देश में पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल के राजनीतिक हो हल्ले की तुलना अन्य राज्यों में चल रही चुनावी उठापट पर लोगों का ध्यान बहुत कम है। दक्षिण के राज्यों में भाजपा का बहुत कुछ दांव पर नहीं लगा है। वहां वह क्षेत्रीय पार्टियों की पूंछ पकड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश में है। इनमें भी तमिलनाडु में हो रहा विधानसभा चुनाव खासा दिलचस्प इसलिए है क्योंकि द्रविड राजनीति के इर्द-गिर्द घूमने वाले इस राज्य में इस बार कोई भी ऐसा चेहरा चुनावी फलक पर नहीं है, जिसे पूरा देश जानता हो। न तो डीएमके के के.करूणानिधि हैं और न ही एआईएडीएमके की अम्मा जे.जयललिता। पूरा चुनाव दूसरी और तीसरी श्रेणी के नेताओं की अगुवाई में लड़ा जा रहा है।

देश की निगाहें इस बात पर है कि क्या जयललिता की गैरमौजूदगी में एआईएडीएमके अपना गढ़ बचा पाएगी या प्रतिद्वंद्वी डीमके गठबंधन जीत का परचम फहरा सकेगा ? डीएमके-कांग्रेस और लेफ्टफ सहित 6 पार्टियों के गठबंधन के साथ चुनाव में उतर रही है, जबकि सत्तारूढ़ एआईएडीएम का बीजेपी के साथ समझौता है। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री ई.के. पलानीसामी जिस चतुराई से अपनी चालें चल रहे हैं, उससे डीएमके की जीत की राह मुश्किल जरूर हो रही है। खास बात यह है कि डीएमके नेता एम.के.स्टालिन ने दो माह पूर्व जो चुनावी वादे किए थे, उसे चुनाव घोषणा के पहले ही ई. पलानीसामी ने पूरा कर दिया है। ये दो वादे हैं- पहला 16 लाख किसानों के 12 हजार करोड़ रू. के कृषि कर्ज की माफी और दूसरा है गरीबों के गोल्ड लोन की माफी। गोल्ड लोन की माफी वाकई नया और दिलचस्प चु्नावी दांव है। बताया जा रहा है कि इसका लाभ राज्य के महिला स्व सहायता समूहों की लगभग 15.5 लाख सदस्यों को मिल सकेगा। सरकार ने इसके लिए बजट में 5400 करोड़ रू. का प्रावधान भी कर दिया है।

तमिलनाडु विधानसभा की सभी 234 सीटों पर 6 अप्रैल को वोट पड़ने हैं। दस साल से सत्ता से बाहर रही राज्य की प्रमुख विपक्षी डीएमके पार्टी की प्रदेश में सत्ता में वापसी की उम्मीद का मुख्य आधार 2019 के लोकसभा चुनाव में डीएमके नीत गठबंधन की भारी सफलता है। इस चुनाव में डीएमके-कांग्रेस (यूपीए) गठबंधन ने राज्य की 39 में से 38 सीटें जीत ली थीं। उसे 32 फीसदी से ज्यादा वोट मिले,जबकि एआईएडीमके नीत एनडीए गठबंधन को मात्र 1 सीट मिली। भाजपा को तो महज 3.68 प्रतिशत वोट मिले। यानी पूरे देश में चली मोदी लहर का तमिलनाडु में कोई असर नहीं था। खुद एआईएडीएम का वोट भी 18 प्रतिशत रह गया। अगर लोकसभा चुनाव नतीजों को आधार मानकर विधानसभा चुनाव नतीजों का अनुमान लगाएं ( जैसे कि भाजपा पश्चिम बंगाल में लगा रही है) तो राज्य में डीएमके गठबंधन की वापसी संभव है। वैसे भी अम्मा जे.जयललिता के रहते 2016 के विधानसभा चुनाव में भी दोनो मुख्य पार्टियों के वोट शेयर में महज 1 फीसदी से भी कम का अंतर था। जिसे पाटना डीएमके ‍के लिए इस चुनाव में मामूली बात है।

