दूरस्थ शिक्षा माध्यम यानि पत्राचार को लेकर कुछ समय पहले तक देश में अच्छी राय नहीं हुआ करती थी, लेकिन बदलते व़क्त के साथ बदलती परिस्थितियों को देखते हुए इनकी महत्ता बढ़ी है. सूचना क्रांति ने दूरस्थ शिक्षा के मायने ही बदल गए हैं. शिक्षा के स्वरूप, उद्देश्य और माध्यमों में भी काफी बदलाव आया है. इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जितने विद्यार्थी हर साल बारहवीं पास करते हैं, उन सबके लिए हमारे रेग्युलर कॉलेजों में जगह नहीं है, ऐसे में कई छात्रों के लिए दूरस्थ शिक्षा एक बेहतर विकल्प के तौर उभर रहा है. अब कहीं भी रहकर पत्राचार से शिक्षा प्राप्त करना केवल कॉरेपॉन्डेंस मटेरियल तक ही सीमित नहीं रह गया है. अब तो टेलीकांफ्रेंसिंग और मोबाइल के जरिए भी दूरस्थ शिक्षा (डिस्टेंस एजुकेशन) का लाभ बख़ूबी उठाया जा रहा है. दूरस्थ शिक्षा माध्यम में विद्यार्थी को नियमित तौर पर संस्थान में जाकर पढ़ाई करने की जरूरत नहीं होती है. हर कोर्स के लिए क्लासेज की संख्या तय होती है और देश भर के कई सेंटरों पर उनकी पढ़ाई होती है. विजुअल क्लासरूम लर्निंग, इंटरैक्टिव ऑनसाइट लर्निंग और वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए विद्यार्थी देश के किसी भी राज्य में रहकर घर बैठे पढ़ाई कर सकते हैं . वे अपनी ज़रूरत के अनुसार अपने पढ़ने की समय-तालिका बना सकते हैं. डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल के मुताबिक आगामी पांच सालों में देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिले के प्रतिशत को 10 से 15 प्रतिशत करने के राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करने में दूरस्थ शिक्षा का योगदान उल्लेखनीय होगा. डिस्टेंस लर्निंग एजुकेशन की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उच्च शिक्षण संस्थानों के हर पांच विद्यार्थियों में से एक दूरस्थ शिक्षण प्रणाली काविद्यार्थी होता है. समाज के सभी तबकों को समान शिक्षा दिए जाने की जो बात हम करते हैं, दूरस्थ शिक्षण से ही फलीभूत हुआ लगता है.
फायदे-: दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से पढ़ाई करने के कई फायदे हैं. यदि आप जॉब करने के साथ-साथ पढ़ाई करना चाहते हैं तो इसमें कोई परेशानी नहीं होती है, चूंकि इस तरह की शिक्षा में नियमित तौर पर शिक्षण संस्थान जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है. इसका एक और फायदा है कि कम अंक आने पर भी मनपसंद कोर्स में दाखिला मिल जाता है. इसके साथ ही इस माध्यम से पढ़ाई करने की फीस भी काफी कम है. डिस्टेंस एजुकेशन ऐसी व्यवस्था है जिसमें किसी भी कोर्स के लिए उम्र बाधा नहीं होती है, इसलिए बढ़ती उम्र में भी यदि पढ़ने का शौक हो या किसी कारणवश पढ़ाई पहले छोड़नी पड़ी हो तो वह पूरी की जा सकती है. दूर-दराज के इलाकों में जहां महिलाओं का घर से बाहर निकलकर पढ़ाई कर पाना संभव न हो, वहां भी पत्राचार के माध्यम से पढ़ाई पूरी की जा सकती है.
मान्यता
पत्राचार से किए गए कोर्सों की मान्यता कहीं कम नहीं आंकी जाती है. ये भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जितने की रेग्युलर कोर्स. इस माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने पर भी आगे की पढ़ाई करने में कोई परेशानी नहीं आती है. बस यह ध्यान रखा जाए कि जिस यूनिवर्सिटी के तहत एडमिशन लेने जा रहे हों, वह यूजीसी से मान्यता प्राप्त हो. कई जगहों पर पत्राचार से प्रोफेशनल कोर्स करने वालों के लिए प्रोफेशनल अनुभव की भी मांग होती है.
कोर्स व विश्वविद्यालय
अब शिक्षा का उद्देश्य केवल पढ़कर जानकारी हासिल करना या डिग्री प्राप्त करना नहीं है. हर तरह की पढ़ाई रोजगारपरक हो गई है. ऐसे में केवल रेग्युलर कोर्स ही नहीं, पत्राचार द्वारा कराए जा रहे कोर्सों में भी इस बात पर ध्यान दिया जा रहा है. देश के उन सभी विश्वविद्यालयों में, जहां पत्राचार से पढ़ाई होती है, उनमें लगातार नए कोर्स जुड़ रहे हैं. कई यूनिवर्सिटी में वोकेशनल, प्रोफेशनल और साधारण कोर्स भी होते हैं. दूरस्थ शिक्षा माध्यम से किए जाने वाले कोर्स की अवधि रेग्युलर के बराबर या उससे कुछ ज़्यादा होती है. देश भर में लगभग 14 यूनिवर्सिटीज़ ऐसे हैं जिनमें पत्राचार से पढ़ाई कराई जाती है. इनके अलावा देश भर में 54 लर्निंग सेंटर्स भी हैं. दूरस्थ शिक्षण संस्थानों पर डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल की लगाम रहती है. इन संस्थानों से विद्यार्थी न स़िर्फ डिग्री कोर्स ‘ग्रेजुएट, पोस्ट-ग्रेजुएट, एमफिल, पीएचडी’ बल्कि डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्सेज़ भी कर सकते हैं. डिग्री कोर्स के लिए बारहवीं, पोस्ट-ग्रेजुएट कोर्स के लिए ग्रेजुएट और डिप्लोमा व सर्टिफिकेट कोर्सेज़ में दाख़िले के लिए कोई तय योग्यता नहीं है. हालांकि यह संबंधित संस्थान पर भी निर्भर करता है कि वहां इनके लिए क्या योग्यता तय की गई है. इन कोर्सों को करने के बाद रेग्युलर कोर्स की तरह ही नौकरी के लिए प्रयास कर सकते हैं.
व़क्त की कद्र
दूरस्थ शिक्षा माध्यम से पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को व़क्त की कद्र करने की ज़रूरत होती है. चूंकि इसका तरीक़ा बेहद सुविधाजनक होता है, इसलिए इसमें अपनी सुविधानुसार पढ़ाई की जा सकती है. हालांकि ख़ुद ही अनुशासन और रूटीन बनाए रखना मुश्किल होता है पर इस तरह की पढ़ाई की प्रणाली के साथ बेहतरीन टाइम मैनेजर होना बहुत ज़रूरी होता है. इसका कोर्स भी रेग्युलर कोर्स की तरह ही होता है और इस अनुपात में क्लास की पढ़ाई कम होती है तो यह विद्यार्थी पर निर्भर करता है कि वह पढ़ाई में अनुशासन बनाए रखे. इससे आगे चलकर किसी तरह की परेशानी से बचा जा सकता है और अंक भी अच्छे पाए जा सकते हैं.
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