पूरे देश में किसानों के बीच अभी भले ही भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर बहस छिड़ी है, लेकिन बिहार के किसान धान की खरीद, उसमें हुए घपले और फिर उस पर हो रही राजनीति को लेकर तबाह हैं. राज्य सरकार कहती है कि किसी भी हाल में किसानों का अहित नहीं होने देंगे, केंद्र सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये के चलते कुछ परेशानी हो रही है, लेकिन हालात नियंंत्रण में हैं और किसानों को उनका वाजिब हक़ मिलेगा. उधर केंद्र सरकार में बैठे बिहार कोटे के मंत्री किसानों को हो रही परेशानियों का ठीकरा राज्य सरकार के सिर फोड़ रहे हैं. उनका कहना है कि राज्य सरकार चीजों को सही तरीके से मैनेज नहीं कर पा रही है और उसकी नीयत ठीक नहीं है. इस बीच आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय की अथक मेहनत से यह मामला पटना हाईकोर्ट की चौखट तक पहुंच गया और अदालत नेे इस मामले को काफी गंभीरता से लेते हुए कहा है कि धान खरीद की जांच किसी बड़ी एजेंसी से कराना ज़रूरी लग रहा है.
शिव प्रकाश राय बताते हैं कि चारा घोटाला तो इस घोटाले के सामने कुछ भी नहीं है. पिछले तीन सालों में चावल मिलों को दिया गया 2,673 करोड़ रुपये का धान छू-मंतर हो गया है. ये आंकड़े आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना में उजागर हुए हैं, जबकि सरकार के मुताबिक, केवल 1,581 करोड़ रुपये की वसूली होनी है, जिसमें से 162 करोड़ रुपये की वसूली की जा चुकी है. इसके अलावा बेस गोदाम में
2011-12 से लेकर 2013-14 तक 219 करोड़ रुपये का धान बर्बाद हो गया. इस संबंध में 122 पदाधिकारियों पर कार्रवाई शुरू हुई है और 17 के ़िखला़फ प्राथमिकी भी दर्ज की गई है. आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय के मुताबिक, चावल मिलों को धान देने से पहले उसके एवज में चावल ले लेने का प्रावधान है. इस प्रावधान के उल्लंघन के कारण ही यह स्थिति पैदा हुई.
बेस गोदाम से संबंधित आंकड़े उपलब्ध कराते हुए राय ने कहा कि सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. यह बड़ा घोटाला है और इसमें बड़े-बड़े लोग शामिल हैं. हम 2012 से ही निगरानी विभाग और आर्थिक अपराध इकाई को पत्र लिखते रहे हैं, मगर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. अब मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है और पूरी उम्मीद है कि वहां से न्याय ज़रूर मिलेगा. अदालत को बताया गया है कि बीएसएफसी द्वारा धान की खरीद में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां की जा रही हैं. केवल एक साल में ही चार सौ करोड़ रुपये की गड़बड़ी सामने आई है. मिल मालिकों, अधिकारियों एवं बिचौलियों की मिलीभगत से घोटाले का खेल जारी है. एक अनुमान के अनुसार, अगर जांच हो, तो घोटाले की राशि दो हज़ार करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी. सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011-12 में चावल मिलों से वसूली न होने के कारण 433.94 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ.
धान खरीद में जो खेल होता है, उसे पहले सीधे शब्दों में समझने की कोशिश करते हैं. बिहार में धान की खरीद पैक्स और बिहार राज्य खाद्य निगम के क्रय केंद्रों में होती है. वर्ष 2014-15 के लिए राज्य सरकार ने 1,350 रुपये प्रति क्विंटल और उसके साथ केंद्र सरकार का 300 रुपये बोनस यानी 1,650 रुपये प्रति क्विंटल का रेट तय कर रखा है. अब किसानों को पहली दिक्कत आती है अपनी फसल को खलिहान से पैक्स और क्रय केंद्र तक पहुंचाने में. अक्सर देखा गया है कि किसान ट्रैक्टर या किसी दूसरे साधन से धान उन केंद्रों तक ले जातेे हैं, लेकिन अगर वहां सेटिंग नहीं है, तो उनकी फसल गुणवत्ता या फिर किसी और आधार पर दो-तीन दिनों तक रोक दी जाती है. नतीजा यह होता है कि किसानों को वाहन के किराये के रूप में ज़्यादा पैसे देने पड़ते हैं. बेचारे किसान इस तबाही से बचने के लिए सेटिंग का सहारा लेते हैं और अपनी फसल औने-पौने दामों पर बिचौलियों को बेच देते हैं. जो किसान अपने बलबूते पर धान बेचने में सफल हो जाते हैं, उन्हें भुगतान को लेकर कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और फिर सेटिंग तकनीक से ही उनका काम हो पाता है.
