मै तो भूल भी गया था कि इस नाम का कोई व्यक्ति जिवित भी है ! कल अगस्त के आखिरी दिन 31 अगस्त 2022 को ! मिखाइल गोर्बाचेव 91 साल के उम्र में इस दुनिया से विदा हो गऐ ! 1917 में सोवियत संघ की क्रांति के बाद ब्लादिमीर लेनिन(1870 – 1924) अजरामर हो गये हैं ! वैसे ही उनके बाद द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जोसेफ स्टालिन (1879-1953), और उनके बाद निकिता क्रुश्व्चेव्ह (1894 – 1971), और निकिता क्रुश्व्चेव्ह के बाद ब्रेझनेव्ह (1964 -1982 ) , बीच में तीन साल के गेप के बाद 1985 से मिखाइल गोर्बाचेव सोविएत रशिया के कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बनने के बाद ! महासचिव, कम्युनिस्ट पार्टी में सब से प्रभावशाली पद होता है ! जिसमें मिखाइल गोर्बाचेव 1931 में प्रिबोलनॉय नाम के एक छोटे से देहांत में पैदा हुए ! संपूर्ण राष्ट्र के स्तर पर पार्टी को नेतृत्व करने का अधिकार मिल गया था !


हालांकि सभी कम्युनिस्ट पार्टीयो में भले ही वह सत्ता में रहे या नहीं रहे ! महासचिव ही सर्वेसर्वा होता है ! और जब गोर्बाचेव सत्ता में आये थे ! तब रशियन अर्थव्यवस्था दिवालिया हो चुकी थी ! अमेरिका की स्पर्धा में अश्रशस्रोकी होड, तथा अंतराल संशोधन, फिर चांद पर जाने की बात हो ! या किसी और ग्रहगोल की सवारी में ! बेतहाशा पैसे लगाने के कारण रशियन अर्थव्यवस्था दिवालिया होने के प्रमुख कारणों में से एक कारण, अमेरिकी पूंजीवाद की नकल में राज्य पूंजीवाद फिर औद्योगिक उत्पादन हो ! या युद्ध साहित्य के क्षेत्र में उत्पादन में ! रशियन जनता के असली समस्याओं से मुंहमोडकर ! ( जो वर्तमान समय में हूबहू भारत के आठ साल के तथाकथित विकास के, और जीडीपी के आंकड़ों के खेल में उलझा कर ! हमारे देश के चंद लोगों की संपत्ति में बेतहाशा बढोतरी हो रही है ! और सामान्य आदमी और भी गरीब हो रहा है ! )


वहीं हाल सोवियत रूस के, किसानों की स्थिति कर्ज में डूबी हुईं बन चुकी थी ! रुबल तो बहुत थे ! लेकिन सिर्फ कागजों की रद्दी की स्थिति में चले गए थे ! और इस कारण बाजारों में रुबल लेकर जाने से कवडीमोल हो चुके थे ! लगभग संपूर्ण रशियन अर्थव्यवस्था बुरी स्थिति में चली जाने के कारण, कार्यक्षमता ठप्प हो गई थी ! विज्ञान – तंत्रज्ञान, कृषी, आरोग्य, शिक्षण सभी स्तरों पर रशिया पिछे चला गया था ! और इस सबके जड में बेतहाशा भ्रष्टाचार था ! पोलिटबुरो के सदस्यों ने, और पार्टी के पदाधिकारियों ने, अपने खुद के लिए तो बेतहाशा सुख – सुविधाओं का इंतजाम कर लिया था ! उस तुलना में, लेकिन सामान्य रशियन नागरिकों को एक ब्रेड, या एक किलो आलू के लिए ! कई किलोमीटर की कतार में मायनस 25-30 डिग्री सेल्सियस तपमान में घंटों खड़े रहना पड़ता था ! लगभग संपूर्ण कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय कमेटी के नेताओं ने अपने पदों का दुरुपयोग कर के रशिया की स्थिति को खराब करने में कोई कोर – कसर छोडी नही थी ! जीस पार्टी के लोग पुंजीवाद के खिलाफ बोलने में सब से आगे रहते थे ! लेकिन उन्होंने अपने ही देश में गत सत्तर साल से राज्य के पुंजीवाद के बारे मे कभी भी अंतर्मुख होकर सोचने की जरूरत नहीं समझी ! जो अमेरिका के पूंजीवाद से कहीभी कम नहीं था !
और 1982 मे ब्रेझनेव्ह की मृत्यु के बाद ! मिखाइल गोर्बाचेव 1985 से रशिया के राष्ट्रपति पद पर आने के बाद ! उन्होंने रशिया की अर्थ व्यवस्था को नई दिशा देने के उद्देश्य से ! दो शब्दों का इस्तेमाल किया (1) ग्लासनोस्त मतलब मुक्तता और आजादी ( 2) पेरोस्रोएका का मतलब देश की अर्थव्यवस्था और राज्यव्यवस्था का पुनर्निर्माण ! देश की रसातल में चलीं गई स्थिति को सुधारने के लिए, और मुक्त वातावरण और विचार विमर्श की आवश्यकता मिखाइल गोर्बाचेव को महसूस हुई ! क्योंकि उसके शिवाय रशिया की स्तिथी को सुधारने के लिए और कोई उपाय नहीं था !


