विकास की रफ्तार के मामले में बिहार लगातार 10वें वर्ष देश के दूसरे प्रमुख राज्यों से आगे बना हुआ है. वित्त वर्ष 2005-06 से 2014-15 के बीच प्रदेश की अर्थव्यवस्था में 10.52 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है. यह देश के अन्य सभी प्रमुख राज्यों में सर्वाधिक है. बिहार विधानसभा में वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी ने आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 पेश किया. राज्य में महा-गठबंधन सरकार के गठन और 14 वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के लागू होने के बाद पेश हुए राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार बिहार में प्रति व्यक्तिआय में वृद्धि दर्ज की गई है. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के कारण वित्त वर्ष
2010-11 से 2014-15 के बीच विकास दर में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई, बावजूद इसके बिहार की विकास दर राष्ट्रीय विकास दर से अधिक है. पिछले वित्त वर्ष की तुलना में वित्त वर्ष 2014-15 में राजस्व प्राप्ति में 9,499 करोड़ की बढ़ोत्तरी हुई है. वहीं, राजस्व व्यय इस वर्ष बढ़कर 72,570 करोड़ रुपये हो गया है. आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 2005-06 से 2014-15 के दरम्यान कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत रही है. यह वृद्धि दर राज्य के लिए महत्वपूर्ण संकेत है क्योंकि राज्य की 90 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है.
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार पटना प्रदेश का सबसे धनवान जिला है. बावजूद इसके पटना और गोवा के निवासियों के बीच की प्रति व्यक्तिआय में 20 हजार रुपये का अंतर है. हालांकि, साल 2012-13 के मुक़ाबले साल 2014-15 में बिहार में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के 37 प्रतिशत से बढ़कर 40.6 प्रतिशत हो गई है. पिछले साल बिहार में पूंजीगत निवेश में भी भारी वृद्धि हुई है. पूंजीगत निवेश बढ़कर 8,954 करोड़ रुपये हो गया है. इस वजह से राजकोषीय घाटा वर्ष 2010-11 के 3970 करोड़ से बढ़कर
2014-15 में 11,178 करोड़ रुपये हो गया है. लेकिन अभी भी यह फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट द्वारा तय सीमा तीन फीसदी से कम है. सरकार इसे अलार्मिंग नहीं मानती है. सर्वे में कहा गया है कि बिहार को 14 वें वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार कर विभाजन से अगले पांच सालों में तकरीबन 50 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा. टैक्स विभाजन में बिहार का हिस्सा 10.917 प्रतिशत से घटकर 9.665 प्रतिशत हो गया है.