मोरारका फाउंडेशन के चेयरमैन श्री कमल मोरारका ने इस मौके पर किसानों को संबोधित करते हुए जैविक कृषि का महत्व बताते हुए कहा हम अपनी पुरानी परंपराओं को छोड़ रहे हैं. राजस्थान के साथ-साथ देश की भी सबसे बड़ी समस्या पानी की है. पुराने जमाने में वाटर वर्क्स, टयूबबेल वगैरह नहीं होते थे. प्रकृति जितना पानी देती थी, उसे ही बचा कर रखना महत्वपूर्ण काम था.
किसानों को उनकी कृषि-लागत का दो गुना लाभ मिले और उपभोक्ताओं के साथ किसानों का सीधा व्यापारिक-लिंक स्थापित हो इस चिंतन के साथ मुहिम चलाने का संकल्प लिया गया है. मोरारका फाउंडेशन के तत्वावधान में राजस्थान के नवलगढ़ में आयोजित तीन दिवसीय नवलगढ़ महोत्सव में देशभर से जुटे किसानों ने ‘डबल-डबल फार्म इन्कम’ के फार्मूले पर देशभर में अभियान चलाने का निर्णय लिया है.
मोरारका फाउंडेशन के चेयरमैन श्री कमल मोरारका ने इस मौके पर किसानों को संबोधित करते हुए जैविक कृषि का महत्व बताते हुए कहा कि ‘हम अपनी पुरानी परंपराओं को छोड़ रहे हैं. राजस्थान के साथ-साथ देश की भी सबसे बड़ी समस्या पानी की है. पुराने जमाने में वाटर वर्क्स, टयूबबेल वगैरह नहीं होते थे. प्रकृति जितना पानी देती थी, उसे ही बचा कर रखना महत्वपूर्ण काम था. खास तौर पर राजस्थान में उस पानी को सुरक्षित रखने के लिए हमने तरह तरह के तरीके इजाद कर लिए थे. उस समय तो ऐसा कानून भी नहीं था और न कोई एनवायरमेंट मिनिस्ट्री थी. लेकिन कोई ओड़न को छूता नहीं था, कोई बणी को हाथ नहीं लगाता था. उन्हें लगता था ये भगवान हैं. आज ओड़न के सारे एरिया में पक्के मकान बन गए हैं, तो पानी कहां से आएगा. हमने तो खुद ही प्रकृति को बर्बाद कर दिया. राजस्थान की तो यह असलियत है कि वाटर वर्क्स आने से सब सिस्टम चेंज हो गया है, बर्बाद हो गया है. हर गांव में आप जाइए तो वाटर वर्क्स और पानी की टंकी की तरफ ही लोग देखते हैं. अपना प्राकृतिक संसाधन तो छोड़ दिया हमने. श्री मोरारका ने ‘नवलगढ़ एजेंडा’ के प्रति अपना समर्थन जताते हुए कहा कि किसानों को दो गुना फायदा मिले और उपभोक्ता और उत्पादक के बीच सीधा संपर्क हो जाए तो इससे बहुत कुछ समाधान का रास्ता निकल आएगा.’ उन्होंने कहा कि फाउंडेशन ने जबसे ऑर्गेनिक खेती शुरू की है, न केवल राजस्थान बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में किसानों में जागरूकता आई है. धीरे-धीरे आदत पड़ेगी, अभी तो अच्छा लगता है यूरिया डालो, फॉस्फेट डालो, फटाक से उगा लो. ऑर्गेनिक खेती तो मुश्किल काम है.
किसान और उपभोक्ता के सीधे सम्पर्क स्थापित करने के उपायों को लेकर शुरू हुई पहल पर श्री मोरारका ने कहा, ‘ये पहल बहुत अच्छी है, इसे आगे चलाएं. मैं नहीं जानता कैसे होगा, लेकिन ये अच्छा प्वाइंट है क्योंकि किसान उपभोक्ता को सीधे बेचे तो उसमें टैक्स नहीं आता है. अब सम्पर्क और समन्वय कैसे हो यह देखना है. श्री मोरारका ने कहा कि फाउंडेशन के जरिए बहुत काम हुआ है. फाउंडेशन के पास किसानों का पूरा रिकॉर्ड है कि उसके पास कितनी जमीन है और वो कौन कौन सी फसल उगा रहा है. हर क्षेत्र की अपनी अलग खासियत और ताकत है. हर जिले का एक उत्पादन होता है. देश के उस आइटम का 80 फीसदी उत्पादन उसी जिले में होता है. देश का कुल प्याज जितना होता है, उसका 70 प्रतिशत तीन जिलों में होता है. इसका नुकसान भी है कि प्याज के दाम गिरते हैं, तो त्राहिमाम मच जाता है. फाउंडेशन की पहल में शामिल होकर हमें यह कोशिश करनी चाहिए कि किसानों और उपभोक्ता में सीधा कनेक्शन कैसे बैठे. समस्या पैसे की नहीं है, जितनी लागत है उतना कन्ज्यूमर देने को तैयार है. उससे चौगुना दे रहा है, लेकिन वो सीधे किसान तक पहुंच नहीं रहा है. इसका क्या तरीका हो, इस पर सामूहिक रूप से विचार करना चाहिए.’