लेकिन एआईएडीएमके भी अपना किला बचाने की जी-तो़ड़ कोशिश कर रही है। गोल्ड लोन माफी उसी रणनीति का एक अहम हिस्सा है। ऐसी पहल किसी दूसरे राज्य में पहले नहीं सुनी गई। इसकी वजह है तमिलनाडु में बड़ी संख्या में लोगों का सोने के जेवरात गिरवी रखकर लोन लेना। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक राज्य के 40 से ज्यादा सहकारी बैंको ने सोना और उसके आभूषण गिरवी रखकर 7 हजार करोड़ रू. के लोन बांटे हैं। सरकार के मुताबिक कोरोना काल में आर्थिक संकट के चलते कई महिलाअोंने अपने जेवर गिरवी रखकर लोन लिया था, जिसका ब्याज चुकाना भी उनके लिए मुश्किल हो रहा था। लिहाजा सरकार ने इस साल 31 जनवरी तक लिए 48 ग्राम तक के गोल्ड लोन को माफ करने का ऐलान कर दिया। मुख्यमंत्री पलानीसामी ने विधानसभा में यह ऐलान प्रदेश में चुनाव घोषणा के ठीक दो दिन पहले किया था। बताया जाता है कि तमिलनाडु में सहकारी संस्थाओं द्वारा बांटे गए 20 हजार करोड़ के कर्जों का 40 फीसदी हिस्सा गोल्ड लोन का है। मजे की बात यह है कि गोल्ड लोन माफी का यह वादा पहले डीएमके नेता स्टालिन ने किया था। तमिलों का सोने के प्रति कितना लगाव है, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि पूरे देश के हॉलमार्क सेंटर में से एक तिहाई इसी राज्य में हैं।

वैसे भी अपने देश में सरकारें सत्ता बचाने के लिए लोकलुभावन वादों की झड़ी लगा देती हैं। इनमें भी कर्ज माफी तो आजमाया हुआ नुस्खा है। एआईएडीएमके सरकार ने कृषि कर्ज माफी का ऐलान कर 16 लाख से ज्यादा किसानों तथा गोल्ड लोन माफी के माध्यम से 15 लाख महिला वोटरों को साधने की कोशिश की है। महिलाअों को इसलिए क्योंकि महिलाएं स्व. अम्मा जयललिता की जबर्दस्त समर्थक रही हैं। यह बात अलग है कि सत्ता में लौटने के लिए एआईएडीएमके को भारी पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। चूंकि इस बार राज्य में किसी पार्टी के पास कोई करिश्माई नेता नहीं है, इसलिए चुनावी टोटकों पर काफी कुछ निर्भर है। जहां तक बीजेपी का सवाल है तो उसने पिछले दो विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़े थे, उसके हाथ कुछ खास नहीं लगा। इस बार भी चुनाव के पहले उसने भगवान कार्तिकेय की वेत्री वेल धार्मिक यात्रा निकाल कर माहौल को भगवा बनाने की कोशिश की थी। लेकिन रंग कुछ जमा नहीं। इसका कारण तमिलनाडु की राजनीति का रंग अलग होना है। वहां दशकों से सत्ता द्रविड पार्टियों के हाथ में ही है।

इसमें बदलाव की कोई संभावना दूर तक नहीं है। देखने की बात यह है कि यदि एआईएडीएमके का यह गोल्ड लोन माफी का दांव कामयाब हो गया तो अन्य राज्यों में भी यह मांग उठेगी और कर्ज माफी का एक नया एंगल राजनीति का रूप लेगा। क्योंकि देश के बाकी हिस्सों में भी अभी भी सोना संकट के समय काम आने वाली पूंजी है। जिसे गिरवी रखकर कभी भी नकदी जुटाई जा सकती है। इसीलिए लोग सोना खरीदते हैं। हालांकि दूसरे राज्यों में इस तरह के कर्ज साहूकारों से ज्यादा लिए जाते हैं, लेकिन अब बैंके और गैर बैंकिंग कंपनियां भी गोल्ड लोन देती हैं। तमिलनाडु की राजनीति ने यह संदेश दे दिया है कि सोना व्यक्ति के ही नहीं, राजनीतिक पार्टियों को भी संकट से उबार सकता है, बशर्तें लोग उसकी सियासी अहमियत भी समझें। अगर गोल्ड लोन माफी का मुद्दा चल गया तो यकीन मानिए कि हर राज्य के भावी चुनाव में सोना भी एक अहम मुद्दा होगा। लोन माफ होगा तो लोग ज्यादा गोल्ड लोन लेंगे। लोग कर्ज के जाल में फंसेंगे। गिरवी रखने के लिए सोना ज्यादा खरीदने की प्रवृत्ति बढ़ेगी। सोने के धंधे में तेजी आएगी। गोल्ड लोन बढ़ेगा तो उसके चुनावी दांव के रूप में उसकी वैल्यू बढ़ेगी। तो क्या देश का ‘स्वर्णिम काल’ करीब आ रहा है…?

अजय बोकिल

 

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