कम होता भूजल स्तर आज संसद से लेकर सड़क तक एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है. आम लोगों के लिए ये चिंता की बात तो है ही, सरकार की तरफ से भी समय-समय पर इसे लेकर बयान आते रहते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम मन की बात में जल संकट से निबटने के लिए सामूहिक प्रयासों पर जोर दिया था. पिछले ही साल भारत जल सप्ताह कार्यक्रम में बोलते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे लेकर चिंता जाहिर की थी कि भारत में दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी निवास करती है, लेकिन जल उपलब्धता मात्र चार प्रतिशत है. भूजल स्तर को बढ़ाने के सरकारी प्रयासों के मद्देजनर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अलग से 60,000 करोड़ रुपए का फंड बनाने की बात कही थी. हालांकि इस दिशा में सरकारी प्रयास रफ्तार पकड़ते नजर नहीं आ रहे हैं. लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसे कई काम हो रहे हैं, जो भूजल स्तर को बढ़ाने में कारगर साबित हो रहे हैं. ऐसा ही एक उपाय है, सोकपिट.
दिन-ब-दिन सूखते जा रहे तालाबों, नदियों और अन्य जल स्रोतों से सीख लेते हुए देश के कई हिस्सों में सोक पिट्स बनाए जा रहे हैं. स्थानीय भाषा में सोख्ता के नाम से जाने जाने वाले इन सोक पिट्स को लोग आगे बढ़कर इस्तेमाल में भी ला रहे हैं. इसी तरह के एक अनूठे प्रयास के तहत बिहार के सीतामढ़ी जिले में एक साथ 2168 सोक पिट बनाए गए हैं. सीतामढ़ी देश के उन जिलों में शामिल है, जहां भूजल स्तर खतरे के निशान से भी नीचे चला गया है. इसे ठीक करने के प्रयासों के तहत जिला प्रशासन ने युद्ध स्तर पर सोक पिट निर्माण का लक्ष्य रखा और उसे नियत समय सीमा में पूरा भी कर लिया गया.
जिले भर के स्कूलों, स्वास्थ्य केन्द्रों, प्रखंड कार्यालयों व आंगनबाड़ी केंद्रों पर जिला प्रशासन ने सोक पिट का निर्माण कराया. साथ ही इसे लेकर लोगों को भी जागरूक किया गया. सोक पिट निर्माण के लिए जिला प्रशासन ने 21 दिनों का जागरूकता अभियान चलाया था. इस अभियान का उद्देश्य ना केवल जल संचय के प्रति लोगों को जागरूक करना बल्कि उन्हें अपने घरों में सोक पिट का निर्माण करने को प्रेरित करना भी था. एक साथ इतने बड़े पैमाने पर सोक पिट का निर्माण कार्य करने के लिए जिला प्रशासन ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज कराने के लिए आवेदन भी दिया है.
इसी तरह का एक प्रयास महाराष्ट्र के नांदेड़ में भी देखने को मिला. कुछ वर्षों पहले नांदेड़ जिले की हिमायत नगर तालुका के एक गांव तेंभूरनी के लोगों ने आस-पास पानी को एकत्र होने से रोकने के लिए घरों के सामने पानी सोखने वाले गड्ढे बनाए. हालांकि लोगों ने ये प्रयास खुले पानी में पनपने वाले मच्छरों से बचने के लिए शुरू किया था. लेकिन जब कुछ जागरूक व जानकार लोगों की इसपर नजर पड़ी तो उन्होंने इसे सोक पिट में बदलने का मुहिम चलाया. जब इस काम में पैसों की कमी आड़े आने लगी, तो सरपंच प्रह्लाद पाटिल ने लोगों को श्रमदान के लिए प्रोत्साहित किया और धीरे-धीरे पूरे गांव में यही तरीका अपनाया गया. इसका फायदा ये हुआ कि जो गांव कुछ साल पहले तक टैंकर के पानी पर निर्भर था, वहां के लोग अब पानी की जरूरतों के लिए भूजल का इस्तेमाल करते हैं. तेंभूरनी से निकले इस आइडिया को नांदेड़ जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अभिमन्यु काले ने पूरे जिले में लागू करने का निर्णय लिया और सोक पिट निर्माण को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना से जोड़ दिया. इस योजना के तहत आने वाले पैसे से अब यहां सोक पिट का निर्माण भी कराया जा रहा है. इसके कारण यहां भूजल स्तर तो ठीक हुआ ही, इधर-उधर पानी जमा होने के कारण मच्छरों से पैदा होने वाली बिमारियों में भी 75 फीसदी की कमी आ गई है. यहां के स्थानीय निवासी इस गड्ढे को जादुई गड्ढा कहते हैं.
जमशेदपुर के ग्रामीण इलाकों में भी सोक पिट का प्रयोग शहरी आबादी को भूगर्भ जल रीचार्ज करने की सीख दे रहा है. जमशेदपुर प्रखंड के करनडीह, सरजामदा, गदड़ा, तालसा, पुड़ीहासा, सुंदरनगर जैसे कई इलाकों में सार्वजनिक नालियां नजर नहीं आती हैं. कारण है, सोक पिट का प्रयोग. गिरता भूजल स्तर सिर्फ महाराष्ट्र के नांदेड़, बिहार के सीतामढ़ी या जमशेदपुर की समस्या नहीं है, बल्कि ये समस्या पूरे देश को अपनी जद में ले रही है. भूजल स्तर 1 से 1.5 प्रतिवर्ष के हिसाब से नीचे गिरता जा रहा है. इसलिए जरूरत है कि ससमय इस समस्या से निजात पाने के लिए प्रयास किया जाय. सोक पिट इसके लिए आसान और कारगर उपाय हो सकता है.