ग्लासनोस्त और पेरोस्रोएका यह कम्युनिस्ट डिक्शनरी में बिल्कुल नये शब्द थे ! ( जिस तरह आर एस एस के अपने शब्द गढे गए हैं ! उदाहरण के लिए वनवासी, समरसता, इत्यादी ) उसी तरह कम्युनिस्टों के भी शब्दों में उदाहरणार्थ बुर्जुआ, पेटी बुर्जुआ, पेटी बुर्जुआ व्हेसिलेशन, रिएक्शनरी, इस तरह से दो सौ से अधिक शब्द है जो आलोचना करते हुए इस्तेमाल किए जाते हैं !
मिखाइल गोर्बाचेव ने सत्ता में आने के बाद ग्लासनोस्त और पेरोस्रोएका यह कम्युनिस्ट डिक्शनरी में नये शब्द थे ! और उसका परिणाम विपरीत हुआ ! कम्युनिस्ट पार्टी का एकमुश्त राज होने के कारण सब कुछ लोहदरवाजे के भीतर होता था ! लेकिन मिखाइल गोर्बाचेव ने सब बंधन मुक्त करने के कारण संपूर्ण विश्व को रशियन कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर के भ्रष्टाचार और आर्थिक कमजोरी की जानकारी संपूर्ण विश्व को हो गई ! इस कारण पार्टी के भीतर मतभेद और गुटबाजी के कारण कम्युनिस्ट पार्टी में बिखराव हो गया और उस कारण कई सोवियत यूनियन में शामिल राष्ट्र अलग अलग होना शुरु हो गए ! और यह सब खुद मिखाइल गोर्बाचेव के लिए अनपेक्षित था ! उन्होंने किए हुए ग्लासनोस्त का एक और परिणाम सत्तर साल से दबे हुए धर्म, भाषा, प्रादेशिक अस्मिता 1917 से चल रही तानाशाही के कारण दबे लोगों ने अपने धर्म तथा प्रादेशिकता के आधार पर अपने आपको सोवियत यूनियन से अलग करने की शुरुआत की ! उन्होंने लेनीन के ही सिध्दांतों पर और अधिक व्यवहारिक स्तर पर देश को चलाने के लिए पेरोस्रोएका मतलब समाजवादी अर्थतंत्र की मुलधारा को हाथ न लगाते हुए केंद्रीय नियोजन के दोषों को दूर करना अभिप्रेत था ! और मिखाइल गोर्बाचेव अपने आप को कम्युनिस्ट और समाजवादी कहा करते थे ! लेकिन संपूर्ण विश्व को ऐसा आदमी जनतंत्र की बात करता है ! मतलब क्या करता है इस बात की उत्सुकता लगीं हुईं थीं ! ग्लासनोस्त और पेरोस्रोएका की संकल्पना कॉइन करने के बावजूद उन्होंने अपने समय में चुनाव नहीं होने दिया !


कम्युनिस्ट – समाजवादी विचारधारा की आर्थिक व्यवस्था और उसके अमल में लाने के लिए कुछ ठोस विचार है ! बाजारवाद को विरोध, पूंजीवाद का विरोध, तथा केन्द्रीय नियोजन इस तरह की अर्थव्यवस्था में सरकारी भुमिका यह बातें समाजवादी व्यवस्था में बहुत ही पुख्ता है ! लेकिन मिखाइल गोर्बाचेव ने पुनर्रचना के संदर्भ में साफ-सफाई से भुमिका नही लेने के कारण, रशिया में जनतंत्र और बाजार की प्रक्रिया शुरू हो गई और यह अप्रत्याशित रूप से हुआ !
यह सब कुछ होने के पहले दुनिया अमेरिका और रशिया इस दो महाशक्तियों के अंतर्गत विभाजित था ! लेकिन रशिया के विघटन के कारण सिर्फ अमेरिका के एकमुखी वर्चस्व बच गया ! मतलब मिखाइल गोर्बाचेव के कारण दुनिया का समाजवादी – गैरसमाजवादी समतोल समाप्त हो गया ! एक अर्थ से समाजवादी विचारधारा को जितना धक्का बाहर से नही बैठा उससे कई गुना मिखाइल गोर्बाचेव के कारण अंदर से ही बैठे और समस्त विश्व का नक्शा ही बदल गया !


इस दौरान उन्हें पार्टी के अंदर ही विरोध शुरू हुआ और उन्हे 1990 में सत्ता छोड़ने के लिए विवश होना पडा ! क्योंकि मिखाइल गोर्बाचेव के ग्लासनोस्त और पेरोस्रोएका के कारण रशियन अर्थव्यवस्था में कुछ भी परिवर्तन हुआ नहीं ! उल्टा वह और अधिक बिघडने लगीं ! इस लिए मिखाइल गोर्बाचेव रशिया की सत्ता से बाहर होने के कारण रशिया छोड़कर अन्य देशों में काफी सहानुभूति मिली थी ! लेकिन रशिया में कुछ भी फर्क नहीं पडा ! पस्चिम के देशों के लिए मिखाइल गोर्बाचेव ने जनतंत्र के लिए बहुत बडा योगदान दिया इसलिये 1991 का विश्व का सर्वोच्च सम्मान नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया . महासत्ता रशिया के विघटन के लिए मिखाइल गोर्बाचेव निमित्त मात्र सिद्ध हुऐ यह वास्तव है !
डॉ सुरेश खैरनार 1 सितंबर 2022, नागपुर

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