काले धन की जांच करने और निगरानी रखने के लिए बनी स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम को पनामा मामले की भनक क्यों नहीं लग पाई? अ़खबारों की सुर्खियां बनने के बाद ही पीएमओ को इस बारे में जानकारी हुई और जांच का आदेश जारी हुआ. पीएमओ ने इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया कि आ़िखर एसआईटी क्या कर रही थी? यह सवाल अहम है, लेकिन इसे पूछने और इसकी वजह जानने के बजाय पूरा देश बेमानी बहस में लगा है. देश के काले धन मामले की जांच कितनी सटीक तरीके से चल रही होगी, इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है. लोगों का इस पर ध्यान नहीं जा रहा कि कितने शातिराना तरीके से पानी की किल्लत और किसानों की तबाही के मसले को विचार के केंद्र से खिसका कर पनामा होते हुए इटली ले जाया गया.
बहरहाल, रिश्वत लेकर हेलिकॉप्टर खरीदने और काले धन को विदेशों में निवेश करने के दो पुराने, लेकिन ताजा खुले मामलों पर चल रही बहस में पूरा देश मुब्तिला है. पनामा लीक्स का मसला हो या अगस्टा हेलिकॉप्टर डील में हुई भारी रिश्वतखोरी का, ऐसे मामलों को अलग करके नहीं देखा जा सकता. भ्रष्टाचार के मामलों में भेदभाव बरत कर देश को भ्रष्टाचार मुक्त नहीं बनाया जा सकता. पनामा लीक्स मामले में कौन-कौन बड़ी हस्तियां लिप्त हैं, उनके नाम अभी उजागर नहीं हुए हैं. अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन और कुछ बड़ी कंपनियों के नाम उजागर हुए, लेकिन जैसे ही भाजपा नेता एवं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह का नाम सामने आया, वैसे ही चर्चा बदल गई.
अगस्टा वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर डील फिर से सामने आ गई और इसमें तत्कालीन कांग्रेस सरकार के अलमबरदारों के नाम आधिकारिक तौर पर पटल पर आ गए. विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया से ग़ुजर रहा देश असली मुद्दों से भटक कर घपलों-घोटालों के आरोप-प्रत्यारोपों में उलझा हुआ है. किसी भी घोटाले में निर्णायक क़ानूनी कार्रवाई शक्ल में आती हुई नहीं दिख रही है. केंद्र की सत्ता पर आरूढ़ भारतीय जनता पार्टी भी घपलों-घोटालों का राजनीतिक फायदा उठाने से आगे क़दम बढ़ाती हुई दिखाई नहीं देती है.
देश की मुख्य धारा में चल रही बहस में शामिल होते हुए हम पहले पनामा लीक्स के बारे में और फिर अगस्टा हेलिकॉप्टर डील की परतें खोलेंगे. पनामा लीक्स पर बात करने के लिए जॉन डो के छद्म नाम से मशहूर शख्स के इर्द-गिर्द जाना होगा, जिसने वर्ष 2015 की शुरुआत में जर्मनी के एक अ़खबार को कुछ कागजात उपलब्ध कराए, जो पनामा देश और उसके ज़रिये होने वाले एक विशालकाय वैश्विक घोटाले के दस्ताव़ेज थे. इस मामले ने एक ही झटके में पनामा का नाम पूरी दुनिया, खासकर भारत में जबर्दस्त चर्चा में ला दिया. पनामा लीक्स सवा करोड़ से भी ज़्यादा गोपनीय दस्ताव़ेजों का पुलिंदा है, जिसमें 2.14 लाख कंपनियों के बारे में सनसनीखेज जानकारियां शामिल हैं. इन दस्तावेज़ों को मोस्सैक फोंसेका नामक कंपनी ने संकलित किया है.
