चारों तरफ फैली तबाही को देखकर माधोपुरा में रहने वाला संतोष वापस लौटा है. नेपाल में भूकंप से सहमे संतोष के परिजन व गांव वाले उसके सकुशल वापसी व वहां रहने वाले अन्य लोगों की सलामती की खबर पाकर खुश हैं. पीड़ित काठमांडू में व्यवसाय करता है. वह वहां कई रिश्तेदारों के साथ रहता है. उसने गांव वालों को आंखों देखा हाल सुनाया. उसने बताया कि भूकंप के दौरान वह अपने कार्यालय में ही था. जैसे ही भूकंप के झटके लगने शुरू हुए तो हम जान बचाकर भागे. इस पूरी त्रासदी में हमारे ऑफिस के कई कर्मचारी लापता हैं. उनके बारे में कोई खबर नहीं मिल रही है. 


jab-samne-gujri-mautबीते 25 अप्रैल की दोपहर को नेपाल से होकर गुजरी भूकंप नाम की त्रासदी से जो भी बचकर निकला है, वह यही कह रहा है कि हमने एक गुलजार जगह को बंजर होते देखा है. हर उस आदमी के सामने मौत का वह नजारा सामने पसरा हुआ है, जिसे उसने उन क्षणों में जिया था. जो भी नेपाल की उस भयावह त्रासदी से गुजरकर भारत लौट रहा है, उससे बात करते हुए मौत का सन्नाटा स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. 1934 के बाद नेपाल में आए इस विनाशकारी भूकंप ने इस गरीब देश को बीसियों साल पीछे धकेल दिया है. काठमांडू में शायद ही कोई ऐसा घर बचा होगा, जहां से लाशें न निकल रही हों. मुर्दों की संख्या इतनी कि पशुपति के आर्या घाट पर निर्वाण के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.
नेपाल में आए भूकंप में जिंदा बचने वालों ने उस त्रासदी की कहानी बताई जिसने घरों, मंदिरों और ऐतिहासिक इमारतों को पल भर में बर्बाद करके रख दिया. इतने लोगों की मौत के बाद बचे हुए लोगों के लिए अब आश्रय, भोजन और साफ स्वच्छता की बुनियादी जरूरतों को पूरा किए जाने की चुनौती है. भारत के सबसे करीबी देश कहे जाने वाले नेपाल को 7.9 तीव्रता के शक्तिशाली भूकंप ने हिलाकर रख दिया. सड़कों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं और इमारतों व रहने की जगहें ढह जाने के कारण हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा. अब ये सारे लोग खुले आसमान के नीचे रहने के लिए बाध्य हैं क्योंकि अब उनके पास वह घर नहीं है जिसे उन्होंने पूरी जिंदगी की मेहनत के बाद बनाया था. कई कामगारों सहित बड़ी संख्या में यहां आए भारतीयों ने कहा कि उन्हें भोजन और साफ-सफाई जैसी बुनियादी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. यहां कोलकाता से श्रमिकों ने अपनी परेशानियों के बारे में बताया. वे वापस लौटना चाहते हैं. उन्होंने बताया कि हम यहां काम करने आए थे लेकिन इतनी बड़ी त्रासदी देखने के बाद हम वापस चले जाएंगे. वे कहते हैं कि पता नहीं हम कैसे घर लौटेंगे? बिजली नहीं रहने के कारण कोई सूचना नहीं है.
कोलकाता के रहने वाले एक और श्रमिक ने कहा हम सब यहां काम करते हैं. हमें पहले से यह मालूम है कि नेपाल भूकंप के मामले में संवेदनशील जगह है लेकिन इतनी बड़ी त्रासदी आएगी, इसकी किसी को आशंका नहीं थी. उन्होंने बताया कि शुरुआती झटकों के समय हमें लगा कि हल्के झटके ही लगेंगे लेकिन कुछ ही देर बाद यह महसूस होने लगा कि कोई बड़ी दुर्घटना होने वाली है. उसी दौरान एक और भयावह दृश्य हमारे सामने से गुजरा, जब हमने देखा कि मलबे में दबी एक महिला किसी तरह निकलने का प्रयास कर रही है. हमने देखा कि आस-पास के लोग बदहवासी की हालत में सड़क पर भाग रहे हैं. अगल-बगल इमारतें भी गिर रही थीं, जो निकल पाने मेंे सफल हो जा रहा था, वही सफल था. अन्यथा कई लोग सड़कों से भागने के दौरान ही बगल की इमारत उनके ऊपर ढह जाने के कारण दब गए. पता नहीं, उन लोगों का क्या हुआ? वे बचे या नहीं बचे. हम लोग जहां रहते थे, वहां आस-पास के लोगों का भी कोई हाल नहीं मिल रहा है. लोग भागे जा रहे थे, भागे जा रहे थे. कुछ भी बचने की कोई उम्मीद नहीं थी. स्थिति यह है कि घायलों को अस्पताल में जगह नहीं मिल पा रही है. अन्य लोगों की तरह आभास केशी ने भी इस जलजले को महसूस किया. आभास ने कहा कि जब भूकंप के हल्के झटके लगने शुरू हुए तो मैं अपने कमरे में ही बैठा हुआ था. उसी दौरान हमारे बैठक कक्ष में भूकंप का तेज झटका महसूस हुआ और वहां रखा सामान इधर-उधर गिर पड़ा. घर की बगल में एक खुला मैदान है. हम सभी डरे-सहमे व सलामती की दुआ करते हुए वहां एकत्रित हुए. मैंने देखा कि हमारे घर के परिसर की छह फीट ऊंची दीवार जमींदोज हो गई, जिससे रास्ता बंद हो गया. लोग जान बचाने के लिए अपने घरों से निकल खुली जगहों की ओर दौड़ रहे थे.
