यह लेख थोडा पुराना जरुर है लेकिन विषय को ध्यान में रखते हुए इसकी उपयोगिता आज भी उतनी ही है जितनी लिखा उस समय थी! क्योकिं वर्तमान देश दुनिया का पूंजीवाद की पीछे-पीछे दौडने की स्पर्धा देखते हुए तो और भी महत्वपुर्ण है किसी समय में संपूर्ण विश्व का समाजवाद को मर्गदर्शक बने हुए देश सोवियत रूस और चीन आज दुनिया कि पूंजीवाद की स्पर्धा में जिस तेज गति से अग्रसर हो रहे हैं और अपने खुद के घर के ही मजदूरो का जो शोषण कर रहे हैं वह पहले से ही पूंजीवाद के समर्थन वाले देशो को भी मात दे रहे हैं ! मानवाधिकार से लेकर जिन मजदूर-किसानो की मदद से वहा की समाजवादी क्रांतिया आज से रशियामे 103 साल पहले और चीन में 72 साल पहले हूई थी लेकिन आज उन दोनो देशो की वर्तमान स्थिति में यह संशय की स्थिति लगती है कि क्या सचमुच ही समाजवादी क्रांतियाँ हूई थी? इसलिए मैं यह मेरी अपनी पोस्ट पुनाह पोस्ट कर रहा हूँ ! कार्ल मार्क्स की 136 वीं पुन्यस्मरण पर !
साथियो कल कार्ल मार्क्स की 136 वी पुण्यतिथि थी ! मै फिलहाल काफी समय के बाद अपने घर में एक महीने से मैडम खैरनार की तबीयत के कारण हूँ तो खाली समय में मेरी लायब्रारी में पूरानी किताबे मुख्यतः कलकत्ता के 15 साल के वास्तव्य में कॉलेज स्ट्रीट के फुटपाथ और कुछ बुक फेयर से ले रखी है ! सभी को पुरा पढना हूआ नहीं है इसलिये जब कभी फुरसत मिलती है तो मैं उह्णे उलट पुलट करता रहता हूँ 13 मार्च को इसी क्रममे कमुनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया का एन इ बालाराम नामके एक मलियाली लेखक की छोटी सी 100 से भी कम पन्नोकी किताब हाथ में आते ही मै उसे पढकरही नीचे उतरा (मेरा पढनेका कामरा दूसरी मंजिल पर है)
1912 में भारतीय भूमि पर मार्क्सवादी स्वदेश भीमाणी रामकृष्ण पिल्लई ने कार्ल मार्क्स की जीवनी लिखी लेकिन तब तक मार्क्सवादी विचार को लेकर कोई राजनैतिक हलचल नहीं हो रहा थी ! 1921 में यंग नैशनलिस्ट और मजदूरों के बीच काम करने वाले मुझफ्फर अहमद कलकत्ता,मुम्बई में एस ए डांगे,लाहौर में गुलाम हुसेन 1923 में कूछ प्रयास कर रहे थे वो लोग कुछ पत्रिका भी नीकाल रहे थे कलकत्ता से नवयुग,मुम्बई से सोशलिस्ट और लाहौर से इन्क़लाब गुलाम हुसेन नीकाल रहे थे !
कमुनिस्ट मनिफास्टो बँगला और मराठी में 1921 में छप चुका था ! 1923 मे यह गतिविधि मद्रास इसके अलावा विदेशो में भी कुछ प्रयास किया है अफगानिस्तान,जर्मनी और रशिया में एम एन रॉय खुद लगे हुए थे !1911 से 1922 तक भारत के औद्योगिक शहरों में मुम्बई,कलकत्ता,कानपुर,अहमदाबाद,मद्रास के मजदूरों में अच्छी-खासी साख बनने के बाद लगभग सवा लाख मजदूरों ने हड़तालें 1918 में भाग लिया इसी तरह 1920,1921के हड़ताल जमशेदपुर के लोहे के कारख़ानों,जबलपुर में रेलवे अहमदाबाद के कपडे के कारखान में और इसके परिणामस्वरूप 1920 मे अखिल भारतीय मजदूर कोन्ग्रेस का जन्म हुआ है !( AITUC) !! याने भारत में कमुनिस्ट पार्टी के पांच साल पहले कमुनिस्ट मजदूरों के संगठन का जन्म हुआ है !
1919 में रौलट ऐक्ट के खिलाफ जो प्रतिवाद हूआ उसी के जवाब में जलियावाला बाग हत्याकांड उसी समय खिलाफत मुहमेंट तथा किसानों के आन्दोलन परवान पर चल रहे थे ! 1922 की बार्डोली कॉन्ग्रेस की वर्किंग कमेटी की फरवरी बैठक में अचानक गाँधी जी की सलाहपर चौरीचौरा काण्ड के फलस्वरुप सिवीलनाफरनामिके आन्दोलन को स्थगित करने का एलान कर दिया गया ! इस घोषणा के बाद मोतीलाल नेहरू,सी आर दास,लाला लाजपत राय और जवाहरलाल नेहरु ने भी गाँधी जी के निर्णय की आलोचना की है !