इनमें कंपनी के शेयर होल्डर्स और निदेशकों की पहचान भी है. इन दस्ताव़ेजों में बताया गया है कि किस तरह रईसों और सरकारी अधिकारियों ने लोगों की नज़रों से संपत्ति छुपाई. जब ये दस्तावेज़ पहली बार प्रकाशित हुए, तो इनमें पांच देशों अर्जेंटीना, आइसलैंड, सऊदी अरब, यूक्रेन और संयुक्त अरब अमीरात के प्रमुख शामिल थे. उनके साथ 40 दूसरे देशों के प्रमुखों के नज़दीकी रिश्तेदार, सरकारी अधिकारी और इन राष्ट्र प्रमुखों के नज़दीकी सहयोगी शामिल थे. इनमें शामिल कंपनियों में से आधी ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड से हैं और ज़्यादातर बैंक, क़ानूनी कंपनियां एवं दलाल हॉन्गकॉन्ग में हैं.
यह बात भी सामने आई कि मोस्सैक फोंसेका के ज़रिये अस्तित्व में आईं कुछ कंपनियां संबद्ध देशों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नशीले द्रव्यों के व्यापार, धोखाधड़ी और कर चोरी में शामिल रही हैं. एक अनजाने व्हिसिल ब्लोअर द्वारा उपलब्ध कराए गए कुल कागजात 2.6 टेरा बाइट के थे और उनमें 1970 तक के सौदों का ब्यौरा है. इस लीक के दस्ताव़ेजों का भारी-स्वरूप देखकर अ़खबार ने इसके लिए खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय समूह की सेवाएं लीं और 76 देशों के 400 पत्रकारों एवं 107 मीडिया संगठनों को दस्तावेज़ों की जांच करने का काम सौंपा. इसकी पहली रिपोर्ट तीन अप्रैल 2016 को प्रकाशित हुई. मई 2016 तक पूरे दस्ताव़ेज प्रकाशित करने की योजना है. भारत से जो कुछ बड़े नाम उजागर हुए, उनमें अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन, डीएलएएफ के सीईओ कुशल पाल सिंह, इंडिया बुल्स के समीर गहलोत, गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी और नेताओं में पश्चिम बंगाल के शिशिर बाजोरिया, दिल्ली लोक सत्ता पार्टी के अनुराग केजरीवाल, छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह आदि शामिल हैं. पनामा प्रकरण में भारत के 50 बड़े लोगों के नाम शामिल हैं. आप हैरत करेंगे कि इन बड़े लोगों की लिस्ट में इकबाल मिर्ची का नाम भी शामिल है, जो अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का खास माना जाता था, जिसकी मौत तीन वर्ष पहले हो चुकी है.
यानी पनामा लीक्स का विस्तार प्रशांत महासागर से भी ज़्यादा और गहरा है, जिसने धरती के बहुत बड़े भूभाग को अपने घेरे में ले लिया है. जनता के दबाव पर आइसलैंड के प्रधानमंत्री का इस्तीफ़ा और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की सफाई हम देख चुके हैं, लेकिन भारत में इस तरह की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. भारत में सारा प्रभाव चर्चा से अधिक नहीं जाता, ज़्यादा से ज़्यादा कैंडिल मार्च तक जा सकता है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जांच का आदेश दे दिया है और कई एजेंसियों को मिलाकर केंद्र सरकार ने जांच समूह भी बनाया है, जिसमें केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की जांच इकाई, उसके विदेशी कर और कर शोध विभाग, वित्तीय जांच इकाई और रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया आदि शामिल हैं. लेकिन, भारत में होने वाली जांच और उसके परिणाम को लेकर कोई उम्मीद नहीं जगती. बोफोर्स से लेकर व्यापमं तक जांचों का क्या हश्र हुआ या हो रहा है, यह किसी से छुपा नहीं है. इस खुलासे में जिन भारतीय हस्तियों के नाम सामने आए हैं, उनकी इज्जत पर थोड़ा दाग लगने के अलावा क़ानूनी कार्रवाई कितनी आगे बढ़ेगी, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता.
