नई दिल्ली : कभी देश के लिए जान हथेली पर रखने वाले इस सिपाही की हालत जानेंगे तो आप की भी आँखें नम हो जाएंगी. हम बात कर रहे हैं 85 साल के ठाकुर सिंह के बारे में जो कभी भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए काम किया करते थे. आज इनकी हालत ऐसी हो गयी है कि पेट पालने के लिए इनकी बीवी दूसरों के घरों के जूठे बर्तन माजती है. लेकिन सत्ता पर काबिज़ नेताओं को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है.
अमृतसर के तरनतारन के सीमावर्ती गांव माड़ी मेघा निवासी ठाकुर सिंह (85) आज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। ठाकुर सिंह की पत्नी अब लोगों के घरों के बर्तन साफ करके अपने घर का खर्चा चलाने को मजबूर है। ठाकुर सिंह को पाकिस्तान में एक साल जासूसी करने के बाद उन्हें वहां की इंटेलिजेंस ने पकड़ कर कोट लखपत जेल में बंद कर दिया था और वहां पर उन्हें 12 साल तक नजरबंद रखा गया, लेकिन उस दौरान भी गवर्नमेंट ने ठाकुर सिंह का हाल तक नहीं पूछा।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक ठाकुर सिंह ने बताया कि देश के बंटवारे से पहले उनका घर धनौडा (लाहौर) में था। जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो वह 9 साल की उम्र में भारत आ गए थे। समय गुजरने के बाद फिर किसी मामले में खालड़ा पुलिस (अमृतसर) उन्हें थाने ले गई और उन्हें फिर पाकिस्तान जाकर जासूसी करने को कहा।
1975-76 में उन्होंने देश के लिए जासूसी की थी। 1975 में जासूसी के दौरान रॉ ने उनसे ‘जंग’ अखबार मंगवाया था। ठाकुर सिंह ने बताया कि 1977 में जनवरी महीने में पाकिस्तान में रेलवे स्टेशन से पाक इंटेलिजेंस ने उन्हें दबोच लिया था। इसके बाद उन पर केस चलाया गया और 2 साल उन्हें अंडर आर्मी में कैद रखा, जिसके बाद कोट लखपत जेल में नजरबंद कर उन्हें टॉर्चर किया गया। इस दौरान उनकी दायीं टांग और एक हाथ की उंगलियां तोड़ दी गई थीं। ठाकुर सिंह ने बताया कि 1988 में भारत-पाक ने एक-दूसरे के कैदियों को रिहा करने का फैसला लिया था और जब कैदियो को रिहा किया गया तो उनमें एक नाम ठाकुर सिंह का भी था.
ठाकुर सिंह की हालत देखकर आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकार भारतीय जाबाजों के प्रति कितनी लापरवाह होती जा रही है. ठाकुर सिंह और उनकी बीवी आज एक कच्चे मकान में किसी तरह से गुज़ारा करते हैं. सरकार और एजेंसी ने आज तक उनकी कोई खबर नहीं ली. इस खबर से ना सिर्फ देश का सिर शर्म से झुका है बल्कि सरकारों के नाकारेपन की पोल भी खुल गयी है कि आखिर देश के लिए जान देने के लिए तैयार रहने वाले जाबाजों को सरकार से क्या मिलता है.