अवार्ड हाथ में थामे अधिकार को तरस रहे शिक्षक

भोपाल। नियमित शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा स्कूल और इसके बाहर की जाने वाली अतिरिक्त एक्टिविटीज, नवाचार और कुछ खास कर दिखाने जैसे मामलों को आधार बनाकर दिया जाने वाला शिक्षक सम्मान मजाक बनकर रह गया है। बरसों पहले मिले अवार्ड के बाद भी दर्जन भर से ज्यादा शिक्षक अब तक अपने अधिकार के लिए सरकार की तरफ मुंह बाएं खड़े हैं। कोरोना काल में जहां प्रदेशभर के जिलों से आधे शिक्षकों को ही अवार्ड के लायक माना गया, वहीं कोविड गाइडलाइन के चलते उन्हें बिना किसी समारोह के गुपचुप में तमगा थमा दिया गया।

लोक शिक्षण संचालनालय ने पिछले शैक्षणिक सत्र के लिए राष्ट्रीय और प्रदेश स्तरीय शिक्षक सम्मान के लिए प्रदेश के सभी जिलों से आवेदन बुलाए हैं। प्रत्येक जिले से बुलाई गई तीन शिक्षकों की फाइल में से हर जिले का एक शिक्षक अवार्ड के लिए चुना जाना है। बरसों से जारी परंपरा के मुताबिक 5 सितंबर शिक्षक दिवस पर इन्हें सम्मानित किया जाएगा। हालांकि लोक शिक्षण संचालनालय ने फिलहाल चयन की कोई गाइडलाइन तय नहीं की है।

बदली चयन प्रक्रिया, अवार्ड आधे
जानकारी के मुताबिक साल 2020 में दिए जाने वाले राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान मूल्यांकन पद्धति लागू की गई थी। इसके तहत जिलों के कलेक्टर और शिक्षा अधिकारियों से चयनित और अनुमोदित होकर आए शिक्षकों के सिफारिशी अंकों का टोटल लगाया गया। सूत्रों का कहना है कि अपने जिलों से बेहतर स्कोर अर्जित कर लोक शिक्षण संचालनालय पहुंचे कई शिक्षक मुख्यालय की नियमावली की मंझधार में फंस गए। इस स्थिति से प्रदेश के दर्जनभर से ज्यादा सम्मान से बाहर खड़े हो गए थे। बाधाओं के साथ अंतिम सूची में पहुंचे शिक्षकों की तादाद हर साल दिए जाने वाले सम्मान से आधे होकर रह गए थे। यह तादाद महज 20-25 तक ही सिमटकर रह गई थी। इसके बाद भी 5 सितंबर शिक्षक दिवस पर होने वाले समारोह के दौरान दिए जाने वाले सम्मान के बीच ऐन वक्त पर कोरोना और लॉक डाउन से बने हालात आ गए। बड़े आयोजनों पर लगी पाबंदी ने कार्यक्रम के हालात नहीं बनने दिए और चयन के बाद भी प्रदेशभर के शिक्षकों को कलेक्टरों के मार्फत शिक्षकों को सम्मान सौंप दिया गया है। ये सम्मान भी उन्हें शिक्षक दिवस गुजर जाने के करीब 6 माह बाद मिल पाया था।

तमगा लेकर बैठ जाओ, सुविधाएं नदारद
राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय सम्मान पाने के पीछे शिक्षकों की मंशा सामाजिक प्रतिष्ठा तो है ही, इसके साथ उन्हें सम्मान स्वरूप दो वेतनवृद्धि और एक पदोन्नति का लाभ भी मिलता है। इसी के लिए सम्मान दौड़ में आगे आने वाले बड़ी तादाद में शिक्षक ऐसे भी हैं, जिन्हें सम्मान मिलने के बाद भी बरसों तक मुनासिब सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। पदोन्नति के लिए प्रयासरत ऐसे शिक्षकों के हाथ में वेतनवृद्धि का टुकड़ा थमाकर खामोश कर दिया जाता है। सरकारी नौकरी की बंदिशों में बंधे यह शिक्षक अपने साथ हो रहे अन्याय को लेकर कहीं आवाज उठाने भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2013 में राष्ट्रपति सम्मान से नवाजे गए शिक्षकों को अब तक महज आर्थिक लाभ मिल पाए हैं, जबकि इन्हें अब तक पदनाम नहीं मिल पाया है।

कहानी टेबल के नीचे की
सूत्रों का कहना है कि समाज को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले शिक्षकों को अपना सम्मान साबित करने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा भी लेना पड़ रहा है। लोक शिक्षण संचालनालय में नामों को अंतिम रूप देने के बदले मोटी रकम की मांग शिक्षकों से की जा रही है। इस काम के लिए डीपीआई दफ्तर से लेकर प्रदेशभर में दलाल सक्रिय हैं, जो होनी को अनहोनी और अनहोनी को होनी कर देने के लिए सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि करीब 25 हजार रुपए के इस सम्मान के बदले शिक्षकों से 30 से 35 हजार रुपए तक की मांग की जा रही है। इससे पहले शिक्षक को अपनी सम्मान फाइल डीपीआई तक पहुंंचाने के लिए सरपंच से लेकर संकुल और उससे आगे चलकर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय तक भी लोगों की खुशामद से लेकर मुठ्ठी गरम करने की स्थिति से गुजरना पड़ रहा है।

इनका कहना है
कोविड हालातों के कारण सम्मान समारोह आयोजित नहीं हो पाए थे। इस बार स्थिति बदली हुई है। सब कुछ ठीक रहा तो सम्मान समारोह अपनी गरिमा के अनुरूप ही आयोजित किया जाएगा।
जयश्री कियावत,
आयुक्त, डीपीआई

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