिद्ध खिलाड़ी दिए हैं.
अंतरराष्ट्रीय उड़ानों से भी जुड़ेगा गोरखपुर
हवाई यात्रियों को गोरखपुर से नई दिल्ली और कोलकाता के लिए अभी एअर इंडिया और जेट एयरवेज की सेवाएं मिल रही हैं. जल्द ही अन्य एयरलाइंसों की उड़ानों के भी शुरू होने की उम्मीद है. गोरखपुर एयरपोर्ट को इंटरनेशनल एयरपोर्ट में बदलने के प्रयास भी हो रहे हैं. एयरपोर्ट के करीब दो एकड़ जमीन को लेकर सहमति बन गई है. जमीन जल्द ही एयरपोर्ट अर्थारिटी आफ इंडिया को आवंटित कर दी जाएगी. इंटरनेशनल एयरपोर्ट का नाम गुरु गोरक्षनाथ टर्मिनल रखने को लेकर भी सहमति बन गई है. इंटरनेशनल एयरपोर्ट की सुविधा हो जाने के बाद नेपाल से लेकर कुशीनगर जाने वाले बौद्ध सैलानियों को काफी सहूलियत मिलेगी. काठमांडू के लिए सीधी उड़ान से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. यही नहीं, गोरखपुर और आसपास से बड़ी संख्या में बैंकॉक और सऊदी अरब जाने वाले लोगों को भी सुविधा मिलेगी.
गीडा को और कारगर करने की कवायद
पूर्व मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने पूर्वांचल के औद्योगिक पिछड़ेपन को देखते हुए 1989 में गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) की स्थापना की थी. 28 वर्षों के लंबे सफर के बाद नोएडा जिस मुकाम पर पहुंच चुका, वहां पहुंचने में गीडा को अभी देर लगेगी. प्रस्तावित योजना में से सिर्फ 10 फीसदी ही अमल हो सका है. वर्तमान में करीब 390 फैक्ट्रियां गीड़ा से संचालित हो रही हैं, जिनमें करीब आठ हजार मजदूर काम करते हैं. सुविधाओं के अभाव में उद्योग जैसे-तैसे संचालित हो रहे हैं. सांसद रहते हुए योगी आदित्यनाथ के प्रयास से टेक्सटाइल पार्क तो बना, अब आईटी पार्क को लेकर उम्मीदें बढ़ गई हैं. आईटी पार्क के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी मिल चुकी है. बजट की मंजूरी प्रदेश सरकार को देनी है. गीडा के विकास को नजदीक से देखने वाले चेंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष एसके अग्रवाल कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गीडा की जरूरतों का अच्छी तरह अहसास है. उद्यमियों को उम्मीद है कि नोएडा की तर्ज पर अब गीडा का भी विकास होगा.
अब बन जाएगा प्रेक्षागृह
28 जनवरी 1987 को वीरबहादुर सिंह के जमाने में सिविल लाइंस में प्रेक्षागृह की नींव पड़ी थी. करीब डेढ़ करोड़ की रकम खर्च होने के बाद जमीन विवाद में मामला कोर्ट में पहुंच गया. कोर्ट में मामला लंबित होने से निर्माण कार्य रुका हुआ है. नाट्यकर्मी केसी सेन ने प्रेक्षागृह के निर्माण के लिए अनूठा आंदोलन शुरू किया. वे पिछले 28 वर्षों से प्रत्येक शनिवार प्रेक्षागृह की मांग को लेकर नाटक का मंचन कर रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी ने साफ कर दिया है कि प्रेक्षागृह की अड़चनों को अविलंब दूर किया जाए.