नाम : अनीता पूर्वी बारंगे
पेशा : स्टॉफ नर्स
लड़ीं : दो बार पॉजिटिव आईं
असर : 6 साल का बेटा भी संक्रमित


पति इंडियन आर्मी में जॉब करते हैं और चाइना बॉर्डर पर पोस्टेड हैं, देश की सुरक्षा में तैनात हैं। अनीता स्टॉफ नर्स हैं और सुल्तानिया जनाना अस्पताल में कोविड जैसे दुश्मन के खिलाफ जंग लड़ रहे लोगों की सेवा कर रही हैं। लगातार ड्यूटी का असर ये हुआ कि वे संक्रमण घेरे में आ गईं। पहली रिपोर्ट पॉजिटिव आईं, 15 दिनों बाद हुए दूसरे टेस्ट में भी उन्हें पॉजिटिव करार दिया गया। सबसे बड़ा नुकसान ये था कि उन्हें करीब 21 दिन तक अपने 6 साल के मासूम से अलग रहना पड़ा। अब सेहत की तरफ बढ़ चुकीं अनिता अपनी साथी नर्स को ष्टशह्म्शठ्ठड्ड से बचने के सुझाव देती नजर आती हैं। एहतियात और नियमों का पालन सबसे बड़ा जीत मंत्र है, बताते हुए अनिता कहती हैं, मुश्किल दौर है लेकिन इससे जीतने के लिए ताकत नहीं धैर्य, एहतियात और सामाजिक दूरी का पालन अचूक हथियार हैं। वे शासन से मांग करते हुए कहती हैं कि ष्टशह्म्शठ्ठड्ड की इस जंग में अपनी जान का जोखिम लेने वाली नर्सेज के स्वास्थ्य और सुविधाओं का खास ख्याल रखा जाना चाहिए।

नाम : पवन नाहर
पेशा : पत्रकारिता
लड़े : सुविधा के अभाव वाले क्षेत्र में
जीते : अब दे रहे समझाइश

गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बसे आदिवासी अंचल थांदला में अखबारों की सेवा कर रहे पवन नाहर 16 अप्रैल को पॉजिटिव करार दिए गए। गांवों तक फैल चुके संक्रमण का घोतक बने पवन को सबसे पहले अपने ग्राम की स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जूझना पड़ा। ऐसे में थांदला मेडिकल टीम ने उनका हौसला बढ़ाया और अपने अधिकतम ज्ञान से कोविड के डरावने दरवाजे तक जाने से रोक लिया। सेहत की पूर्ण और पुख्ता तसल्ली के लिए पवन को दोहद और बड़ौदा के डॉक्टर्स से भी परामर्श लेना पड़ा। अब पूरी तरह स्वस्थ होकर पवन लोगों से अपील करते नजर आते हैं कि ष्शह्म्शठ्ठड्ड को हराना है तो शारीरिक दूरी श्रेष्ठ विकल्प है। सरकारी नियमों का पालन और अपने डॉक्टर्स पर भरोसा जीत के सहायक हैं। पवन कहते हैं कि कोविड को किसी दुश्मन की तरह जरूर मानें, लेकिन अपनी हिम्मत और सब्र से इसको हराने की ताकत भी खुद में संजोए रखें।

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