मोरारका फाउंडेशन के निदेशक मुकेश गुप्ता ने कहा कि न केवल भारतवर्ष बल्कि पूरी दुनिया में भोजन को दो भाग में बांट दिया गया है. खाद्यान्न उत्पादन को कृषि कहा जाता है और खाद्यान्न को पका कर खाने को भोजन कहा जाने लगा. इससे दोनों के बीच जो एक ‘कनेक्ट’ होना चाहिए था, वह नहीं रहा. जैसे बाजरे के खेत में बाजरे की रोटी दिखाई नहीं देती. ठीक उसी तरह बाजरे की रोटी खाने वाले उपभोक्ता को अपनी थाली में बाजरे की फसल दिखाई नहीं देती है. सारी समस्या की जड़ में भोजन प्रोड्यूसर और कंज्यूमर इन दोनों के बीच के लिंक के टूटने का मसला है. इस लिंक के टूटने की वजह से ही आज जो लोग भोजन पैदा कर रहे हैं, वे भूख से मर रहे हैं. उनकी भूख को दूर करने के लिए क्या किया जाना चाहिए, इसके बारे में कोई चर्चा नहीं हो रही है. किसानों को यह विचार करना चाहिए कि पिछले पचास वर्षों में क्या वे आगे बढ़े या जहां थे वहीं रह गए. सब जगह डबल यानी दोगुने की बात हो रही है. हमारे देश में सरकार कह रही है कि 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना कर देगी. अब महंगाई के कारण कीमत बढ़ जाएगी तो सरकार यही कहेगी कि हमने आमदनी डबल कर दी. पहले पंद्रह हजार कमाते थे हमने 30 हजार कर दिया. उसे ध्यान में रखते हुए हमें यह मान कर चलना होगा कि डबल तो सिर्फ महंगाई के कारण हो जाएगी. उससे ज्यादा आमदनी तभी बढ़ सकती है जब हम डबल-डबल फार्म इन्कम की बात करें. यानि हर समय इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि हर वर्ष हमारी आमदनी बीस प्रतिशत महंगाई के हिसाब से और बीस प्रतिशत बेहतरी के हिसाब से बढ़े. हर पांच साल में महंगाई के कारण सरकार वेतन आयोग लाती है और सरकारी मुलाजिमों की तनख्वाह करीब-करीब दोगुनी कर देती है. सरकार कहती है कि तनख्वाह नहीं बढ़ाई, बल्कि महंगाई कंट्रोल करने के लिए महंगाई भत्ता बढ़ाया है. किसानों को क्या मिला आज तक? किसानों का महंगाई भत्ता कहां गया? इस पर किसी भी सरकार ने विचार क्यों नहीं किया? सारे उत्पादों की कीमत महंगाई के कारण बढ़ती रही. जूते से लेकर बिजली और खाद तक. लेकिन कृषि उत्पादों और उसे पैदा करने वाले किसानों को उनकी उपज का दोगुना दाम मिले और दोगुना महंगाई भत्ता मिले, इस बारे में कभी किसी सरकार ने नहीं सोचा. अब किसानों को यह कहना चाहिए कि हम आपका भोजन पैदा करते हैं, ताकि जब भी कोई व्यक्ति रोटी खाए तो उसे पता हो कि वह रोटी किसी और ने पैदा की है. उसकी थाली में रोटी किसी और की मेहनत से आई है. मुकेश गुप्ता कहते हैं कि किसानी और रोटी के बीच का लिंक टूट गया है, इसे हमें जोड़ना पड़ेगा. इस लिंक के जुड़ने से ही उपभोक्ता अपनी थाली में पड़ी रोटी और कटोरियों में डली सब्जी और दाल की अलग-अलग कीमत समझ पाएगा. ठीक वैसे ही जैसे उसे होटल में समझना पड़ता है. खाने के सभी सामान की उसे अलग-अलग कीमत चुकानी पड़ती है. जैसे, बाजार में बाजरे की कीमत अगर 12-13 रुपए है और जैसे ही हम उसे रोटी कहते हैं तो उसकी कीमत पंद्रह गुना अधिक हो जाती है. जब हम उसे फसल बोलते हैं तो वह 12-13 के दायरे में ही रहती है. वह थोड़ा भी महंगा होता है तो अखबारों से लेकर तमाम जगहों पर चिल्लपों होने लगती है, लेकिन इस चिल्लपों का किसानों को क्या फायदा मिलता है? किसान कितने नासमझ हैं कि डेढ़ सौ रुपए की चीज 10-12 रुपए में बेच रहे हैं. इस पर किसी का ध्यान ही नहीं है और यह तब तक चलता रहेगा जब तक फसल का चित्र अलग और राटी दाल का चित्र अलग रहेगा. जिस दिन यह फर्क मिट गया किसानों की समस्या दूर होने लगेगी.