मैंने पहली बार महसूस किया कि कंक्रीट की इमारतें तक भूकंप जैसी आवाज पैदा कर सकती हैं. उसके बाद लोगों में चीख-पुकार मचनी शुरू हो गई. खुशकिस्मती से हमारी और हमारे दर्जनभर पड़ोसियों की इमारतें सही-सलामत खड़ी थीं, लेकिन भूतल पर स्थित इमारत के पानी के टैंक फट गए. टैंक का फटना एक धमाके जैसा था. शुरुआती झटका थमने के बाद हमें क्या करना चाहिए, हमने इस पर विचार-विमर्श करना शुरू किया. हम में से कुछ तुरंत कुछ चादरें और खाने-पीने की चीजें लेने के लिए घर के अंदर दौड़े, क्योंकि भूकंप के बाद दोबारा आए जोरदार झटके से हमें स्पष्ट हो गया कि हम इमारत में वापस नहीं आ सकेंगे. मैंने वहां से दो मोटरसाइकिलें निकालीं और उन्हें खुली जगह पर रख दी, ताकि जरूरत पड़ने पर मैं किसी को कच्चे रास्ते से उन पर अस्पताल ले जा सकूं. शाम में मैंने अपने आसपास की जगहों का मोटा-मोटा जायजा लिया. कन्वेंशन सेंटर में कई हजार लोग जुटे हुए थे, लेकिन उससे आगे टुंडीखेल मैदान में हजारों लोग एकत्रित थे. यह जगह काठमांडू के हाइड पार्क जैसी है. युवा उद्यमियों के एक समूह को एक बहुत बड़ी प्लास्टिक शीट मिली थी, जिसकी मदद से उन्होंने एक तंबू बनाया. इसमें करीब 60-70 लोगों को आश्रय मिल गया. रात खुले आसमान तले गुजरी. आंखों से नींद गायब थी. न कोई ट्रैफिक का शोर और न कोई चहल-पहल. वह मंजर ऐसा था, मानो वक्त ठहर गया हो.
चारों तरफ फैली तबाही संतोष वापस लौटे हैं. नेपाल में भूकंप से सहमे संतोष के परिजन व गांव वाले उसके सकुशल वापसी व उसके वहां रहने वाले अन्य लोगों की सलामती की खबर पाकर खुश हैं. पीड़ित काठमांडू में व्यवसाय करता है. वह वहां कई रिश्तेदारों के साथ रहता है. उसने गांव वालों को आंखों देखा हाल सुनाया. उसने बताया कि भूकंप के दौरान वह अपने कार्यालय में ही था. जैसे ही भूकंप के झटके लगने शुरू हुए तो हम जान बचाकर भागे. इस पूरी त्रासदी में हमारे ऑफिस के कई कर्मचारी लापता हैं. उनके बारे में कोई खबर नहीं मिल रही है. ईश्वर ही जानता है. नेपाल में आए भूकंप में जख्मी हुए पूर्वी चंपारण के छौड़ादानो थाना क्षेत्र के नारायण पकड़िया चौक निवासी राजकिशोर प्रसाद ने बताया कि वह पिछले नौ वर्षों से काठमांडू के काली माता में रहकर फर्नीचर बनाने का कार्य कर रहे थे. राजकिशोर, जिनके हाथ की हड्‌डी गत शनिवार को नेपाल में आए जलजले में टूट गयी थी, ने भूकंप के बाद के वहां का मंजर को बयान करते हुए बताया कि वह खुद को खुशकिस्मत मानते हैं कि इतने विनाशकारी भूकंप में केवल उनके हाथ की हड्‌डी टूटी और उनकी जान बच गई. उन्होंने बताया कि वहां भूकंप के बाद मकानों के मलबे में लाशें दबी हुई थीं और सैकड़ों जख्मी लोग दर्द से कराह रहे थे और मदद के लिए चीख-पुकार रहे थे, पर अफरा-तफरी के उस माहौल में उनकी सुध किसे थी, सभी अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागते नजर आ रहे थे. उसके तीन दोस्तों ने छत से कूदकर अपनी जान बचाई. उन्होंने कहा कि 45 हजार रुपये में एक मिनी बस किराये पर लेकर वे किसी प्रकार अपने वतन वापस लौट पाए हैं. राजधानी काठमांडू की ज्यादातर इमारतें बर्बाद हो चुकी हैं. जो घर बचे भी हैं, वहां रहने वाले लोग इस भय से जगह छोड़कर भाग चुके हैं कि कहीं