भारत में कार्रवाई के नाम पर आयकर विभाग ने पनामा पेपर्स मामले में महानायक अमिताभ बच्चन को सवालों की नई लिस्ट भेजी है. बच्चन ने विदेश में कंपनियां खोलने के आरोप से इंकार किया था, जिनका उल्लेख पनामा पेपर्स में था. अमिताभ बच्चन ने हाल में आयकर विभाग को भेजे गए अपने जवाब में उन चार कंपनियों से किसी तरह का संबंध होने या उनमें हिस्सेदारी से इंकार किया था, जिनके बारे में पनामा की विधि सेवा प्रदाता कंपनी मोस्सैक फोंसेका के लीक दस्ताव़ेजों में दावा किया गया था. अमिताभ ने कहा था कि उनके नाम का दुरुपयोग किया गया है और वह सी बल्क शिपिंग कंपनी लिमिटेड, लेडी शिपिंग लिमिटेड, ट्रेजर शिपिंग लिमिटेड और ट्रैम्प शिपिंग लिमिटेड के बारे में कुछ नहीं जानते. वह कभी भी इनमें से किसी कंपनी के निदेशक नहीं रहे. लेकिन, बाद में पनामा लीक्स से मिले कागजातों के आधार पर अमिताभ बच्चन के दावे ग़लत पाए गए. अमिताभ बच्चन की एबीसीएल लॉन्च होने से दो वर्ष पहले ही उक्त चारों कंपनियां रजिस्टर्ड हुई थीं. चारों कंपनियां उमेश सहाय और डेविड माइकल पेट ने स्थापित की थीं.
इसी तरह अमिताभ बच्चन की बहू एवं मशहूर फिल्म अभिनेत्री ऐश्वर्या राय का नाम भी पनामा-गेट से जुड़ा पाया गया. मोस्सैक फोंसेका के रिकॉर्ड से खुलासा हुआ कि ऐश्वर्या राय रजिस्टर्ड कंपनी की डायरेक्टर थीं. गोपनीयता बरतने के इरादे से नाम को ए. राय कर दिया गया था. ऐश्वर्या राय और उनका परिवार तीन वर्षों तक ऐसी कंपनी का हिस्सा रहे, जो टैक्स हेवन ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में रजिस्टर्ड की गई थी. ऐश्वर्या राय, उनके पिता कृष्णराज राय, मां वृंदा राय और भाई आदित्य राय 14 मई 2005 को एमिक पार्टनर्स लिमिटेड नामक कंपनी में डायरेक्टर बनाए गए थे. 18 जून 2005 को एमिक पार्टनर्स लिमिटेड में बोर्ड प्रस्ताव लाकर ऐश्वर्या राय को शेयर होल्डर बना दिया गया था. पांच जुलाई 2005 को फोंसेका के कर्मचारियों की आंतरिक बातचीत में भी ऐश्वर्या राय के नाम का जिक्र आया, जिसमें गोपनीयता बनाए रखने के लिए उनका नाम छोटा करके ए. राय किया गया था.
दस्तावेज़ों के मुताबिक, वर्ष 2008 में अभिषेक बच्चन से शादी के बाद कंपनी बंद करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी. दस्तावेज़ों में ऐश्वर्या राय और उनके परिवार के सदस्यों की ओर से 18 जून 2005 को दुबई में हुई बोर्ड बैठक में पास किए गए एक प्रस्ताव का भी जिक्र मिलता है, जिसमें ऐश्वर्या राय और उनकी मां ने डायरेक्टर पद छोड़ने का फैसला किया था, लेकिन वे शेयर होल्डर बने रहे थे. इस बैठक की अध्यक्षता ऐश्वर्या राय के पिता ने की थी और प्रस्ताव पर सभी ने हस्ताक्षर किए थे.
देखिए कर चोरों के चेहरे
दुनिया में सबसे ज़्यादा गोपनीय ढंग से काम करने वाली कंपनियों में से एक पनामा की मोस्सैक फोंसेका के एक करोड़ 10 लाख गोपनीय दस्ताव़ेज लीक हो गए. इन दस्ताव़ेजों में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के परिवार के सदस्य, रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन, आइसलैंड के प्रधानमंत्री सिगमंडर गुनलॉन्गसॉन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के क़रीबियों से लेकर मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक समेत दुनिया के कई बड़े नेताओं के नाम हैं. इन लोगों ने टैक्स हेवन देशों में अकूत संपत्ति जमा की. इनमें क़रीब 500 भारतीयों के भी नाम हैं. इन गोपनीय दस्ताव़ेजों से पता चला है कि अमीर और शक्तिशाली लोग किस तरह टैक्स की चोरी करते हैं या उन तरीकों का प्रयोग करते हैं, जिनसे उन्हें कम टैक्स भरना पड़े.
