भारत में आज 47.5 करोड़ मोबाइल होने का मतलब है कि भारत की आधी आबादी शीघ्र ही मोबाइलधारी होने वाली है. इतनी बड़ी तादाद में मोबाइल के अलावा भारत में लैंड-लाइन और डब्ल्यूएलएल फोनों की भी बड़ी संख्या है.

आर्थिक मंदी ने दुनिया भर में तहलका मचा रखा है. कई उद्योग और बाज़ार इसकी मार से खस्ताहाल हैं, लेकिन मंदी में भी मोबाइल का धंधा चोखा चल रहा है. इतना कि दुनिया में इस साल के अंत तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या चार अरब हो जाएगी. अकेले भारत में 2009 के आख़िर तक साढ़े 47 करोड़ से ज़्यादा लोग मोबाइल फोन पर बात करते दिखेंगे. बर्लिन में जारी आईटी से जुड़ी एक रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में मोबाइल की संख्या चार अरब से भी अधिक हो जाने वाली है. यह आंकड़ा तो इस्तेमाल हो रहे नंबरों या कनेक्शनों के  आधार पर तैयार किया गया है. फ़िलहाल दुनिया की आबादी छह अरब 80 करोड़ है. ऐसे में चार अरब लोगों के  पास मोबाइल होने का मतलब है कि दुनिया के  हर पांच में से तीन लोग चलते-फिरते फोन पर बात कर रहे हैं.
भारत में आज 47.5 करोड़ मोबाइल होने का मतलब है कि भारत की आधी आबादी शीघ्र ही मोबाइलधारी होने वाली है. इतनी बड़ी तादाद में मोबाइल के अलावा भारत में लैंड-लाइन और डब्ल्यूएलएल फोनों की भी बड़ी संख्या है. ज़ाहिर सी बात है कि भारत टेलीकॉम की दुनिया के  सबसे बड़े बाज़ारों में से एक है. आंकड़ों में बयान करें तो भारत का टेलीकॉम बाज़ार इस साल 24 बिलियन डॉलर यानी 1 लाख 14 हज़ार 527 करोड़ का हो गया है. इस आंकड़े को अगर पूरे देश की कमाई के हिसाब से देखें तो यह हमारी जीडीपी का एक फीसदी है. सोचने वाली बात यह है कि शहरी या अमीर आदमी ही नहीं, बाक़ी सब भी धड़ल्ले से मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं. आज  रिक्शा चलाने वालों के पास भी मोबाइल हैं, और उनके हिसाब से यह उनके लिए बेहद ज़रूरी चीज़ है. इसका इस्तेमाल वे अपने नियमित ग्राहकों से संपर्क बनाने में कर रहे हैं. सवाल यह है कि जहां एक तिहाई आबादी (सरकारी आंकड़ों में) ग़रीबी रेखा से नीचे है, वहीं हर दूसरे आदमी के पास फोन होने की बात को कैसे समझा जा सकता है? भारत, ब्राजील और चीन जैसे देशों में मोबाइलों की संख्या अधिक ते़जी से बढ़ी है. इससे साफ होता है कि मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या सबसे ज़्यादा उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील देशों में बढ़ रही है. सबसे तेज़ बढ़ोतरी तो भारत में ही देखने को मिली है. भारत में इस साल के  अंत  तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले लोगों का आंकड़ा 47.5 करोड़ होने की उम्मीद है. ब्राज़ील में 14 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद है जबकि चीन में मोबाइल फोन रखने वालों की तादाद 12 फ़ीसदी बढ़कर 68.4 करोड़ होने का अनुमान है. विकसित देशों में इस वृद्धि की रफ़्तार सबसे कम है. वहां मोबाइल बाज़ार में ज़्यादा गुंजाइश नहीं है, क्योंकि लोग  पहले से ही इसका फ़ायदा उठा रहे हैं. यूरोपीय संघ में आबादी से ज़्यादा मोबाइल फ़ोन कनेक्शन हैं, इसलिए कंपनियां अब यूएमटीएस टेक्नॉलजी के ज़रिए मोबाइल इंटरनेट फैसिलिटी पर ध्यान दे रही हैं. इसके ज़रिए सबसे तेज़ मोबाइल सिग्नल मिलते हैं. यूरोप में यूएमटीएस टेक्नोलॉजी में 36 प्रतिशत विस्तार की उम्मीद है और इस तरह इसे इस्तेमाल करने वालों की संख्या 17.2 करोड़ हो सकती है. अमेरिका में 74 प्रतिशत इज़ाफ़े का अनुमान है जिसके बाद यह तकनीक 10.8 करोड़ लोगों तक पहुंच सकेगी.
भारत जैसे देशों में अभी भी मोबाइल का तंत्र फैल ही रहा है. हालांकि अब इसका इस्तेमाल एक स्टेटस सिंबल की तरह नहीं रहा है, अब इसे एक बेहद ज़रूरी और काम की चीज़ मान लिया गया है. भारत में इसके फैलाव के लिए बड़ी संभावनाएं हैं. तभी मोबाइल कंपनियां भी बाज़ार के विस्तार में जुटी पड़ी हैं और उन्हें अभूतपूर्व सफलता भी मिल रही है. भारत में मोबाइल का फैलाव आख़िरी आदमी तक होने लगा है.
भारत में मोबाइल तंत्र का विस्तार 32 फीसदी की गति से हो रहा है. यह अजीब बात है क्योंकि अभी हाल में ही जारी हुई, सेनगुप्ता कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में क़रीब 70 फीसदी लोग 20 रुपये रोज़ाना पर गुज़ारा कर रहे हैं. वैसे सोचने वाली बात यह भी है कि जिस तरह से मोबाइल का बाज़ार फैल रहा है, कहीं ऐसा तो नहीं अगले कुछ सालों में मोबाइल को रोटी, कपड़े और मकान के साथ जगह मिल जाएगी! ज़ाहिर है, इससे कुछ चौंकाने वाले नए समीकरण और मायने अवश्य पैदा होंगे.

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