नवगठित मोदी सरकार ने देश के सभी सरकारी अस्पतालों में आवश्यक दवाएं मुफ्त देने की बात कही थी, लेकिन बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते मरीजों को दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं. डॉक्टरों ने इंफेक्शन कम करने के लिए 500 रुपये का एंटीबायोटिक इंजेक्शन रमाकांत को लिखा, जो दिन में तीन बार लगना था.
nehru-hospitalपूर्वांचल की स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ समझा जाने वाला गोरखपुर स्थित बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज इन दिनों अव्यवस्था और मनमानी का शिकार है. ग़रीब मरीजों को यहां तरह-तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. डॉक्टरों द्वारा टालमटोल वाला रवैया अख्तियार करना आम बात हो गई है. उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करने का दंभ भरती रहती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर हालत में कोई बदलाव देखने को नहीं मिलता. जब नरेंद्र मोदी ने पूर्वांचल के वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया, तो इलाकाई लोगों को लगा था कि उनके (नरेंद्र मोदी) प्रधानमंत्री बनते ही पूर्वांचल की मूलभूत समस्याएं दूर हो जाएंगी और अच्छे दिन आ जाएंगे, लेकिन अभी तक लोगों को स़िर्फ निराशा हाथ लगी है.
बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान लापरवाही बरतने का एक ताजा मामला प्रकाश में आया है. हुआ यह कि देवरिया निवासी रमाकांत लंबे समय से पेट दर्द से पीड़ित थे. वह बीते 10 अगस्त को अपना इलाज कराने देवरिया से गोरखपुर आए. मेडिकल कॉलेज में जांच के बाद डॉक्टरों ने उनकी आंतों में इंफेक्शन बताया और ऑपरेशन की सलाह देते हुए उन्हें अस्पताल में भर्ती कर लिया. इसके बाद भी रमाकांत के पेट में दर्द लगातार होता रहा. डॉक्टरों ने कई बार मरीज के परिजनों को ऑपरेशन की तैयारी करने के लिए कहा और खुद एक-एक दिन करके ऑपरेशन टालते रहे. उधर दर्द में दिन-ब-दिन इज़ाफा हो रहा था. हालत बिगड़ती देख डॉक्टरों ने उन्हें केवल लिक्विड डाइट लेने और एंटीबायोटिक इंजेक्शन लगवाने की सलाह दी. इसके बाद हालत में थोड़ा सुधार हुआ. तक़रीबन 5-6 दिनों के बाद डॉक्टरों ने उन्हें ब्रेड (सॉलिड डाइट) लेने की सलाह दी.
IMG-20140822-WA0003ब्रेड खाने के बाद रमाकांत का पेट फूल गया और दोबारा तेज दर्द होने लगा. इस पर डॉक्टरों ने उन्हें जनरल वॉर्ड से इमरजेंसी वार्ड में शिफ्ट कर दिया और रात में ऑपरेशन करने की बात कही, लेकिन ऑपरेशन नहीं किया गया. जैसे-तैसे रात कटी. सुबह जब डॉक्टर राउंड पर आए, तो उनसे ऑपरेशन के लिए पूछा गया. जवाब में उन्होंने कहा कि देखते हैं कि आज या कल या कब करेंगे. पिता की बिगड़ती हालत और डॉक्टरों की अनिर्णय की स्थिति देखकर रमाकांत के पुत्र ने उन्हें गोरखपुर के एक निजी अस्पताल ले जाने का निर्णय किया. जब परिजनों ने मरीज को निजी अस्पताल में शिफ्ट करने की बात कही, तो डॉक्टरों ने उन्हें ऑन पेपर डिस्चार्ज नहीं किया. यह मनमानी और धांधागर्दी नहीं, तो और क्या है?
नवगठित मोदी सरकार ने देश के सभी सरकारी अस्पतालों में आवश्यक दवाएं मुफ्त देने की बात कही थी, लेकिन बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते मरीजों को दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं. डॉक्टरों ने इंफेक्शन कम करने के लिए 500 रुपये का एंटीबायोटिक इंजेक्शन रमाकांत को लिखा, जो दिन में तीन बार लगना था. इंजेक्शन अस्पताल में उपलब्ध था, इसके बावजूद इंजेक्शन उन्हें उपलब्ध नहीं कराया गया और बाहर से खरीद कर लाने को कहा गया. एक बार बाहर से इंजेक्शन लाने के बाद दूसरे दिन ड्यूटी पर तैनात सिस्टर ने 500 रुपये देने पर अस्पताल से ही इंजेक्शन उपलब्ध कराने की बात कही. पैसे मिलते ही आउट ऑफ स्टॉक इंजेक्शन अस्पताल में उपलब्ध हो गया! इतनी जल्दी किस एजेंसी ने अस्पताल को इंजेक्शन की आपूर्ति कर दी? 10 अगस्त से 21 अगस्त यानी 12 दिनों तक अस्पताल में रहने के बावजूद कोई फ़ायदा नहीं हुआ. दवा और जांच में तक़रीबन 15 हज़ार रुपये खर्च हो गए, सो अलग. भ्रष्टाचार का आलम यह कि एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड जैसी जांचें भी बाहर से करानी पड़ीं. हर साल दिमागी बुखार का सामना करने वाले पूर्वांचल के इस मेडिकल कॉलेज में क्या एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड जैसी बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं? यदि उपलब्ध हैं, तो उनका उपयोग किसके लिए होता है? इस मेडिकल कॉलेज को सरकारें जो पैसा उपलब्ध कराती हैं, वह आख़िर कहां जाता है? देश का ग़रीब आदमी डॉक्टरों को भगवान मानता है. उसका शासन-प्रशासन से विश्‍वास पहले ही उठ गया था, लेकिन अब उसका विश्‍वास इन भगवानों से भी उठता जा रहा है. सरकारी अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज लोगों को भरोसा खोते जा रहे हैं. मजबूरी में उन्हें अपने मरीज की जान बचाने के लिए निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ रहा है.
सीधा-सा मतलब यह है कि देश में कोई भी सरकार आ जाए, लेकिन सरकारी अस्पतालों के तौर-तरीके नहीं बदलने वाले. जनता मरती है, तो मरती रहे. रमाकांत के मसले पर जब चौथी दुनिया ने बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के डीन के पी कुशवाहा से बात की, तो उन्होंने इसकी जानकारी न होने की बात कही. जानकारी लेने के बाद मरीज को दोबारा मेडिकल कॉलेज लाने के लिए कहा, लेकिन मरीज के परिजनों का भरोसा मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों से इतना डिग चुका था कि वे दोबारा वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा सके. केंद्र सरकार देश में एम्स जैसे संस्थान स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है. यह परियोजना पूरी तरह कार्यान्वित होने में अभी वक्त लगेगा, तब तक लोगों को इसी तरह जूझना पड़ेगा. सरकार को सबसे पहले देश के मेडिकल कॉलेजों को सुधारना होगा और उनकी गुणवत्ता बढ़ानी होगी, ताकि लोगों को अपने घर के आसपास ही बेहतर इलाज मिल सके.

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