इससे पता चलता है कि मोस्सैक फोंसेका ने किस तरह अपने ग्राहकों के काले धन को वैध बनाने, प्रतिबंधों से बचने और कर चोरी में मदद की. लीक हुए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि मोस्सैक फोंसेका ने किस तरह अपने ग्राहकों को अवैध धंधों की सीख दी और संरक्षण दिया. यह कंपनी पिछले 40 वर्षों से बेधड़क काम कर रही थी. मोस्सैक फोंसेका के लीक हुए दस्तावेज़ 70 से ज़्यादा वर्तमान और पूर्व राष्ट्राध्यक्षों एवं तानाशाहों से जुड़े हैं. दस्ताावेज़ों से पता चला कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बेटे हुसैन शरीफ एवं हसन नवाज शरीफ और बेटी मरियम सफदर ने टैक्स हेवन माने जाने वाले ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड में कम से कम चार कंपनियां खोलीं. इन कंपनियों ने लंदन में कम से कम छह बड़ी प्रॉपर्टीज खरीदी. शरीफ परिवार ने इन प्रॉपर्टीज को गिरवी रखकर डॉएचे बैंक से सात मिलियन ग्रेट ब्रिटेन पाउंड यानी क़रीब 70 करोड़ रुपये का लोन हासिल किया. इसके अलावा अन्य दो अपार्टमेंट्स खरीदने में बैंक ऑफ स्कॉटलैंड ने वित्तीय मदद की.
आरबीआई नियमों का सहारा लेकर खोली गईं कंपनियां
पनामा लीक्स से सामने आए भारतीयों के कुल खातों में से 90 प्रतिशत आरबीआई की लिब्रलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (एलआरएस) के तहत खोले गए हैं. पनामा पेपर्स के ज़रिये सामने आए क़रीब 500 भारतीयों के विदेशी खातों में से क़रीब 90 प्रतिशत खाते नियमों के तहत सही पाए गए हैं. शुरुआती जांच में पाया गया है कि आशंका के विपरीत इस मामले में बड़े पैमाने पर वैसी गड़बड़ी नहीं है. पनामा पेपर्स से सामने आए ज़्यादातर विदेशी खातों के मामले में आरबीआई के नियमों का पालन किया गया है. आधिकारिक तौर पर कहा गया है कि क़रीब 90 प्रतिशत खातों में आरबीआई की लिब्रलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (एलआरएस) का इस्तेमाल किया गया है. बाकी बचे जो खाते नियम विरुद्ध खोले गए हैं, उनके खाता धारकों पर ही अब कार्रवाई की जाएगी. 2004 में लागू की गई एलआरएस स्कीम के तहत भारतीय नागरिक अपनी आय का वह हिस्सा विदेश भेज सकते हैं, जिस पर भारत में आयकर चुका दिया गया हो.
इस पैसे से विदेशों में खाते खोले जा सकते हैं, प्रॉपर्टी खरीदी जा सकती है और साथ ही विदेशी शेयर बाज़ारों में निवेश किया जा सकता है. हालांकि, इस स्कीम के तहत विदेशों में धन भेजने की कुछ सीमा भी है. 2004 में जब यह स्कीम शुरू की गई थी, तब एक वित्तीय वर्ष में केवल 25 हज़ार डॉलर यानी 15 लाख रुपये ही बाहर ले जाए जा सकते थे. अब इसे बढ़ाकर दो लाख पचास हज़ार डॉलर यानी 1.63 करोड़ रुपये किया जा चुका है. इससे पहले पनामा लीक्स पर हो रहे बवाल के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के गवर्नर रघुराम राजन ने भी कुछ ऐसे ही संकेत देते हुए कहा था कि जल्दबाजी में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए. उनका कहना था कि इस बात पर ध्यान दिया जाए कि विदेश में खाते खोलने की वाजिब वजह भी होती है और ये नियमों के तहत खोले जा सकते हैं.
