जिन घरों में ईद पर हम भी होते थे जरूर ,
अब उन घरों की याद में ही ईद मनती है ।

मैंने विगत 21 अप्रैल को बहुत सालों बाद इस तरह कोई शेर कहने की कोशिश की थी ।यह शेर मैं मैंने जहीर कुरैशी जी को याद करते हुए लिखा था ।विगत 20 अप्रैल को जहीर कुरैशी साहब नहीं रहे ।भोपाल में स्थाई रूप से बसने के बाद वे हर ईद पर मुझे अपने घर बुलाते थे ।उनके निधन का समाचार सुनते ही गहरा धक्का लगा था ।मैंने तत्काल अपने मित्र महेंद्र गगन जी को फोन पर यह दुखद समाचार दिया था ।वे भी सकते में आ गए थे ।फिर 28 अप्रैल को महेंद्र गगन जी भी नहीं रहे ।

ईद पर कुछ और खास घरों की भी बेहद याद आती है ।वे घर तो हैं ,लेकिन हमें बुलाने वाले अब नहीं हैं ।
कामरेड नुसरत बानो रूही जी ,फजल ताबिश साहब ,कामरेड हबीब साहब ,इकबाल मजीद साहब ,आफाक अहमद साहब ,मंजूर एहतेशाम जी जब थे तो ईद पर उनसे उनके घर पर मिलना जरूर होता था ।उस दौरान साहित्य और राजनीति की बातें होती थीं ।आगामी कार्यक्रम भी तय होते थे ।मेरे जैसे नास्तिक को अपने घर बुलाकर ईद की खुशियों में शामिल करने की यादें ही अब बची हैं ।

अभी भी कुछ घर ऐसे हैं ,जहां ईद पर जाएं तो खुशियां और हमदर्दी मिलने का भरोसा बना रहता है ।
अपने उन सभी दिवंगत साथियों को ईद पर बहुत शिद्दत से याद करता हूं ।

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