तूतीकोरन शहर और आसपास के गांवों के निवासी अपने पानी और हवा को प्रदूषित करने के लिए कारखाने को दोषी ठहराते हैं, जिससे स्वास्थ्य समस्याओं की एक श्रृंखला का निर्माण होता है. 25 वर्षीय एस पासुपथी ने अपने दो साल के बेटे हरीश को चार अलग-अलग दवाई दे रहे है, जो लगातार छाती के संक्रमण से पीड़ित हैं. उनको और सेल्वा राज, जो तमिलनाडु के तूतीकोरन में एक वेल्डर है, को अपने बच्चे को हर हफ्ते अस्पताल ले जाने होता है. वे लोग अपने उपचार और दवाओं पर 1000 रुपये खर्च कर रहे हैं. एक वर्ष पहले तक वह ठीक था. पासुपथी कहते है कि बच्चे को वह अपनी गोद में अस्पताल ले जाता है. डॉक्टरों का कहना है कि स्टरलाइट संयंत्र के आसपास रहने से समस्या गंभीर हो जा रही है, लेकिन डॉक्टर ये बात छाती संक्रमण के कारण के रूप में नहीं लिखते हैं. स्टरलाइट एक घनी आबादी वाले क्षेत्र में दुनिया का सबसे विशाल धातु गलाने वाले कंपनी को विस्तारित करने की योजना बना रहा है. 2015 की परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट के मुताबिक, 4.6 लाख से अधिक लोग इसके आसपास रहते है. दो दशकों से तूतीकोरन में एक्टिविस्ट इस क्षेत्र की वायु और जल संसाधनों को दूषित करनेकी वजह स्टरलाइट बताते है. पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट के अनुसार, धातु गलाने वाला मुख्य प्रदूषक सल्फर डाइऑक्साइड और कण पदार्थ हैं. संयंत्र के आसपास रहने वाले लोगों ने कहा कि वे शुरुआत में इसके हानिकारक प्रभाव से अंजान थे, लेकिन उन्हें अपने बीमार स्वास्थ्य के मुख्य कारण का अब पता चल गया है. सेल्वा राज कहते है कि हमारे गांव के हर घर में, कम से कम कुछ लोग किसी प्रकार की बीमारी से पीड़ित हैं. बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. इस साल जनवरी में, जब उन्होंने सुना कि स्टरलाइट एक और संयंत्र स्थापित कर धातु गलाने की क्षमता को दोगुना करने की योजना बना रहा है, तो उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा का भय और मजबूत हो गया. उन्होंने आंदोलन शुरू किया. वे कुमाररेयपुरम गांव में रहते है, जो संयंत्र से काफी नजदीक है. दो महीने के दौरान ही उनके समर्थन में काफी लोग आ गए. इन लोगों ने सरकार से संयंत्र बंद करने की मांग की.