पनामा लीक्स मामले में सरकार द्वारा बनाई गई जांच टीम में आरबीआई भी शामिल है. वहीं उन लोगों पर सरकार द्वारा कड़ी कार्रवाई किए जाने के संकेत मिले हैं, जिन्होंने देश में काला धन क़ानून लागू होने से पहले वन टाइम एमनेस्टी स्कीम के तहत विदेशों में रखी अपनी अघोषित संपत्ति का खुलासा नहीं किया था. पिछले वर्ष जुलाई से सितंबर तक चली इस योजना में भारत सरकार ने लोगों को विदेशों में रखी अपनी अघोषित संपत्ति घोषित करने का मा़ैका दिया था. इस योजना के ज़रिये लोग अपनी अघोषित संपत्तियों पर 30 प्रतिशत टैक्स और 30 प्रतिशत पेनल्टी देकर सजा से बच सकते थे. सरकार ने यह भी कहा था कि जो लोग इस योजना के तहत अपनी अघोषित संपत्ति की घोषणा नहीं करेंगे, उन्हें काला धन क़ानून के तहत अधिकतम 10 वर्ष की सजा हो सकती है.
हैलो, मैं जॉन डो बोल रहा हूं!
पनामा-लीक्स का मामला इस संदेश के साथ शुरू होता है कि हैलो, मैं जॉन डो बोल रहा हूं. पनामा पेपर्स ने जर्मन अ़खबार ज़्युइडडोएचे-त्साइटुंग के दो युवा पत्रकारों को दुनिया में मशहूर कर दिया. दक्षिणी जर्मनी में म्यूनिख से प्रकाशित होने वाला यह दैनिक जर्मनी के सबसे बड़े अ़खबारों में से एक है. 38 वर्षीय बास्टियान ओबरमायर और 32 वर्षीय फ्रेडरिक ओबरमायर का नाम भाइयों जैसा है, लेकिन वे भाई नहीं, बल्कि सहकर्मी हैं. तीन अप्रैल 2016 को 76 देशों के 109 अख़बारों, टेलीविज़न चैनलों और ऑनलाइन मीडिया में पनामा पेपर्स का एक साथ प्रकाशन शुरू होने से पहले वर्ष भर की छानबीन और तैयारियों पर उक्त दोनों पत्रकारों ने मिलकर एक किताब भी लिखी है. 350 पृष्ठों की इस किताब के जर्मन नाम का हिंदी मतलब है, एक विश्वव्यापी भंडाफोड़ की कहानी.
अपने काम वाले कमरे को दोनों पत्रकार वार रूम कहते हैं. इसी वार रूम में वर्तमान एवं पूर्व राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों सहित विश्व के 143 देशों के नेताओं, 50 अरबपति धनकुबेरों, सैकड़ों बड़े-बड़े मैनेजरों, कई नामी खिलाड़ियों, अभिनेताओं, कलाकारों, तस्करों, माफियाओं और कारोबारी बैंकों की पोल खोलने की भूमिका तैयार हुई. उल्लेखनीय है कि अमेरिका में 1941 में बनी जॉन डू नामक एक फिल्म बहुत लोकप्रिय हुई थी. तभी से अपने आपको गुमनाम रखकर खुफिया कामों में लगे अमेरिकी लोग अपना परिचय अक्सर इसी नाम से देते हैं. दोनों पत्रकारों को 21 देशों में चल रही 2,14,000 फर्जी फर्मों की पोल खोलने वाले एक करोड़ 15 लाख दस्तावेज़ मुफ्त में सौंपने वाले कौन लोग थे, इस बारे में वे कुछ नहीं बताते.