श्री गुप्ता ने कहा कि सरकार झुनझना थमाने के अलावा कुछ नहीं करेगी. हमें खुद ही करना होगा. सरकार की अपनी समस्याएं हैं, वह बीमार है. किसी के घर में तकलीफ आती है तो वह किसी स्वस्थ्य व्यक्ति के पास मदद के लिए जाता है, किसी बीमार व्यक्ति के पास नहीं जाता. सरकार बीमार है, सरकार की सोच बीमार है, सरकार की नीति बीमार है, तो क्या हम उसके पास जाएंगे? क्या हम भूखे मरेंगे? या हम अपना रास्ता खोजेंगे? जिन लोगों ने वह रास्ता खोज लिया है, उनकी आमदनी पिछले तीन वर्षों में सौ प्रतिशत बढ़ गई है. श्री गुप्ता ने इसके लिए कई किसानों का उदाहरण भी दिए, जिन्होंने जैविक खेती और नई तकनीक के बूते अपनी आमदनी बढ़ाई. अलग-अलग इलाकों से आए किसानों की राय पर मुकेश गुप्ता ने कहा कि किसानों को उन फसलों की खेती करनी चाहिए, जिसकी मांग हो और जो हमें पैसा दे. अब किसानों को वह पुरानी सीख छोड़ देनी चाहिए कि सबसे गरीब ग्राहक तक उत्पाद पहुंचे. पूरा देश जब पैसे के पीछे भाग रहा है तो किसान पैसा क्यों छोड़े? किसानों को उसी चीज की खेती करनी चाहिए जो उन लोगों की मांग पूरी करती हो, जिनकी जेब में रुपया है.
श्री गुप्ता ने कहा कि इस आयोजन के जरिए देशभर के किसान नवलगढ़-संवाद शुरू कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य है कि कृषि क्षेत्र में जो कुछ भी पिछले 50 साल में हुआ है, उसकी गड़बड़ियों पर बहस में पड़ने के बजाय सुधार का लक्ष्य तय करें. डबल-डबल फार्मिंग इनकम के फार्मूले को लागू करने पर आपस में संवाद करें और प्रोड्यूसर बनाम कंज्यूमर और फसल बनाम भोजन का लिंक जोड़ें. हम ऐसे भोजन का उत्पादन करें जिसकी कीमत उपभोक्ता देने को तैयार हों. हम ऐसी तकनीक अपनाएं कि उस भोजन के उत्पादन में बढ़ोतरी हो. हम ऐसा प्रयास करें कि उस भोजन के उत्पादन की लागत कम हो. इस डायलॉग को बढ़ाने के लिए फाउंडेशन ने एक वेबसाइट बनाने और व्हाट्सऐप ग्रुप कायम करने का भी फैसला लिया, जिसमें देशभर के किसान आपस में राय-मशविरा करेंगे.
कार्यक्रम में मौजूद राष्ट्रीय किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने किसानों को उन व्यापारिक संस्थानों से आगाह रहने को कहा जो जैविक खेती के खिलाफ किसानों को बहकाते हैं और अपना कीटनाशक और रसायनिक खाद बेचने का धंधा करते हैं. प्रमुख समाजसेवी श्रीमती रीना भारतीय ने ऑर्गेनिक उत्पादों को स्वास्थ्य के लिए बेहतर बताया साथ ही ऑर्गेनिक उत्पादों की कीमत के संतुलन को लेकर भी अपने सुझाव दिए. महाराष्ट्र से आए समाजसेवी सौरभ भट्ट ने सोशल साइट्स के जरिए ऑर्गेनिक कृषि का प्रचार-प्रसार करने और ऑर्गेनिक उत्पादों से कैंसर का इलाज करने के उपायों पर चर्चा की. कार्यक्रम में राजस्थान के अलावा सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल, उत्तर बंगाल, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, ओड़ीशा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत कई प्रदेशों से खासी संख्या में आए किसान शरीक हुए.