रक्षा के बाद कृषि की बात करें, तो भारत में कृषि सबसे अधिक रा़ेजगार देने वाला क्षेत्र माना जाता है. कृषि क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में योगदान क़रीब 16.6 फ़ीसद है. देश में लगभग 12.5 करोड़ किसान हैं, लेकिन खेती पर निर्भर लोगों की संख्या कुल आबादी के 60 फ़ीसद से भी अधिक है. अब देखने वाली बात यह है कि अगर कृषि में एफडीआई लाया जाता है, तो निश्‍चित तौर पर तकनीक की मदद से कृषि को बेहतर बनाया जा सकता है. पैदावार में वृद्धि हो सकती है. बुवाई से लेकर कटाई तक में नई तकनीक आने से किसानों का काम बेहद आसान हो सकता है. 
Untitled-3प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है. इसके पहले जब यूपीए की सरकार थी, तो रिटेल क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी गई थी. उस वक्त भाजपा ने इसका काफी विरोध किया था. अब केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है. वह रक्षा, मीडिया और कृषि जैसे अहम क्षेत्रों में एफडीआई लाने पर विचार कर रही है. वास्तव में एफडीआई को लेकर आज जो कुछ हो रहा है, उसकी नींव वर्ष 1991 में ही रख दी गई थी. विदेशी निवेश की नीतियां उदार बनाने की दृष्टि से वर्ष 1991 में ही एफडीआई की नींव रखी गई थी, जिसका पूरा असर आम आदमी को आज दिखाई दे रहा है और अब जो हो रहा है, उसका असर कई वर्षों बाद नज़र आएगा. अगर दुष्परिणाम सामने आए, तो उस समय भारत के पास करने को कुछ नहीं होगा, क्योंकि विदेशी कंपनियों के पास संसद की मंजूरी क़ानून के रूप में पहले से ही होगी. ऐसे में, यह मुद्दा एक बार फिर बहस का विषय बन गया है कि आख़िर एफडीआई आने से इन क्षेत्रों पर क्या असर पड़ेगा. दरअसल, एफडीआई को लेकर शुरू से ही समर्थन और विरोध में स्वर उठते रहे हैं. समर्थकों की दलील यह होती है कि एफडीआई से नए रोज़गार सृजित होंगे, बिचौलियों से मुक्ति और सामान की सही क़ीमत भी मिलेगी. वहीं, इसके विरोधियों का कहना है कि यह विदेशी निवेश नौकरियां छीन लेगा. साथ ही, सामानों की आपूर्ति पर विदेशी कंपनियों का अधिकार हो जाएगा. विदेशी कंपनियां दाम घटाकर लोगों को लुभाएंगी और उनका मुकाबला देशी कंपनियों के वश में नहीं होगा. बड़ी विदेशी कंपनियां बाज़ार का विस्तार नहीं करेंगी, बल्कि मौजूदा बाज़ार पर ही काबिज हो जाएंगी.
अगर रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश की बात करें, तो हम जो रक्षा सामग्री दूसरे देशों से खरीदते हैं, उसे विदेशी श्रम से तैयार किया जाता है. अगर निवेश आता है, तो यहीं भारतीय कारखानों में बड़ी संख्या में भारतीयों को रोज़गार मिलेगा. दूसरी बात यह है कि हाल में पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया है कि साल 2009 से 2013 के बीच रक्षा सामग्री के आयात के मामले में भारत पहले पायदान पर था यानी सुरक्षा तकनीक के मामले में हमें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है. रक्षा ज़रूरतों से जुड़ी लगभग 60 फ़ीसद सामग्री बाहर से आती है. ऐसे में विदेशी मुद्रा बाहर जाती है और रा़ेजगार की संभावनाएं ख़त्म हो जाती हैं. साथ ही, भारतीय सेना के आधुनिकीकरण की बात काफी अर्से से चल रही है. इस दिशा में कोई ठोस क़दम अभी तक नहीं उठाया गया है. अगर सेना के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया शुरू होती है, तो उस पर काफी खर्च होगा. एक अनुमान के मुताबिक, रक्षा आधुनिकीकरण पर अगले कुछ वर्षों में लगभग 20 लाख करोड़ रुपये की लागत आएगी. हालांकि, रक्षा के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर कई तरह का अंदेशा भी है. पहला यह कि इससे निजी कंपनियों का इस क्षेत्र में कितना हस्तक्षेप होगा. इतना ही नहीं, विदेशी उपकरणों की खरीद में घोटाले भी होते हैं. ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर और टैट्रा ट्रक विवाद जैसे मामले हमारे सामने हैं.
रक्षा के बाद कृषि की बात करें, तो भारत में कृषि सबसे अधिक रा़ेजगार देने वाला क्षेत्र माना जाता है. कृषि क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में योगदान क़रीब 16.6 फ़ीसद है. देश में लगभग 12.5 करोड़ किसान हैं, लेकिन खेती पर निर्भर लोगों की संख्या कुल आबादी के 60 फ़ीसद से भी अधिक है. अब देखने वाली बात यह है कि अगर कृषि में एफडीआई लाया जाता है, तो निश्‍चित तौर पर तकनीक की मदद से कृषि को बेहतर बनाया जा सकता है. पैदावार में वृद्धि हो सकती है. बुवाई से लेकर कटाई तक में नई तकनीक आने से किसानों का काम बेहद आसान हो सकता है. लेकिन, इसका दूसरा पहलू यह है कि कृषि हमारे देश में रोज़गार का सबसे बड़ा क्षेत्र है. अगर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कृषि में होता है, तो नई तकनीकों के आने से मानव श्रम की जगह मशीनों का इस्तेमाल होगा यानी किसानों की जगह मशीनें ले लेंगी. अगर इसमें एफडीआई आता है, तो छोटे किसानों का वजूद ख़त्म हो जाने का ख़तरा भी काफी अधिक होगा.
दूरसंचार के क्षेत्र में 100 फ़ीसद एफडीआई की मंजूरी पिछली सरकार ने ही दी थी. नई सरकार आने के बाद भी कहा गया कि मीडिया में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का रास्ता खोला जाएगा. यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें विदेशी निवेश को लेकर कई तरह के सवाल उठते हैं. अगर मीडिया के क्षेत्र में विदेशी निवेश आता है, तो हमारे मीडिया पर नियंत्रण किसका होगा? क्या कोई मीडिया हाउस उस तरह की ख़बरें दिखाने की सोच सकेगा, जिनसे उसके मालिक के हितों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हो? प्रिंट मीडिया में एफडीआई की सीमा बढ़ाने को लेकर भारतीय प्रेस परिषद शुरू से ही ख़िलाफ़ रहा है. मीडिया के क्षेत्र में विदेशी निवेश होने से हमारे देश पर अपरोक्ष रूप से विदेशी ताकतें पूरी तरह हावी हो जाएंगी.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here