इसी परिप्रेक्ष्य के कमुनिस्ट ग्रुप वजुद में आने की प्रक्रिया तेज हो गई वैसे 1913 को गदर पार्टी बन चुकी थी,बंगाल क्राँतिकारी पार्टी भी ! इन सब गुटों के बीच मुजफ्फर अहमद और प्रमुखतः एम एन रॉय कमुनिस्ट इन्टरनेशनल के लिए जो खुद कम्यूनिस्ट इन्टरनेशनल के 1924 से 1929 तक एक्जिकुटीव्ह के सद्स्य थे 1929 मे उह्ने उससे निष्कासित कर दिया वह अलग बात है !
1924 मे कानपुर षड्यंत्र केस में काफी कमुनिस्ट नेताओं को पकड़ा गया ! जिसमे डांगे,मुजफ्फर अहमद और अन्य साथियों को जेल भेज दिया इसलिये पार्टी का वजूद में आना थोडा समय के रुक गया लेकिन सालभर के भीतर ही 1925 मे डिसेंबर महीने में कानपुर में एक सम्मलेन में एलान कर दिया जनवरी 1926 से कार्य करना शुरु कर दिया जिसमे एस वी घटाटे,मुजफ्फर अहमद,सिंगरवेलू चेत्टीयार,हझरत मोहानि,जानकी प्रसाद,निमकर और जोगलेकर पार्टी के पहले सेक्रेटरी एस वी घटाटे 1929 तक रहे !यह है भारत की पहली कमुनिस्ट पार्टी का संक्षिप्त इतिहास !
लेकिन द्वितिय विश्वयुद्ध में रशियन कम्यूनिष्ट पार्टी के फेरेमे पड़कर पहले युध्दके तरफसे और तुरंत युध्द के खिलाफ के निर्णय लेने की गलती और उसी चक्कर में फसकर 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के खिलाफ जाने के निर्णय ने पार्टी की भूमिका के कारण विस्वस्नीयता को गहरी चोट लगी ! इसलिए भारत विरोधी ठप्पा जो लगा उसे दूर करने के लिए थोडी शुरुआत हुई थी लेकिन 1962 ने चीन ने जो हमला किया था उसे मुक्तिदाता कहने की इतिहास की सबसे बड़ी भूल कर बैठे ! उसके बाद दो धडे हो गये ! लेकिन जो नूकसान होना था वह हूआ जनता में देश विरोधी पार्टी की छविको नही दुरुस्त कर सके ! और 15 साल नहीं हुये थे तो 1974 में जेपिके आंदोलन को सी आई ए की साजिश बोलकर खाली उससे अलग नहीं रहे उल्टा कॉग्रेसियो के साथ मिलकर पूरे देश में उस आंदोलन के खिलाफ प्रचार प्रसार में अहम भूमिका निभाई है ! हालाकि कम्युनिस्ट पार्टी के सामान्य कार्यकर्ता बहुत अच्छा काम करते हुए भारत में उनके त्याग और तपस्या के तुलना में उनको राजनैतिक मान्यता जनता में थोडा बंगाल,केरल और त्रिपुरा के अपवादों को छोड़कर नहीं है और बंगाल,त्रिपुरा में भी हारका सामना करना पड़ा केरल भी कब तक रहेगा यह सवाल उठता है कि 1925 में ही पैदा हुई आर एस एस आज कहा है और सोशित,पीडित,किसान,मजदूरों के लिए सतत काम करने वाली कम्युनिस्ट पार्टियों को आज यह दीन क्यो देखना पड रहा है ?
1925 के बाद यह तीन गल्तियों का खामियाजा आज भी भुगतना पड़ रहा है ! इससे सबक लेकर आगे बढ़ने की शुरुआत की थी और इसिलिए 1977 में पस्चीम बंगाल में सरकार बनाने का मौका मिला था ओपरेशन बर्गा करके ही 35 साल लगातार राज किया ! लेकिन नंदीग्राम और सिन्गुर जैसे जनविरोधी प्रोजेक्ट थोपने की कोशिश में सत्तासे हटाया गया जो अबतक की सबसे बडी भूल हुई है लेकिन भूल करना और उससे कुछ भी नहीं सीखने की बीमारी से पीड़ित पार्टी आब दुबारा इस देश में कब उभरती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा ! कार्ल मार्क्स की याद में आज इतनाही !
कार्ल मार्क्स की 136 वी पुण्यतिथि के अवसर पर विनम्र श्रद्धांजलि देने का प्रयास किया है ! इसमे मुझे किसी को अपमान करना या मन दुखानेका बिलकुल इरादा नहीं है लेकिन फिर भी किसी साथी को ऐसा लगा होगा तो मैं माफी चाहता हूँ क्योंकि वर्तमान समय में हमारी सबसे बड़ी समस्या सम्प्रदायिक शक्तियों को निकाल बाहर करने के लिये गोलबंद होने की है नाकी एक दूसरे को नीचा दिखाने की ! मैं अपने आदत के अनुसार अपने जन्म दिन से लेकर अपने आदर्श लोगो के जन्म दिवस के अवसर पर इसी तरह आत्मपरिक्षण करते रहता हूँ !
डॉ सुरेश खैरनार ,नागपुर 14 मार्च 2019 कार्ल मार्क्स की 136 वीं पुन्यस्मरण के बहाने एक मुक्त चिंतन