दिल्ली में शुक्रवार को देशभर से आए किसानों ने केंद्र की सत्ता पर काबिज सरकार के खिलाफ एकजुट होकर अपने आंदोलन का आगाज किया. इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार से अनेकों मुद्दों को लेकर अपनी मांगों को सरकार के पटल पर रखा. मुख्य तौर पर किसानों ने तीन मांगों को सरकार के समक्ष रखा था.
हालांकि, बाद में ये किसान आंदोलन कब सियासी रणभूमि में तब्दील हो गया पता ही नहीं चला. जिसमें अनेकों सियासी नुमाइंदों ने अपनी सक्रियता का परिचय देते हुए इस सियासी रण में दाखिल हो गए. इसी बीच कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों आंदोलन की आड़ में केंद्र की सत्ता पर मौजूद नरेंद्र मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा.
राहुल गांधी ने किसानों के इस सैलाब को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार ने अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल के दौरान 15 उद्दोगपतियों का कर्जा मांफ कर दिया. लेकिन, ये सरकार किसानों का कर्जा मांफी नहीं कर रही है जो देश की जनता जनार्दन का पेट भरती है.
वहीं, उन्होंने आगे कहा कि देश का ये किसान सरकार से कोई भीख नहीं मांग रहा है. बल्कि अपना हक मांग रहा है. जब देश का ये किसान सुबह साढ़े 4 चार बजे उठकर मेहनत करता है, तब जाकर देश पेट भर भोजन कर पाता है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ये देश किसी एक व्यक्ति का नहीं है. बल्कि हर किसान, हर मजदूर का है जो इस देश के लिए मेहनत करता है.
इतना ही नहीं, इस किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी मंच पर दिखें. पहले तो वे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से हाथ मिलाते हुए दिखे. इसके बाद उन्होंने भी किसानों को संबोधित किया.
केजरीवाल ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं दिल्ली का मुख्यमंत्री हूं और आप सभी का में दिल्ली मैं स्वागत करता हूं. लेकिन, इसके साथ ही मुझे इस बात की पीड़ा है कि आप लोग बेहद दुखी के समय में आए हैं.
हालांकि, अपने संबोधन में केजरीवाल ने मोदी सरकार पर भी जमकर निशाना साधा. उन्होंने शेर की तरह दहाड़ते हुए कहा कि मोदी जी इन किसानों का कर्जा मांफ कर दो नहीं तो ये अब आपके पास महज 5 महीने ही बचे हैं. यही किसान आपको 2019 के लोकसभा चुनाव में मुंह तोड़ जबाव देगी.
इतना ही नहीं, ऐसा पहली बार देखा गया है. जब किसी किसान आंदोलन के दौरान इतनी बड़ी में तदाद में सियासी दल के नुमाइंदे इतनी बड़ी तदाद में देखने को मिले हैं. इसके साथ ही इनके मध्य एक अनुठी एकजुटता भी देखने को मिली है.
इस आंदोलन के दौरान मुख्य तौर पर कांग्रेस, सपा, बसपा, कम्युनिस्ट और अनेकों विपक्षी पार्टियों के बीच एक अनोखी एकजुटता देखने को मिली है. बता दें कि कुमारास्वामी के शपथ समारोह के बाद इतनी बड़ी संख्या में विपक्षी एकजुटता देखने को मिली है.