बास्टियान ओबरमायर का कहना है कि उन्होंने बिल्कुल नहीं सोचा था कि जिस अज्ञात स्रोत ने संदेश भेजा था, वह न स़िर्फ बदले में एक पैसा तक नहीं लेगा, बल्कि तरह-तरह की ऐसी असाधारण जानकारियों का अंबार लगा देगा कि दुनिया में भूकंप आ जाएगा. उन्होंने यह कतई नहीं सोचा था कि वे कुछ ऐसा करने जा रहे हैं, जो देखते ही देखते उन्हें दुनिया भर में मशहूर कर देगा. बास्टियान और फ्रेडरिक ने वॉशिंगटन स्थित खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय गठबंधन (इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स-आईसीआईजे) से संपर्क किया. आईसीआईजे 65 देशों के लगभग 200 पत्रकारों का एक ऐसा नेटवर्क है, जो खोजी पत्रकारिता के सामूहिक हित में 1997 में बना था.
कर चोरों का स्वर्ग
केमन द्वीप समूह : यह द्वीप समूह विश्व की कुल बैंकिंग संपदा के मद्देनज़र 15वें स्थान पर आता है और बड़ी हस्तियों एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए कर चोरी का क़ानूनी रास्ता मुहैया कराता है.
स्विट्ज़रलैंड : यह देश लंबे समय से काले धन के लिए गोपनीय बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराकर पूरी दुनिया के काले धन का भंडार बन गया है. भारत का भी अकूत धन स्विट़्जरलैंड के बैंकों में जमा है, लेकिन भारत की सरकारें उसे निकालने में नहीं, बल्कि केवल चुनावी मुद्दा बनाने में दिलचस्पी लेती रहती हैं.
जर्सी : इंग्लैंड और फ्रांस के बीच स्थित यह द्वीप अपने न्यूनतम कर ढांचे के कारण ब्रिटेन और अमेरिका के कर चोरों के बीच खासा लोकप्रिय है. यहां कॉरपोरेट कर, उत्तराधिकार कर और कैपिटल गेन जैसे टैक्स लगभग शून्य हैं.
आयरलैंड : कर चोरी के लिए आयरलैंड का नाम तब चर्चा में आया, जब अमेरिका की कुछ बड़ी कंपनियों जैसे फाइज़र और एप्पल ने आयरलैंड की कंपनियों के साथ साझेदारी की और इस तरह वे सैकड़ों बिलियन डॉलर का कर बचाने में सफल हो गईं.
मोनाको : छोटा-सा देश मोनाको अपने कर क़ानूनों के कारण अकूत संपदा से भर गया है. वहां के कर क़ानून के मुताबिक, यदि आप वहां के रहने वाले हैं, तो अपना सारा धन अपने पास रख सकते हैं और इसी क़ानून ने कुछ हज़ार की नागरिकता वाले इस देश को आर्थिक महाशक्ति बना दिया है. मोनाको दुनिया का सबसे महंगा रीयल स्टेट बाज़ार है.
बरमूडा : इसके लचीले कर क़ानूनों के चलते 2014 के आंकड़ों के मुताबिक, फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से एक चौथाई ने वहां अपनी सहायक कंपनियां खोलकर कर चोरी का साधन खोज रखा है.
मॉरिशस : हिंद महासागर का यह छोटा-सा देश द्विकर संधि द्वारा कॉरपोरेट कर में छूट, कैपिटल गेन और ब्याज को कर से बाहर रखने के कारण पूरी दुनिया के कर चोरों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
बहामास : कैपिटल गेन टैक्स, उत्तराधिकार टैक्स, व्यक्तिगत आयकर और उपहार कर में छूट के कारण बहामास कर बचाने का एक बढ़िया स्रोत बना हुआ है. बड़ी संख्या में बड़ी आयु के लोग, जिनके पास अकूत संपत्ति है, यहां निवेश करके अपना आलीशान रिटायरमेंट प्लान बनाते हैं.
आईल ऑफ़ मैन : बहुत कम करों के कारण इंग्लैंड और आयरलैंड के बीच स्थित यह द्वीप समूह काले धन के एक जाने-माने गढ़ के रूप में विकसित हो गया है.