दोबारा उसी तीव्रता वाला भूकंप आ गया तो फिर क्या होगा? इस तरह की परिस्थितियों में चोर भी सक्रिय हैं जो घर की वस्तुओं को लूट कर ले जा रहे हैं. प्राइवेट वाहन से आठ घंटे का सफर 24 घंटे में तय कर लोग बॉर्डर पहुंच रहे हैं. वाहन वाले मजबूरी का गलत फायदा उठाकर मनमानी भाड़ा वसूल रहे हैं. उसको वहां से आने में 48 घंटे लगे. मगर, वह भूख से परेशान था. नेपाल में आए भयंकर भूकंप के चलते वहां फंसे भारतीयों को निकालने का काम निरंतर जारी है. काठमांडू से दिल्ली लाए गए भूकंप पीड़ितों से 30 लोग बिहार के थे. इकसे बाद ट्रेन से पटना पहुंचे इन परिवारों के चेहरे पर भूकंप का खौफ साफ दिख रहा था. लोगों ने बताया कि नेपाल में सुपौल जिले के कई परिवार अभी भी फंसे हैं. सुपौल के महावीर चौक पर रहने वाले विमल मोहनका के भाई बद्री प्रसाद अग्रवाल सहित परिवार के 10 लोग काठमांडू में तीन दिनों से फंसे हैं. वहां फंसे हुए लोगों में छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल हैं. इन लोगों को वहां से सुरक्षित निकालने के लिए सुपौल के जिला प्रशासन ने राज्य और केंद्र सरकार से मदद मांगी है. परिजनों का कहना है कि काठमांडू के लिंक रोड स्थित एक पार्क में पूरा परिवार पानी के लिए तरस रहा है. परिजनों का कहना है कि फोन पर बात हुई थी, वे तीन दिनों से एक मैदान मे रात बीता रहे हैं. उनलोगों ने बताया कि वहां सैंकड़ो नेपाली नागरिक भूखे-प्यासे किसी तरह दिन गुजार रहे हैं.
चीन भी कर रहा भूकंप पीड़ितों की मदद 

नेपाल में आए भीषण भूकंप के कुछ ही घंटों के भीतर वहां बड़े पैमाने पर भारत की ओर से राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिए गए थे. भारत वहां किसी भी दूसरे देश की तुलना में व्यापक पैमाने पर बचाव और राहत अभियान में जुटा है. चीन, जो नेपाल में निवेश के मामले में भारत को 2014 में ही पछाड़ चुका है, अब मानवीय सहायता के इस काम में भारत से कदम मिलाने के लिए संघर्ष कर रहा है.

भारत और चीन दोनों ही एशिया की उभरती हुई वैश्विक शक्तियां हैं. नेपाल को इस मुश्किल समय से बाहर निकालने के लिए दोनों ने ही पूरी सहायता देना शुरू कर दिया है. हालांकि मदद के मामले में भारत चीन से कहीं ज्यादा आगे है, लेकिन अगर तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो दुनिया के अन्य देशों से ज्यादा ये दोनों देश नेपाल को मदद कर रहे हैं. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि चीन और भारत नेपाल के पड़ोसी हैं. हम एक साथ वहां काम करना चाहेंगे और भारत के साथ सकारात्मक समन्वय बनाते हुए नेपाल को कठिनाइयों से निकालने और देश के पुनर्निमाण में मदद करेंगे. इसमें कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है कि भूकंप के बाद भारतीय राहत दल सबसे पहले नेपाल पहुंच गया था. भारत नेपाल के सिस्टम और वहां के लोगों से भलीभांति परिचित है. राजनीतिक कारणों से भी यह अपेक्षित था कि भारत मदद के साथ तेजी से पहुंचेगा. खासकर तब, जब वह यह चाहता हो कि चीन और माओवादियों को वहां जमने का मौका न दिया जाए. दरअसल, भारत जो कुछ भी कर रहा है, अगर वो नहीं करता, तो आश्चर्य का विषय होता.

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