असली खेल शुरू होता है धान खरीद के बाद. कागज पर बने यानी फर्जी मिल मालिकों को भी धान दे देने का मामला सामने आया है. जबकि नियम यह है कि पहले मिल मालिक से चावल लेना है और फिर बाद में उसे धान देना है, लेकिन सूबे में उल्टी गंगा बहा दी गई है. एक क्विंटल धान के एवज में 67 किलो चावल देने का प्रावधान है. घोटाले का आलम यह है कि करोड़ों रुपये का धान बेस गोदाम में सड़ा हुआ दिखा दिया जाता है. सूत्र बताते हैं कि ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि वह धान औने-पौने दामों में मिलों को दे दिया जाता है. रिकॉर्ड मेंटेन करने के लिए धान को सड़ा हुआ दिखाना ज़रूरी हो जाता है. ऐसे अनेक रास्ते हैं, जिनके माध्यम से किसानों को परेशान कर उनका धान मिल मालिकों को दे दिया जाता है. इस तरह किसानों को बर्बाद किया जा रहा है. अब यह तो जांच से पता चलेगा ही कि आ़िखर किसानों का असली गुनहगार कौन है, लेकिन चुनावी साल होने के कारण राजनीतिक दल इस मामले को जोर-शोर से सदन से लेकर सड़क तक उछाल रहे हैं.
जदयू का कहना है कि केंद्र सरकार को बिहार के किसानों की कोई चिंता नहीं है. पहले तो वह धान खरीद के समय को लेकर राजनीति करती है और अब बोनस को लेकर ग़लतबयानी कर रही है. पार्टी प्रवक्ता नीरज सिंह कहते हैं कि मोदी सरकार ने तो किसानों को बर्बाद करने की कसम खा ली है. भूमि अधिग्रहण बिल इसका ताजा उदाहरण है. जहां तक धान खरीद का सवाल है, तो शुरू से ही केंद्र सरकार की नीयत सा़फ नहीं है. नरेंद्र मोदी के मंत्री ग़लतबयानी करके किसानों को गुमराह कर रहे हैं, लेकिन नीतीश सरकार किसी भी हाल में किसानों का अहित नहीं होने देगी. दूसरी तऱफ भाजपा इसे लेकर काफी आक्रामक हो गई है. विधानसभा सत्र में भी भाजपा ने यह मामला जोर-शोर से उठाया और जांच की मांग की. भाजपा को लगता है कि किसानों का समर्थन हासिल करने के लिए धान खरीद के मामले को ज़िंदा रखना और उसे जांच के दायरे में पहुंचाना ज़रूरी है. भाजपा की रणनीति है कि चुनावी भाषणों में धान घोटाले का मामला जोर-शोर से उठाया जाए. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन-सा दल अपनी रोटी ज़्यादा अच्छी तरह से सेंक पाता है, क्योंकि किसानों को भरोसा तो अब केवल अदालत पर रह गया है.
खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री श्याम रजक ने बताया कि डिफाल्टर चावल मिलों से 162 करोड़ रुपये की वसूली की जा चुकी है और 1,418 करोड़ रुपये की वसूली अभी बाकी है. डिफाल्टर 2,058 चावल मिलों में से 293 ने धनराशि जमा कर दी है. 1,525 मिलों के ़िखला़फ सर्टिफिकेट केस किए गए हैं, जबकि 203 के ़िखला़फ प्राथमिकी दर्ज की गई है. उन सभी 1,525 मिलों के ़िखला़फ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया गया है, जिनके ़िखला़फ सर्टिफिकेट केस किए गए हैं. श्याम रजक ने बेस गोदाम के संबंध में बताया कि 122 पदाधिकारियों पर कार्रवाई शुरू की गई है और उनसे 1.25 करोड़ रुपये वसूले गए हैं, जबकि 17 के ़िखला़फ प्राथमिकी दर्ज हुई है. बरामद किए गए धान की नीलामी से 12.01 करोड़ रुपये हासिल हुए हैं. वहीं बरामद किया गया 1.44 लाख मीट्रिक टन धान अभी बेस गोदाम में रखा हुआ है. पूरे प्रकरण पर सीएजी रिपोर्ट में कहा गया कि 2011-12 में चावल मिलों से वसूली से 43.94 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं. प
बिहार : धान घोटाला बनेगा चुनावी मुद्दा
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